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कोशिका किसे कहते हैं || What are cells called? in hindi

इस पोस्ट में हम 
  • यूकैरियोटिक कोशिकाओं की अल्ट्रास्ट्रक्चर का वर्णन 
  • कशाभ तथा पक्ष्म में अन्तर 
  • एक ससीमकेन्द्र कोशिका के केन्द्रकीय अवयवों का विस्तृत वर्णन 
  • कोशिका सिद्धान्त किसे कहते हैं? यह सिद्धान्त किसने दिया है?
  • जन्तु कोशिका की संरचना में पाये जाने वाले अंगकों के कार्यों का वर्णन 
के बारे में जानेगे-

कोशिका
(Cells)

कोशिका जीवधारी की सबसे सूक्ष्मतम तथा जैव क्रियाओं की पूर्ण अभिव्यक्ति है। इसकी खोज सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक राबर्टहुक ने सन् 1665 में कॉर्क की पतली महीन काट का सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करके कोशिका का वर्णन किया था। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कॉर्क के छोटे-छोटे कोष्ठक दिखाई दिये इन्हीं कोष्ठकों को उन्होंने कोशिका अथवा (Hollow space) का नाम दिया।




कोशिका के प्रकार (Types of Cells)

कोशिकायें तीन प्रकार की होती हैं जो निम्न हैं -

(1) प्रोकेरियोटिक कोशायें - ये छोटी व सरल कोशिकायें हैं। इनमें केवल कोशिका कला होती है तथा झिल्लीयुक्त कोशिकांग । उदाहरणस्वरूप - गॉल्जी उपकरण, माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट तथा लाइसोसोम नहीं होते हैं। इनका आनुवांशिक पदार्थ अंतावलित गोलाकार गुणसूत्र के रूप में होता है। यह केवल डी-ऑक्सीराइबोस का बना होता है। यह पदार्थ कोशिका द्रव्य में पड़ा रहता है। बैक्टीरिया, नील हरित शैवाल तथा प्लूरोन्यूमोनिया - सदृश कोशिकायें प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं के उदाहरण है।

(2) यूकैरियोटिक कोशिकायें - जीव जगत के अधिकांश जीवों में यूकैरियोटिक कोशाएँ पायी जाती हैं इनमें झिल्लीयुक्त कोशिकांग पाये जाते हैं। आनुवांशिक पदार्थ गुणसूत्रों के रूप में होता है। केन्द्रक, कला के द्वारा कोशिका द्रव्य से अलग रहता है।

(3) मीजोकेरियोटिक कोशायें - इस तरह की कोशिकाओं में केन्द्रक कला तो पायी जाती है किन्तु अनुवांशिक पदार्थ अनावृत होता है, इसके साथ ही हिस्टोन प्रोटीन नहीं होते हैं। ये कोशिकायें प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक कोशिकाओं के बीच की स्थिति दर्शाती है। उदाहरण-डायनोफ्लेजिलेट प्रोटोजोआ मीजोकेरियोटिक होते हैं।

कोशिका की खोज

सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने सन् 1665 में कार्क की पतली काट (सेक्शन) का सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करके कोशिका का वर्णन किया। सूक्ष्मदर्शी द्वारा कार्क के सेक्शन में उसे मधुमक्खी के छत्ते के समान छोटे-छोटे कोष्ठक दिखाई दिये। इन्हीं कोष्ठकों को उन्होंने कोशिका का नाम दिया।

कोशिका का नियमन करने वाले निम्न कारक हैं -

(1) जीवद्रव्य की श्यानता तथा पृष्ठ तनाव,

(2) कोशिकाओं पर पड़ने वाला दाब,

(3) कोशिका कला की स्थिरता,

(4) कोशिका का आन्तरिक वातावरण

कोशा संरचना
 (Cell Structure) 

किसी यूकैरियोटिक कोशिका का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अध्ययन करने पर निम्न रचनायें दिखायी देती हैं
1. प्लाज्मा झिल्ली, 2. साइटोप्लाज्म, 3. केन्द्रक

(1) प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) - जन्तु कोशिकाओं में शरीर के बाह्य रक्षक आवरण को प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) अथवा प्लाज्मालेमा (Plasmalemma) या कोशा झिल्ली (Cell membrane) कहते हैं। यह एक जीवित अति महीन, लचीली छिद्रयुक्त अर्ध पारगम्य झिल्ली है। यह झिल्ली कोशिका को यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। प्लाज्मा झिल्ली प्रोटोप्लाज्म (केन्द्रक और साइटोप्लाज्म) को एक निश्चित आकार प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह झिल्ली अर्ध-पारगम्य होती है जिसकी सहायता से आवश्यक पदार्थ कोशिका के अन्दर तथा बाहर सुगमता से आ-जा सकते हैं। प्लाज्मा झिल्ली के तीन स्तर होते हैं वाह्य तथा आंतरिक स्तर प्रोटीन्स का निर्मित होता है। जबकि मध्य स्तर लिपिड्स का बना होता है।

(2) साइटोप्लाज्म (Cytoplasm) - यह आंतरिक पारदर्शी समांगी कोलायडल तरल पदार्थ है इसके दो भाग होते हैं
(i) साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स (Cytoplasmic Matrix) - प्लाज्मा झिल्ली और केन्द्रक के बीच रिक्त स्थान होता है जिसमें तरल समांगी पदार्थ भरा होता है इस कोलॉयडल, पारदर्शी समांगी पदार्थ को साइटोप्लाज्मिक-मैट्रिक्स कहते हैं जिसमें विभिन्न आकार के अकार्बनिक अणु घुले होते हैं इनमें से प्रमुख अकार्बनिक अणु जल, सोडियम तथा पोटेशियम विभिन्न लवणों के रूप में होते हैं इसके अतिरिक्त कोशाद्रवीय मैट्रिक्स विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थ जैसे लिपिड्स, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स न्यूक्लियो प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्ल (DNA व RNA) तथा अनेक प्रकार के एन्जाइम्स भी घुले रहते हैं।




साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स का बाह्य स्तर कणिका विहीन, श्यान (Viscous) तथा पारदर्शी होता है इस भाग को प्लाज्मा जेल, ऐक्टोप्लाज्म या कार्टेक्स कहते हैं जबकि आंतरिक स्तर कणिकायुक्त होता है जिसे एण्डोप्लाज्म कहते हैं। साइटोप्लाज्म में सामान्य रूप से सॉल-जेल कोलायडी तंत्र पाया जाता है
तथा दोनों ही प्रावस्थाएँ एक-दूसरे में परिवर्तित होती रहती हैं। प्रारूपी कोशिका का चित्र जैसा कि इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में दिखायी देता है, निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(A) साइटोप्लामिक के इन्क्लूजन्स (Cytoplasmic Inclusions) - साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स के कुछ जीवित अजीवित संरचनाएँ होती हैं जो घुलित अवस्था में कणिकाओं के रूप पायी जाती हैं। अजीवित पदार्थों में संचित भोज्य पदार्थ स्रावित करने वाले पदार्थ आदि होते हैं। यह पदार्थ तैलीय बूंदों (Oil drops), योक कणिकाओं, विभिन्न वर्णक (Various pigments), स्रावित कणिकाएँ (secretory granules), उत्सर्जी पदार्थ (Excretory products) तथा ग्लाइकोजन कणिकाओं के
रूप में घुलित होता है।


(B) साइटोप्लामिक अंगक (Cytoplasmic organelles) - यह साइटोप्लाज्म में पाये जाने वाली विभिन्न प्रकार की जीवित रचनाएँ हैं, जिनके कारण शरीर में जीव संश्लेषण (Bio-synthesis), स्थानान्तरण (Transportation) तथा अन्य जैविक उपापचयी क्रियाएँ होती हैं। इसके अतिरिक्त यह अंगक श्वसन, प्रजनन, सहारा प्रदान करना तथा भोज्य पदार्थों के संचय का भी कार्य करते हैं। माइक्रो-नलिकाएँ या माइक्रो तन्तु, आधारीय कणिकाएँ पक्ष्म तथा कशाभ, तारकाय, गाल्जीकाय, तारककाय, माइट्रोकान्ड्रिया, लवक, मेटाप्लाज्म, राइबोसोम्स, माइक्रोबाडीज तथा साइटोप्लाज्मिक रिक्तिकाएँ कुछ प्रमुख अंगक हैं। जो शरीरिक-उपापचय में सहायक होते हैं।

1. माइक्रोनलिकाएँ तथा माइक्रो तन्तु (Microtubules and Micro filaments)- जन्तु तथा पादप कोशिकाओं में असंख्य, अति सूक्ष्म नलिकाओं का जाल फैला रहता है। ये नलिकाएँ विशेष प्रकार के प्रोटीन तत्व ट्यूबुलिन (Tubulin) के द्वारा निर्मित होती हैं। इन नलिकाओं का कार्य साइटोप्लाज्म में गति के समय जन-आयनों तथा सूक्ष्म अणुओं को सम्पूर्ण शरीर में स्थानान्तरित करना है तथा यह नलिकाएँ कोशिका विभाजन के समय स्पिंडल तन्तुओं का निर्माण करती हैं इसके अतिरिक्त यह कशाभ, पक्ष्म, आधारीय कणिकाओं तथा सेन्ट्रियोल्स की रचनात्मक इकाई का निर्माण करते हैं। अधिकांश जन्तु कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में अति सूक्ष्म, ठोस तन्तुओं के गुच्छे पाये जाते हैं जो प्रोटीन पदार्थ से बनते हैं इन्हें माइक्रो-तन्तु कहते हैं। यह गुच्छे कोशिका को एक निश्चित आकार
प्रदान करते हैं तथा इन्हीं के कारण पेशी कोशिकाओं में लचीलापन होता है।

2. एण्डोप्लाज्मिक जालिका (Endoplasmic reticulum (E.P.R.)- साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स में अति महीन सूक्ष्म नलिकाओं का जाल होता है। समस्त नलिकाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं या तो कोशिका झिल्ली में खुलती है या फिर केन्द्रक झिल्ली पर खुलती है तथा कुछ नलिकाएँ दोनों से
ही जुड़ी रहती हैं समस्त नलिकाएँ आपस में मिलकर अन्तःप्रदव्यी जालिका बनाती हैं। एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुल की झिल्ली का बाह्य सतह में राइबोसोम्स चिपके हुए पाये जाते हैं या फिर नहीं पाये जाते हैं जिसके कारण इनकी सतह चिकनी होती है। राइबोसोम्स की उपस्थित के आधार पर एण्डोप्लामिक रेटीकुलम दो प्रकार की होती है। एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम रचनात्मक रूप साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स का कंकालीय आधार बनाता है तथा उसे यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह झिल्ली अन्तराकोशिकीय परिवहन तंत्र भी बनाती हैं जिस प्रक्रिया में विभिन्न तत्व तरल साइटोप्लाज्म में घुलित अवस्था में एक कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम लिपिड्स, ग्लाइकोजन, कोलेस्ट्राल, हार्मोन्स तथा ग्लीसराइड्स का संश्लेषण भी करती है तथा इन कार्बनिक पर्दार्थों का कोशिकाओं में संचय भी करती हैं।

3. तारककाय (Centrosomes)- सेन्ट्रोसोम गोलाकार या तारे के समान रचना है जो केन्द्रक के अत्यन्त समीप तथा कोशिका के लगभग मध्य में स्थित होती है। तारककाय में सघन साइटोप्लाज्म होता है। कोशिका विभाजन के समय सेन्ट्रोसोम में दो छड़ के समान रचनाएँ होती हैं जिन्हें सेन्ट्रियोल्स कहते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रियोल में नौ तन्तु युक्त इकाई पायी जाती है तथा प्रत्येक तन्तु काय इकाई में तीन माइको नलिकाएँ पायी जाती हैं कोशिका विभाजन के समय सेन्ट्रियोल इन्हीं माइक्रो नलिकाओं की स्पिंडल बनाती हैं जिससे कोशिका विभाजन की विभिन्न अवस्थाओं में गुण सूत्र पृथक होते हैं तथा इनमें गति भी होती है।

4. आधारीय कणिकायें या काइनेटोसोम्स (Basal granules or Kinetosomes)- प्रत्येक जन्तु या पादप कोशिका में चलन अंग पाये जाते हैं जिन्हें पक्ष्म या कशाम कहते हैं। इन चलन अंगों में एक गोलाकार संरचना बिन्दु के रूप में पायी जाती है जिसे आधारीय कणिकाएँ या काइनीटोसोम्स कहते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति पक्ष्म या कशाभ के आधार से होती है। काइनीटोसोम्स एक्टोप्लाज्म में दूमा होता है तथा यह नौ तन्तुओं के द्वारा बनता है प्रत्येक तन्तु में तीन माइक्रो-नलिकाएँ होती हैं। आधारीय कणिकाओं में DNA तथा RNA दोनों ही पाये जाते हैं। पाक्ष्म तथा कशाभ (Cilia and Flagella) - एक कोशिकीय तथा बहुकोशीय जन्तुओं की पक्ष्मकीय ऐपीथीलियम में कुछ रोम के समान संरचनाएँ पायी जाती हैं जो चलन में सहायक होती है। इन रचनाओं को पक्ष्म या कशाभ कहते हैं।

6. मेटाप्लाज्म (Metaplasm) - यह रिक्तिकाओं कणिकाओं तथा राइबोन्यूक्लिक अणुओं के
 में पाये जाते हैं तथा सम्पूर्ण कोशाद्रव्य में फैले रहते हैं।

7. लाइसोसोम्स (Lysosomes) - यह केवल जन्तु कोशिका में पाये जाते हैं तथा कोशादव्य में सूक्ष्म गोलाकार या अनियमित थैलीनुमा रूप में स्थित होते हैं लाइसोसोम्स चारों तरफ से झिल्ली के द्वारा घिरे होते हैं जिसके अन्दर असंख्य पाचक एन्जाइम पाये जाते हैं। कोशिका के अन्दर पिनकोसाइटोसिस और फैगोसाइटोसिस के द्वारा जो खाद्य पदार्थ अन्दर आता है उसका पाचन करने में लाइसोसोम्स सहायक होते हैं। अर्थात् यह भोजन का अन्तराकोशिकीय पाचन करते हैं।

8. गाल्जीकाय (Golgi bodies) - यह साइटोप्लाज्म में पाया जाने वाला अत्यन्त महत्वपूर्ण अंगक है जो विशेष रूप से उपापचयी कोशाओं में पाया जाता है। इसकी रचना असंख्य लैमिली नलिकाओं (tubules), थैलियों (vesicles) तथा रिक्तिका (Vacuoles) के मिलने से होती है। इसकी झिल्ली लाइपो-प्रोटीन्स के द्वारा बनी होती है और सम्भवतः इनकी उत्पत्ति एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम की झिल्लियों से होती है। गाल्जीकाय का कार्य प्रोटीन्स तथा एन्जाइम्स का स्रावण करना है। इसके अतिरिक्त गाल्जीकाय का कार्य एक्रोसोम्स का निर्माण हार्मोन्स तथा एन्जाइम्स आदि पदार्थों का स्रावस करना है।

9: माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)- प्रत्येक जीवित कोशिका के साइटोप्लाज्म में माइटोकॉन्द्रिया पृथक-पृथक या समूहों के रूप में पाये जाते हैं। इनकी लम्बाई 2 से 3 माइक्रोन तक होती है। माइटोकॉन्ड्रिया का आकार छड़नुमा या गोलाकार होता है। प्रत्येक माइटोकॉन्ड्रिया लाइपो-प्रोटीन्स के द्वारा निर्मित दो झिल्लियों की सहायता से घिरा रहता है। वाह्य झिल्ली थैली के आकार की रचना बनाती है जबकि आन्तरिक झिल्ली ल्यूमेन में झिल्ली के समान रचना बनाती है जिसे क्रिस्टी (Cristae) कहते हैं। माइट्रोकॉन्ड्रिया के ल्यूमेन तथा दोनों झिल्लियों के बीच रिक्त अवकाश होता है जिसमें एक तरल पदार्थ भरा रहता है। इस तरल पदार्थ को माइटोकॉन्ड्रियल मैट्रिक्स कहते हैं। दोनों झिल्लियों तथा मैट्रिक्स में अनेक आक्सीकृत एन्जाइम्स तथा सह-एन्जाइम्स पाये जाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में DNA अणु तथा राइबोसोम्स भी पाये जाते हैं जो प्रोटीन्स का संश्लेषण करते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस कहते हैं क्योंकि इसमें आक्सीकरण के परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा ऐडिनोसिन ट्राइफास्फेट (ATP) के रूप में होती है। इसके अतिरिक्त यह कुछ पदार्थों को भी सावित करते हैं।

10. प्लास्टिड्स या लवक (Plastids) - लवक अधिकांशतः पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं लेकिन कुछ जन्तु कोशिकाओं में भी पाये जाते हैं। ये रंगीन (क्रोमोप्लास्ट), हरे (क्लोरोप्लास्ट) तथा रंगहीन (ल्यूकोप्लास्ट) के रूप में होते हैं। एक प्रकार के लवक दूसरे प्रकार के लवक में परिवर्तित हो जाते हैं ल्यूकोप्लास्ट स्टार्च तथा लिपिड्स का संचय करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण वर्णक क्लोरोप्लास्ट होता है, क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है। क्लोरोप्लास्ट भोजन के अवयवों का संश्लेषण करते हैं यह संश्लेषण प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के द्वारा होता है।

11. साइटोप्लामिक रिक्तिकाएँ (Cytoplasmic Vacuoles) - अनेक पादप तथा जन्तुओं की कोशिकाओं में असंख्य छोटी व बड़ी गोलाकार संरचना होती है जो अन्दर से खोखली होती है जिसमें तरल पदार्थ भरा रहता है। इन खोखले तरल पदार्थ युक्त रचनाओं को रिक्तिकाएँ (Vacuoles) कहते हैं। जन्तु कोशिकाओं में पायी जाने वाली रिक्तिकाएँ लाइपो-प्रोटीन झिल्ली की सहायता से घिरी रहती हैं। रिक्तिकाओं का कार्य खाद्य पदार्थों का संचय तथा स्थानान्तरण है। इसके अतिरिक्त यह कोशिकाओं में आंतरिक दाब को भी संतुलित रखती है।

12. माइक्रोबाडीज (Microbodies) - विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में कुछ विशेष प्रकार के कण पाये जाते हैं ये कणिकायें गोलाकार तथा झिल्ली युक्त होती हैं जिनका व्यास 0.3 से 1.5 माइक्रोन तक होता है। इनके बीच में केन्द्रीय कणिकायुक्त भाग होता है जिनमें कुछ एन्जाइम्स पाये जाते है इन
रचनाओं को माइक्रोबॉडीज कहते हैं। माइक्रोबॉडीज ATP का संश्लेषण करती है तथा इनमें पाये जाने वाले एन्जाइम्स हाइड्रोजन पर-ऑक्साइड उपापचय, प्यूरीन उपापचय, प्रकाश श्वसन तथा वसा को कार्बोहाइड्रेट्स में परिवर्तित करने में सहायक होते हैं।

13. राइबोसोम्स (Ribosomes) - यह सूक्ष्म गोलाकार रचनाएँ हैं जो साइटोप्लाज्म में पायी जाती हैं या एण्डोप्लाज्मिक झिल्ली की ऊपरी सतह से चिपके रहते हैं। यह मुख्य रूप से RNA तथा प्रोटीन्स से मिलकर बनते हैं। इनकी उत्पत्ति केन्द्रिकाओं से होती है। प्रत्येक राइबोसोम्स की रचना दो रचनात्मक इकाइयों से होती है जिसे क्रमशः 40S तथा 60S कहते हैं। 605 सब-यूनिट की सहायता से राइबोसोम्स एण्डोप्लाज्मिक झिल्ली की सतह से चिपके रहते हैं। 40S सब-यूनिट तथा 605 सब-यूनिट के साथ मिलकर एक प्यालेनुमा रचना बनाते हैं। राइबोसोम्स प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक होते हैं।

14. केन्द्रक (Nucleus) - यह कोशिका के मध्य में स्थित गोलाकार रचना है जो साइटोप्लाज्म की सभी जैवीय क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त यह आनुवांशिक लक्षणों को DNA तक ले जाता है। अर्थात् यह पैतृक लक्षणों को नयी संतति में भेजते हैं। केन्द्रक के चार भाग होते हैं-
1. केन्द्रक कला (Nuclear membrane)
2. केन्द्रक द्रव्य (Nuclear Sap or Nucleoplasm)
3. केन्द्रिका (Nucleolus)
4. क्रोमैटिन धागे (Chromatin threads)
केन्द्रक का सबसे महत्वपूर्ण भाग क्रोमैटिन है यह पदार्थ रासायनिक दृष्टि से न्यूक्लियो-प्रोटीन है जो न्यूक्लिक अम्ल (DNA व RNA) तथा क्षारीय प्रोटीन (हिस्टोन) से मिलकर बनता है। इस प्रकार कोशा के अध्ययन के द्वारा स्पष्ट होता है कि कोशिका की बाह्य संरचना कोशा भित्ति या प्लाज्मा झिल्ली से घिरी होती है इसके अन्दर एक तरल पदार्थ साइटोप्लाज्म भरा रहता है। जिसमें जीवित तथा अजीवित अंगक पाये जाते हैं जो विभिन्न प्रकार की उपापचयी क्रियाओं को संचालित करते हैं। इसके अतिरिक्त कोशिका के मध्य में केन्द्रक भी पाया जाता है।


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