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संक्रामक तथा असंक्रामक रोग क्या होते है || communicable and non communicable diseases in Hindi

इस पोस्ट में हम संक्रामक तथा असंक्रामक रोग क्या होते है, संक्रामक रोगों के कारक,संक्रामक रोगों का प्रसार, प्रमुख संक्रामक रोग, और  कवक के बारे में जानेंगे 


रोग
(Disease)

रोग अथवा व्याधि (Disease) किसी जीवधारी की ऐसी दशा है जिसमें शरीर की प्रक्रियाओं में कोई बाधा (रुकावट) अथवा विकृति उत्पन्न हो जाती है जिससे शरीर के अंगों की स्वाभाविक प्रक्रियाएँ सुचारु रूप से संपन्न नहीं हो पाती। अतः

शरीर की स्वस्थ संरचनात्मक अथवा क्रियात्मक अवस्था में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न होने को रोग कहते है

मानव-रोगों को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(i) संक्रामक अथवा संचरणीय रोग (Infectious or communicable Diseases) 
(ii) असंक्रामक अथवा असंचरणीय रोग (Non-infectious or non-communicable Diseases)

संक्रामक रोग (Infectious Diseases)-
जो रोग एक व्यक्ति से अन्य व्यक्तियों में सीधे अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संचरित हो सकते हैं उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं। सूक्ष्म जीवों (जीवाणुओं, कवकों, विषाणुओं) द्वारा उत्पन्न होने वाले रोग इस वर्ग में आते हैं। जैसे क्षय रोग, हैजा, मलेरिया, इन्फ्लुएन्जा, जुकाम, विभिन्न यौन-रोग (Sexual diseases) आदि संक्रामक रोग हैं, जो रोग-कारक सूक्ष्म जीवों के, एक रोगी व्यक्ति से अन्य स्वस्थ व्यक्तियों में पहुंचने से उत्पन्न होते है

असंक्रामक रोग (Non-infectious Diseases)—
ये रोग ऐसे होते हैं जो रोगी व्यक्ति से किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्रत्यास अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संचरित नहीं होते। ऐसे रोगों के कारण कोई सूक्ष्म जीव नहीं होते वरन् किसी व्यक्ति में यह रोग विभिन्न कारणों, जैसे कुपोषण, हानिकारक पदार्थों के सेवन, अस्वस्थ वातावरणीय परिस्थितियों में निवास, शरीर में हॉरमोनों की कमी या अवांछनीय वृद्धि तथा आनुवंशिक विकृतियों से उत्पन्न होते हैं। जैसे मधुमेह (Diabetes), रक्ताल्पता, उच्च रक्त-दाब, वर्णान्धता (Night blindness), सूखा रोग (Marasmus), हृदयाघात (Heart attack), पक्षाघात (Paralysis), कैन्सर (Cancer) आदि।

संक्रामक रोगों के कारक
(Causes of Infectious Diseases) 
संक्रामक रोग सदा किसी रोग-जनक जीव (pathogen) के कारण उत्पन्न होते हैं। ये रोग-जनक विभिन्न प्रकार के पादप अथवा सूक्ष्म जन्तु होते हैं। कुछ सामान्य रोग-जनकों तथा प्रमुख तद्जनित रोगों की सूची निम्नवत् है-

1. विषाणु (Viruses) सामान्य जुकाम, इन्फ्लुएन्जा, मम्प्स (Mumps), पोलियो (poliomyelitis), रेबीज (Rabies), चेचक (Small-pox), खसरा (Measles), पीत-ज्वर (yellow fever), पीलिया, डेंगू (Dengue), मस्तिष्क-जार (Encephalitis), एड्स (AIDS अथवा Acquired Immune-Deficiency Syndrome)

2. जीवाणु (Bacteria) क्षयरोग (Tuberculosis), हैजा (Cholera), टॉयफाइड (Typhoid), न्यूमोनिया (pneumonia), टिटनस (Tetanus), डिपथीरिया (Diphtheria), सूजाक (Gonorrhoea), उपदंश (Syphlis), अतिसार (Diarrhoea), प्लेग (plague), कुष्ठ (Leprosy)।

3. कवक (Fungi) खाद्य-विषाक्तता (Food-poisoning), दाद (Ringworm), खाज (Eczema), गंजापन (Baldness), दमा (Asthma)

4. प्रोटोजोआ'सूक्ष्म-जन्तु' (Protozoa)-मलेरिया (Malaria), पेचिश (Dysentry), निद्रा रोग (Sleeping sickness), कालाजार, जिआर्डिसिस (Giardiasis)।

5.कीट (Worms)-फाइलेरिया (Filaria), फीताकृमि (Tapeworm), हुककृमि (Hookworm) आदि जनित रोग, हाथीपांव (Elephantiasis)।

संक्रामक रोगों का प्रसार 
(Spread of infectious diseases)
संक्रामक रोगों का प्रसार अनेक विधियों से होता है। इन रोगों का एक व्यक्ति से दूसरे में स्थानान्तरण अथवा  किसी समुदाय  में फैलना, रोगजनक सूक्ष्म जीवों के स्थानान्तरण अथवा व्यक्तियों के शरीर में पहुंचने की विधियों पर निर्भर करता है। इसकी प्रमुख विधियाँ निम्नवत् हैं-

1.वायु द्वारा प्रसारण
 (Transmission through air)-
अनेक रोगों, जैसे जुकाम, इन्फ्लुएन्जा, खसरा, क्षय, न्यूमोनिया, डिप्थीरिया आदि के रोग-जनक विषाणु तथा जीवाणु एक रोगी से अन्य स्वस्थ व्यक्तियों तक वायु द्वारा पहुँचते हैं। रोगी व्यक्ति की छींक, खांसी, श्वास-प्रश्वास, मल-मूत्र आदि से ये रोग-जनक वायु में फैल जाते हैं तथा श्वास के माध्यम से अन्य व्यक्तियों के शरीर में पहुँच जाते हैं।

2. जल एवं खाद्य-पदार्थों द्वारा प्रसारण
 (Transmission through Water and Food-Materials)
 कुछ रोगों के व्यापक स्तर पर प्रसारण दूषित जल तथा दृषित खाद्य-पदार्थों द्वारा होता है। ग्रामों, नगरों, औद्योगिक संस्थानों आदि का कूड़ा-कचरा तथा गन्दा जल नालों के द्वारा विभिन्न रोगों के जीवाणु नदियों, तालाबों, झीलों तथा भूमिगत जल (कूओं)  में पहुंच जाते हैं। पशुओं एवं मनुष्यों के शवों को जल में प्रवाहित करने, पशुओं को तालाब आदि में नहलाने, वस्य धोने आदि से भी अनेक प्रकार के रोगाणु जल को प्रदूषित कर देते हैं। होटलों, रेस्त्राओं, ढाबों तथा घरों में भी पेयजल का भण्डारण अस्वच्छ बर्तनों, टंकियों आदि में करने से उनमें रोगाणु एकत्र हो जाते हैं। ऐसे दूषित जल को पीने से अनेक संक्रामक रोगों का प्रसार होता है। हैजा (Cholera), टॉयफाइड (Typhoid) तथा पीलिया का व्यापक संक्रमण मुख्यत: दूषित जल के द्वारा होता है।

3. स्पर्श द्वारा प्रसारण 
(Transmission by contact)-
कुछ संक्रामक रोगों के जनक-जीव रोगी व्यक्ति के शरीर, उसके त्याज्य पदार्थ (मल, मूत्र, कफ, थूक, लार, मवाद) तथा रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्रों, बर्तनों आदि के संपर्क में आने पर स्वस्थ व्यक्ति में पहुंच जाते हैं। इनके उदाहरण जुकाम, मम्प्स (Mumps), खसरा, चेचक, न्यूमोनिया, कुकुर- खांसी (Whooping cough), कुष्ठ रोग (Leprosy), त्वचा रोग (Skin diseases), यौन रोग (Sexual diseases), एड्स (AIDS) आदि।

4.कीटों द्वारा प्रसारण
 (Transmission by insects)-
मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू, जैसे रोग विभिन्न प्रकार के मच्छरों (Mosquitoes) के काटने से फैलते हैं। मच्छर जब किसी रोग-ग्रस्त व्यक्ति को काटते हुए उसका रक्त चूसते हैं, जो रोगाणु रोगी के रक्त के माध्यम से मच्छर में पहुँच जाते हैं तथा पलते हैं। ये मच्छर जब स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं तो रोगाणु मच्छर से स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में पहुँच जाते हैं तथा उसमें रोग उत्पन्न कर देते हैं। इसी प्रकार प्लेग का प्रसारण पिस्सुओं (Fleas) द्वारा होता है, जो चूहों के शरीर में बढ़ते हैं तथा चूहे के मरने पर वायु में फैल जाते हैं तथा मनुष्यों को काट कर रोग फैलाते हैं।

मक्खियाँ भी हैजा, टॉयफाइड, पीलिया आदि रोगों के जनकों का प्रसारण व्यापक रूप से करती हैं। कूड़ा-कचरा, दूषित खाद्य पदार्थ एवं दूषित जल पर बैठने से रोगाणु मक्खियों के पैरों पर चिपक जाते हैं तथा जब ये मक्खियाँ ,स्वस्छ जल या खाद्य पदार्थों पर बैठती हैं, तो उनके पैरों से रोगाणु स्थानान्तरित होकर खाद्य पदार्थों तथा जल को दूषित कर देते हैं। इन दूषित पदार्थों का उपभोग करने से स्वस्थ व्यक्तियों में रोग फैलता है।

5. जन्तुओं द्वारा प्रसारण
(Transmission by Animals)-
रेबीज (Rabies) मुख्यतः कुत्तों का रोग है। जब रोग-ग्रस्त कुता किसी स्वस्थ मनुष्य को काटता है तो कुत्ते की लार में उपस्थित विषाणु, मनुष्य के रक्त में पहुँच कर उसमें रोग उत्पन्न कर देते है। इस रोग के विषाणु का यह स्थानान्तरण कुत्तों, सियार-गीदड़ों, बिल्लियों, बन्दरों आदि के काटने से होता है।

6.अन्य साधनों से 
 (By other means)-
कुछ उपकरणों जैसे नाई की दुकान का उस्तरा, अस्पतालों आदि में इंजेक्शन देने या रक्त निकालने की सिरिंज (syringe) का एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा उपयोग किये जाने पर अनेक प्रकार के रोगाणु रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में पहुँच सकते हैं। नाई के उस्तरे के प्रयोग से त्वचा रोगों (skin diseases) का तथा इंजेक्शन सिरिंज द्वारा किसी भी संक्रामक रोग के रोगाणुओं का एक रोगी व्यक्ति से अन्य स्वस्थ व्यक्तियों में प्रसारण हो सकता है। आजकल ऐसे रोगों में एड्स (A.I.D.S.) का उदाहरण प्रमुख है। इसके लिये यह आवश्यक है कि किसी भी संक्रामक रोग से ग्रस्त रोगी के लिए प्रयुक्त इंजेक्शन सिरिंज को नष्ट कर दिया जाय अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति के लिए नयी अप्रयुक्त सिरिंज का ही उपयोग किया जाय। यदि ऐसा सम्भव न हो तो एक बार प्रयुक्त सिरिंज को दूसरे व्यक्ति के लिए उपयोग लाने के पहले सिरिंज को कम-से-कम 20-25 मिनट तक खौलते जल में रखकर निष्क्रमित (Disinfect) an लिया जाय।


 प्रमुख संक्रामक रोग 
(Main Infection Diseases)

1. विषाणु-जनित रोग (Viral diseases) चेचक, रेबीज, इन्फ्लुएंजा, पोलियो, एड्स तथा खसरा। इनके कारण, लक्षणों तथा बचाव के उपायों का निवारण 

2. जीवाणु जनित रोग (Bacterial diseases) क्षयरोग (Tuberculosis), हैजा, डिफ्थीरिया, टायफॉइड, न्यूमोनिया तथा धनु रोग (Tetanus) का निवारण

कवक जनित रोग (Fungal diseases)-दाद (Ringworm)-यह रोग टाइमिया कैपिटिस (Tinea capites) नामक कवक के कारण उत्पन्न होता है। इसका प्रसार संक्रमित व्यक्तियों से अथवा उनके द्वारा उपयोग में लायी गयी वस्तुओं, जैसे
कथा, ब्रश, टोपी, हैट या वस्त्रों से सम्पर्क के द्वारा होता है।

दाद के लक्षण-त्वचा पर वृत्ताकार, शल्की (Scaly) धब्बे के रूप में उत्पन्न होता है, जो क्रमशः बढ़ता जाता है तथा संक्रमित स्थान पर खुजली तथा खुजलाने के बाद जलन होती है।

बचाव के उपाय-संक्रमित व्यक्तियों तथा उनके द्वारा उपयोग में लायी गयी वस्तुओं के सम्पर्क से बचे। अपने शरीर को उपचार-संक्रमित स्थान पर कवकनाशी मलहमों का तथा मुख द्वारा एण्टिबायोटिक औषधि का उपयोग चिकित्सक की सलाह लेकर करे।


कवक 
(Fungi)
कवक रंगहीन पौधे हैं जो सर्वत्र फैले हुए हैं। ये अँधेर एक नम स्थानों पर उगते हैं। जैसे-मशरुम, ब्रेड मोल्ड तथा यीषट  फफूँद के उदाहरण है।

कवक के लक्षण
1 कवक में हरितलवक नहीं पाये जाते हैं इसमें परजीवी होते हैं।
2.कवक में यूकैरियोटिक कोशिका पायी जाती है जिसमें केन्द्रक तथा माइटोकॉण्ड्रिया पाया जाता है।
3. इनमें प्रजनन बीजाणु (By Spore) द्वारा होता है।

संरचना-ब्रेड मोल्ड फफूंदी जैसे म्युकर और राइजोपस में एक रंगहीन तन्तुमय रचना होती है जिसे हाइफा कहते हैं। हाइफा में कोशिका द्रव्य तथा केन्द्रक पाया जाता है तथा मिट्टी  के अन्दर मूलाभाष (rhizoids) होता है। तन्तुमय रचना के ऊपर गोल-गोल रचनायें पायी जाती है। जिसे बीजाणुधानी (sporangium) कहते हैं। जिसमें बीजाणु (spore) भरे होते हैं।

उपयोगी कवक (Useful Fungi)
1. कुछ कवक जैसे मशरुम का प्रयोग भोजन के रूप में किया जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन तथा विटामिन पाया जाता है।
2.शराब उधोग में गन्ने के शीरे से एथिल ऐल्कोहल बनाने के लिए यीष्ठ का उपयोग होता है।


हानिकारक कवक (Harmful fungi)

1.कवक जन्तुओं और पौधों में रोग फैलाते हैं। एलर्जी और दमा रोग कवक के बीजाणुओं द्वारा फैलता है।
2. मनुष्य में दाद (Ringworm) रोग कवक द्वारा फैलता है।
3.कवक अनाज तथा खाद्य पदार्थों को विषाक्त कर देते हैं।

Conclusion
इस पोस्ट में हमने संक्रामक तथा असंक्रामक रोग क्या होते है, संक्रामक रोगों के कारक,संक्रामक रोगों का प्रसार, प्रमुख संक्रामक रोग, और  कवक के बारे में जाना।

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