इस पोस्ट मे हम गुणसूत्र के बारे मे जानेंगे-
गुणसूत्रों की रचना एवं प्रकार का वर्णन
क्रोमोसोम के विषय में एक निबन्ध
विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों की व्याख्या
संक्षेप में लैम्पब्रश गुणसूत्रों की संरचना एवं महत्व का वर्णन
सेन्ट्रोमीयर्स की स्थिति के आधार पर गुणसूत्रों के प्रकारों का वर्णन
क्रोसोम्स पर संक्षिप्त निबन्ध
लेम्पब्रश क्रोमोसोम्स क्या होते हैं?
(Chromosomes)
न्यूक्लिक अम्ल के अन्तर्गत DNA तथा RNA आते हैं जिसमें से DNA को अनुवांशिकी पदार्थ कहते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में RNA केवल एक ही गुणसूत्र का निर्माण करता है तथा स्वतन्त्र रूप से कोशा द्रव में स्थित होता है परन्तु यूकैरियोटिक कोशिकाओं में दो या दो से अधिक गुणसूत्र बनते हैं तथा केन्द्रक के अन्दर स्थित होते हैं। DNA में आनुवंशिक पदार्थ होता है जो बिना परिवर्तित हुए ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होता है इसीलिए इन्हें सामान्य भाषा में आनुवंशिक वाहन (Heriditary vehicles) कहते हैं।
इस प्रकार गुणसूत्र केन्द्रकीय तत्व है जिनका संगठन तथा कार्य विशेष प्रकार का होता है तथा इनमें स्वः जनन की क्षमता होती है। यह आनुवंशिकी, उत्परिवर्तन, विभिन्नताओं तथा किसी जाति के जैवीय वर्धन (Evolutionary development) में सहायक होते हैं।
ऐतिहासिक
(Historical)
W. Fleming ने 1879 ने सर्वप्रथम गुणसूत्रों की विखण्डन प्रक्रिया को देखा तथा इसे क्रोमैटिन (Chromatin) का नाम दिया। कोशा विभाजन के समय क्रोमैटिन पदार्थ संघनित होकर टूट जाते हैं तथा गुणसूत्र बनाते हैं। इस प्रकार यह धागेनुमा, गहरा स्टेनयुक्त संरचना है जो केन्द्रक में पायी जाती है। W. Waldeyer ने इसे सर्वप्रथम गुणसूत्र Chromosomes (Gr. Chrom=Color: soma=body) का नाम दिया। W. Roux ने 1883 में बताया कि गुणसूत्रों में वंशानुगत लक्षणों के स्थानान्तरण की प्रक्रिया होती है तथा उन्होंने इसके महत्व को बताया ।
Benden तथा Bovery ने (1887) में बताया कि जीवों की प्रत्येक जाति में गुणसूत्रों की एक निश्चित संख्या होती है। W.S. Sutton तथा T. Boveri ने 1902 में बताया कि गुणसूत्रों की संरचना भौतिक होती है तथा यह आनुवंशिक दूत (Massenger of the heredity) के रूप में कार्य करते हैं। मॉर्गन (Morgan) ने 1933 में बताया कि गुणसूत्र आनुवंशिक लक्षणों का स्थानान्तरण करते हैं। Heitz (1935) Kuwanda (1939) Geitler (1940) तथा Kaufmann ने 1948 में गुणसूत्र की बाह्य संरचना का अध्ययन किया।
गुणसूत्र संख्या (Number of Chromosomes) - जीवों की किसी भी जाति में गुणसूत्रों की एक निश्चित संख्या होती है। सोमैटिक कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (diploid) होती है जबकि लिंग कोशिकाओं (शुक्राणु व अण्डाणु) में गुणसूत्र अगुणित (Haploid) होते हैं। विभिन्न जातियों में गुणसूत्रों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है अर्थात् यह संख्या एक से लेकर सैकड़ों तक होती है। उदाहरण के लिए पिनवर्म में केवल एक ही गुणसूत्र होता है जबकि ऐस्कैरिस-मैगैलोसिफैला में 2 गुणसूत्र होते हैं। इसी प्रकार ऐग्रीगेटा में 300 से भी अधिक गुणसूत्र, पैरामीशियम में 40 गुणसूत्र,
रेडियोलैरियन्स में 1600, हाइड्रा-वाल्गैरिस में 32, मक्खी में 12, कबूतर में 80, गोरिल्ला में 48 जबकि मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है। इस प्रकार समस्त जीवों में गुण सूत्रों की एक निश्चित संख्या होती है। कुछ पादपों तथा जन्तुओं में गुणसूत्रों की संख्या को निम्न तालिका के आधार पर समझा जा सकता है।
कुछ पौधों और जन्तुओं में गुणसूत्रों की संख्या
S.No. Name of Organism Number of Chromosomes
(A) Animals
1.Paramoecium aurelia 30-40
2.Hydra vulgaris 32
3.Ascaris megalocephala 2
4.Ascaris lumbricoides 48 in male
5.Drosophila melanogaster 8
6.Grasshooper 24
7.Honey bee 32, 16
8. Mosquito-Culex pipens 6
9.Rana 26
10.Felis domesticus 38
11.Mouse, Musmusculus 40
12. Gallus domesticus (fowl) 78 in male
13. Rattus ratus 42
14. Canis familiaris 78
15.Chimpanzee 48
16. Monkey-Macaca 42
17. Homo sapiens 46
(B) Plants
1. Allium cepa (onion) 16
2.(Cabbage) Brassica oleracea 18
3.Raphanus sativus (Raddish) 18
4. Gossypium hirustum (upland cotton) 52
5 Zea mays (Indian corn) 20
6. Triticuin vulgare (bread wheet) 42
7. Pisum sativum (pea) 14
8. Oryza sativa (rice) 24
9.Neurospora crassa (red bread mold) 7
गुण सूत्रों की संख्या से विभिन्न प्रकार के जीव जातियों के वर्गीकरण में सहायता मिलती है। वैसे प्राइमेट्स में हैप्लायड गुणसूत्रों की संख्या 16 से 30 तक होती है जबकि ऐंजियोस्पर्मस पादपों में गुण सूत्रों की हैप्लायड संख्या 12 होती है। कवकों में अगुणित गुणसूत्रों की संख्या 3 से 8 तक होती है। गुणसूत्रों में यह हैप्लायड जोड़े युग्मकों के केन्द्रक में स्थित होते हैं जिन्हें जीनोम (Genome) कहते हैं जबकि डिप्लायड कोशिका में दो जीनोम्स होते हैं यह कोशिकाएँ सोमैटिक होती हैं जिनमें गुण सूत्रों के द्विगुणित जोड़े पाये जाते हैं। प्रत्येक द्विगुणित कोशिका में गुणसूत्रों का जोड़ा डिप्लायड हो जाता है जबकि लेगिक जनन में नर तथा मादा युग्मक हैप्लायड गुणसूत्र आपस में मिलते हैं।
गुणसूत्र की संरचना
(Structure of Chromosome)
गुणसूत्र की संरचना निम्नलिखित भागों से मिलकर होती है:
1. पेलिकिल तथा मैट्रिक्स (Pellicle and Matrix)
2. क्रोमैटिड्स (Chromatids)
3. क्रोमोमीयर्स (Chromomeres)
4. सेन्ट्रोमीयर्स तथा कान्स्ट्रीक्शन्स (Centromeres & Constrictions)
5. सेन्ट्रोलाइटकाय (Satellite bodies)
1. पेलीकिल तथा मैट्रिक्स (Pellicle and Matrix) - प्रत्येक गुणसूत्र के चारों तरफ एक रक्षात्मक आवरण होता है जिसे पेलिकल कहते हैं। डार्लिंग्टन तथा रिस (Darlington &Ris) ने बताया कि पेलिकिल अत्यन्त महीन रक्षक आवरण है जिसका निर्माण ऐक्रोमैटिक पदार्थ के द्वारा होता है। इस झिल्ली के अन्दर जैली के समान तरल पदार्थ भरा रहता है जिसे मैट्रिक्स कहते हैं। मैक्ट्रिक्स क्रोमोनिमैटा का आधारीय तत्व है जिसका निर्माण ऐक्रोमैटिक पदार्थों से होता है।
-2. क्रोमैटिड्स (Chromatids) - कोशा विभाजन का मध्यावस्था में गुणसूत्रों की दो सममिति संरचनाएँ दिखायी देती है जिसे क्रोमैटिड्स कहते हैं। क्रोमैटिड्स गुणसूत्र के मैट्रिक्स में रस्सी के समान कुण्डलित होते हैं। प्रत्येक क्रोमैटिड में DNA का एक अणु होता है। क्रोमैटिड्स एक दूसरे से सेन्ट्रोमीटर की सहायता से जुड़े रहते हैं तथा ऐनोफेज अवस्था में एक दूसरे से पृथक होते हैं। ऐनाफेज अवस्था में दोनों सिस्टर क्रोमैटिड्स विपरीत ध्रुवों पर स्थानान्तरित हो जाते हैं। प्रोफेज अवस्था में गुण सूत्रीय पदार्थ महीन तन्तुओं के रूप में दिखाई देते हैं जिसे क्रोमोनिमेटा कहते हैं। क्रोमोनिमेटा, क्रोमैटिड्स के संघनन की प्रारम्भिक अवस्था को प्रदर्शित करता है। क्रोमोनीमा के तन्तु कुण्डलित होते हैं तथा प्रत्येक तन्तु रस्सी के समान कुण्डलित होते हैं। इस प्रकार क्रोमोनीमा में दो प्रकार की कुण्डलित अवस्थाएँ होती हैं :
1. पैरानीमिक कुण्डलन (Paranemic coils) : जब क्रोमोनीमल तन्तु इस प्रकार से कुण्डलित होते हैं कि वह आसानी से पृथक नहीं होते हैं तो इस प्रकार के कुण्डलन का प्लैक्टोनेमिक कुण्डलन कहते है।
2. प्लैक्टोनेमिक कुण्डलन (Plectonemic coils) - जब क्रोमोनीमल तन्तु इस प्रकार से कुण्डलित होते हैं कि वह आसानी से पृथक नहीं होते हैं तो इस प्रकार के कुण्डलन को प्लैक्टोनेमिक कुण्डलन कहते हैं।
3. क्रोमोमीयर्स (Chromomeres) - क्रोमोनीमा लम्बे तथा रस्सी के समान संरचनाएँ हैं जो सम्पूर्ण गुणसूत्र में पायी जाती हैं। क्रोमोनीमेटा में अनेक सूक्ष्म दानों के समान (Bead like) संरचनाएँ होती हैं जिन्हें क्रोमोमीयर्स कहते हैं। दो क्रोमोमीयर्स के बीच का क्षेत्र इण्टर क्रोमोमीयर्स कहलाता है।आनुवांशिक लक्षणों के वंशानुक्रम के समय क्रोमोमीयर्स जीन्स को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाते है।
4. सेन्ट्रोमीयर तथा प्राथमिक खाँच (Centromere or Primary Constriction) - प्रत्येक गुणसूत्र में एक स्पष्ट क्षेत्र होता है जिसे काइनीटोकोर या सेन्ट्रोमीयर कहते हैं। मध्यावस्था में जिस समय गुणसूत्र में दो अर्ध गुणसूत्र (Chromonemata or Chromatids) स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं। उस समय दोनों अर्ध गुणसूत्र एक विशेष स्थान पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इस स्थान को सेन्ट्रोमीयर कहते हैं अर्थात् सेन्ट्रोमीयर वह स्थान है जहाँ पर गुणसूत्र दो भागों में विभाजित होता है। इस प्रकार सेन्ट्रोमीयर की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र निम्न प्रकार के होते हैं-
1. मेटासेन्ट्रिक (Metacentric) - यदि सेन्ट्रोमीयर की स्थिति गुणसूत्र के मध्य में होती है, अर्थात् गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ लगभग बराबर होती हैं तो इस प्रकार के गुणसूत्र को मेटासेन्ट्रिक कहते हैं। उभय चर जन्तुओं में इस प्रकार के गुणसूत्र पाये जाते हैं।
2. ऐसेन्ट्रिक गुणसूत्र - अगर गुणसूत्र में सेन्ट्रोमीयर अनुपस्थित होता है तो इस स्थित में गुणसूत्र ऐसेन्ट्रिक कहलाता है।
3. एक्रोसेन्ट्रिक (Acrocentric) - इस प्रकार के गुणसूत्र में सेन्ट्रोमीयर की स्थिति इस प्रकार होती है कि गुणसूत्र की एक भुजा लम्बी होती है जबकि दूसरी भुजा छोटी हो जाती है अर्थात् दोनों भुजाएँ असमान होती हैं। इस प्रकार के गुणसूत्र एक्रोसेन्ट्रिक या सब मेटासेन्ट्रिक होते हैं। सबमेटा-सेन्ट्रिक गुणसूत्रों का आकार J या L के समान होता है तथा उनकी भुजाओं की लम्बाई असमान होती है।
4. टीलोसेन्ट्रिक (Telocentric)- जब सेन्ट्रोमीयर की स्थित टर्मिनल या प्राक्सिमल होती है तो इस प्रकार के गुणसूत्र टीलोसेन्ट्रिक कहलाते हैं।
5. डाईसेन्ट्रिक या पालीसेन्ट्रिक (Dicentric and Polycentric) - जब किसी गुणसूत्र में दो सेन्ट्रोमीयर्स होते हैं तो उन्हें डाईसेन्ट्रिक गुणसूत्र कहते हैं। इसी प्रकार यदि दो से अधिक सेन्ट्रोमीयर्स होते हैं तो ऐसे गुणसूत्र पालीसेन्ट्रिक गुणसूत्र कहलाते हैं।
6. सेकेन्डरी कान्स्टीक्शन (Secondary Constriction)- गुणसूत्र में प्राथमिक कान्सट्रिक्शन (सेन्ट्रोमीयर) के अतिरिक्त एक अन्य, द्वितीयक कान्सट्रिक्शन भी पाया जाता है। कोशा विभाजन के अन्त में इण्टरफेज अवस्था में यह केन्द्रिका के साथ मिलकर केन्द्रिका का पुनः संगठन करता है। इसीलिए द्वितीयक कान्सट्रिक्शन को केन्द्रिका संगठन क्षेत्र (Nucleolus-organizing region) भी कहते हैं। गुणसूत्र में यह हेटरोक्रोमैटिक क्षेत्र के रूप में प्रकट हो जाता है। यह गुणसूत्र का अतिरिक्त खण्ड है जो आगे चलकर सैटेलाइट काय (Satallite bodies) का निर्माण करता है।
7. सैटेलाइट काय (Satallite bodies) - गुणसूत्र का वह भाग जो द्वितीयक कान्सट्रिक्शन के बाद स्थित होता है। सैटेलाइट काय कहलाता है इसका परिमाण द्वितीयक कान्सट्रिक्शन की स्थिति पर निर्भर करता है। इस प्रकार वह गुणसूत्र जिनमें सैटेलाइट काय होता है SAT- गुणसूत्र कहलाता हैं। सामान्य रूप से एक गुणसूत्र में केवल एक ही सैटेलाइट काय होता है परन्तु कभी-कभी इनकी संख्या दो या दो से अधिक भी होती है।
गुणसूत्रों के पदार्थ
(Materials of Chromosomes)
गुणसूत्रों की रचना जिस पदार्थ से होती है उस पदार्थ को क्रोमैटिन पदार्थ कहते हैं। क्रोमैटिन पदार्थ दो प्रकार के होते हैं
(A) यूक्रोमैटिन (Euchromatin) - ये क्रोमैटिन की विस्तृत अवस्था है इसके द्वारा गुणसूत्र के मुख्य भाग का निर्माण होता है। इसमें DNA की मात्रा अधिक होती है तथा यह पदार्थ आधारीय न्यूक्लियर प्रोटीन्स से काफी समानता प्रकट करते हैं। कुछ वैज्ञानिक यूक्रोमैटिन को अनुवंशिक सक्रिय पदार्थ के रूप में मानते हैं।
(B) हैटरोकोमैटिन (Heterochromatin) - Heitz ने 1928 में बताया कि हेटरोक्रोमैटिन वह क्षेत्र जहाँ पर गुणसूत्र अधिक संघनित होते हैं। क्योंकि वहाँ पर हेटरोक्रोमैटिन पदार्थ एकत्रितत हो जाते है सधंनन की यह प्रक्रिया हेटरोपाइसनोसिस (Heteropycnosis) कहलाती है तथा इस प्रक्रिया के द्वारा निर्मित क्षेत्र को हेटरोक्रोमैटिक क्षेत्र कहते हैं।
हेटरोक्रोमैटिन, RNA के संश्लेषण में आनुवंशिक रूप से अक्रिय होता है तथा इसमें rRNA, tRNA तथा 5S RNA के लिये कुछ पॉलीजीन्स होते हैं तथा इसका DNA यूक्रोमैटिन का DNA से कुछ भिन्न होता है।
गुणसूत्र की रासायनिक संरचना
(Chemical Composition of Chromosomes)
गुणसूत्र रासायनिक रूप से न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन्स के द्वारा निर्मित होते हैं।
किसी कोशिका में DNA की मात्रा केन्द्रक में पायी जाने वाली गुणसूत्रों की संख्या के अनुपातिक होती है। Ris के अनुसार DNA अनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाता है। गुणसूत्र की रचना निम्न रासायनिक तत्वों के द्वारा होती है
(1) डी-आक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (DNA)
(ii) राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA)
(iii) प्रोटीन्सहिस्टोन या क्षारीय प्रोटीन्स, अथवा हिस्टोन विहीन या अम्लीय प्रोटीन अम्लीय प्रोटीन्स की प्रकृति एन्जाइम के समान होती है।
गुणसूत्रों के प्रकार
(Types of Chromosomes)
गुणसूत्र विभिन्न प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं
1. विषाणु गुणसूत्र (Viral Chromosomes) - RNA का विषाणुओं तथा बैक्टीरियोफेज में DNA एक अणु वाइरल गुणसूत्र को व्यक्त करता है।
(A) DNA युक्त विषाणु गुणसूत्र - यह DNA अणुओं से मिलकर बनते हैं तथा इसकी चौड़ाई 20(A) agestrom तक होती है। इस प्रकार के गुणसूत्र दो भिन्न-भिन्न रूपों में होते हैं
(i) वर्तुल गुणसूत्र (Circular Chromosomes) - कुछ विषाणुओं तथा बैक्टीरियोफेज में DNA की केवल एक पट्टिका होती है। वर्तुल गुणसूत्र गोलाकार होता है तथा इसका व्यास 1.77um होता है जबकि आण्विक भार 1.7 मिलियन होता है।
(i) रैखिक गुणसूत्र (Linear Chromosomes) - अधिकांश विषाणु DNA, रैखिक क्रम वाली संरचना के रूप में होते हैं। लैम्डा (2.) बैक्टीरियोफेज इसका प्रमुख उदाहरण है इसकी लम्बाई लगभग 17.2micro m होती है जबकि आण्विक भार 32 मिलियन होता है। कुछ रैखिक DNA, टर्मिनल द्विगुणन को व्यक्त करते हैं।
(B)RNA युक्त गुणसूत्र (RNA containing Chromosomes) - RNA युक्त वाइरल गुणसूत्र रैखिक क्रम में व्यवस्थित होते है तथा यह RNA अणुओं की एक पट्टिका के द्वारा निर्मित होते हैं।
2. माइटोकॉन्ड्रियल गुणसूत्र (Mitochondrial Chromosomes)- यूकैरियोटिक कोशिकाओं की माइटोकॉन्ड्रिया में DNA पाया जाता है तथा यह केन्द्रक में पाये जाने वाले DNA की तुलना में भिन्न होता है। यह दोहरी पट्टिका के द्वारा निर्मित होता है तथा इसका आकार वृत्ताकार होता है। माइटोकान्ड्रियल DNA का छोटा भाग इण्टरलाक्ड वृत्त (inter locked circles) में पाया जाता है जिसे कैटेनेटेड डाइमर (Catenated dimer) कहते हैं। जिसका निर्माण माइटोकान्ड्रियल DNA के द्विगुणन के समय होता है।
3. जीवाणु गुणसूत्र (Bacterial Chromosomes) - इस प्रकार के गुणसूत्र जीवाणुओं में पाये जाते हैं। इन्हें प्रोकैरियोटिक गुणसूत्र भी कहते हैं। बैक्टीरिया के प्रत्येक गुणसूत्र को न्यूक्लिऑयड (Nucleoid) कहते हैं जिसका निर्माण एक दोहरी पट्टिका वाले DNA से होता है। जीवाणु गुणसूत्र स्वततन्त्रता पूर्वक कोशाद्रव्य के केन्द्रकीय क्षेत्र में स्थित होता है तथा इसमें DNA अणु के चारों तरफ प्रोटीन का आवरण नहीं होता है। E-coli वृत्ताकार गुणसूत्र पाया जाता है।
4.यूकैरियोटिक गुणसूत्र (Eukaryotic Chromosomes) - यूकैरियोटिक कोशिकाओं के गुणसूत्रो की संख्या अधिक होती है तथा समस्त गुणसूत्र फैली हुई अवस्था में पाये जाते है इणटरफेज केन्द्रक में यह अत्यन्त कुण्डलित धागों का एक जाल बनाते हैं इस जालिका को क्रोमैटिन जालिका कहते हैं कोशिका विभाजन के समय क्रोमैटिन धागे छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं तथा संघनित होकर यूकैरियोटिक गुणसूत्रों का निर्माण करते हैं।
इन्हें भी देखें-
माइटोकॉन्ड्रिया क्या है || what is mitochondria in Hindi - New!
एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम क्या है || What is Endoplasmic Reticulum in hindi - New!
कुछ महत्पूर्ण विज्ञान की प्रमुख शाखाएँ/Major branches of some important sciences
केन्द्रक क्या है || what is the nucleus in hindi - New!
कोशिका किसे कहते हैं || What are cells called? in hindi - New!
महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपकरण और उनके प्रयोग || Important Scientific Equipments and Their Uses
ऑक्सीजन क्या होती है ?||What is oxygen?
गॉल्जीकाय किसे कहते हैं || What are golgi bodies called - New!
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