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डीएनए प्रतिकृति की नोट्स हिंदी में || DNA replication notes in hindi

इस पोस्ट में हम:-
  •  DNA में द्विगुणन किस प्रकार होता है?  तथा इसमें RNA की भूमिका क्या होती है।
  •  DNA की Replication प्रक्रिया 
  • DNA प्रतिवलयन का वर्णन 
  •  वाटसन एवं क्रिक के अनुसार DNA की पुनरावृत्ति का वर्णन 
  • DNA की पुनरावृत्ति में सहायक इन्जाइमों का वर्णन 
के बारे में जानेंगे-



DNA की पुनरावृत्ति 

(Replication of DNA)

DNA को आनुवंशिक सूचनाओं का वाहक कहा जाता है क्योंकि DNA आनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित करता है। DNA मुख्य रूप से दो मुख्य क्रियाओं को प्रतिपादित करता है। जब डी.एन.ए. के द्वारा RNA तथा प्रोटीन्स आदि का संश्लेषण होता है तो इस प्रकार की क्रियाओं को हैटरोकैटेलाइटिक (Heterocatalytic) कहते हैं। इन क्रियाओं में DNA के द्वारा दूसरे रासायनिक अणुओं का संश्लेषण होता है परन्तु जब DNA स्वयं का संश्लेषण करता है तो उसे आटोकैटालाइटिक (Autocatalytic) कहते हैं। डी.एन.ए. की पुनरावृत्ति के लिए वाटसन तथा क्रिक द्वारा प्रतिपादित मॉडल की व्याख्या (Watson and Cricks model of DNA peplication)- वाटसन तथा क्रिक ने DNA की दोहरे हेलिकल संरचना (Double helicale structure) के आधार पर DNA पुनरावृत्ति की प्रक्रिया को अत्यन्त सरल ढंग से स्पष्ट किया जिसके अनुसार दोहरे हेलिक्स की प्रत्येक श्रृंखला एक टैम्प्लेट की भाँति कार्य करती है जिसके द्वारा दूसरी श्रृंखला का संश्लेषण हो जाता है। DNA अणु की पुनरावृत्ति के समय न्यूक्लियोटाइड्स के नाइट्रोजन युक्त क्षारों के मध्य हाइड्रोजन बाण्डों के वियोजित हो जाने के कारण दोनों पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखलाएँ एक दूसरे से अत्यन्त सुगमता से पृथक हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन बन्ध दुर्बल होने के कारण कुण्डलित हो जाते हैं तथा बाद में दो पॉली न्यूक्लियोटाइड स्ट्रैण्डस के रूप में एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड्स स्टैण्ड का प्यूरीन तथा पिरीमिडीन क्षार कॉम्प्लीमेन्ट्री स्वतन्त्र न्यूक्लियोटाइड के रूप में आकर्षित होता है जिससे किसी कोशा में पॉलीमेराइजेशन की प्रक्रिया होती है तथा इनमें विशेषीकृत हाइड्रोजन बान्डिंग के द्वारा निश्चित स्थानान्तरण होता है तथा जब मातृ टेम्पलेट श्रृंखला में पॉलीमेराइजेशन क्रिया के पश्चात एक निश्चित स्थान पर स्थित हो जाते हैं तो स्वतन्त्र न्यूक्लियोटाइड्स का निर्माण होता है। जिसके निर्माण में फास्फेट-डाई-एस्टर बाण्ड्स सहायक होते हैं। इस प्रकार असंख्य पोलीन्यूक्लियोटाइड्स अणुओं के मिलने से दो नवीन DNA पॉलीन्यूक्लिरयोटाइड्स श्रृंखला का निर्माण होता है।

इस प्रकार DNA की पुनरावृत्ति की विशेष विधि को अर्धसंरक्षी विधि (Semiconservative method) कहते हैं। क्योंकि प्रत्येक संतति DNA के अणुओं में एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला की उत्पत्ति मूल DNA अणु से होती है जबकि दूसरी श्रृंखला का निर्माण संश्लेषण विधि के द्वारा होता है।


DNA के संश्लेषण में भाग लेने वाले एन्जाइम्स

(Enzymes of DNA synthesis)

DNA के संश्लेषण में मुख्य रूप से दो प्रकार के एन्जाइम्स सहायक होते हैं जिन्हें क्रमश: DNA Polymerase तथा Polynucliotide कहते हैं। DNA Polymerase एन्जाइम में तीन संलग्न स्थल होते है जिनमें से एक टेम्प्लेट DNA (Template DNA) से दूसरा ट्राइफास्फेट न्यूक्लियोटाइड  (Triphosphate nucleotide) से तथा तीसरे DNA प्राइमर के 3-OH सिरे से जुड़ा रहता है। इसी प्रकार DNA पॉलीमेरस, पॉली न्यूक्लियोटाइड श्रृंखला में 5 सिरे से 3' सिरे की ओर DNA ट्राइफास्फेट न्यूक्ल्यिोटाइड्स को DNA Primer की सहायता से जोड़ देता है। इस प्रकार छोटे-छोटे खण्डों के रुप में नये स्टैण्ड्स का संश्लेषण होता है और छोटे-छोटे खण्डों (fragments) में एक दूसरे से एन्जाइम्स की सहायता से जुड़ जाते हैं। इससे पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण हो जाता है। इस विशेषित एन्जाइम को पॉलीन्यूक्लियोटाइड लाइगेज एन्जाइम कहते हैं।


डी.एन.ए. की पुनरावृत्ति की क्रियाविधि के सम्बन्ध में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया है जिनमें से कुछ निम्न हैं -

1. परिक्षेपी विधि (Dispersive Method)- इस विधि के अनुसार जब DNA अणु की पुनरावृत्ति होती है तो उसी समय DNA विखण्डित हो जाता है तथा संतति स्टैण्ड का निर्माण करता है यह संतति स्ट्रेण्ड विभिन्न खण्डों के रूप में अनियमित रूप से व्यवस्थित होते हैं।

2. संरक्षी विधि (Conservative Method) - इस विधि के अनुसार मुख्य DNA के अणु है के दोनों स्ट्रेण्ड संश्लेषित होते हैं।


DNA की पुनरावृत्ति असतत् होती है 

(DNA Replication is Discontinuous) 

DNA Polymerase एन्जाइम की सहायता से पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण होता है जिसमें DNA पॉलीमरेज एन्जाइम मूल DNA के 3'-5' पॉलीन्यूक्लियोटाइड स्ट्रेण्ड पर 5-3' दिशा में नयी पालीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं। निर्माण की क्रिया विधि से स्पष्ट हो जाता है कि एक ही एन्जाइम मूल DNA के 5-3' पॉलीन्यूक्लियोटाइड स्टैण्ड पर 3-5' श्रृंखला को संश्लेषित करने में सक्षम नहीं होता है। ओकाजैकी (Okazaki) ने बताया कि दोनों ही स्ट्रैण्ड में DNA का संश्लेषण एक साथ होता है। जिसमें 3'-5' स्टैण्ड पर एक ही एन्जाइम द्वारा पॉली न्यूक्लियोटाइड की श्रृंखला छोटे-छोटे  खण्डों के रूप में संश्लेषित हो जाती है। इन छोटे-छोटे खण्डों की ओकाजाकी खण्ड कहते हैं। प्रत्येक खण्ड की रचना 1000 से 2000 न्यूक्लियोटाइड्स के मिलने से होती है। DNA के संश्लेषण में सहायक एन्जाइम पालीन्यूक्लिोयोटाइड लाइगेज (Polynucleotide ligase) की सहायता से यह खण्ड आपस में जुड़ जाते हैं तथा आपस में जुड़कर एक पालीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला का निर्माण करते हैं। बाद में अनेक वैज्ञानिकों द्वारा DNA का ऑटोरेडियोग्राफिक परीक्षण किया गया जिसके द्वारा DNA के असतत संश्लेषण (Discontinous symthesis) होने की पुष्टि होती है।


DNA की एकादिशिक तथा द्विदिशिक पुनरावृत्ति

(Unidirectional and bidirectional and Replication of DNA)

J.Caims ने DNA की पुनरावृत्ति पर अनेक प्रयोग किये तथा उनसे प्राप्त परीक्षणों के आधार परक निष्कर्ष निकाला कि DNA का संश्लेषण गुणसूत्र के एक निश्चित बिन्दु से प्रारम्भ होता है तथा सही दिशा की ओर होता है किन्तु बाद में अनेक आधुनिक वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया कि DNA के संश्लेषण द्विदिशिक (bidirectional) होता है।

Lanthal तथा Cane ने बताया कि DNA की पुनरावृत्ति के समय दोनों स्ट्रेण्ड एक दूसरे से पूर्ण रूप से पृथक नहीं होते हैं बल्कि केवल एक सिरे पर पृथक होना प्रारम्भ करते हैं उसके पश्चात

Iar-धीरे दोनों ही पृथक हुए खण्ड अपने पूरक न्यूक्लियोटाइड्स को अपनी ओर आकर्षित करना प्रारम्भ कर देते हैं। DNA की पुनरावृत्ति के समय y के समान एक वृद्धि बिन्दु का होना अत्यन्त ही अनिवार्य है। जिसके लिए Cairns ने बताया कि विषाणुओं में पुनरावृत्ति के समय DNA का आकार वृत्ताकार होता है जिसमें y के आकार के दो क्षेत्र होते हैं इनमें से एक क्षेत्र वृद्धि बिन्दु (growing point) तथा दूसरा प्रारम्भिक बिन्दु (initiation point) कहलाता है।

(1) संरक्षी विधि (Conservative Method) - इसमें द्विसूत्री अणु पूरी तरह से संरक्षित रहना चाहिए तथा पुराने अणु से उसी प्रकार की नई प्रतिलिपि संश्लेषित होनी चाहिए।


परिपेक्षी विधि

इस विधि के अनुसार पुराने अणु का पूरी तरह विधान होना चाहिए और दो पूरी तरह से नये अणुओं का संश्लेषण होना चाहिएँ वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर सिद्ध कर दिया है कि पुनरावृत्ति अर्द्धसंरक्षी विधि (Semi-conservative) सम्पन्न होती है।


अर्द्धसंरक्षी विधि द्वारा डी.एन.ए. पुरनावृत्ति के पक्ष में प्रमाण

(Evidence in support of Semi-conservation methods of DNA replication)

मेरोल्सन एवं स्टेहल ने सन् 1958 में उपर्युक्त समस्या का समाधान करने के लिए अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनके अनुसार पुनरावृत्ति के समय DNA अणु के दोनों वलय (Helic) अपनी प्रतिकृतियाँ संश्लेषित करने से पूर्व पूरी तरह विनियोजित नहीं होते अपितु इनके सिरे से अकुण्डलन आरम्भ होने के साथ ही अपनी-अपनी न्यूक्लियोटाइड प्रतिकृतियों को आकर्षित करना आरम्भ कर देते हैं। इस प्रकार से वास्तविक DNA वलयकों का अकुण्डलन एवं नवीन DNA वलयकों का संश्लेषण साथ-साथ होता है तथा पुनरावृत्ति की समाप्ति पर दो सन्तति DNA अणुओं का निर्माण होता है। इनमें प्रत्येक का एक वलयक पैतृक तथा दूसरा संश्लेषित होता है। इस प्रकार दोनों सन्तति DNA अणु मूल DNA अणु के प्रतिरूप होते हैं।


DNA पुनरावृत्ति की अवस्थाएँ (Stages of DNA Replication) - यह प्रक्रिया निम्नलिखित अवस्थाओं में पूर्ण होती है -

1.DNA का विकुण्डलन (Uncoiling of DNA Helix) - DNA प्रति कृतिकरण में यह पहला चरण होता है। DNA की दोनों पाली न्यूक्ल्यिोड श्रृंखलाएँ एक दूसरे से अलग हो जाती हैं। जहाँ से विकुण्डलन आरम्भ होता है उसे विकुण्डलन का आरम्भ स्थल कहते हैं। जीवाणु आदि प्रोकैरियोटिक कोशाओं के DNA अणु में एक ही ऐसा स्थान होता है, परन्तु यूकैरियोटिक कोशाओं के DNA अणु ऐसे कई स्थान होते हैं।

(1) श्रृंखलाओं का संश्लेषण (Synthesis of DNA Strands) - इस संश्लेषण के लिए दो इन्जाइम आवश्यक होते हैं

1.DNA पोलीमरेज (DNA Polymerase)

2. Polynucleotide Ligase

DNA की पुनरावृत्ति सदैव 5'- 3' दिशा की ओर होती हैं, परन्तु DNA की दोनों श्रृंखलायें विपरीत दिशाओं में व्यवस्थित होती हैं। DNA Polymerase III छोटे-छोटे व्यष्टि Nucleotides में लघु DNA के खण्ड तैयार करता है। Polymerase | अर्थात् कोर्न की इन्जाइम इन छोटे-छोटे खण्डों को नमवती आकार के DNA खण्डों में संश्लेषित कर देता है। तत्पश्चात् DNA Polymerase lll मध्यवती खण्डों को पूरे आकार में जोड़कर DNA की पूर्ण लम्बाई की श्रृंखला बनाता है।

DNA Ligase इन्जाइम Endonuclease Enzyme द्वारा DNA अणु (DNA) पर क्रिया करने से उत्पन्न खाँच के 36H तथा Free 5'- P समूहों के मध्य फास्फेडायस्टर बन्ध का निर्माण करने में सहायता करते हैं अर्थात प्रत्येक DNA श्रृंखला की संतति श्रृंखलाओं के जोड़ने का कार्य DNA Ligase द्वारा सम्पन्न किया जाता है।


अर्धसंरक्षण (Semiconservative) विधि के द्वारा DNA की पुनरावृत्ति के पक्ष में प्रमाण (Evidences in support of semiconservative method of DNA Replication) 

आधुनिक वैज्ञानिकों की धारणा है कि DNA का पुनरावर्तन अर्धसंरक्षी विधि (semi-conservative method) के द्वारा होता है। इस विधि में प्रत्येक संतति DNA के अणु से एक पालीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला की उत्पत्ति मूल DNA अणु के द्वारा होती है तथा दूसरी DNA श्रृंखला का निर्माण संश्लेषण विधि के द्वारा होता है। DNA पुनरावृत्ति की इस विधि को विभिन्न वैज्ञानिकों ने निम्न प्रकार से अपने-अपने प्रयोगों के द्वारा प्रतिपादित किया। इनमें से कुछ सिद्वान्त निम्नलिखित है

1. मेसल्सन तथा स्टाल का सिद्धान्त (Meselson and Stahi's theory) - Meslelson तथा Stalhi ने 1958 में DNA की पुनरावृत्ति की पुष्टि के लिये बैक्टीरिया में एक प्रयोग किया जिसके लिए उन्होंने N15 नाइट्रोजन के आइसोटोप को जो सामान्य N14 नाइट्रोज़न अणु से भारी होता है। N15 वाले से वर्धन माध्यम (Cultural medium) में जीवाणु की एक प्रजाति (Escherichia coll) को संवर्धित, बाद में उन्होंने इसी संवर्धन माध्यम में बैक्टीरिया का पुनरुत्पादन कई पीढ़ियों तक किया।

उन्होंने जीवाणुओं के DNA के दोनों स्ट्रैण्ड का अध्ययन किया और बताया कि उनके प्यूरीन्स तथा पिरीमिडीन्स में N14 के स्थान पर N15 नाइट्रोजन के आइसोटोप थे। जबकि N15 युक्त बैक्टीरिया को N14 वाले संवर्धन माध्यम में वृद्धि करने से स्पष्ट होता है कि नयी पीढ़ी के बैक्टीरिया में जो स्ट्रेण्ड पाये जाते हैं वह असमान भार वाले होते हैं अर्थात् एक स्ट्रैण्ड का भार दूसरे स्टैण्ड्स से अधिक होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि N15 का भार N14 की तुलना में अधिक होता है। इससे स्पष्ट होता है कि DNA का भारी स्ट्रैण्ड पैतृक स्टैण्ड को निरूपित करता है जिसमें N15 के आइसोटोप होते हैं। जबकि हल्के स्ट्रैण्ड जिसका संश्लेषण N14 या सामान्य संवर्धन माध्यम में संश्लेषित होता है N14 का आइसोटोप कहलाता है।

Escheria - coli में DNA की पुनरावृत्ति अर्धसंरक्षण विधि के द्वारा होती है।



2. टेलर का प्रयोग (Taylor's Experiment) - J.H. Taylor तथा अन्य वैज्ञानिकों ने आटोरेडियोग्राफी की विधि के द्वारा विसिया-फेबा (Vicia faba) की जड़ों में स्थित मूलाग्र की कोशिकाओं में DNA पुनरावृत्ति की अर्धसंरक्षण विधि को अपने प्रयोग के द्वारा प्रदर्शित किया। इसके लिए उन्होंने रेडियोऐक्टिव थाइमिडीन वाले माध्यम में जड़ों को रखा तथा उनकी कोशिकाओं में स्थित DNA में रेडियोएक्टिवता के गुण को समावेशित किया उसके पश्चात गुणसूत्रों की फोटोग्राफिक फिल्म प्राप्त की। जिसमें गुणसूत्रों की बाह्य रूप रेखा सिल्वर के कणों के द्वारा प्रकीर्णित करके धब्बों के रूप में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है तथा जब इन मूलाग्रों (root tips) का रेडियोऐक्टिवता से रहित माध्यम में रखते हैं जिसमें Colchine ड्रग पाया जाता है तो निम्नलिखित तथ्य उभरकर आते हैं-

1. प्रथम पीढ़ी के पाये जाने वाले गुणसूत्रों के दोनो क्रोमैटिड्स में समान रूप से रेडियोऐक्टिवता का गुण होता है क्योंकि उसमें DNA के दोहरे हेलिक्स (Double helix) का पुराना स्ट्रैण्ड वाला रेडियोऐक्टिवता का गुण नहीं था।

2. दूसरी पीढ़ी में पाये जाने वाले गुणसूत्रों के दोनों क्रोमैडिट्स में से केवल एक ही रेडियोऐक्टिव तत्व था।

टेलर का यह प्रयोग गुणसूत्र पुनरावृत्ति की अर्धसंरक्षी विधि (semi conservative method) को प्रमाणित करता है क्योंकि गुणसूत्र का प्रत्येक क्रोमैटिड DNA के केवल एक ही द्विकुण्डलित अणु द्वारा निर्मित होता है अतः यह DNA की पुनरावृत्ति को प्रदर्शित करता है।

3. क्रेन्स का ऑटोरेडियोग्राफी से सम्बन्धित प्रयोग (Cairns Autoradiography Experiment)

-J.Cairns ने अपने प्रयोग में रेडियोऐक्टिव थाइमीन कर प्रयोग किया तथा ऑटोरेडियोग्राफी की विध के द्वारा जीवाणु Escherichia-coli में DNA पुनरावृत्ति (DNA replication) की अर्थसंरक्षण विधि का प्रदर्शन किया और बताया कि हाइड्रोजन (H3) के भारी आइसोटोप के उपयोग से थाइमीन प्राप्त होती है। प्रयोग द्वारा यह सिद्ध होता है कि अगर E. Coli को Tritiated thymidine वाले संवर्धन के माध्यम में रखते हैं, तो इसकी संतति में पाये जाने वाले DNA के अणुओं में रेडियोऐक्टिवता के गुण का समावेश हो जाता है। इस प्रकार के विशेषित रेडियोऐक्टिव DNA अणुओं को अंकित DNA (Labelled DNA) कहते हैं। आटोरेडियोग्राफी के लिए जब फोटोग्राफिक इमल्शन पर माउण्ट करते हैं तो अंकित DNA, फिल्म पर DNA अणु का विसरित प्रोफाइल (Diffused profile) बनाता है तथा डुप्लीकेटिंग DNA के अणु में एक स्पष्ट सी पुनरावृत्ति द्विशाख (replicating fork) दिखायी देती है तथा इसी विशेष बिन्दु पर DNA की दो श्रृंखलाओं से चार श्रृंखलाएँ स्पष्ट रूप से दिखायी देती हैं।

इस प्रकार प्रथम पुनरावृत्ति के बाद DNA के दोनों स्टैण्ड में से केवल एक ही स्ट्रेण्ड में रेडियोऐक्टिवता का गुण दिखाई देता है जबकि द्वितीय पुनरावृत्ति के पश्चात DNA के दोनों स्ट्रेण्ड में रेडियोऐक्टिवता का गुण समावेशित हो जाता है। इस प्रकार Cairns के द्वारा किये गये.आटोरेडियोग्राफी प्रयोग के द्वारा DNA की पुनरावृत्ति की अर्धसंरक्षी विधि (Semiconservative method) प्रमाणित होती है।


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