लाइसोसोम्स, अत्यन्त सूक्ष्म चारों तरफ से झिल्ली द्वारा घिरे हुए गोलाकार अनियमित आकार की संरचनाएँ हैं, जो कोशिकाओं में अन्तरा-कोशिकीय पाचन (Intra-cellular digestion) करते हैं। लाइसोसोम्स नाम की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों से हुई है (Gr; Lyso-digestive soma =body) जन्तु कोशिकाओं के कोशाद्रव्य में लाइसोसोम्स सूक्ष्म कणों के रूप में पाये जाते हैं, इन्हें सर्वप्रथम यकृत कोशिकाओं में सघन गोलाकार काय (dense-round bodies) के रूप में देखा गया।
कोशिका की आत्महत्या थैली-लाइसोसोम में अनेक पाचक एन्जाइम पाये जाते हैं। इन एन्जाइम्स की सहायता से पाचन क्रिया पूर्ण होती है। पाचन क्रिया के समय कुछ कोशिकाएं एन्जाइम की क्षमता को सहन नहीं कर पाती हैं और मृत हो जाती हैं। तब लाइसोसोम्स द्वारा उनका पृथक्करण होता है। यह मृत कोशिकाओं को हटा देती है। यह उन कोशिकाओं को स्वयं मार देती है जिनका कार्य समाप्त हो चुका होता है और उनको एकत्रित कर फिर लाइसोसोम्स की बदद से हटा देती हैं। इसलिए इसे आत्महत्या की थैली कहा जाता है।
प्राप्ति स्थान
(Occurrence)
सामान्य रूप से लाइसोसोम्स अधिकांश जन्तु कोशिकाओं में पाये जाते हैं। जन्तु कोशिकाओं में जैसे अग्नाशय, यकृत, ल्यूकोसाइट्स प्लीहा तथा वृक्क कोशाओं में असंख्य लाइसोसोम्स पाये जाते हैं जो पाचक रस उत्पन्न करके स्रावण का कार्य संचालित करते हैं। यदि जन्तु कोशाओं में लाइसोसोम नहीं होंगे तो उस जीव के पाचन में अवरोध उत्पन्न हो जायेगा इसलिए कोशा में लाइसोसोम का होना अति आवश्यक है।
बाह्य आकार
(Morphology)
लाइसोसोम्स की रचना (Structure of Lysosomes)- लाइसोसोम की रचना गोलाकार होती है, जो अनियमित छोटे से थैले के रूप में होती है जिसके अन्दर सघन तत्व तरल रूप में भरा होता है जिसमें अनेक पाचक एन्जाइम्स होते हैं। इसके मुख्य रूप से दो भाग होते हैं
1. लिमिटिंग कला (Limiting membrane) - लाइसोसोम्स चारों तरफ से एक महीन, कला के द्वारा घिरे होते हैं। यह कला लाइपोप्रोटीन्स के द्वारा निर्मित होती है। राबर्टसन (Robertson) के अनुसार इसकी रासायनिक रचना प्लाज्मालेमा की यूनिट झिल्ली के समान होती है। जिसमें द्विआण्विंक स्तर पाया जाता है।
2. आतरिक सघन स्तर (Inner dense mass) - यह लाइसोसोम्स का आंतरिक सधन स्तर है। कुछ लाइसोप्रोग्य में यह सघन बाह्य क्षेत्र तथा विसरित आन्तरिक क्षेत्र के रूप में होता है। जिसके, अन्दर गुफाए (Cavities) या रिक्तिकाएँ (Vacuoles) पायी जाती है। रिक्तिकाओं के अन्दर सघन कणिकामय तरल पदार्थ भरा होता है। ऐसा माना जाता है कि यह सघन पदार्थ माइटोकॉन्ड्रिया के समान होता है तथा इसमें अनेक पाचक एन्जाइम्स भी पाये जाते हैं। जो अन्तरा कोशिकीय पाचन (intracelivar digestion) में सहायक होते हैं।
लाइसासाम के प्रकार
(Types of Lysosomes)
De Robertes तथा अन्य वैज्ञानिकों ने 1971 में बताया कि लाइसोसोम की प्रकृति बहुरुपी (Polymorphic) होती है। अर्थात् इसमें कई प्रकार के लाइसोसोम्स पाये जाते हैं। रचना के आधार पर यह चार प्रकार के होते हैं
1. प्राथमिक लाइसोसोम अथवा संग्रह कणिकाएँ (Primary Lysosome or Storage Granules) - यह नवनिर्मित लाइसोसोम्स हैं जिनमें हाइड्रोलिटिक एन्जाइम्स मूल रूप में पाये जाते है इन एन्जाइम्स का संश्लेषण कणिकायुक्त एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम के द्वारा होता है। प्राथमिक लाइसोसोम में राइबोसोम्स पाये जाते हैं। यह लाइसोसोम्स सिस्टर्नी से सम्बन्धित होते हैं जहाँ पर एक वेसीकल्स अन्दर अनेक एन्जाइम्स संचित रहते हैं जो प्राथमिक लाइसोसोम्स या स्रावित वेसीकल्स बनाते हैं।
2.द्वितीयक लाइसोसोम्स (SecondaryLysosomes)- इन्हें पाचक रिक्तिका (Digestive vacuoles) या हेटरो-फैगोसोम्स भी कहते हैं। इस प्रकार के लाइसोसोम पाइनोसाइटोसिस या फैशोसाइटोसिस के द्वारा उत्पन्न होते हैं। जिसमें कोई बाहरी कण कोशिका के अन्दर आता है। भोज्य कण के चारों तरफ से एक कला होती है इस झिल्लीयुक्त रक्षक आवरण को फैगोसोम्स या पाइनोसोम्स कहते हैं। ये प्राथमिक लाइसोसोम्स के साथ संयुक्त होकर द्वितीयक लाइसोसोम्स बनाते हैं। इस प्रकार के लाइसोसोम्स में रक्षात्मक कला होती है तथा अन्दर मैट्रिक्स भरा होता है जिसमें अनेक हाइड्रोलाइटिक एन्जाइम्स पाये जाते हैं। द्वितीयक लाइसोसोम्स से पाचक तत्व झिल्ली के द्वारा कोशाद्रव्य में पहुँच जाते है
3. रेजीडुयल काय (The residual bodies) - जब द्वितीयक लाइसोसोम्स का पाचक भोज्य पदार्थ विसरित होकर कोशाद्रव्य में आ जाता है तथा बचा हुआ अपच्य भोज्य पदार्थ शेष रह जाता है। इस प्रकार शेष बचा हुआ द्वितीयक लाइसोसोम्स रेजीडुअल काय (Residual bodies) कहलाता है। बचा हुआ तत्व मुख्य रूप से लिपिड्स होता है जो एक्सोसाइटोसिस (Exocytosis) प्रक्रिया के द्वारा कोशिका से बाहरी वातावरण में निकाल दिया जाता है।
4. ऑटोफैजिक रिक्तिकाएँ (Autophagic vacuoles) - इन्हें आटो फैगोसोम(Autophagosomes) या साइटोलाइसोसोम्स भी कहते हैं। जब किसी कोशिका में आटोफैग (Autophagy) प्रक्रिया के द्वारा कुछ अन्तराकोशीय आन्तरांगों (Intracellular organelles) जैसे माइटोकान्ड्रिया एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम आदि का भक्षण होता है जिसके परिणामस्वरूप आटोफैजिक रिक्तिकाओं का निर्माण होता है। कोशिका की वृद्धि तथा मरम्मत के समय इस प्रकार की रिक्तिकाओं का निर्माण होता है। आटोफैगोसोम्स की प्रक्रिया में प्राथमिक लाइसोसोम्स भी अन्तरकोशीय पाचन में भाग लेते हैं।
लाइसोसोम के कार्य
(Functions of Lysosomes)
लाइसोसोम के कार्य निम्नलिखित हैं
1. बड़े आकार के बाह्य कोशिकीय कणों का पाचन (Digestion of large extracellular particles)- लाइसोसोम्स पाइनोसोम्स या फैगोसोम्स प्रक्रिया के द्वारा तत्वों का अर्थात् बड़े बाघ कोशिकीय कणों का पाचन करते हैं।
2. अन्तराकोशिकीय पाचन (Intra cellular digestion) - (Lyso-Lytic or digestive: Soma = body) लाइसोसोम में अनेक पाचक एन्जाइम्स पाये जाते हैं जिनकी सहायता से कोशिका के अन्दर पाचन क्रिया पूर्ण होती है।
एण्डोसाइटोसिस प्रक्रिया के अन्तर्गत फैगोसाइटोसिस (Gr; phagein = to eat) पाइनो साइटोसिस
(Gr, Pinein = to drink) तथा माइक्रोपाइनो साइटोसिस आदि क्रियायें आती हैं। फैगोसाइटोसिस प्रक्रिया में ल्यकोसाइट्स के द्वारा O2 ग्रहण की जाती है तथा ग्लूकोज लिया जाता है तथा ग्लाइकोजन विघटित हो जाता है तथा एण्डोसाइटोसिस में एक्टिन तथा मायोसिन तन्तुओं का कान्ट्रैक्शन होता है। लाइसोसोम्स के अन्दर ही भोजन का पाचन होता है तथा कुछ भोज्य पदार्थ प्रोटीन्स, लिपिड्स तथा ग्लाइकोजन के रूप में संचित होते हैं। यह संचित पदार्थ कोशिका को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
3. काथान्तरण में (Roll in Metamorphosis)- आधुनिक खोज के आधार पर स्पष्ट होता है कि मेंढक में कायान्तरण लाइसोसोम्स के द्वारा होता है।
4. मृत कोशिकाओं के पृथक्करण में (Removal of dead cells) - हिर्च (Hirrch) तथा कोहन (Cohn) ने 1964 में बताया कि किसी उत्तक के अन्दर जो कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं उनका प्रथक्करण लाइसोसोम्स के द्वारा होता है।
5. प्रोटीन संश्लेषण में सहायक (Help in Protein synthesis)- एसनर (Essner) तथा नोवीकॉफ (Novikoff) 1960 ने बताया कि प्रोटीन्स के संश्लेषण में लाइसोसोम्स सहायक होते हैं।
6. निषेचन में सहायक (Helpful in Fertilization) - निषेचन के समय शुक्राणु के शीर्ष भाग से कुछ लाइसोसोमल एन्जाइम्स निषेचन में सहायक होते हैं जिनकी सहायता से एक्रोसोम, अण्डाणु के बाह्य स्तर को तोड़ कर अन्दर प्रवेश करता है।
7. ऑस्टियोजोनेसिस में सहाया (Role in Oesteogenesis)- आधुनिक धारणा के अनुसार यह स्पष्ट हो चुका है कि अस्थि कोशिकाओं का निर्माण तथा उनका पुनरुद्भवन लाइसोसोम्स की क्रिया, पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त अभिनिषेक जनन भी लाइसोसोम्स की क्रिया पर निर्भर करता है।
8. लाइसोसोम तथा कैंसर (Lysosomes and Cancer) - मैलिग्नेट कोशिकाएँ जिनमें असामान्य क्रोमोसोम पाये जाते हैं। असामान्य क्रोमोसोम्स होने के कारण क्रोमोसोम्स का विखण्डन होता है यह विखण्डन लाइसोसोमल एन्जाइम्स के कारण होता है। मनुष्य में क्रमिक मायलॉयड ल्यूकेमिया (Mylloid leukemia) अर्थात रक्त कैंसर लाइसोसोम के कारण होता है।
9. लाइसोसोम तथा रोग (Lysosomes and Disease)- जब फेफड़ों या तन्तुमय उत्तकों के नीचे कोई बाहरीकण (जैसे सिलिका, एस्बेस्टास) आदि फंस जाता है तो लाइसोसोम झिल्ली कमजोर 'होने के कारण फट जाती हैं जिसके कारण फेफड़ों की कोश्किाएँ प्रभावित हो जाती हैं तथा श्वसन सम्बन्धी रोग हो जाता है।
10. कोशा विभाजन (Cell division) - लाइसोसोम के कारण सूत्री विभाजन होता है।
Conclusion-
इस पोस्ट में हमने लाइसोसोम के बारे में जाना
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