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प्रोग्रामिंग क्या है ? || WHAT IS PROGRAMMING? in Hindi

पिछले पोस्ट में हमने जाना कि कम्प्यूटर से कार्य कराये जाने के लिए कम्प्यूटर प्रोग्रामों की आवश्यकता पड़ती है। जिन्हें संगठित कर सॉफ्टवेयर पैकेज तैयार किए जाते हैं। एक कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार करने के लिए हमें एक पूरे 'प्रोग्राम विकास चक्र' का पालन करना पड़ता है, जिसका एक भाग 'प्रोग्रामिंग' है। इस इस पोस्ट में हम जानेगे कि प्रोग्रामिंग क्या है और इसे करने के लिए हमें किन तकनीकों का प्रयोग करना पड़ता है।

प्रोग्रामिंग क्या है?
(WHAT IS PROGRAMMING?)

जैसा कि आपने पहले भी पढ़ा है कि एक कम्प्यूटर प्रोग्राम में अनेक (हजारों तक) निर्देश (instructions) एक क्रम में लिखे रहते हैं। कम्प्यूटर प्रोग्राम को लिखने की क्रिया “प्रोग्रामिंग"
(Programming) कहलाती है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग का अर्थ केवल यह नहीं है कि एक फाइल बनाई और उसमें स्टेटमैन्ट लिखते चले गए। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग एक जटिल प्रक्रिया है। कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखना (स्टेटमैन्ट लिखना) उस प्रक्रिया का मात्र एक चरण है। कम्प्यूटर प्रोग्राम अर्थात् निर्देशों (instructions program) को लिखने वाला व्यक्ति कम्प्यूटर प्रोग्रामर कहलाता है। प्रोग्रामर (Programmer) का कार्य दी गई कम्यूटर समस्या के लिए ऐसे निर्देश लिखना है जिनका पालन करने से उस समस्या का समाधान प्राप्त हो जाए। प्रोग्रामर द्वारा लिखे गए प्रोग्राम को क्रियान्वित कर आउटपुट डेटा प्राप्त करना प्रयोगकर्ता का कार्य है।

प्रोग्रामिंग system Development चक्र का एक महत्त्वपूर्ण चरण (step) है और यह तब प्रारम्भ होता है जब किसी प्रोग्राम को तैयार कर लिया जाता है एवं उसके समस्त निर्दिष्टिकरण (specifications) पूर्ण हो चुके हो।

मान लीजिए आपको एक मकान तैयार करना है। देखने में मकान तैयार करने का मुख्य कार्य मकान की बिल्डिंग तैयार करना है, किन्तु यदि ध्यान दिया जाए तो यह कार्य मकान निर्माण प्रक्रिया का एक चरण है, इससे पहले आपको अनेक कार्य करने पड़ेंगे, जैसे सर्वप्रथम मकान के मालिक की आवश्यकताओं को समझना, जैसे उसे कितने कमरे, किस आकार के चाहिएँ, उनमें कितनी खिड़कियाँ होनी चाहिएँ, दरवाजे या खिड़कियाँ किस तरफ होनी चाहिएँ, समुचित प्रकाश आना चाहिए, इत्यादि। इन सभी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर मकान की रूपरेखा अर्थात् नक्शा बनाया जाता है। फिर देखा जाता है कि मकान कब तक पूरा करना है, उसके लिए कितने मजदूर चाहिएँ, उन पर क्या व्यय आएगा, क्या वह बजट के अनुरूप है, क्या-क्या कच्चा माल (ईंटें, सीमेन्ट, आदि) चाहिए, कौन-सा कार्य कितने दिनों में पूरा होगा, क्या मकान समय पर तैयार होगा, इत्यादि बातों पर पहले से ही पूरा विचार-विमर्श कर सभी तैयारियां पूर्ण की जाती हैं, इसके उपरान्त कार्य प्रारम्भ किया जाता है।

ठीक यही बात एक प्रोग्राम या प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए भी होती है। यदि आप बिना नक्शा बनाए, बिना तैयारी के मकान बनाना शुरू करेंगे तो हो सकता है कि वह ऐसा न बने जैसा बनना चाहिए था। इसी प्रकार प्रोग्राम भी बिना तैयारी के लिखना शुरू करने पर हो सकता है उसमें समय ज्यादा लगे और वह समस्या का सही समाधान साबित न हो।

सफल कम्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए आवश्यक है कि प्रोग्रामर को उस प्रोग्रामिंग भाषा का भली-भाँति ज्ञान हो, जिसमें प्रोग्राम लिखा जाना है और उसे प्रोग्राम तैयार करने की प्रक्रिया की भी समुचित जानकारी हो।

प्रोग्राम के विकास की प्रक्रिया
(PROCESS OF PROGRAM DEVELOPMENT)

एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम तैयार करने की प्रक्रिया में अनेक कार्य होते हैं। अतः इस प्रक्रिया को अनेक चरणों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक चरण में कुछ विशेष कार्य अथवा तैयारियां की जाती हैं। सॉफ्टवेयर के विकास के लिए अनेक तकनीकें विकसित की गई हैं जो किसी न किसी चरण में लागू की जाती हैं।

प्रोग्राम विकास प्रक्रिया के चरण (Process Steps of Program Development)
प्रोग्राम विकास प्रक्रिया को अनेक चरणों में विभक्त किया गया है जो कि निम्न प्रकार हैं-

1. समस्या को परिभाषित करना (Problem definition)- यह प्रोग्राम विकास प्रक्रिया का पहला चरण है, जिसमें कम्प्यूटर प्रोग्रामर को समस्या बताई व समझाई जाती है। प्रोग्रामर सारी जरूरतों को समझता है। यह प्रोग्राम की विकास प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। क्योंकि अगर समस्या ही ठीक से परिभाषित नहीं होगी, तो वह परिणाम बिल्कुल नहीं मिल सकता, जो कि वास्तव में चाहिए।

2. प्रोग्राम की रूपरेखा तैयार करना (Program planning)- प्रोग्राम लिखने से पहले उसकी रूपरेखा तैयारकर ली जाती है। प्रोग्राम की रूपरेखा (plan) तैयार करने की प्रक्रिया प्रोग्राम प्लानिंग कहलाती है।

3. प्रोग्राम का डिजाइन तैयार करना (Program designing)-प्रोग्राम में क्या इनपुट एवं आउटपुट उनके क्या वैरिएबिल होंगे, वैरिएबिल का नाम, प्रकार एवं आकार क्या होगा, इन सब बातों का निर्धारण प्रोग्राम का  डिजाइन बनाने के अन्तर्गत किया जाता है। इस चरण में यह भी तय किया जाता है किस तरह के स्क्रीन पर वैरिएबिल और इनपुट आदि की entry होगी।


4. प्रोग्राम लिखना अथवा कोड करना (Program coding)- प्रोग्राम विकास प्रक्रिया के इस चरण में प्रोग्राम के तैयार डिजाइन को प्रोग्रामिंग भाषा के प्रारूप में ढाला जाता है, जिससे प्रोग्राम कम्प्यूटर को प्रोसेसिंग के लिए दिया जा सके। प्रोग्राम को किसी भी प्रोग्रामिंग भाषा में लिखे जाने की प्रक्रिया कोडिंग (coding) कहलाती है।

5. प्रोग्राम को डिबग करना (Program debugging)- प्रक्रिया के इस चरण में प्रोग्राम की गलतियों को खोजा जाता है, उन्हें दूर किया जाता है और अन्त में हर प्रकार की त्रुटि से मुक्त प्रोग्राम को प्राप्त किया जाता है।

6. प्रोग्राम का परीक्षण करना (Program testing)- इस चरण का प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित
करना है कि क्या प्रोग्राम क्लाइंट की वह सभी आवश्यकताएँ पूरी कर रहा है जिसके लिए इसका विकास किया गया है। इस चरण में प्रोग्राम को विभिन्न प्रकार के इनपुट देकर test किया जाता है। उन्हें test cases कहते हैं।

7. प्रोग्राम का डॉक्यूमैन्ट बनाना (Program documentation)-प्रोग्राम से जुड़ी सभी जानकारियों, महत्वपूर्ण तथ्यों को डॉक्यूमैन्ट में ढालने से प्रोग्राम को समझने, उसका रख-रखाव करने, भविष्य में उसमें परिवर्तन करने एवं उसे प्रयोग करने में सरलता होती है। “डॉक्यूमैन्ट" बनाने से हमारा अभिप्राय है। प्रोग्राम से सम्बन्धित, उसके विकास से सम्बन्धित सभी जानकारियों को लिखित रूप में एक साथ रखना।  यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कई बार प्रोग्रामर एक कम्पनी से दूसरी कम्पनी में जाते रहते हैं और प्रोग्राम का डिजाइन बहुत बार प्रोग्रामर पर निर्भर करता है। डाक्यूमैन्टेशन होने के बाद प्रोग्राम से जुड़ने वाले नए प्रोग्रामर को भी प्रक्रिया समझने में आसानी रहती है।

8.प्रोग्राम का रख-रखाव तथा सुधार (Program maintenance and improvement)- परिवर्तन संसार का नियम है। समय एवं जरूरतों के साथ-साथ प्रोग्राम में परिवर्तन एवं उसके रख-रखाव की क्रिया मेन्टिनेन्स (maintenance) कहलाती है।

इस पोस्ट में हम प्रोग्राम विकास प्रक्रिया के दूसरे चरण ‘प्रोग्राम प्लानिंग' का संक्षिप्त अध्ययन करेंगे और इस चरण में प्रयोग होने वाली दो बहुप्रचलित प्लानिंग तकनीक फ्लोचार्ट और ऐल्गोरिथम का अध्ययन करेंगे।

प्रोग्राम की रूपरेखा तैयार करना
 (Program Planning)
जैसा कि हमने भवन निर्माण के उदाहरण में बताया था कि भवन निर्माण आरम्भ करने से पहले। उसकी रूपरेखा तैयार कर ली जाती है अर्थात् नक्शा बना लिया जाता है। इसी पूर्वनिर्धारित नक्शे के।
आधार पर बिल्डिंग तैयार की जाती है। ठीक इसी प्रकार प्रोग्राम लिखने से पहले उसकी रूपरेखा तैयार कर ली जाती है। प्रोग्राम की रूपरेखा (plan) तैयार करने की प्रक्रिया प्रोग्राम प्लानिंग (program planning) कहलाती है। प्रोग्राम प्लानिंग के अन्तर्गत प्रोग्राम का लॉजिक तैयार किया जाता है जिसमें । प्रोग्राम के सभी चरण दर्शाए जाते हैं। प्रोग्राम प्लान में प्रोग्राम के शुरू से अन्त तक के चरण एक क्रम में व्यवस्थित रहते हैं।

यदि प्रोग्राम का प्लान पहले से तैयार नहीं किया गया तो प्रोग्राम के लॉजिक में खराबी होने की सम्भावनाएँ रहती हैं। प्रोग्रामर निर्देश के क्रियान्वन के क्रम में गलती कर सकता है अथवा कुछ निर्देश छोड़ सकता है। प्रोग्राम के बीच में पहुंचकर संशय हो सकता है कि अब क्या करना है और कहाँ जाना है।
अतः प्रोग्राम  निर्धारित  किए गए लॉजिक का सही प्रकार से पीछा करे, उसके सभी प्रोसेस, सभी निर्देश उचित क्रम में व्यवस्थित हों, इसके लिए पहले से प्लान तैयार करना आवश्यक है। आइए प्रोग्राम के प्लान का छोटा-सा उदाहरण देखते हैं

उदाहरण-1 मान लीजिए हमें दो अंकों के योग के लिए प्रोग्राम लिखना है। इसके लिए तैयार प्लान के निम्न चरण होंगे-

प्लान
1. दो वैरिएबिल A, B में प्रारम्भिक मान सैट कीजिए।
2. A तथा B के लिए इनपुट नम्बर ग्रहण कीजिए।
3. A तथा B का योग कीजिए।
4. योग प्रिन्ट कीजिए।
इस प्रकार जब हम प्लान के आधार पर प्रोग्राम लिखना शुरू करेंगे तो न तो हमसे कोई चरण बीच में छूटेगा और न ही किसी प्रकार की शंका उत्पन्न होगी।

प्रोग्राम प्लानिंग की तकनीकें 
(Program Planning Techniques)
कम्प्यूटर प्रोग्राम के लॉजिक को अनेक कड़ियों में बाँट कर एक क्रम में (step by step) लिखने के लिए अनेक तकनीकें प्रचलित हैं। कुछ में ग्राफिक्स के माध्यम से प्रोग्राम के लॉजिक को दर्शाया जाता है तथा कुछ साधारण लिखित रूप में विधि अर्थात् लॉजिक प्रस्तुत करती हैं।

एक प्रोग्राम प्लान में प्रोग्राम के इनपुट ग्रहण करने से लेकर उसकी प्रोसेसिंग, उसमें परिवर्तन व अन्त
में आउटपुट प्राप्त करने तक के सभी चरण एक क्रम में दिखाए जाते हैं। प्रोग्राम प्लान बनाने की कुछ
प्रमुख तकनीकें निम्नलिखित हैं-

1.ऐल्गोरिथम (Algorithm)
2.स्यूडो कोड (Pseudo code)
3.फ्लोचार्ट (Flowchart)
4.निर्णय तालिका (Decision table)

इन तकनीकों में प्रथम दो तकनीकें लिखित रूप में प्रोग्राम का लॉजिक दर्शाती हैं। जबकि अन्त की दे
तकनीकें फ्लोचार्ट एवं निर्णय तालिका ग्राफिक्स के द्वारा प्लान दर्शाती हैं। अब हम इन तकनीकों में से
दो प्रमुख तकनीकों ऐल्गोरिथम और फ्लोचार्ट का next post में अध्ययन करेंगे।

 इन्हें भी देखें-


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