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लैम्पब्रुश गुणसूत्र || Lampbrush chromosome

इस पोस्ट मे हम गैन्ट गुणसूत्र ,लैम्प ब्रश गुणसूत्र,लैम्पब्रुश गुणसूत्र के कार्य,पॉलीटीन गुणसूत्र आदि के बारे में जानेंगे

गैन्ट गुणसूत्र 

(Giant Chromosomes)

कुछ कोशिकाओं में कुछ विशेष स्थान होते हैं जहाँ पर न्यूक्लियाई बड़े होते हैं वहाँ पर बड़े आकार के गुणसूत्र पाये जाते हैं जिन्हें गैन्ट गुणसूत्र कहते हैं। गैन्ट गुणसूत्र (Gaint Chromosomes) निम्न प्रकार के होते हैं


1. लैम्प ब्रश गुणसूत्र 

(Lamp brush chromosomes) 

 यह बड़े आकार के गुणसूत्र हैं जो ऐसी कोशिकाओं में पाये जाते हैं जहाँ पर योक अधिक मात्रा में होता है। अर्थात् इस प्रकार के गुणसूत्र कुछ कशेरुकी प्राणियों जैसे मछलियों, उभयचरों, सरीसृप तथा पक्षियों के असाइटिक न्यूक्लियाई में पाये जाते हैं। लैम्पद्रश गुणसूत्रों को रकेर्ट (Ruckert) ने 1892 में खोजा। इन्हें सूक्ष्मदर्शी के बिना ही देखा जा सकता है। लैम्पब्रश गुणसूत्र में पार्श्व वलय पाये जाते हैं जो केन्द्रीय अक्ष से निकलते हैं। इन वलयों की रचना ब्रश के समान होती है इसीलिए इन्हें लैम्पब्रश गुणसूत्र कहते हैं। इनका आकार अधिकतम 5900 माइक्रोन  तक लम्बा होता है।

लैम्पदश गुणसूत्र की रचना मुख्य रूप से दो भागों से मिलकर होती है।

1. मुख्य अक्ष (Main axis)

2. पाच वलय (Lateral loops)

1.मुख्य अक्ष (Main axis)- यह मध्य भाग में स्थित सरल रेखा है जिसमें DNA तथा प्रोटीन होता है। अर्थात् इस मध्य रेखा का निर्माण DNA तथा प्रोटीन के द्वारा होता है। इस अक्ष से पार्श्व वलम जुड़े होते हैं। मुख्य अक्ष में चार क्रोमैटिड्स तथा दो द्विसंयोजक गुणसूत्र होते हैं।

2. पार्श्व वलय (Lateral loops) - चारों क्रोमैटिड्स के क्रोमोनीमा (chromonema) से पार्श्व सतह  पर ग्लोब्युलर बाह्य वृद्धियाँ (Globular out growths) निकलती हैं जिन्हें वलय अक्ष (Loop axis) कहते हैं। वलय अक्ष के चारों तरफ मैट्रिक्स पाया जाता है जो RNA तथा प्रोटीन पदार्थ के द्वारा निर्मित होता है। प्रत्येक वलय के आधार पर गहरा स्टेन युक्त अभिरंजित गुणसूत्र होता है। वलय (loop axis) का व्यास 30A0 से 50A° तक होता है तथा अत्यन्त लचीले होते हैं और इसमें दोहरा हैलिक्स होता है।

लैम्पब्रुश गुणसूत्र के कार्य

(Functions of Lamp brush chromosomes)

लैप ब्रश गुणसूत्रों के दो प्रमुख कार्य हैं:

(A) योक पदार्थों का निर्माण (Formation of Yolk Material) - लैम्प ब्रश गुणसूत्रों द्वारा योक पदार्थों का निर्माण होता है। योक अण्डों का पोषण प्रदान करता है।

(B) RNA का संश्लेषण (Synthesis of RNA) - लैम्पबश क्रोमोसोम्स के द्वारा RNA तथा प्रोटीन्स का संश्लेषण होता है। RNA का संश्लेषण केवल महीन निवेश (thin insertion) में होता है जहाँ से यह छल्लों के चारों तरफ से होते हुए मोटे निवेश की ओर संश्लेषित होता है। उसके पश्चात यह या तो नष्ट हो जाता है अथवा केन्द्रक में मुक्त हो जाता है।


पॉलीटीन गुणसूत्र

 (Polytene Chromosomes)

यह दूसरे प्रकार का गैन्ट सूत्र है जो आकार में लैम्पब्रश गुणसूत्रों से छोटे होते हैं। पॉलीटिन गुणसूत्र आर्डर डायप्टेरा के अन्तर्गत आने वाले कीटों की लार ग्रन्थियों, मैल्पीघियन नलिकाओं, आहारनाल की कुछ ऐपीथीलियल स्तर की कोशिकाओं तथा वसा पिण्डों में पाये जाते हैं। ड्रोसोफिला की लार ग्रन्थियों में इन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। इन गुणसूत्रों के न्यूक्लियाई का व्यास 25 माइक्रोन तक होता है।

इस प्रकार के गुणसूत्रों को सर्वप्रथम E.G. बालबिएनी ने देखा तथा उसके बाद में कास्त्रकेल्ट (Korschelt) तथा कारने (Chorney) ने (1884) में तथा हिट्ज तथा बायेर (Heitz and Bauer) 1933 में इन गुणसूत्रों का अध्ययन किया। उसके पश्चात् पेन्टर (Painter) ने ड्रोसोफिला की लार ग्रन्थियों में पॉलीटिन गुणसूत्रों को देखा तथा अध्ययन किया। क्योंकि इन गुणसूत्रों का आकार बड़ा होता है तथा इस पर अनेक पट्टिकाएँ पायी जाती हैं इसीलिए इन्हें पालीटीन गुणसूत्र कहते हैं परन्तु सामान्य रूप से इन्हें लार ग्रन्थि गुणसूत्र कहते हैं।


संरचना 

(Structure) -

प्रत्येक पॉलीटीन गुणसूत्र अनुप्रस्थ रूप से सीथी संरचना है जिसमें गहरी अभिरंजित पट्रिटकाएँ, अभिरंजन विहीन इण्टरबैण्ड (non-staining inter bands) के द्वारा पृथक होती है।

इस प्रकार पालीटीन गुणसूत्र बहुवलयक रचनाएँ हैं जो असंख्य तन्तुओं के द्वारा निर्मित होती है। जब गुणसूत्रों में 5 से 10 बार तक क्रामिक रूप से द्विगुणन होता है तो पॉलीटीन गुणसूत्रों का निर्माण होता है। द्विगुणन के पश्चात निर्मित क्रोमैटिड्स, पॉलीटीन गुणसूत्रों में कुण्डलित रस्सी के समान व्यवस्थित होते हैं। यह तन्तु अत्यन्त महीन होते हैं तथा प्रत्येक तन्तु एक गुणसूत्र के समान होते हैं। वलयक एण्डोमाइटोसिस की क्रिया के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में क्रोमोनिमैटिक वलयकों का निर्माण करते है। समस्त वलयकों के सेन्ट्रोमीयर्स एक दूसरे के सम्पर्क में होते हैं। इस प्रकार एक दीर्घ आकार वाले पॉलीटीन गुणसूत्र की रचना हजारों क्रोमोनेमेटिक वलयकों से मिलकर होती है। पॉलीटीन गुणसूत्र की संरचना निम्न भागों से मिलकर होती है

(a) बैण्ड्स (Dands) - यह गहरे रंग के अभिरंजित क्षेत्र है जो प्रत्येक क्रोमोनिमेटा के क्रोमोमीयर्स से मिलकर बनते हैं। यह पट्टिकाएँ गुणसूत्र के केन्द्रीय अक्ष के श्रेणीक्रम में व्यवस्थित होती है। इस प्रकार क्रोमोनिमेटा के कुछ क्षेत्र में इन पट्टिकाओं का कुण्डलन सघन तथा कसा हुआ होता है। इन बैण्ड में DNA की मात्रा अधिक होती है जबकि RNA अल्प मात्रा में होता है। इसके अतिरिक्त कुछ मात्रा में क्षारीय प्रोटीन्स भी होता है।

(b) इण्टर बैण्ड्स (Inter Bands) - दो बीच की पट्टिकाओं के बीच में अभिरंजन विहीन (non-staining) क्षेत्र पाया जाता है। इस हल्के से अभिरंजित या अभिरंजन विहीन रिक्त स्थान को इण्टर बैण्ड कहते हैं। इसमें DNA तो अल्प मात्रा में होता है। परन्तु RNA की मात्रा अधिक होती है तथा क्षारीय प्रोटीन के स्थान पर अम्लीय प्रोटीन्स (Acidic proteins) पाया जाता है। इनकी लम्बाई भिन्न-भिन्न होती है अर्थात् कभी-कभी कुछ स्थानों पर यह लम्बे तथा कहीं पर छोटे हो जाते है।

(c) पफ्स तथा बाल्बियोनाई वलय (Puffs and Balbiani rings)- वर्धन की आंतरिक अवस्था में कभी-कभी गुणसूत्रों के बैण्ड तथा इण्टर बैण्ड्स फूल जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप पफ्स का निर्माण हो जाता है। इन्हें गुणसूत्रीय पफ्स (Chromosomal puffs) कहते हैं। पफ्स निर्माण तथा इनका प्रकट होना किसी जीव की लार्वल अवस्था पर निर्भर करता है। पफ्स के निर्माण के लिए कुछ उपापचयी क्रियाएँ अनिवार्य होती हैं तथा इनका निर्माण लार ग्रन्थियों के स्रावण पर निर्भर करता है। पफ्स का निर्माण कुछ विशेष प्रकार के जीन्स के द्वारा नियंत्रित होता है। गुणसूत्रीय पफ्स का निर्माण RNA तथा प्रोटीन्स के संश्लेषण पर निर्भर करता है तथा यह क्रोमोसोम्स RNA कोशा द्रवीय RNA तथा केन्द्रकीय RNA से भिन्न होता है क्योंकि गुणसूत्रीय पफ्स का रासायनिक संगठन भी भिन्न होता है।

पालीटीन गुणसूत्र के कुछ क्षेत्र में बड़े पफ्स (Puffs) होते हैं। विशेष प्रकार का वह क्षेत्र में जिनमें बड़े पफ्स पाये जाते हैं बल्वियेनाई वलय (Balbiani rings) कहते हैं। इनका निर्माण क्रोमोनिभेटा के अकुण्डलन के परिणामस्वरूप होता है। यह संलगित लूपों की एक श्रृंखला के रूप में निकले रहते हैं जिसके कारण गुणसूत्रों की मोटाई में वृद्धि हो जाती है। मोटाई में वृद्धि के परिणामस्परूप गुणसूत्र एक रोवेदार रचना के समान प्रतीत होता है। बल्बियेनाई वलय में DNA तथा mRNA अधिक मात्रा में होती  है तथा इन पफों का निर्माण विशिष्ट जीन्स के नियंत्रण में एक विशेष समय पर होता है।


पॉलीटीन गुणसूत्र के कार्य

(Functions of Polytene Chromosomes)

1. पालीटीन गुणसूत्र जीन्स का स्थानान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में करते हैं जिससे यह किसी जीव की आनुवंशिकी कार्यिकी को नियंत्रित करते हैं

2. पॉलीटीन गुणसूत्र अप्रत्यक्ष रूप से प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक होते हैं। क्योंकि केन्द्रिका में RNA होता है। यह RNA आनुवंशिक सूचनाओं को कोशाद्रव्य में स्थानान्तरित करता है। जिसके परिणामस्वरूप विशेष प्रकार की प्रोटीन्स का निर्माण होता है।

3. हेटरोक्रोमैटिक क्षेत्र में यूक्रोमैटिक क्षेत्र की तुलना में कम जीन्स पाये जाते है जिसके कारण कोशा में केन्द्रकीय पदार्थ का उत्पादन हेटरोक्रोमैटिन के द्वारा नियंत्रित होता है।

4. जब हेटरोक्रोमैटिम पदार्थ यूक्रोमैटिन में स्थानान्तरित होते हैं तो अनेक परिवर्तन होते है इन परिवर्तनों के कारण जीवों में उत्परिवर्तन (Mutation) होता है।


गुणसूत्र की रासायनिक संरचना

(Chemical Composition of Chromosomes)

गुणसूत्र रासायनिक रूप से न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन्स के द्वारा निर्मित होते हैं।

न्यूक्लिक अम्ल (Nucleic Acid) - यह मुख्य रूप से DNA का निर्माण करते हैं इसमें 35% तक हिस्टोन प्रोटीन्स होती है। इसमें आरगीनाइन तथा लाइसिन अमीनो अम्ल के रूप में होती है। गुणसूत्र का 90% भाग डी आक्सीराइबोन्यूक्ल्यिो प्रोटीन्स से मिलकर बना होता है जबकि शेष 10% भाग रेजीडियल गुणसूत्र कहलाता है। इसमें 10 से 12% RNA, 3% तक DNA तथा 83 से 86% तक रेजीडियल प्रोटीन्स होती है यह एक विशेष प्रकार की प्रोटीन्स है जिसमें हिस्टोन नहीं होता है। जिसकी प्रकृति अम्लीय होती है तथा इसमें ट्रिप्टोफेन (Tryptophane) तथा ट्राइरोसीन (Tyrosine) होता है। गुणसूत्र मुख्य हिस्टोन विहीन प्रोटीन्स फास्फोप्रोटीन्स DNA पॉलीमेरेज, RNA पॉलीमरेज, न्यूक्लियोसाइड, ट्राइफास्फेटेज तथा DPN पाइरोफास्फोराइलेज के रूप में होते हैं। गुणसूत्र में हिस्टोन प्रोटीन्स के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की प्रोटीन भी होती है जिसे क्रोमोसोमिन कहते हैं।

DNA तथा प्रोटीन अणुओं के बीच में लिंकेज होता है जिसे लवणीय-लिंकेज (Salt linkage) कहते हैं। इस लिंकेज की प्रकृति अस्थायी होती है जिसमें मैग्नीशियम (Mg ++) तथा कैल्शियम (Ca++) धात्विक आयनों के द्वारा बन्धन होता है। यह लिंकेज DNA प्रोटीन तथा DNA समूहों के बीच में पाया जाता है।

किसी कोशिका में DNA की मात्रा केन्द्रक में पायी जाने वाली गुणसूत्रों की संख्या के अनुपातिक होती है। Ris के अनुसार DNA अनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाता है। गुणसूत्र की रचना निम्न रासायनिक तत्वों के द्वारा होती है-

(i) डी-आक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (DNA)

(ii) राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA)

(iii) प्रोटीन्सहिस्टोन या क्षारीय प्रोटीन्स, अथवा हिस्टोन विहीन या अम्लीय प्रोटीन अम्लीय प्रोटीन्स की प्रकृति एन्जाइम के समान होती है।

गुणसूत्र की परा-संरचना

 (Ultrastructure of Chromosomes) 

इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी की सहायता से गुणसूत्र की परासंरचना का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि गुणसूत्रों की रचना तन्तुओं के समूह से मिलकर होती है। इसकी परासंरचना को Dupraw and Hans Ris-1968 ने प्रतिपादित किया जिसे एक रज्जु का वलित तन्तुक मॉडल (Single strand folded fibre model) कहते हैं।

गुणसूत्र की परासंरचना का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि DNA तथा क्षारीय प्रोटीन किसी गुणसूत्र की संरचनात्मक इकाई है जिनका समान अनुपात 1:1 होता है। से संरचनात्मक इकाइयाँ हिस्टोन तथा DNA कहलाती है जिसमें DNA का 20A° तन्तुक हिस्टोन के साथ मिलकर 100A° तन्तु का निर्माण करता है। DNA का दोहरा हेलिक्स सम्बन्धित हिस्टोन्स के सहित अनेक बार कुण्डलित होता है तथा क्रोमैटिन तन्तु का निर्माण करता है।

इस प्रकार इस धारणा के अनुसार प्रत्येक यूकैरियोटिक गुणसूत्र की रचना एक लम्बे तथा वलित DNA के तन्तु के द्वारा होती है। एक की गयी गणना के अनुसार ड्रोसोफिला का गुणसूत्र सबसे लम्बा होता है तथा यह 40 सेमी तक लम्बा होता है इसका आणविक भार 80x109 होता है। सोमैटिककोशा में पाये जाने वाले तन्तुओं का व्यास 200A° तक होता है। जिसका निर्माण DNA तथा हिस्टोन्स के द्वारा होता है। DNA तथा हिस्टोन अनुपात समान होता है।

हिस्टोन्स के अणु क्रमिक रूप से DNA के दोहरे हेलिक्स के खाँचों में व्यवस्थित होते हैं। जिसमें धनात्मक आवेशित हिस्टोन्स, वैद्युत विन्यास बनाते हैं तथा वे DNA के ऋणात्मक आवेश वाले फास्फेट समूह से जुड़ते हैं। इस प्रकार धनात्मक व ऋणात्मक आयन्स आपस में जुड़कर DNA को स्थायित्व तथा लचीलापन प्रदान करते हैं। DNA का दोहरा हेलिक्स हिस्टोन्स के साथ मिलकर रस्सी के समान अत्यन्त कुण्डलित रचना बनाते हैं जिसे क्रोमैटिन तन्तु या न्यूक्लियो प्रोटीन तन्तु कहते हैं।

यूकैरियोटिक गुणसूत्र में हिस्टोन्स DNA के साथ मिलकर विशेष कुण्डलन (Super colling) करते हैं जिसमें वह या तो रचनात्मक तन्तु की तरह कार्य करते हैं अथवा DNA के विशेष भाग को ढक लेते हैं जिससे इस भाग का ट्रान्सक्रिप्शन नहीं हो पाता है। न्यूक्लियो प्रोटीन्स तन्तु घूमकर अनेक छल्ले (loop) के समान रचनाएँ बनाते हैं। Dupraw ने इस प्रकार के गुणसूत्र के रचनात्मक मॉडल को दलित तन्तुक मॉडल (Folded fibre model) कहा।

न्यूक्लियोसोम संकल्पना (Nucleosome hypothesis) - इस संकल्पना के अनुसार क्रोमैटिन तन्तु का निर्माण न्यूक्लियोसोम की अनेक यूनिट से मिलकर होता है तथा प्रत्येक न्यूक्लियोसोम 200 जोड़ी न्यूक्लियोटाइड्स तथा चार जोड़ी प्रोटीन अणुओं के आपसी संयोजन से मिलकर बनते हैं। इस


प्रकार प्रोटीन के द्वारा आक्टोमर का निर्माण हो जाता है। प्रोटीन निर्मित आक्टोमर में H2A, H2B H3 तथा H4 हिस्टोन प्रोटीन अणुओं के दो-दो इकाइयाँ होती हैं जो एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है। इनके मिलने से आक्टोमर कोर कण बनता है। DNA आक्टोमर के बाहर कुण्डलित अवस्था में पाया जाता है तथा दो न्यूक्लियोसोम के बीच के DNA से एक H-1 हिस्टोन अणु जुड़ा होता है। H-1 हिस्टोन का एक अणु 200 न्यूक्लियोटाइड्स जोड़ों के बीच स्थित होता है।

आधुनिक खोजों के आधार पर स्पष्ट होता है कि न्यूक्लियोसोम एक-दूसरे से DNA लिंकर के द्वारा जुड़े होते हैं जिनके पारस्परिक संयोजन से क्रोमैटिन तन्तु का निर्माण होता है। बाद में क्रोमैटिन तन्तुओं के आपसी संयोजन के द्वारा गुणसूत्र बनते हैं।


गुणसूत्र से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

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प्रश्न 2. आनुवंशिकी एवं विभिन्नताओं को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-आनुवंशिकी प्रत्येक जीवधारी में अपने ही समान सन्तान पैदा करने की क्षमता होती है। सन्तानों में माता-पिता के समान लक्षण मिलते हैं। इसका कारण आनुवंशिकता है। आनुवंशिकता का शाब्दिक अर्थ है अपने ही तरह के जीव पैदा करने की प्रवृत्ति। उदाहरण के लिए गाय बछड़े को पैदा करती है, कुतिया पिल्ले को पैदा करती है, हथिनी हाथी पैदा करती है शेर नहीं पैदा कर सकती। इस प्रकार मटर, चना, सेम व आम क्रमशः मटर, चना, सेब व आम ही पैदा कर सकते हैं। साधारणतया एक जीव की सन्ताने अपनी बहुत सी विशेषताओं एवं गुणों में अपने माता-पिता के समान होती हैं अर्थात् सन्तानों में अपने माता-पिता के गुण पाये जाते हैं। इस प्रकार से सन्तानें माता-पिता के गुणों को Inherit कर लेती हैं तथा यह गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बिना किसी परिवर्तन के पहुँचते रहते हैं। विभिन्नताएँ (Variations) - हालाँकि माता-पिता तथा उनकी सन्तानों में समानताएँ पायी जाती

हैं, परन्तु कभी-कभी असमान जन्तुओं या पौधों के संगम (mating) होने पर नए किस्म के जन्तु या पौथे उत्पन्न हो जाते हैं और प्रकृति में असमानताएँ (dissimilarities) पैदा हो जाती है तथा सन्तानों में पर्याप्त अन्तर आ जाता है। जैसे कोई भी दो भाई, दो बहनें या भाई-बहन एक जैसे नहीं होते। जीवों में पाये जाने वाले ऐसे अन्तर को विभिन्नताएँ कहते हैं। ये विभिन्नताएँ वास्तव में दो कारणों से पैदा होती हैं

1. आनुवंशिकी कारण (Genetic Causes) = आनुवंशिकी सम्बन्धी

2. वातावरणीय कारण (Environmental Causes) = वातावरण सम्बन्धी।

जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें आनुवंशिकता तथा विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है, अर्थात् माता-पिता एवं सन्तानों के बीच समानताओं व असमानताओं का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी (genetics) कहलाती है। जेनेटिक्स (Genetics = generate) ग्रीक भाषा का एक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है जनना। सबसे पहले बेटसन (Beteson) ने सन् 1902 में इस शब्द को प्रस्तावित किया था। समस्त जीवधारियों के लक्षणों का निर्धारण तथा नियन्त्रण जीन्स (genes) के द्वारा सम्पन्न होता है। जीन्स गुणसूत्रों (chromosomes) पर रैखिक (linear) क्रम में विन्यसित होते हैं। इसलिए गुणसूत्रों को जीन्स या आनुवंशिक पदार्थ का आनुवंशिक वाहक (hereditary vehicles) कहते हैं। आनुवंशिक पदार्थ DNA होता है। अतः जीन तथा गुणसूत्र DNA के बने होते हैं। युग्मक (gamete) आनुवांशिक प्रदार्थ को माता-पिता से सन्तानों में पहुँचाते हैं। अतः युग्मक दो पीढ़ियों के बीच आनुवंशिक सम्बन्ध बनाते हैं। गुणसूत्रों के रूप में आनुवंशिक पदार्थ माता-पिता से युग्मकों में पहुँचता है। इसी प्रकार से युग्मकों से संतान में आनुवंशिक पदार्थ पहुँचता है।


प्रश्न 1. न्यूक्लियोसोम संकल्पना क्या है?

उत्तर-न्यूक्लियोसोम संकल्पना (Nucleosome hypothesis) - इस संकल्पना के अनुसार क्रोमैटिन तन्तु का निर्माण न्यूक्लियोसोम की अनेक यूनिट से मिलकर होता है तथा प्रत्येक न्यूक्लियोसोम 200 जोड़ी न्यूक्लियोटाइड्स तथा चार जोड़ी प्रोटीन अणुओं के आपसी संयोजन से मिलकर बनते हैं।'

इस प्रकार प्रोटीन के द्वारा आक्टोमर का निर्माण हो जाता है। प्रोटीन निर्मित आक्टोभर में H2A.H2B. H3 तथा H4 हिस्टोन प्रोटीन अणुओं की दो-दो इकाइयां होती हैं। जो एक-दूसरे से सम्बन्धित होती है। इनके मिलने से आक्टोमर क्रोम कण बनता है। DNA आक्टोमर के बाहर कुण्डलित अवस्था में पाया जाता है तथा दो न्यूक्लियोसोम के बीच के DNA से एक H-1 हिस्टोन अणु जुड़ा होता है। H-1 हिस्टोन का एक अणु 200 न्यूक्ल्यिोटाइड्स जोड़ों के बीच स्थित होता है।

आधुनिक खोजों के आधार पर स्पष्ट होता है कि न्यूक्लियोसोम एक दूसरे से DNA लिंकर के द्वारा जुड़े होते हैं जिनके पारस्परिक संयोजन से क्रोमैटिन तन्तु का निर्माण होता है। बाद में क्रोमैटिन तन्तुओं के आपसी संयोजन के द्वारा गुणसूत्र बनते हैं।


प्रश्न 2. आनुवंशिकी का जनक किसको कहा जाता है?

उत्तर-ग्रेगर जॉन मेण्डल को वस्तुतः आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है। उन्होंने मटर की सात प्रजातियों पर प्रयोग किये जिससे उन्हें लाभकारी परिणाम प्राप्त हुएँ मटर के पौधे में स्वपरागण की क्षमता होती है जिससे उनके स्थिर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। इसे आसानी से उगाया जा सकता है और एक ही मौसम में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी प्राप्त की जा सकती है। मटर के पौधे में बहुत से आनुवंशिक लक्षण होते हैं।

प्रश्न 3. आनुवंशिकी में जोहेन्सन का क्या योगदान है?

उत्तर- मेण्डेलियन और बायोमेट्रीशियन को कुछ हद तक सिद्ध किया। जोहेन्सन (1903) ने बीन्स के बीज भार और उनके प्रजनन व्यवहार पर प्रयोग किया। उन्होंने बीज की कई प्रजातियों पर कार्य किया उसके भार को 1 cg से 90 cg (cg = सेन्टीग्राम) मध्य लिया। अपने प्रयोगों में उन्होंने विभिन्नतायें पायी। उन्होंने अपने प्रयोगों से सिद्ध किया कि लगातार परिवर्तन या विभिन्नतायें हेरिटेबिल हो सकती हैं। इन्होंने “जीन प्रारूप लक्षण प्रारूप धारणा' का सूत्रपात किया। उनके अनुसार जीन प्रारूप उसकी सम्पूर्ण आनुवंशिकता को निरूपित करता है। दूसरी ओर लक्षण रूप उन लक्षणों का निरूपण करता है, जो जीन प्रारूप एवं वातावरण के बीच आपसी क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 4. बारगॉडी या लियान परिकल्पना क्या है? उल्लेख कीजिए।

उत्तर- लियॉन ने इस सम्बन्ध में परिकल्पना प्रस्तुत की जिसके अनुसार मनुष्य में विश्राम की अवस्था में कोशिकाओं में स्थित केन्द्रक के आधार पर लिंग को अलग-अलग पहचाना जा सकता है। लियोन ने देखा कि स्त्रियों को कोशिकाओं में इण्टरफेज केन्द्रक में एक अन्य क्रोमैटिन पदार्थ से निर्मित गहरी अभिरंजित संहति पायी जाती है इसे लिंग क्रोमैटिन कहते हैं। इसको सर्वप्रथम बार (Bar) तथा बरट्राम ने 1949 में बिल्लियों और सामान्य औरतों की त्वचा, मुख, गुहिका की श्लेष्मिका आदि की कोशिकाओं तथा तंत्रिका कोशिकाओं आदि में देखा था। लिंग क्रोमैटिन पदार्थ मादा में तो पाया जाता है परन्तु नर में नहीं होता है। इसे बार काय (Bar - body) भी कहते हैं। औरतों के शरीर की कोशिकाओं की केन्द्रिका में बारबॉडी का अनुपात नर का अपेक्षाकृत अधिक होता है। इसीलिए इसे लिंग क्रोमैटिन पाजिटिव कहते हैं जब कि नर में लिंग क्रोमार्टन निगेटिव अवस्था में पाई जाती है।

लियोन के द्वारा किये गये प्रयोग के अनुसार जिस समय भ्रूण की उत्पत्ति होती है उस समय प्रारम्भ में दो x गुणसूत्रों में से एक आनुवंशिक रूप से अक्रिय एवं हेटरोपिकनोटिक होकर बार बाडी का निर्माण करता है तथा उनकी परिकल्पनाओं के अनुसार स्त्री में बारबाडी होती है जबकि पुरूष में बारबाडी का अभाव होता है अथवा बार-बाडी की कुल संख्या X गुण सूत्रों से हमेशा एक कम होती है इसके केन्द्रक में चार स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं -

केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या बार-बाडी की संख्या

No. of chromosomes in the Nucleus Number of Bar-Bodies

        X            गुणसूत्र        अभाव (Absant)

       XX          गुणसूत्र          1

      XXX         गुणसूत्र          2

      XXXX      गुणसूत्र          3

जब लिंग असंगति की स्थिति होती है तो असामान्य पुरुष (xxy) में एक ही बार-बॉडी होती है जबकि असामान्य स्त्री (x) में बार-बॉडी का पूर्ण रूप से अभाव होता है इसी प्रकार त्रिगुणित स्त्रियों (xxx) में और चर्तुगुणित पुरुषों (xxxy) में बारबाडी की कुल संख्या दो होती है।

मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या तथा बार-बॉडी की संख्या का परस्पर सम्बन्ध होता है जिसे निम्न तालिका द्वारा समझाया जा सकता है

लिंगीय स्थिति            लिंग फीनोटाइप            लिंग गुण सूत्र       बारबॉडी की संख्या

Normal Male                      Male                   xy                       0

Normal Female                  Female             XX                        1                    

Turner Syndrome              Female              X0                        0

Kline Felter syandrome     Male                  XXY                      1

Triple x-Syndrome            Female            XXX                         2

Triple x-y Syndrome         Male                XXXY                       2

Tetra X-Syndrome            Female             XXXY                      3

Tetra X-y Syndrome         Male                Хххуу                       3


प्रश्न 3. हेटरोक्रोमेटिन तथा यूक्रोमेटिन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

अथवा 

यूकोमेटिन।

उतर- इण्टरफेज की अवस्था में कुछ स्थानों पर क्रोमोसोम्स का क्रोमेटिन पदार्थ सघन होकर गहरा

स्टेन युक्त क्रोमेटिन मॉस (dark stained chromatin mass) बनाता है। इस सघन क्षेत्र को हिट्रोकोमेरिक क्षेत्र या हिट्रोक्रोमेटिन कहते हैं। हेटरोक्रोमेटिन केन्द्रिका के चारों तरफ एक परिधि में स्थित होते हैं। यह उपापचयी तथा आनुवांशिक रूप से निष्क्रिय होती है क्योंकि इनमें DNA की मात्रा कम और RNA की मात्रा अधिक होती है।

यूकोमेटिन (Euchromatin), क्रोमेटिन का हल्का स्टेन युक्त वितरित क्षेत्र है जिसमें हेटरोक्रोमेटिन की अपेक्षा DNA की मात्रा अधिक होती है।

हेटरोनोमेटिन दो प्रकार के होते हैं

1. फैकलटेटिव हेटरोनोमेटिन - यह क्रोमेटिन की निष्क्रिय अवस्था है जिसमें जोड़े का एक गुणसूत्र अपूर्ण या पूर्ण रूप से हेटरोक्रोमेटिक होता है। जैसे - स्तनधारियों में मादा सोमैटिक कोशिकाओं के 2ंx गुणसूत्रों में से एक ही गुणसूत्र हेटरोक्रोमेटिक होता है तथा लिंग क्रोमेटिन (Sex chromatin) बनाता है जब कि नर के सोमेटिक कोशिकाओं (Somatic cells) में केवल एक x गुणसूत्र होता है जो पूकोमेटिक आकार का होता है।

(2) कानस्टीट्यूटिव हेटरोक्रोमेटिन इस प्रकार के हेटरोक्रोमेटिन स्थाई होते हैं तथा यह गुणसूत्रों में पट्टिका के रूप में पाये जाते हैं। 

हेटरोक्रोमेटिन के कार्य निम्न प्रकार हैं -

(1) अर्धसूत्री विभाजन के समय यह समजात गुणसूत्रों की जोड़ी बनाने के लिये आकर्षित करता

(2) इनके कारण DNA का द्विगुणन तथा ट्रान्सक्रिप्सन (Transcription) होता है।

(3) यूक्रोमेटिन के अन्दर हेटरोक्रोमेटिन कोष्ठक जीनोम को विभिन्न टुकड़ों में विभक्त करते हैं।

(4) यह क्रोमोसेन्टर के निर्माण में सहायक होते हैं।

(5) यह कोशा विभाजन के समय गुणसूत्रों के विभाजन में सहायक होते हैं।


प्रश्न 6. यूकैरिऑन तथा प्रोकैरिऑन को परिभाषित कीजिए।


उत्तर-

यूकैरिऑन (Eukaryon)

उच्च श्रेणी के जीवों के ऐसे केन्द्रक जो केन्द्रक झिल्ली द्वारा ढके रहते हैं। अर्थात् कोशा द्रव्य से केन्द्रक झिल्ली द्वारा अलग रहते हैं, यूकैरिऑन कहलाते हैं। इसमें से एक से अधिक गुणसूत्र होते हैं तथा प्रत्येक DNA तथा क्षारीय Protein हिस्टोन का बना होता है।

प्रोकैरिऑन

 (Prokaryon)

निम्न श्रेणी के जीव जिनमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है, अर्थात् आनुवंशिक तत्व तथा कोशा द्रव्य के मध्य में कोई भित्ति नहीं पाई जाती है, इसे न्यूक्लियॉइड तथा आरम्भिक केन्द्रक (Incibient Nucleus) अथवा प्रोकैरिऑन भी कहते हैं।  इनमें केन्द्रकीय झिल्ली, केन्द्रिका, क्रोमेटिन जालिका नहीं पायी जाती है। DNA वृत्ताकार तथा गैर हिस्टोन प्रकार का होता है।


प्रश्न 7. गुणसूत्रों के घटक कौन-कौन से हैं?

उत्तर-गुणसूत्र गहरे अभिरंजित जीवद्रव्य काय है, जो केन्द्रक में स्थित होते हैं। वे कोशिका विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) के समय स्पष्ट रचनाओं के समान प्रतीत होते हैं। अन्तरावस्था में ये क्रोमेटिन के महीन धागों के गुंथे हुए जाल के समान प्रतीत होते हैं। गुणसूत्रों में स्वतः द्विगुणन की क्षमता होती है और अनेक विभाजनों के बाद भी ये अपनी आकारिक एवं क्रियात्मक विशिष्टताएँ बनाए रखते कोशिका विभाजन की मेटाफेज अवस्था में क्रोमोसोम्स न्यूक्लियस में अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। इस अवस्था में प्रत्येक क्रोमोसोम्स लम्बी आकृति का दिखाई देता है इसमें पाये जाने वाले निम्नलिखित घटक हैं

1. पैलिकिल तथा मैट्रिक्स (Pallicle and Matrix) - प्रत्येक क्रोमोसोम्स एक विसकस तथा एकोमैटिक द्रव्य पदार्थ से घिरा हुआ रहता है, जिसे मैट्रिक्स कहते हैं। मैट्रिक्स बाहर से एक पतली मैम्ब्रेन से घिरी रहती है जिसे पैलिकिल कहते हैं। ये दोनों ही नान-जेनेटिक पदार्थ से बने होते हैं। कोशिका विभाजन में क्रोमोसोम्स के चारों ओर यह इन्यूलेटिंग शीथ (Insulating sheath) की तरह कार्य करते हैं।

(2) क्रोमेट्रिड्स (Chromatids)- प्रत्येक क्रोमोसोम्स दो समान सर्पिलाकार, कुण्डलित, क्रोमेटिड्स या अर्ध-क्रोमोसोम से मिलकर बना होता है।

(3) सेण्ट्रोमीयर (Centromere) - सेण्ट्रोमीयर क्रोमोसोम का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग होता है जो क्रोमोसोम की आकृति को निर्धारित करता है। यह क्रोमोसोम में उस स्थान पर स्थित होता है जहाँ मोमोसोम की दोनों भुजाएँ एक-दूसरे से मिलती हैं। सामान्य दशा में यह क्रोमोसोम में दिखाई नहीं देता है।

(4) सैकेण्डरी कान्सट्रिक्शन (Secondary Constriction) - प्रायः क्रोमोसोम एक भुजा में एक ही सैकेण्डरी कान्सट्रिक्शन होता है । इण्टरफेज में यह न्यूक्लिओलस के निर्माण में सहायता करता है। इसलिए इन कान्सट्रिक्शन को न्यूक्लिओलर आर्गेनाइजिंग क्षेत्र कहते हैं।

(5) सेटेलाइट (Setellite) - कुछ क्रोमोसोम में सैकेण्डरी कान्सट्रिक्शन क्रोमोसोम की भुजाओं के सिरे की ओर एक स्पष्ट गोलाकार खण्ड का निर्माण करते हैं, जिन्हें सेटेलाइट या सेटेलाइट बॉडीज कहते हैं। जिन क्रोमोसोम्स में सेटेलाइट होता है, उन्हें SAT-क्रोमोसोम्स कहते हैं।

(6) टीलोमीयर्स (Telomeres) - मुलर (Muller, 1939) के अनुसार क्रोमोसोम के विशिष्ट टर्मिनल सिरे (Terminal ends) टीलोमीयर्स कहलाते हैं। टीलोमीयर्स में विशिष्ट प्रकार के गुण पाये जाते हैं, क्योंकि ये सिरे क्रियात्मक भिन्नता एवं ध्रुवता प्रदर्शित करते हैं। ये क्रोमोसोम्स को स्थिरता प्रदान करते हैं।


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