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प्राणी कोशिका जीवों की सरंचना का वर्णन || Description of the structure of living organisms in hindi

 इस पोस्ट में हम प्राणी कोशिकाओं की सरंचना,कोशिका के अंगों के नाम तथा उनके कार्यो के बारें में जानेंगे-

प्राणी कोशिकाओं की रचना
(structure of animal cells)

कोशिका जीवों की संरचना व शरीर की पूर्ण अभिव्यक्ति है। यह संरचना, शरीर क्रिया तथा आनुवांशिकी की इकाई है।

एक प्राणी कोशिका को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
(1) जीवद्रव्य, झिल्ली या कोशिका कला (Plasma Membrane or Cell Membrane)
(2) केन्द्रक (Nucleus)
(3) कोशिका द्रव्य
कोशा संरचना (Cell Structure)- किसी यूकैरियोटिक कोशिका का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अध्ययन करने पर निम्न रचनायें दिखायी देती हैं

1. प्लाज्मा झिल्ली
2. साइटोप्लाज्म
3. केन्द्रक

1. प्लाज्मा झिल्ली
 (Plasma Membrane) 
जन्तु कोशिकाओं में शरीर के बाह्य रक्षक आवरण को प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) अथवा प्लाज्मालेमा (Plasmalemma) या कोशा झिल्ली (Cell membrane) कहते हैं। यह एक जीवित अति महीन, लचीली छिद्रयुक्त अर्ध पारगम्य झिल्ली है। यह झिल्ली कोशिका को यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। प्लाज्मा, झिल्ली प्रोटोप्लाज्म (केन्द्रक और साइटोप्लाज्म) को एक निश्चित आकार प्रदान करती है। इसके अतिरक्ति यह दिल तो अर्ध-पारगम्य होती है जिसकी सहायता से आवश्यक पदार्थ कोशिका के अन्दर तथा बाहर सुगमता से आ-जा सकते हैं। प्लाज्मा झिल्ली के तीन स्तर होते हैं। बाह्य तथा आंतरिक स्तर प्रोटीन्स का निर्मित होता है जबकि मध्य स्तर लिपिड्स का बना होता है।

2. साइटोप्लाज्म 
(Cytoplasm)

 यह आंतरिक पारदर्शी समांगी कोलायडल तरल पदार्थ है इसके दो भाग होते हैं -

(i) साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स (Cytoplasmic Matrix)- प्लाज्मा झिल्ली और केन्द्रक के बीच में रिक्त स्थान होता है जिसमें तरल समांगी पदार्थ भरा होता है इस कोलायडल, पारदर्शी समांगी पदार्थ  को साइटोप्लाज्मिक-मैट्रिक्स कहते हैं जिसमें विभिन्न आकार के अकार्बनिक अणु घुले होते हैं। इनमें से प्रमुख अकार्बनिक अणु जल, सोडियम तथा पोटेशियम विभिन्न लवणों के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त कोशाद्रवीय मैट्रिक्स विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थ जैसे लिपिड्स, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स न्यूक्लियो प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्ल (DNA व RNA) तथा अनेक प्रकार के एन्जाइम्स भी घुले रहते। है। साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स का बाह्य स्तर कणिका विहीन, श्यान (Viscous) तथा पारदशी होता । है इस भाग को प्लाज्मा जेल, ऐक्टोप्लाज्म या कॉर्टेक्स कहते हैं जबकि आंतरिक स्तर कणिकायुक्त होता है। जिसे एण्डोप्लाज्म कहते हैं। साइटोप्लाज्म में सामान्य रूप से सॉल-जेल कोलायडी तंत्र पाया जाता है तथा दोनों ही प्रावस्थाएँ एक-दूसरे में परिवर्तित होती रहती हैं। प्रारूपी कोशिका का चित्र जैसा कि इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी में दिखायी देता है निम्नलिखित भागे में वर्गीकृत किया जा सकता है

(A) साइटोप्लाज्मिक के इन्क्लूजन्स (Cytoplasmic inclusions) - साइटोप्लामिक मैट्रिक्स
में कुछ जीवित तथा अजीवित संरचनाएँ होती हैं जो घुलित अवस्था में कणिकाओं के रूप में पायी जाती  हैं। अजीवित पदार्थों में संचित भोज्य पदार्थ स्रावित करने वाले पदार्थ आदि होते हैं। यह पदार्थ तैलीय बूंदों (Oil drops), योक कणिकाओं विभिन्न वर्णक (Various pigments), स्रावित कणिकाएँ
(Secretory granules), उत्सर्जी पदार्थ (Excretory products) तथा ग्लाइकोजन कणिकाओं के
रूप में घुलित होता है।

(B) साइटोप्लामिक अंगक (Cytoplasmic Organelles) - यह साइटोप्लाज्म में पाये पर जाने वाली विभिन्न प्रकार की जीवित रचनाएँ हैं जिनके कारण शरीर में जीव संश्लेषण (Bio-synthesis) स्थानान्तरण (Transportation) तथा अन्य जैविक उपापचयी क्रियाएँ होती हैं। इसके अतिरिक्त यह अंगक श्वसन, प्रजनन, सहारा प्रदान करना तथा भोज्य पदार्थों के संचय का भी कार्य करते है। माइक्रो-नलिकाएँ या माइक्रो तन्तु, आधारीय कणिकाएँ पक्ष्म तथा कशाभ, तारककाय, गाल्जीकाय माइट्रोकान्ड्रिया, लवक, मेटाप्लाज्म, राइबोसोम्स, माइक्रोबॉडीज तथा साइटोप्लाज्मिक रिक्तिकाएँ कुछ प्रमुख अंगक हैं जो शारीरिक-उपापचय में सहायक होते हैं।

1. माइक्रोनलिकाएँ तथा माइक्रो तन्तु (Microtubules and Micro filaments)- जन्तु तथा पादप कोशिकाओं में असंख्य, अति सूक्ष्म नलिकाओं का जाल फैला रहता है। ये नलिकाएँ विशेष प्रकार के प्रोटीन तत्व ट्यूबुलिन (Tubulin) के द्वारा निर्मित होती है। इन नलिकाओं का कार्य साइटोप्लाज्म में गति के समय जल-आयनों तथा सूक्ष्म अणुओं को सम्पूर्ण शरीर में स्थानान्तरित करना है तथा यह नलिकाएँ कोशिका विभाजन के समय स्पिंडल तन्तुओं का निर्माण करती हैं। इसके अतिरिक्त यह कशाभ, पक्ष्म, आधारीय कणिकाओं तथा सेन्ट्रियोल्स की रचनात्मक इकाई का निर्माण करते हैं।

अधिकांश जन्तु कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में अति सूक्ष्म, ठोस तन्तुओं के गुच्छे पाये जाते हैं जो प्रोटीन पदार्थ से बनते हैं इन्हें माइक्रो-तन्तु कहते हैं। यह गुच्छे कोशिका को एक निश्चित आकार प्रदान करते हैं तथा इन्हीं के कारण पेशी कोशिकाओं में लचीलापन होता है।

2. एण्डोप्लाज्मिक जालिका (Endoplasmic reticulum (E.P.R.)- साइटोप्लामिक मैट्रिक्स में अति महीन सूक्ष्म नलिकाओं का जाल होता है समस्त नलिकाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है या तो कोशिका झिल्ली में खुलती है या फिर केन्द्रक झिल्ली पर खुलती हैं तथा कुछ नलिकाएँ दोनों से ही जुड़ी रहती हैं समस्त नलिकाएँ आपस में मिलकर अन्तःप्रदायी जालिका बनाती हैं। एण्डोप्लामिक रेटीकुलम की झिल्ली की बाह्य सतह में राइबोसोम्स चिपके हुए पाये जाते हैं या फिर नहीं पाये जाते है जिसके कारण इनकी सतह चिकनी होती है। राइबोसोम्स की उपस्थिति के आधार पर एण्डोप्लामिक रेटीकुलम दो प्रकार की होती है। एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम रचनात्मक रूप से साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स का कंकालीय आधार बनाता है तथा उसे यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह झिल्ली अन्तराकोशिकीय परिवहन तंत्र भी बनाती है जिस प्रक्रिया में विभिन्न तत्व तरल साइटोप्लाज्म में घुलित अवस्था में एक कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त एण्डोप्लामिक रेटीकुलम लिपिड्स, ग्लाइकोजन, कोलेस्ट्राल, हार्मोन्स तथा ग्लीसराइड्स का संश्लेषण भी करती है तथा इन कार्बनिक पदार्थों का कोशिकाओं में संचय भी करती है।

3. तारक काय (Centrosomes)- सेन्ट्रोसोम गोलाकार या तारे के समान रचना है जो केन्द्रक के अत्यन्त समीप तथा कोशिका के लगभग मध्य में स्थित होता है। तारककाय में सघन साइटोप्लाज्म होता है। कोशिका विभाजन के समय सेन्ट्रोसोम में दो छड़ के समान रचनाएँ होती हैं जिन्हें सेन्ट्रियोल्स से कहते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रियोल में नौ तन्तु युक्त इकाई पायी जाती है तथा प्रत्येक तन्तु काय इकाई में तीन माइक्रो नलिकाएँ पायी जाती हैं कोशिका विभाजन के समय सेन्ट्रियोल इन्हीं माइक्रो नलिकाओं की स्पिंडल बनाती हैं जिससे कोशिका विभाजन की विभिन्न अवस्थाओं में गुण सूत्र पृथक होते हैं तथा इनमें गति भी होती है।

4. आधारीय कणिकाएँ या काइटीनोसोम्स (Basal granules or Kinetosomes)- प्रत्येक जन्तु या पादप कोशिका में चलन अंग पाये जाते हैं जिन्हें पक्ष्म या कशाभ कहते हैं। इन चनल अंगों में एक गोलाकार संरचना बिन्दु के रूप में पायी जाती है जिसे आधारीय कणिकाएँ या काइनीटोसोम्स कहते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति पक्ष्म या कशाभ के आधार से होती है। काइनीटोसोम्स एक्टोप्लाज्म में डूबा होता है तथा यह नौ तन्तुओं के द्वारा बनता है। प्रत्येक तन्तु में तीन माइक्रो-नलिकाएँ होती हैं। आधारीय कणिकाओं में DNA तथा RNA दोनों ही पाये जाते हैं।

5. पक्ष्म या कशाभ (Cilia and Flagella) - एक कोशिकीय तथा बहुकोशीय जन्तुओं की पक्ष्मकीय ऐपीथीलियम में कुछ रोम के समान संरचनाएँ पायी जाती हैं जो चलन में सहायक होती हैं। इन रचनाओं को पक्ष्म या कशाभ कहते हैं।

6. मेटाप्लाज्म (Metaplasm)- यह रिक्तिकाओं, कणिकाओं तथा राइबोन्यूक्लिक अणुओं के रूप में पाये जाते हैं तथा सम्पूर्ण कोशाद्रव्य में फैले रहते हैं।

7.लाइसोसोम्स (Lysosomes)- यह केवल जन्तु कोशिका में पाये जाते हैं तथा कोशाद्रव्यमें सूक्ष्म गोलाकार या अनियमित थैलीनुमा रूप में स्थित होते हैं। लाइसोसोम्स चारों तरफ से झिल्ली द्वारा घिरे होते हैं जिसके अन्दर असंख्य पाचक एन्जाइम पाये जाते हैं। कोशिका के अन्दर पिनकोसाइटोसिस और फैगोसाइटोसिस के द्वारा जो खाद्य पदार्थ अन्दर आता है उसका पाचन करने  में लाइसोसोम्स सहायक होते हैं। अर्थात् यह भोजन का अन्तराकोशिकीय पाचन करते हैं।

8. गाल्जीकाय (Golgi bodies) - यह साइटोप्लाजम में पाया जाने वाला अत्यन्त  महत्वपूर्ण अंगक है जो विशेष रूप से उपापचयी कोशाओं में पाया जाता है इसकी रचना असंख्य लैमिली नलिकाओं  (tubules), थैलियों (vesicles) तथा रिक्तिका (Vacuoles) के मिलने से होती है। इसकी झिल्ली लाइपोप्रोटीन्स के द्वारा बनी होती है और सम्भवतः इनकी उत्पत्ति एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम की झिल्लीयों से होती है। गाल्जीकाय का निर्माण प्रोटीन्स तथा एन्जाइम्स का स्रावण करना है। इसके अतिरिक्त गाल्जीकाय का कार्य एक्रोसोम्स का निर्माण हार्मोन्स तथा एन्जाइम्स आदि पदार्थों का स्रावण करना है।

9. माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)- प्रत्येक जीवित कोशिका के साइटोप्लाज्म में माइटोकॉन्डिया
पृथक-पृथक या समूहों के रूप में पाये जाते हैं। इनकी लम्बाई 2 से 3 माइक्रोन तक होती है माइटोकॉन्ड्रिया का आकार छड़नुमा या गोलाकार होता है। प्रत्येक माइटोकॉन्ड्रिया लाइपो-प्रोटीन्स के द्वारा निर्मित दो झिल्ल्यिों की सहायता से घिरा रहता है। बाह्य झिल्ली थैली के आकार की रचना बनाती है जबकि आन्तरिक झिल्ली ल्यूमेन में झिल्ली के समान रचना बनाती है जिसे क्रिस्टी (Cristae) कहते हैं माइटोकॉन्ड्रिया के ल्यूमेन तथा दोनों झिल्ल्यिों के बीच रिक्त अवकास होता है जिसमें एक तरल पदार्थ  भरा रहता है। इस तरल पदार्थ को माइटोकॉन्ड्रियल मैट्रिक्स कहते हैं। दोनों झिल्लियों तथा मैट्रिक्स में अनेक आक्सीकृत एन्जाइम्स तथा सह-एन्जाइम्स पाये जाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में DNA अणु तथा राइबोसोम्स भी पाये जाते हैं जो प्रोटीन्स का संश्लेषण करते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस कहते हैं क्योंकि इसमें आक्सीकरण के परिणामस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा ऐडिनोश्नि द्राइफास्फेट (ATP) के रूप में होती है। इसके अतिरिक्त यह कुछ पदार्थों को भी स्रावित करते हैं

10. प्लास्टिड्स या लवक (Plastids) - लवक अधिकांशतः पादप कोशिकाओं में पाये जाते  हैं लेकिन कुछ जन्तु कोशिकाओं में भी पाये जाते हैं। ये रंगीन (क्रोमोप्लास्ट), हरे (क्लोरोप्लास्ट) तथा रंगहीन (ल्यूकोप्लास्ट) के रूप में होते हैं। एक प्रकार के लवक दूसरे प्रकार के लवक में परिवर्तित हो जाते हैं। ल्यूकोप्लास्ट स्टार्च तथा लिपिड्स का संचय करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण वर्णक क्लोरोप्लास्ट होता है क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है। क्लोरोप्लास्ट भोजन के अवयवों का संश्लेषण करते हैं। यह संश्लेषण प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के द्वारा होता है।

11. साइटोप्लाज्मिक रिक्तिकाएँ (Cytoplasmic Vacuoles) - अनेक पादप तथा जन्तुओं की कोशिकाओं में असंख्य छोटी व बड़ी गोलाकार संरचना होती है। जो अन्दर से खोखली होती है जिसमे तरल पदार्थ भरा रहता है। इन खोखले तरल पदार्थ युक्त रचनाओं को रिक्तिकाएँ (Vacuoles) कहते हैं। जन्तु कोशिकाओं में पायी जाने वाली रिक्तिकाएँ लाइपो-प्रोटीन झिल्ली की सहायता से घिरी रहती है। रिक्तिकाओं का कार्य खाद्य पदार्थों का संचय तथा स्थानान्तरण हैं। इसके अतिरिक्त यह कोशिकाओ में आंतरिक दाब को भी संतुलित रखती हैं।

12. माइक्रोबाडीज (Microbodies) - विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में कुछ विशेष प्रकार के कण पाये जाते हैं। ये कणिकाएँ गोलाकार तथा झिल्ली युक्त होती हैं जिनका व्यास 0.3 से 1.5 माइलोन तक होता है। इनके बीच में केन्द्रीय कणिकायुक्त भाग होता है जिनमें कुछ एन्जाइम्स पाये जाते हैं इन रचनाओं को माइक्रोबॉडीज कहते हैं। माइक्रोबॉडीज जिनमें कुछ एन्जाइम्स पाये जाते हैं इन रचनाओं को माइकोबाडीज कहते हैं। माइक्रोबॉडीज ATP का संश्लेषण करती है तथा इनमें पायी जाने वाली एजाइम्स हाइड्रोजन पर-ऑक्साइड उपापचय, प्यूरीन उपापचय, प्रकाश। श्वसन तथा वसा को कार्बोहाइड्रेटस में परिवर्तित करने में सहायक होते हैं।

 13.राइबोसोम्स (Ribosomes) - यह सूक्ष्म गोलाकार रचनाएँ हैं जो साइटोप्लाज्म में पायी जाती है
या एण्डोप्लामिक झिल्ली की ऊपरी सतह से चिपके रहते हैं। यह मुख्य रूप से RNA तथा प्रोटीन्स से मिलकर बनते हैं। इनकी उत्पत्ति केन्द्रिकाओं से होती है। प्रत्येक राइबोसोम्स की रचना दो रचनात्मक इकाइयों से होती है जिसे क्रमश: 40S तथा 80S कहते हैं। 605 सब-यूनिट की सहायता से राइबोसोम्स एण्डोप्लामिक झिल्ली की सतह से चिपके रहते हैं। 405 सब-यूनिट तथा 605 सब-यूनिट के साथ मिलकर एक प्यालेनुमा रचना बनाते हैं। राइबोसोम्स प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक होते हैं।

3. केन्द्रक
(Nucleus)

 यह कोशिका के मध्य में स्थित गोलाकार रचना है जो साइटोप्लाज्म की सभी जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त यह आनुवांशिक लक्षणों को DNA तक ले जाता है। अर्थात् यह पैतृक लक्षणों को नयी संतति में भेजते हैं। केन्द्रक के चार भाग होते हैं-
1.केन्द्रक कला (Nuclear membrane)
2. केन्द्रक द्रव्य (Nuclear Sapor Nucleoplasm)
3. केन्द्रिका (Nucleous)
4. क्रोमैटिन धागे (Chromatin threads)
केन्द्रक का सबसे महत्वपूर्ण भाग क्रोमैटिन है यह पदार्थ रासायनिक दृष्टि से न्यूक्लियो-प्रोटीन है द्वानो न्यूक्लिक अम्ल (DNA व RNA) तथा क्षारीय प्रोटीन (हिस्टोन) से मिलकर बनता है।

 इस प्रकार कोशा के अध्ययन के द्वारा स्पष्ट होता है कि कोशिका की बाह्य संरचना कोशा भित्ति या प्लाज्मा झिल्ली से घिरी होती है। इसके अन्दर एक तरल पदार्थ साइटोप्लाज्म भरा रहता है जिसमें जीवित तथा अजीवित अंगक पाये जाते हैं जो विभिन्न प्रकार की उपापचयी क्रियाओं को संचालित करते है इसके अतिरिक्त कोशिका के मध्य में केन्द्रक भी पाया जाता है


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