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कोशिका चक्र क्या है || what is cell cycle in hindi

इस पोस्ट में हम कोशिका चक्र क्या है ,कोशिका चक्र की G0,G1 फेज का वर्णन,S फेज का वर्णन,DNA के द्विगुणन , समसूत्री विभाजन, पूर्वावस्था, टीलोफेज प्रावस्था आदि के बारे में जानेंगे




कोशिका विभाजन क्या है

 (what is cell cycle )

कोशा विभाजन (Cell division) जीवधारियों में होने वाली एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत जीवों में वृद्धि तथा शरीर की टूट-फूट की मरम्मत होती है। उपापचय (metabolism) के दो चरण होते हैं -
(i) ऐनॉबालिज्म क्रिया (Anabolism)
(ii) कैटाबालिज्म क्रिया (Catabolism)
ऐनाबोलिज्म क्रिया के परिणामस्वरूप जीवधारियों में शारीरिक वृद्धि होती है क्योंकि विभाजन के परिणामस्वरूप कोशिकाओं के आकार में वृद्धि होती है तथा जब कोशिका की अधिकतम वृद्धि हो जाती है तो उसमें विभाजन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है।
केन्द्रकीय कोशिका का सम्पूर्ण विभाजन दो प्रमुख क्रियाओं के द्वारा सम्पन्न होता है जिन्हें क्रमशः केन्द्रकीय विभाजन (Karyokinesis) तथा कोशाद्रवीय विभाजन (Cytokinesis) कहते हैं।


सूत्री विभाजन क्या है
(Mitosis Cell Diasion)

फ्लेमिंग ने समसूत्री विभाजन को माइटोसिस (Mitosis) (Gr, mitos=thread) विभाजन कहा। इस प्रकार के कोशा विभाजन में मातृ कोशा का द्विगुणन होता है तथा विभाजन द्वारा दो पुत्री कोशिकाए बनती है प्रत्येक पुत्री कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के समान होती है।




कोशिका चक्र क्या है

कोशिका चक्र (Cell Cycle)- किसी कोशिका का जीवन चक्र पुत्री कोशिकाओं के निर्माण से प्रारम्भ होता है तथा टीलोफेज अवस्था के अन्त में समाप्त हो जाता है। पुत्री कोशिकाएँ हमेशा ही मातृ कोशिकाओं से छोटी होती हैं इसीलिए इनमें पाये जाने वाली DNA की मात्रा भी कम होती है। जब पैतृक कोशिका विरामावस्था में होती हैं तो उस समय इनमें कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक कुछ। यौगिकों का संश्लेषण होता है तथा द्विगुणन के द्वारा DNA की मात्रा दोगुनी हो जाती है। इसके पश्चात कोशिका में पाये जाने वाले केन्द्रक के विभाजन के परिणामस्वरूप कोशिका दो संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है तथा प्रत्येक संतति कोशिका पुनः पूर्वावस्था अर्थात् विरामावस्था में प्रवेश करती है। इस प्रकार का चक्र कोशिका में निरन्तर चलता रहता है जिसे कोशिक चक्र (Cell Cycle) कहते है।

सम्पूर्ण कोशिका चक्र (Cell cycle) को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है
1. विरामावस्था या विश्रामावस्था (Resting stage)
2. केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis)
3. कोशा विभाजन (Cytokinesis)


1. विरामावस्था (Resting Stage or Interphase) - दो समसूत्री विभाजन के बीच की अवस्था विरामावस्था कहलाती है। इण्टरफेज अवस्था में गुणसूत्रों का विभाजन नहीं होता है तथा इस समय कोशाद्रव्य का विभाजन भी नहीं होता है। लेकिन इस अवस्था में केन्द्रक तथा कोशाद्रव्य उपापचयी रूप से सक्रिय हो जाते हैं जिसके कारण कोशाद्रव्य तथा केन्द्रक का परिमाण बढ़ जाता है। इण्टरफेज बड़ी प्रावस्था है जिसको तीन उप प्रावस्थाओं में विभाजित करते हैं



(A) पोस्ट-माइटोटिक प्रावस्था या प्रथम वृद्धि अन्तराल Post-mitotic or first growth Lperiod (G1 Period)]- इस उप-प्रावस्था में तरुण पुत्री कोशिकाओं के आकार में वृद्धि हो जाती है इस प्रावस्था में समय के अन्तराल में भिन्नता होती है तथा इसमें वह कोशिकाएँ जिनमें विभाजन ही होता है स्थायी रूप से बनी रहती हैं। इस उप-प्रावस्था में RNA प्रोटीन्स तथा एन्जाइम्स का संश्लेषण होती है क्योंकि यह पदार्थ DNA के संश्लेषण के लिए आवश्यक होते हैं।

(B) संश्लेषण प्रावस्था [Synthetic period (S-Period))- इस प्रावस्था में DNA का द्विगुणन होता है जिसमें नवीन पट्टिकायें विकसित पट्टिकाओं के पास आ जाती हैं तथा इस उप अवस्था में कोशिका उन विशेष प्रोटीन्स (हिस्टोन्स) पदार्थों का संश्लेषण करती है जिनका सम्बन्ध (DNA) से होता है।
कोशिका चक्र

इस उप प्रावस्था में 6 से 8 घण्टे का समय लगता है। परन्तु अगर विभाजन के दो दिन के पश्चात् DNA का द्विगुणन नहीं होता है तो कोशिका में विभाजन नहीं हो पाता है।

(C) प्री-माइटोटिक या द्वितीयक वृद्धि अन्तराल [Premitotic or Second Growth Period
(G2-Period)] - इस उप-प्रावस्था में केन्द्रक परिमाण (Nuclear Volume) में वृद्धि होती है तथा दो गुनी मात्रा में गुणसूत्री DNA एकत्रित हो जाता है। साथ ही साथ गुणसूत्रों का संघनन भी इसी उप प्रावस्था से प्रारम्भ होता है। इस प्रावस्था में कोशिका में केन्द्रकीय RNA,राइबोसोमल RNA तथा विशेष प्रकार की प्रोटीन्स का संश्लेषण होता है जिनके कारण केन्द्रकीय स्पिंडिल तन्तुओं (MItotic Spindle Fibres) का निर्माण होता है। इस प्रकार G2 उप अवस्था में कोशिका, कोशिका विभाजन के लिए अनिवार्य समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण कर लेती है। इस प्रकार इण्टरफेज केन्द्रकीय अवस्था 3 उप प्रावस्थाओं से मिलकर पूर्ण हो जाता है जिन्हें क्रमशः 61 फेज, S फेज तथा G2 फेज कहते हैं। इन तीनों उप प्रावस्थाओं से मिलकर कोशिका चक्र पूर्ण हो जाता है जिसमें विभाजन नहीं होता है परन्तु कोशिक विभिन्न प्रकार के अणुओं का संश्लेषण करके पूर्ण वृद्धि को प्राप्त कर लेता है।
उसके पश्चात कोशिका चक्र की अन्तिम प्रावस्था प्रारम्भ होती है जिसे कोशिका की विभाजन प्रावस्था या माइटोटिक फेज (M-Phase or D-Phase) कहते हैं। जिसमें कोशिका का विभाजन हो जाता है तथा दो पुत्री (संतति) कोशिकाओं की उत्पत्ति हो जाती है। जिसमें सूत्री विभाजन की समस्त वास्तविक क्रियायें सम्मिलित होती हैं जिन्हें क्रमशः प्रोफेज (Prophase), मेटाफेज (Metaphase), ऐनाफेज (Anaphase) तथा टीलोफेज (Telophase) कहते हैं। इन विभाजन की होने वाली क्रियाओं का अध्ययन केन्द्रकीय विभाजन (karyokinesis) के अन्तर्गत किया जाता है।

2. केन्द्रकीय विभाजन (Karyokinesis) - कैरियोकाइनेसिस प्रक्रिया के अन्तर्गत कोशा में स्थित केन्द्रक का विभाजन दो पुत्री कोशिकाओं में होता है। जिसकी प्रथम प्रावस्था पूर्वावस्था (Prophase कहलाती है। पूर्वावस्था के पहले अर्थात् इण्टरफेज अवस्था में कोशिका में निम्नलिखित परिवर्तन । है।
1. केन्द्रकीय झिल्ली (Nuclear membrane) विकसित हो जाती है।
2. गुणसूत्र लम्बे तथा कुण्डलित अवस्था में सम्पूर्ण केन्द्रक द्रव्य में बिखरे हुए पाये जाते है।  ऐसे  गुणसूत्र क्रोमैटिन धागों के रूप में पाये जाते हैं।
3. DNA की मात्रा दो गुनी हो जाती है।
4. क्योंकि केन्द्रिका के ऊपर राइबोसोमल RNA तथा राइबोसोमल प्रोटीन्स एकत्रित हो जाती है इसीलिए केन्द्रिका का आकार भी बढ़ जाता है।
5. इण्टरफेज कोशिका में दो तारककाय (Centrosomes) बन जाते हैं।
कोशिका की इण्टरफेज प्रावस्था में उपरोक्त विशेषतायें होती हैं जिसके पश्चात समसूत्री विभाजन की केन्द्रकीय विभाजन (Karyokinesis) की प्रक्रिया पूर्वावस्था (Prophase) प्रावस्था से प्रारम्भ होती है

1. पूर्वावस्था (Prophase) -
इण्टरफेज अवस्था के पश्चात पूर्वावस्था प्रारम्भ होती है जिनकी निम्न विशेषतायें होती है-

1. केन्द्रक का क्रोमैटिन पदार्थ लम्बे तथा कुण्डलित धागों के रूप में संघनित हो जाता है इस रचना को क्रोमैटिन तन्तु कहते हैं। कुछ समय पश्चात क्रोमैटिन तन्तु छोटे-छोटे टुकड़ों में विखण्डित हो जाते हैं तथा टूट कर छोटे तथा मोटे हो जाते हैं और गुणसूत्रों (Chromosomes) का निर्माण करते हैं।

2. कुछ समय पश्चात् प्रत्येक गुणसूत्र लम्बवत दिशा में विखण्डित होकर दो क्रोमैटिड्स बनाता है। दोनों क्रोमैटिड्स एक-दूसरे से सेन्ट्रोमीयर के द्वारा जुड़ते हैं। कुछ समय के पश्चात् क्रोमैटिड्स दो असमान भागों में कुण्डलित हो जाते हैं। बड़े भाग को सेमेटिक कुण्डलन जबकि छोटे भाग को माइनर कुण्डलन (Minor coils) कहते हैं।

3. जैसे-जैसे पूर्वावस्था क्रिया आगे बढ़ती है वैसे ही सेमेटिक कुण्डलन युक्त क्रोमैइड्स का व्यास (चौड़ाई) बढ़ती जाती है परन्तु इनकी संख्या घट जाती है जिसके परिणामस्वरूप गुणसूत्र छोटे तथा मोटे जाते हैं।

4. गुणसूत्र के दोनों क्रोमैटिड्स एक दूसरे से इस प्रकार कुण्डलित हो जाते हैं कि यह एक दूसरे, से आसानी से पृथक नहीं होते हैं इस प्रकार के कुण्डलन को प्लैक्टोनेमिक कुण्डलन (Plectonemic colls) कहते हैं इसके विपरीत अर्धसूत्री विभाजन (meiosis cell division) में दोनों क्रोमैटिड्स आसानी से पृथक हो जाते हैं इस प्रकार का कुण्डलन जो दूसरे से आसानी से पृथक हो जाते हैं, पैरानेमिक कुण्डलन (Paranemic coils) कहलाते हैं।

5. इस अवस्था में क्रोमैटिन तन्तुओं पर मैट्रिक्स एकत्रित हो जाता है जिससे गुणसूत्र संघनित हो जाते हैं।
6. प्रोफेज अवस्था में ही दोनों सेन्ट्रीयोल्स जो केन्द्रक के रूप में दाहिनी तरफ एक दूसरे के ऊपर स्थित होते हैं। एक दूसरे से दूर गति करते हैं तथा उनके बीच में असंख्य तन्तु निकलकर तारा रश्मियों (Astral rays) का निर्माण करते हैं। इस प्रकार सेन्ट्रीयोल के द्वारा ऐस्टर का निर्माण होता है तथा दोनों स्तरों के बीच में कोशिकाद्रव्य में महीन तन्तु विन्यासित होकर तर्कु तन्तु (Spindle fibre) का निर्माण करते हैं जो मध्य रेखा की ओर गति करता है। इस प्रकार तर्कु तन्तुओं और दो ऐस्टर के द्वारा एपीएस्टर तथा एक्रोमैटिक रचना (Amphiaster or Achromatic figure) का निर्माण होता है।

7. प्रोफेज अवस्था में ही केन्द्रिका का आकार धीरे-धीरे घटता जाता है तथा अन्त में केन्द्रिका पूर्ण रूप से हो जाती है। लेकिन न्यूक्लियोनीमा फैल जाती है तथा गुणसूत्रों के साथ सम्बन्धित हो जाती है।

8. पूर्वावस्था में ही केन्द्रक झिल्ली विखण्डित हो जाती है तथा कोशाव्य में विलीन हो जाती है।
9. पूर्वावस्था में उपरोक्त भौतिक परविर्तनों के साथ ही साथ कुछ रासायनिक परिवर्तन भी होते से उनमें फास्फोलिपिड्स की मात्रा बढ़ जाती है तथा साथ ही साथ गणसत्रों में RNA की मात्रा भी बढ़ जाती है
10. पूर्वावस्था के अन्त में गुण सूत्रों का आकार छोटा तथा मोटा हो जाता है तथा यह तर्कु तन्तु के अन्दर एकत्रित होने लगता है।



 समसूत्री कौशिका विभाजन का चित्रीष निरूपण

2. मध्यावस्था (Metaphase)-
यह प्रावस्था बहुत अल्प समय में पूर्ण हो जाती है तथा सम्पूर्ण प्रक्रिया में कुल 6 से 13 मिनट तक लगते हैं इस प्रावस्था में कोशिका में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं।
1. प्रत्येक गुणसूत्र अपने-अपने ध्रुवों पर पहुँच जाता है तथा सभी गुणसूत्र तओ के चारों तरफ परिधीय रूप में अरीय क्रम (radial) में व्यवस्थित हो जाते हैं
2. छोटे गुणसूत्र अन्दर की तरफ स्थित होते हैं जब कि बड़े गुणसूत्र बाहर की ओर परिधीय भाग में एकत्रित हो जाते हैं।
3. स्पिंडल के कुछ तन्तु गुणसूत्र के सेन्ट्रोमीयर से जुड़ जाते हैं तथा एक विशेष प्रकार की रचना का निर्माण करते हैं जिन्हें गुणसूत्रीय तन्तु कहते हैं।
4. स्पिंडल के कुछ तन्तु अथवा माइक्रो नलिकाओं के दोनों सिरे सेन्ट्रीयोल्स की सहायता से जुड़े रहते हैं ऐसी रचनाओं को सतत् तन्तु (continuous fibres) कहते हैं। इसी प्रकार गुणसूत्रों के बीच में भी कुछ तन्तु पाये जाते हैं जिन्हें इण्टर क्रोमोसोमल तन्तु या इण्टरजोनल तन्तु कहते हैं। गुणसूत्रों का
भुजाएँ ध्रुवों की ओर होती है।
5. मध्यावस्था में क्रोमैटिड्स छोटे होते हैं, तथा एक-एक दूसरे से पृथक हो जाते हैं तथा अन्त में प्रत्येक गुणसूत्र का सेन्ट्रोमीयर विभाजित होकर अलग-अलग सिस्टर क्रोमैटिस बनाता है।
6. मध्यावस्था में न्यूक्लियोनीमा का आकार बढ़ जाता है तथा प्रत्येक क्रोमैटिड्स के लिय़े अलग-अलग पुनः द्विगुणन होता है।

3. पश्चावस्था (Anaphase) -
यह माइटोटिक चक्र की सबसे छोटी प्रावस्था है जिसमें निम्नलिखित विशेषतायें पायी जाती है।
1. प्रत्येक गुणसूत्र के सेन्ट्रोमीयर दो भागों में विभाजित हो जाते हैं।
2. कुछ समय के पश्चात् गुणसूत्र के क्रोमैटिड्स पृथक हो जाते हैं तथा दो गुणसूत्रों का निर्माण
करते हैं।
3. इन गुणसूत्रों का आकार छोटा तथा मोटा हो जाता है जो कोशा के विपरीत ध्रुवों में चले जाते हैं। क्योंकि प्रत्येक संतति गुणसूत्रों के बीच में प्रत्याकर्षण (Repulsion) बल कार्य करता है। जिसके कारण गुणसूत्र V, L तथा J आदि अक्षरों के समान दिखायी देते हैं।
4. इस प्रावस्था के अन्त में तर्कु-तन्तु (Spindlefibre) नष्ट हो जाते हैं तथा सन्तति गुणसूत्र तुर्क' के विपरीत ध्रुवों पर अपना-अपना अलग-अलग समूह बना लेते हैं।

4. टीलोफेज प्रावस्था (Telophase stage)-
यह कैरियोकाइनेसिस की अन्तिम प्रावस्था है जिसमें निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं
1. गुणसूत्र तथा उनके सेन्ट्रोमीयर्स जो अपने-अपने ध्रुवों पर स्थित होते हैं अकुण्डलित हो जाते हैं तथा इनकी लम्बाई भी बढ़ जाती है।
2. केन्द्रिका (Nucleolus) पुनः प्रकट हो जाती है।
3. न्यूक्लियोनीमा युक्त पट्टिकाएँ (Nucleonema strands) मोटे तथा छोटे हो जाते हैं।
4. गुणसूत्रों तथा केन्द्रिका के चारों तरफ एक रक्षक आवरण अर्थात् केन्द्रकीय झिल्ली विकसित हो जाती है।
5. स्पिंडल तन्तु छोटे-छोटे टुकड़ों में विखण्डित हो जाते हैं जो बाद में कोशाद्रव्य के द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं।
6. दोनों ध्रुवों पर न्यूक्लियाई (Nuclei) बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य संरचनाओं का भी
विकास हो जाता है।
7. तर्कु तन्तु (Spindle fibres) तथा तारा रश्मियों (astral rays) विलुप्त हो जाती है।

इस प्रकार टीलोफेज प्रावस्था के अन्त में दो पुत्री केन्द्रिकाओं (Daughter nuclei) का निर्माण  कैरियोकाइनेसिस प्रक्रिया के अन्तर्गत होता है उसके पश्चात कोशिका विभाजन (Cytokinesis) की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है।

3. कोशिका विभाजन (Cytokinesis) - साइटोकाइनेसिस प्रक्रिया के द्वारा एक्वाटोरिवल क्षेत्र से कोशा द्रव विखण्डित हो जाता है। अर्थात् कोशिका द्रव्य का विभाजन होता है तथा दोनों पुत्री कोशिकाओं के बीच में लाइपोप्रोटीन्स के द्वारा निर्मित यूनिट झिल्ली विकसित हो जाती है।

जन्तु कोशिकाओं में कोशिका विभाजन, कोशाद्रव्य के चक्रण (Cyclosis) के द्वारा होता है जिससे संकुचनशील वलय (Contractile rings) प्लाज्मा झिल्ली का विस्तार होता है तथा कोशा सतह पर तर्कु और ऐस्टस्र का निर्माण होता है। प्राणी कोशिकाओं में कोशिका के मध्य पर एक छिछली सी खाई बनने लगती है जो क्रमशः गहरी होती जाती है और अंत में कोशिका दो भागों में विभाजित हो जाती है। परन्तु पादप कोशिकाओं में कोशिका की मध्य रेखा पर फ्रेगमोप्लास्ट (Phragmoplastsएवं कोशिका प्लेट (cell plate) का निर्माण होता है। जिसके द्वारा कोशिका विभाजन पूर्ण होता है तथा दो पुत्री कोशिकाएँ बन जाती हैं।

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