इस पोस्ट मे हम कारक की परिभाषा, कारक के प्रकार, कारकों मे अन्तर जानेंगे-
कारक क्या होता है
कारक-'कारक' शब्द का अर्थ है-क्रिया को करने वाला, अर्थात क्रिया का जनक।
परिभाषा के अनुसार -संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबंध क्रिया के साथ जाना जाता है, उसी कारक कहते हैं। ये संबंध अर्थ के आधार पर निश्चित किए जाते हैं; जैसे-'राम ने रावण को बाण से मारा इस वाक्य में 'राम', 'रावण' और 'बाण' संज्ञा पदों का संबंध मारा' क्रिया से सूचित हो रहा है। इस प्रकार कारक एक ऐसी व्याकरणिक कोटि है जिससे यह पता चलता है कि संज्ञा पद वाक्य में स्थित क्रिया के साथ किस प्रकार की भूमिका निभाते हैं।
कारक के छह मुख्य भेद स्वीकार किए गए हैं।
लेकिन कुछ विद्वान कारक के दो अन्य भेद और मानते हैं। किंतु इन पर मतभेद है, क्योंकि इनका संबंध प्रत्यक्ष रूप में क्रिया से नहीं होता। इस प्रकार इन दोनों को भी वर्तमान समय में कारक के भेद के रूप में स्वीकार किया गया है जिससे कारक के आठ भेद माने जाने लगे-
कारक | विभक्तियाँ |
1. कर्ता-क्रिया को करने वाला | ने |
2 कर्म-जिस पर क्रिया का फल पड़े | को |
3.करण-जिससे क्रिया संपन्न हो | से, के द्वारा, के साथ |
4. संप्रदान-जिससे हित की पूर्ति क्रिया से हो | के लिए, को, के, निमित्त |
5. अपादान-अलग होने का भाव हो | से |
6.संबंध-क्रिया को छोड़ कर बाकि सभी से संबध बताने वाला | का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी |
7. अधिकरण-क्रिया करने का स्थान/आधार | में, पर |
8. संबोधन- संज्ञा(किसी भी चीज) को संबोधित करना। | अरे, रे, हे, ओ, अरी, री। |
विभक्तियाँ लेखन की व्यवस्था-संबोधन के चिह्न शुरू में लगते हैं। शेष सभी विभक्तियाँ बाद में
लगती हैं। इस प्रकार प्रयोग व लेखन के अनुसार विभक्तियाँ दो प्रकार की होती हैं-विश्लिष्ट तथा संश्लिष्ट संज्ञा के साथ आने वाली विभक्तियाँ उससे अलग लिखी जाती हैं, इसलिए उसे विश्लिष्ट कहते हैं। राम को श्याम ने, सीता का, माता की।
संश्लिष्ट विभक्तियाँ- ये सर्वनाम के साथ लगती हैं। अर्थात ये उनके साथ जुड़ी हुई होती हैं, इसलिए
उन्हें संश्लिष्ट कहते हैं। जैसे-मैंने, मेरा, उसकी, तुमको, हमसे, उसका आदि।
कारक के भेद-
1.कर्ता कारक-(ने)क्रिया को करने वाला कर्ता कहलाता है। कर्ता विशेष रूप से संज्ञा या सर्वनाम होता है तथा इसका संबंध किया से होता है। इसका चिह्न 'ने' है परंतु इसका प्रयोग सदैव नहीं होता है। इसका प्रयोग सकर्मक क्रियाओं के साथ हो सकता है जो भूतकाल में हो। जैसे-
(1) रमा ने पत्र लिखा।
(2) आपने बुलाया होगा।
वर्तमान और भविष्यकालीन क्रियाओं वाले वाक्यों में किसी भी परसर्ग का प्रयोग नहीं होता;
जैसे-रामदेव व्यायाम करता है। राधा नाचेगी।
भूतकालीन अकर्मक क्रियाओं में भी परसर्ग का प्रयोग नहीं होता। जैसे-
राम गया था। (भूत० अकर्मक)
प्राकृतिक शक्ति या पदार्थ भी कर्ता के रूप में प्रयोग हो सकते हैं। जैसे-
1. चंद्रमा चमकता है
2. सूर्य एक तारा है।
3. बादल बरसते हैं।
अपवाद-कभी-कभी कर्ता के साथ 'को', 'से', के द्वारा विभक्ति का भी प्रयोग होता है।
जैसे-
(1) हमें सो जाना चाहिए।
(2) नटों के द्वारा करतब दिखाए गए।
(3) मुझे अवश्य जाना चाहिए।
(4) साहिल से खेला नहीं गया।
2.कर्म कारक-(को)-शब्द के जिस रूप पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक की विभक्ति 'को' है। कभी-कभी 'को' विभक्ति का प्रयोग नहीं भी होता। जैसे-
(1) राम को बुला लो।
(2) बाज़ ने कबूतर मार दिया।
(3) कवि कविता लिखता है।
उपर्युक्त वाक्यों में 'राम को', 'कबूतर' और 'कविता' कर्म कारक के प्रयोग है। कई वाक्यों में दो कर्म
भी होते हैं-मुख्य और गौण । मुख्य कर्म प्रायः निर्जीव होता है और उसमें विभक्ति चिह्न नहीं लगता। जैसे-
विभक्ति-रहित कर्म को पहचानने के लिए मुख्य क्रिया के प्रति "क्या" और "कहाँ" प्रश्न करना ठीक
होता है; जैसे-
(1) चाचाजी पानीपत गए। (कहाँ गए? / पानीपत-कर्म)
(2) बच्चा दूध पी रहा था। (क्या पी रहा था? / दूध-कर्म)
3.करण कारक(से)
"संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप की सहायता से क्रिया का व्यापार (कार्य) होता है, उसे करण कारक
कहते हैं। इसका परसर्ग "से" है। जैसे-
(1) राम ने पेंसिल से चित्र बनाया।
(2) उसने सारी बात प्यार से की।
(3) शिकारी ने बंदूक से मृग को मारा।
प्रथम वाक्य में चित्र बनाने का साधन 'पेंसिल', दूसरे वाक्य में बात करने का साधन 'प्यार' व तीसरे वाक्य में मारने का साधन 'बंदूक है। अत:पेंंसिल से, प्यार से और बंदूक से करण कारक है।करण कारक में 'से' के अतिरिक्त के साथ', 'द्वारा' और 'के द्वारा' परसर्ग भी प्रयुक्त होते हैं।
(1) मुझे तार द्वारा सूचित करने की आवश्यकता नहीं।
(2) राम ने अचार के साथ रोटी खाई।
(3) पत्र के द्वारा सूचना मिलते ही वह चला आया।
4. संप्रदान कारक-(के लिए)
संप्रदान का अर्थ है-देना। कर्ता जिसे कुछ देता है या जिसके लिए कुछ करता है, उसे बताने वाला शब्द संप्रदान कारक कहलाता है। संप्रदान कारक का विभक्ति चिह्न ‘के लिए' होता है। इसमें 'को', 'के हेतु' वास्ते' परसर्गों का प्रयोग होता है। जैसे-
(1) संगीता पुत्र के लिए आम लाई।
(2) अपनी कलम दूसरों को मत दो।
(3) मनुष्य धन के वास्ते देश-विदेश भटकता है।
(4) पूजा के लिए आसन लाइए।
(5) गुरु शिष्य को ज्ञान देता है।
कर्म तथा संप्रदान कारक में अंतर–'को' परसर्ग कर्म तथा संप्रदान दोनों ही कारकों में प्रयोग होता है। संप्रदान में देने या उपकार करने का भाव मुख्य होता है। अत: देने या उपकार करने की क्रिया में 'को' संप्रदान कारक का बोध कराएगा अन्यत्र में कर्म कारक का। जैसे-
बालक ने भिखारी को रोटी दी। (संप्रदान कारक)
बालक ने भिखारी को बुलाया। (क्रिया का कर्म)
5.अपादान कारक-(से अलग)
अपादान का अर्थ है-अलग होना। संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से अलग होने या तुलना करने का पता चले, उसे अपादान कारक कहते हैं। जैसे-
(1) वृक्ष से पत्ते गिर गए।
(2) राधा सीता से सुंदर है।
(3) चोर ने तिजोरी से रुपये निकाले।
करण और अपादान कारक में क्या अंतर है- दोनों में ही 'से' परसर्ग का प्रयोग होता है। जहाँ साधन के अर्थ में 'से' का प्रयोग हो वहाँ करण कारक तथा बाकी में अपादान कारक का प्रयोग होता है। जैसे-
राम गाड़ी से आया है। (करण कारक)
हम सब रेलवे स्टेशन से आए हैं। (अपादान कारक)
6.संबंध- कारक (क्रिया को छोड़ कर बाकि सभी से संबध बताने वाला) -(का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी)
संज्ञा के जिस रूप से वस्तुओं और व्यक्तियों में संबंध का पता चलता है, उसे संबंध कारक कहते हैं।
जैसे
(1) राम प्रसाद की पुत्री दिल्ली गई।
(2) रहीम की दुकान आ गई।
(3) राहुल प्रियंका का भाई है।
(4) रेखा के दो लड़के हैं।
7. अधिकरण कारक-(में, पर, के ऊपर)
संज्ञा के जिस रूप से किसी व्यक्ति या पदार्थ के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
इस कारक में में', 'पर', 'के ऊपर' परसर्गों का प्रयोग होता है। जैसे-
(1) संदूक में कपड़े रखे हैं।
(2) छत पर क्यों कूदते हो?
इन वाक्यों में 'संदूक में', 'छत पर' अधिकरण कारक का प्रयोग है।
संबोधन कारक-(ऐ, हे, अरे, ओ, अजी)
संज्ञा(कोई भी,कुछ भी) को पुकारने तथा संकेत का भाव देता हो उसे संबोधन कारक कहते है
(1) अरे भाई! तुम्हें सत्य बोलना चाहिए।
(2) ओ मूर्ख! अब तक कहाँ था?
(3) हे राम! अब तो दुनिया से उठा ले।
(4) बच्चो! ध्यान से सुनो।
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