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सहलग्नता किसे कहते है
जीवों में वंशागति गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाने का कार्य जीन्स द्वारा होता है, जो क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं और एक ही क्रोमोसोम पर स्थित जीन्स द्वारा अपने पूर्व के संयोग में रहते हो एक साथ वंशागति होते हैं, वंशागति की इस प्रवृत्ति को सहलग्नता (Linkage) कहते हैं। इसके बाद एक क्रोमोसोम पर स्थित जीन्स एक ही युग्मक (Pair) में प्रवेश करके एक साथ संतान मे वंशागत हो जाते हैं। सहलग्नता की परिघटना निम्न वाद (Hypothesis) के द्वारा प्रस्तुत की जाती है।
सहलग्नता के सिद्धान्तों का वर्णन तथा इसकी खोज
उत्तर सहलग्नता के सिद्धान्त (Theories of Linkage) सहलग्नता के दो प्रमुख सिद्धान्त है।
(1) विभेदीय बहुगुणन सिद्धान्त
(2) गुणसूत्रीय सिद्धान्त
(1) विभेदीय बहुगुणन सिद्धान्त (Differential Multiplication Theory)
विभेदीय बहुगुणन सिद्धान्त को प्रसिद्ध वैज्ञानिक बेटसन (Bateson 1930) ने प्रतिपादित किया था। जिसके अनुसार जीवों में सहलग्नता कोशिकाओं के विभेदीय बहुगुणन के कारण होती है। इसमें गुणों के विभिन्न युग्म उपस्थित रहते हैं। ये गुणों के युग्म (Combination of Characters) युग्मकों के बनने के पहले ही अलग-अलग हो जाते हैं। इसके बाद प्रत्येके युग्मन समूह (Gamete set) बहुत तेजी से बहुगुणन (Multiplication) करता है। इस प्रकार तेजी से होने वाली बहुगुणन के कारण मेण्डल के द्विसंकर (Dihybrid ratio) में परिवर्तन आ जाता है।
(2) गुणसूत्रीय सिद्धान्त (Chromosomal Theory) -
गुणसूत्रीय सिद्धान्त को केस्टल एवं मार्गन (Castie Morgon) ने प्रतिपादित किया था। इस सिद्धान्त में उन्होंने कहा कि समस्त जीन्स जो सहलग्नता दर्शाते हैं, सर्वत्र गुणसूत्र के जोड़े पर लगे रहते हैं। इसमें गुणसूत्रीय पदार्थ इन सहलग्न जीन्स या आनुवंशकों (Linked genes) के वंशागत के समय एक जगह बाँध देता है। जीन्स के बीच की दूरियों के आधार पर सहलग्नता का मान (Value of linkage) ज्ञात कर सकते हैं, क्योंकि यदि जीन्स (सहलग्न) के बीच की दूरी कम हो तब सहलग्नता शक्तिशाली होती है। इसे निम्न सूत्र के द्वारा दर्शाया जा सकता है
Dx(1/5) या S x(1/D)
यदि D= दो सहलग्न जीन्स के बीच की दूरी
S= सहलग्नता शक्ति (Power of Linkage)
यदि दो सहलग्न जीन्स A और B के बीच D = 1 इकाई हो तब s=K, यहाँ K= स्थिरांक (Constant) है, जिसे सहलग्नता स्थिरांक कहते हैं।
अतः 5 का मान प्रत्येक सहलग्नता (Linkage) के लिये अलग-अलग होता है और इसका मान D पर निर्भर करता है।
संलग्नता एवं विलग्नता (Coupling and Repulsion Hypothesis)
वैटसन तथा पुनीत ने द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid Cross) का अध्ययन करते समय गुलाबी फूल व लम्बे परागकण वाले तथा लाल फूल व गोल परागकण वाले F, पीढ़ी के संकर (Hybrid) पौधों में बैकक्रॉस कराया तथा पाया की F, पीढ़ी में सामान्य 1 : 1 : 1 : 1 अनुपात के स्थान पर 11 : 1 : 1 : 3 का अनुपात पाया और अध्ययन किया कि नये संयोगों (Non-parental combination) की अपेक्षा पैतृक संयोग (Parental combination) अधिक थे इसका अर्थ है कि द्विसंकर क्रॉस के समय इन लक्षणों के जीन्स आशा के अनुसार एक-दूसरे से अलग नहीं हुये।
गुलाई लम्बे लाल, गोल
PpLI ppll
गैमीट PL pL Pl pl
pl PpLI ppLI Ppil ppll
1st 2nd 3rd 4th
11 1 1 3
द्विसंकर बैक क्रॉस (Dihybrid Back Cross)
उपरोक्त चार्ट में 1st तथा 4th पैतृक संयोग हैं तथा 2nd a 3rd नये संयोग है। मैन्डल के अनुसार दोनों संयोग समान अनुपात में होना चाहिये परन्तु पैतृक तथा नये संयोग में एक तथा सात का अन्तर है। पैतृक संयोग की अधिकता का कारघ यह है कि एक पैतृक पौधे से आने वाले सभी गुणों के एलील्स में एक साथ युग्मक में आने की प्रवृत्ति होती है जो नई पीढ़ी में एक साथ वंशागत होते हैं। एलील्स द्वारा एक साथ वंशागत होते हैं। एलील्स द्वारा एक साथ वंशागत होने को संलग्नता तथा उनके अलग रूप से वंशागत होने को विलग्नता कहते है।
मॉर्गन की सहलग्नता संकल्पना (Morgon's Concept of Linkage)
मार्गन ने अपने प्रयोग में बताया कि संलग्नता तथा विलग्नता दोनों क्रियायें समान है और एक ही परिघटना की रूप हैं इसलिये उन्होंने इसे सहलग्नता की संज्ञा दी। इस प्रकार सहलग्नी जीन्स जब एक साथ वंशागति होते हैं तो इस क्रिया को सहलग्नता कहते हैं।
मॉर्गन ने अपने प्रयोग में कहा कि सहलग्नी जीन्स अपने मूल संयोग में इसलिये साथ-साथ रहते है कि वे एक क्रोमोसोम पर लगे रहे हैं। जैसे-जैसे सहलग्नी जीन के बीच की दूरी बढ़ती जाती है तो उसके साथ ही वंशागति होने के अवसर कम होते जाते हैं।
यह स्पष्ट हो गया है कि प्रत्येक जीव में हजारों जीन्स होते हैं परन्तु प्रत्येक जीव में कोमोसोम्स की संख्या सीमित रहती है। इस प्रकार प्रत्येक क्रोमोसोम्स युगल में स्थित सभी एलील एक ही सहलग्न समूह बनाते हैं। अतः जीव में जितने क्रोमोसोम युगल होते हैं उतने ही सहलग्न समूह होते हैं। जैसे-
सलेटी रंग के शरीर तथा अल्पविकसित पंख वाली ड्रोसोफिला तथा लम्बे पंख वाली ड्रोसोफिला के साथ क्रॉस कराने पर F, पीढ़ी की सभी सन्तान का शरीर सलेटी रंग का तथा उनके पंख लम्बे थे।
F, पीढ़ी के नर संकर (Male Hybrid) का अप्रभावी मादा के साथ क्रॉस कराने पर F, पीड़ी में दो प्रकार की संतानें बराबर संख्या में बनते हैं। इस क्रॉस में मादा पैतृक संयोग बनते हैं तथा जीन्स अलग नहीं होते जो पूर्णसंलग्नता दर्शाते हैं।
स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम के अनुसार युगल के ऐलील्स में संयोजन दूसरे युगल के एलील्स के संयोजन पर निर्भर नहीं होता है। बल्कि दोनों युगल के ऐलील स्वतंत्र रूप से अलग होते हैं। इससे ज्ञात होता है कि जीव के एक लक्षण का वंशागति के अन्य लक्षणों की उपस्थित का कोई प्रभावी नहीं होता है।
इसलिये संलग्नता के कारण विभिन्न युगलों के जीन्स में संयोजन न होने के कारण ये एक साथ वंशागत होते हैं। अतः संलग्नता तथा स्वतन्त्र अपव्यूहन एक-दूसरे के विपरीत होते हैं और जीन्स में संलग्नता होने पर इनमें स्वतन्त्र अपव्यूहन नहीं होता है।
सहलग्नता कितने प्रकार के होते हैं
पूर्ण (Complete) तथा अपूर्ण (Incomplete) सहलग्नता (Linkage) किसे कहते है
बैंक क्रॉस (Back Cross) तथा F2 पीढ़ी में नये संयोग बनने अथवा न बनने के आधार पर सहलग्नता दो प्रकार की होती है।
1. पूर्ण सहलग्नता (Complete Linkage)
2. अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete Linkage)
1. पूर्ण सहलग्नता (Complete Linkage) -
जब गुणसूत्रों पर स्थिति जीन्स एक पीढ़ी से दूसरी में वंशागति के समय एक-दूसरे से अलग नहीं होते हैं तो इसे पूर्ण सहलग्नता कहते हैं। पूर्ण सहलग्नता के समय मात्र पैतृक संयोग बनती है, और नये संयोग नहीं बनते हैं। इस प्रकार की सहलग्नता कभी-कभी देखने को मिलती है। जैसे सलेटी रंग तथा अविकसित पंख वाली जंगली ड्रोसोफिला को जब काले शरीर तथा लम्बे पंख वाली ड्रोसोफिला के साथ क्रॉस किया गया तो F, पीढ़ी के सभी ड्रोसोफिला का शरीर सलेटी रंग तथा पंख लम्बे और पूरी तरह विकसित थे जब F, पीढ़ी के नर को संकर अग्रभावी ड्रोसोफिला मादा के साथ क्रॉस कराते हैं तो केवल दो प्रकार के ड्रोसोफिला बराबर संख्या में बनते हैं इस क्रॉस से केवल पैतृक संयोग बनते हैं और जीन अलग नहीं होते हैं। इसलिये इसे पूर्ण सहलग्नता कहते है।
2. अपूर्ण सहलग्नता (Incomplete Linkage).-
जब रंगीन तथा पूरी तरह भरे हुए बीजों वाले मक्का के पौधों से रंगहीन तथा संकुचित बीजों के पौधों में क्रॉस किया जाता है, तो F, पीढ़ी में केवल रंगीन तथा भरे हुए बीज वाले पौधे बनते हैं। F, पीढ़ी के संकुचित मादा पौधों को जब रंगहीन तथा संकुचित बीज वाले पौधों से निषेचित कराया जाता है तो चार प्रकार के बीजों वाले पौधे बनते है जिसमें -
प्रथम पौधा रंगहीन तथा भरे हुये बीजों वाला
द्वितीय पौधा रंगहीन तथा संकुचित बीजों वाला
तृतीय पौधा रंगहीन तथा संकुचित बीजों वाला
चौथा पौधा रंगहीन तथा भरे हुए बीजों वाला
प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि पैतृक संयोग की तुलना में नये संयोग से बहुत कम बनते हैं। क्रॉसिंग ओवर की आवृत्ति (Frequency) मुख्य रूप से सहलग्न जीव के बीच की दूरी पर निर्धारित की जाती है। पास-पास स्थित सहलग्न जीन की अपेक्षा दूरी पर स्थित सहलग्न जीन में क्रासिंग ओवर की अधिक सम्भावना होती है। सहलग्न जीन के बीच क्रॉसिंग ओवर की प्रतिशत उसके बीच की आपेक्षिक दूरी को प्रदर्शित करती है।
प्रथम सूत्री विभाजन के समय समजात क्रोमोसोम के जोड़े में चार क्रोमैटिड में से दो क्रोमैटिड के बीच क्रॉस को काएज्मा कहते हैं। अर्धसूत्री (Meiosis) विभाजन की डिप्लोटीन अवस्था में वाईबेलेट के चारों क्रोमैटिड जोड़ों के रूप में होते हैं किन्तु इनमें से दो अन्दर की ओर स्थित क्रोमैटिड की लम्बाई खंडों का विनिमय होता है। जिन स्थानों पर खंडों का विनिमय बनता है। उस स्थान को काएज्मा कहते हैं।
सहलग्नता का सामर्थ्य (Strength of Linkage) -
दो जोड़ी सहलग्न जीन के बीच सहलग्नता की सामर्थ्य उसके बीच की दूरी पर निर्भर रहता है। सहलग्न जीन के बीच जो विनिमय (Cene Exchange) द्वारा नये संयोगों के निर्माण की आवृत्ति द्वारा सहलग्नता की सामर्थ्य शक्ति आंकी जाती है। इस प्रकार सहलग्नता की शक्ति सहलग्न जीन के बीच की दूरी एवं उनमें होने वाले जीन विनिमय की प्रतिशत के समानुपाती होता है।
क्रोमोसोमल सिद्धान्त (Chromosomal Theory) -
इस सिद्धान्त के अनुसार सहलग्न गुणों के जीन्स एक ही जोड़ी के क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं और जीन की सहलग्नता रैखिक होती है, और क्रोमोसोम पर आस-पास के जीन्स की सहलग्नता अधिक होती है तथा जैसे-जैस इसकी दूरी बढ़ती जाती है। उनकी सहलग्नता में कमी आती जाती है।
सहलग्न जीन में न्यास (Arrangement of Linked Genes) - सहलग्न जीन्स में दो जोड़ी विषमयुग्मी जीवों के लिये सहलग्नता निम्न दो में से एक प्रकार की होती है। जैसे-
1. दोनों जोड़ों में प्रभावी जीन युग्म क्रोमोसोम में से किसी एक गुणसूत्र पर हो सकते हैं, तथा इसके अप्रभावी युग्म विकल्पी युगल के दूसरे क्रोमोसोम पर स्थित होते है। इस प्रकार के विन्यास को समपक्ष-विन्यास (Cis-arrangement) तथा इस प्रकार के विषमयुग्मजी (AB/ab) को सभपता विषमयुग्मजी (Cis-heterozygotes) कहते हैं।
2. जब एक जोड़े के प्रभावी जीन दूसरे जोड़े के अप्रभावी जीन युगल क्रोमोसोम्स में से किसी एक क्रोमोसोम पर तथा प्रथम युगल के अप्रभावी जीन तथा द्वितीय युगल के प्रभावी जीन (AB/ab) दूसरे क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं। इस प्रकार एक ही क्रोमोसोम पर प्रभावी व अप्रभावी जीन के इन विन्यास को विपक्ष विन्यास (Trans-arrangement) तथा इस प्रकार के विषमयुग्मजी को विपक्ष विषमयुग्मजी (Trans-heterozygotes) कहते हैं।
सहलग्नता पर हचिन्सन के प्रयोग का वर्णन
प्रसिद्ध वैज्ञानिक हचिन्सन (Hutchinson) ने मक्का में सहलग्न जीन (Linkage of Genes) का अध्ययन किया। इन्होंने मक्के की दो किस्मों में प्रसंकरण (Cross) कराया, जिसमें निम्न लक्षण होते हैं
(1) रंगीन एल्यूरोन तथा भ्रूणपोष युक्त भरे बीज (Coloured aleurone. endosperm full seeds) = ccss
(ii) रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष युक्त सिकुड़े बीज (Colourless aleurone, endosperm shrunken seeds) =ccss
हचिन्सन द्वारा किये गये प्रयोगों के रंगीन एल्यूरोन (Coloured aleurone, C) का लक्षण प्रभावी (Dominant) तथा रंगहीन एल्यूरोन (Colourless aleurone.C) का लक्षण अप्रभावी होता है। इसी कारण से भ्रूणपोष (Endosperm) से भरा बीज (full seed,S) प्रभावी लक्षण तथा भ्रूणपोष सिकुड़ा बीज (Shrunken seed) अप्रभावी लक्षण प्रदर्शित करता है। इस प्रकार रंगीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज (Endosperm Shrunken seed) अर्थात् (ccss) में प्रसंकरण कराया गया।
यदि 'C' तथा 'S' का स्वतन्त्र अपव्यूहन हो तो प्रथम पीढ़ी (F, Generation) में CS,Cs,cS एवं CS चार प्रकार के युग्मकों (Gametes) का निर्माण होगा। ये युग्मक बराबर संख्या में बनेंगे।
यह ज्ञात करने के लिये चारों प्रकार के युग्मक बराबर संख्या में बनते हैं अथवा नहीं, प्रथम पीढ़ी का प्रसंकरण (Cross) द्विअप्रभावी (cscs) लक्षणों वाले पौधों से कराते हैं, जिसके फलस्वरूप चार प्रकार की संततियाँ 1:1:1:1 के अनुपात (ratio) में प्राप्त होनी चाहिये, किन्तु इस प्रकार के प्रसंकरण
(cross) में हचिन्सन द्वारा किये गये प्रयोग में चार प्रकार की सन्ततियाँ (off springs) इस अनुपात में प्राप्त नहीं होती हैं, अर्थात् परीक्षण में निम्न प्रकार के परिणाम प्राप्त होते हैं-
रंगीन एल्यूरोन भ्रूणपोष भरे बीज CSCS 4032 पुनर्गठित
रंगीन एल्यूरोन भ्रूणपोष सिकुड़े बीज Cscs 149 (recombination)
रंगहीन एल्यूरोन भ्रूणपोष भरे बीज cScs 152
रंगहीन एल्यूरोन भ्रूणपोष सिकुड़े बीज cscs 4035
योग : 8368
इन परिणामों से ज्ञात होता है कि रंगीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज तथा रंगहीन एल्यूरोन एवं भूणपोष सिकुड़े बीज वाली किरम रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज तथा रंगहीन एल्यूरोन एवं भूणपोष भरे बीज (Endosperm full seed) वाली किस्मों की अपेक्षा संभावित अनुपात 1: 1:1:1 से बहुत अधिक संख्यायें उत्पन्न होती हैं। स्वतन्त्र अपव्यूहन के अनुसार परीक्षण संकरण पैतृक संयोजन (Paternal combination) में रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज तथा रंगहीन एल्यूरोन एवं भूणपोष सिकुड़े बीज बराबर संख्या में उत्पन्न होने चाहिये थे, किन्तु किये गये प्रयोगों में निम्न प्रकार की सन्ततियाँ प्राप्त होती हैं।
पैतृक संयोजन (Paternal Combination)
रंगीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज cs 4032
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज cs 4045
योग: 8077 = 96.4%
पुनर्गठित किस्में (Recombination Classes)
रंगीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज Cs 149
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज cs 152
योग : 301 - 3.6%
हचिन्सन द्वारा किये गये प्रयोगों से प्राप्त परिणामों से स्पष्ट हो जाता है कि रंगीन एल्यूरोन व रंगहीन एल्यूरोन वाले बीजों (Seeds) तथा भ्रूणपोष भरे व भ्रूणपोष सिकुड़े बीजों के जीन्स (Genes) में स्वतन्त्र अपव्यूहन प्रदर्शित नहीं होता है और संभावित (expected) 50% से पैतृक संयोजन (Paternal combination) बहुत होता है। परिणामों से ज्ञात होता है कि 96.4% युग्मको (Gametes) में ये जीन्स सहलग्न (linked) रहते हैं तथा 3.6% युग्मकों में पुनर्गठित (Recombined) हो जाते हैं।
जैसे रंगीन एल्यूरोन तथा सिकुड़े भ्रूणपोष x रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज
(Cs cs) | (cScs)
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज
(Cscs)
जब रंगहीन एल्यूरोन (Colourless Aleurone) एवं भ्रूणपोष भरे बीज (Endosperm full seeds) अर्थात् (cScs) तथा रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीजों अर्थात् (Cscs) प्रसंकरण कराया जाता है तो निम्न प्रकार के परिणाम प्राप्त होते हैं
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज CScs 639
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज Cscs 21379
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष भरे बीज cScs 21906
रंगहीन एल्यूरोन एवं भ्रूणपोष सिकुड़े बीज cscs 672
योग 44566
परिणामों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पैतृक संयोजन अधिक होता है, जबकि ये परिणाम पहले प्रयोग से विपरीत (reverse) होते हैं।
इस प्रसंकरण में पैतृक संयोजन : ..379 + 21,906 = 43,285 अर्थात् 97.06% प्रदर्शित होता है तथा पुनर्गठन (Recombination) 638 + 672 = 1310 अर्थात् 2.94% प्रदर्शित होता है।
अतः उपरोक्त दोनों प्रयोगों से स्पष्ट हो जाता है कि दो भिन्न सहलग्न जीन (Linked genes) युग्मों (Pairs) के पैतृक संयोजन चाहे जो कुछ भी हो सहलग्नता (Linkage) बराबर स्थिर बना रहता है। पूर्ण सहलग्नता (Complete linkage) जब जीन्स किसी एक, ऐलील (Allele) अर्थात् गुणसूत्र (Chromosome) युग्म (Pair) के एक ही सदस्य पर स्थिर रहते हैं तथा उसी जनक (parent) से एक साथ स्थानान्तरित होते हैं तो यह गुण पूर्ण सहलग्नता (Complete linkage) कहलाता है।
प्रायः जीवधारियों में पूर्ण सहलग्नता नहीं पायी जाती है। अतः पौधों तथा जन्तुओं में सहलग्नता जीन्स (Linked Genes) के बीच जीन विनिमय (Crossing over of genes) होता है, जिसके कारण जीन्स आंशिक सहलग्नता (Partial linkage) प्रदर्शित करते हैं।
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