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मेण्डल के आनुवंशिक नियम || mendal ke aanuvanshik niyam

इस पोस्ट में हम मेण्डल के आनुवंशिक नियम ,एकसंकर क्रास ,द्विसंकर क्रास की परिभाषा ,मेण्डल द्वारा किये गये संकर प्रसंकरण  वर्णन, एक संकरण क्या है? ,एक संकर क्रास का वर्णन ,आनुवंशिकी के कारक का वर्णन ,मेण्डल के तीसरे नियम का उल्लेख ,मेंडल के कितने नियम है?,स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम क्या है ,उदाहरण? इन सभी प्रश्नो पर चर्चा करेगें





मेण्डल के आनुवंशिक नियम
(Mendel's Law of Inheritance)


ग्रेगर जॉन मेण्डल - अनुवांशिक सिद्धान्तों को सर्वप्रथम ग्रेगर जॉन मेण्डल ने अपने चर्च के बगीचे में मटर के पौधों पर प्रयोगों द्वारा आविष्कृत किया था। अपने अनुवांशिक प्रयोगों के लिये मेण्डल ने मटर के पौधों का चयन किया था, क्योंकि मटर के पुष्प में एण्ड्रोशियम (Androecium) तथा गाइनोशियम (Gynoecium) अर्थात् पुष्प के लैंगिक आर्गन्स पीटल्स द्वारा एकदम ढके रहते हैं। अपने प्रयोगों द्वारा मेण्डल ने फिनोमिना ऑफ डामिनेन्स के सिद्धान्त के अन्तर्गत दो नियम बनाये

1. पार्थक्य का नियम
2. स्वतन्त्र अपव्यूहन का सिद्धान्त

(1) मेण्डल का प्रभावी गुण का नियम (Law of Dominance) -

 मेण्डल ने जब दो विपरीत लक्षणों को लेकर नर तथा मादा के बीच क्रास करवाया तो देखा कि दोनों लक्षणों में आगे आने वाली पीढ़ी में केवल एक ही लक्षण प्रकट होता है कि एक नहीं। अतः दिखाई पड़ने वाले लक्षण को प्रभावी लक्षण (Dominance Character) तथा न दिखाई पड़ने वाले को अप्रभावी अथवा सुप्त (Recessive) लक्षण कहा गया जैसा की. निम्न उदाहरण से स्पष्ट होता है।

लाल रंग का फूल एवं सफेद रंग के फूल वाले पौधों के बीच क्रॉस करवाने पर लाल रंग के ही फूल पौधों में दिखाई पड़ते हैं न कि सफेद। अतएव लाल रंग को प्रभावी लक्षण तथा सफेद रंग के लक्षण (Character) को सुप्त लक्षण कहा गया। इस प्रकार से प्रभावी होने के नियम का प्रतिपादन हुआ।







F, पीढ़ी के सभी संकर (Hybrids) में लाल रंग के ही फूल होते हैं। इस प्रकार लाल रंग प्रकट
होकर प्रभावी तथा सफेद रंग लुप्त हो जाता है।

(2) मेण्डल का पृथक्करण का नियम (Law of Segregation) -

 इस नियम को गैमीट्स की शुद्धता (Purity of gametes) भी कहते हैं क्योंकि गैमीट्स लगातार कई पीढ़ियों तक साथ-साथ रहने के बाद भी दूषित नहीं होते हैं वे सदैव अलग-अलग अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं। समय पर अलग-अलग प्रकट हो जाते हैं। जैसा की पिछले उदाहरण में बताया गया है कि F, पीढ़ी में लाल रंग के फूल वाले पौधे तैयार होते हैं जिनमें यद्यपि प्रगट तो केवल लाल रंग ही होता है परन्तु पौधों में सफेद रंग के लक्षण के गेमीट्स भी सुप्त अवस्था में रहते हैं। यदि इनको आपस में ही निषेचित करवा दिया जाये तो F2 पीढ़ी के पौधों में कुछ प्रतिशत में सफेद रंग के फूल वाले पौधे प्रकट हो जाते हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि Fपीढ़ी में सफेद फूल वाले पौधे न उत्पन्न होने के बाद भी सफेद रंग के लिये उत्तरदायी गेमीट्स दूषित नहीं हुए तथा F2 पीढ़ी में अलग (Segregate) हो गये। इसी को लॉ ऑफ सेग्रीगेशन कहते हैं।



परिणाम Fपीढ़ी में लाल तथा सफेद दोनों प्रकार के फूल वाले पौधे प्रकट हुए यह निश्चित है कि लाल फूल वाले पौधे 75 प्रतिशत तथा सफेद फूल वाले 25 प्रतिशत पौधे ही तैयार हो सके। इस प्रकार इन पौधों की फीनोटाइप (Phenotype) तथा जीनोटाइप (Genotype) अनुपात
अलग-अलग होती है।
फीनोटाइप - 3:1
तीन लाल रंग वाले पौधे एक सफेद रंग वाला पौधा
जीनोटाइप - 1:2:1
1. लाल रंग वाला पौधा शुद्ध (Homozygous)
2. लाल रंग वाले पौधे संकर (Hybrids Heterozygous)
3. सफेद रंग वाला पौधा शुद्ध (Homozygous)


एकसंकर क्रास (Monohybrid Cross) )

एकाकी लक्षणों ने तुलनात्मक रूपों की वंशागति के अध्ययन हेतु किये गये प्रयोगों को एकसंकर प्रसंकरण या क्रास कहते हैं। मेण्डल ने दो विपरीत परन्तु शुद्ध गुण वाले पौधों पर एक साथ प्रयोग किये। उसे विशुद्ध लम्बे (Pure tall) तथा विशुद्ध बौने (Pure dwarf) मटर के छाँटे तथा उन्हें पर-परागित (Cross Polination) किया, अर्थात् लम्बे पौधों के पराग कणों को छोटे पौधों के वर्तिकाय (Stigma) पर उगाया या लम्बे पौधों के वर्तिकाग्र पर बौने पौधों के परिमिश्रण डाले। इनसे उत्पन्न सभी सन्तानें लम्बी (Tall) थीं। दो भिन्न गुणों वाले पौधों के परपरागण से उत्पन्न संतानों को संकर (Hybrid) कहते हैं। संकर सन्तानों की इसी पीढ़ी को उन्होंने प्रथम संतति पीढ़ी F, (First Filial Generation - F, Generation) कहा ।

अब मेण्डल ने F, पौधों में स्वःपरागण होने दिया। इनमें बने सारे (1064) बीजों को एकत्र करके एक पृथक स्थान पर बोया। इन बीजों से दूसरी संतति पीढ़ी (Second Filial Generation -F2 Generation) के पौधे उगे। इन पौधों में से 787 में तना लम्बा और 277 में तना नाटा था। इस प्रकार नाटे तने का लक्षण F, पीढ़ी में लुप्त हो जाने के बाद F2 पीढ़ी में फिर प्रकट हुआ और इस
पीढ़ी में लम्बे व नाटे तने वाले पौधों में लगभग 3 : 1 अनुपात रहा।

अब मेण्डल ने F2 पीढ़ी के पौधों में भी स्वःपरागण होने दिया। उनसे बने बीजों को अलग बोकर F3 पीढ़ी के पौधे उगाये। उन्होंने देखा कि F2 पीढ़ी के नाटे तने वाले पौधों के बीजों से उगे सब पौधों में तना नाटा था। अतः सिद्ध हुआ कि F2 पीढ़ी के नाटे तने वाले सभी पौधे F, के नाटे वाले पौधों की भाँति, शुद्ध नस्ली थे। इसके विपरीत है, पीढ़ी के लम्बे तने वाले पौधों में से एक तिहाई तो , F1 पौधों की भाँति शुद्ध नस्ली थे, क्योंकि इनके बीजों से केवल लम्बे तने वाले पौधे उगे, परन्तु शेष दो तिहाई पौधे F, पौधों के समान थे, क्योंकि इनके बीजों से 3 : 1 के अनुपात में लम्बे व नाटे तने वाले दोनों प्रकार के पौधे उगे। मेण्डल ने उपरोक्त प्रसंकरण को नाटे तने वाले पौधों के परागकणों को लम्बे तने वाले पौधों के फूलों के वर्तिकारों पर स्थानान्तरित करके भी दोहराया, अर्थात् उन्होंने जनकीय (F.) पौधों के बीच नर व मादा युग्मकों (Male & Female gametes pollen grains) एवं Ovules में स्थित के स्रोतों को बदल दिया। इसी को अन्योनता प्रसंकरण (Reciprocal cross) कहते है। मेण्डल ने देखा कि ऐसे प्रसंकरण से Fi, F2 तथा F3 पीढ़ियों में तने की लम्बाई की विभिन्नता की वंशागति यथावत् रही। इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

उपरोक्त प्रसंकरण प्रयोगों से उद्घाटित तथ्यों के आधार पर मेण्डल ने निम्नलिखित 3 निष्कर्ष निकाले।

1. आनुवंशिकी के कारण (Factors of Genetics) -

 जीवों में प्रत्येक आनुवंशिक लक्षण का विकास एक ऐसी सूक्ष्म रचना के 'प्रभाव से होता है जो युग्मकों (Gametes) के द्वारा एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में जाती रहती है। लक्षणों की वंशागति के लिये जिम्मेदार इन एकक रचनाओं या कणों (Units or particles) को मेण्डल ने एकक कारक (Unit factors) F2 पीढ़ी में प्रत्येक आनुवंशिक लक्षण के लिये, दो एकक कारण माने हैं, परन्तु लैंगिक जनन के लिये जीव द्वारा उत्पन्न युग्मको (Gametes) पादपों में परागकणों एवं बीजाण्डों तथा जन्तुओं में शुक्राणुओं एवं अण्डाणुओं में सभी लक्षणों में एक-एक ही कारक होते हैं।

2. प्रबलता एवं अप्रबलता (Dominance &Recessiveness) - 

मेण्डल ने निष्कर्ष निकाला कि प्रत्येक लक्षण के तुलनात्मक रूपों में कारक परस्पर कुछ भित्र होते हैं। किसी लक्षण के लिये एक शुद्ध नस्ली (Pure Breeding) जीव में इस लक्षण के दोनों कारक समान होते हैं। जैसे - मेण्डल के उपरोक्त प्रसंकरण प्रयोग में लम्बे तने वाले जनकीय (P) पौधों में दोनों कारक समान व लम्बे तने के थे तथा नाटे तने वाले जनकीय पौधों में दोनों कारक समान व नाटे तने का तथा दूसरा नाटे तने का था। अतः P, पौधों के विपरीत F, पौधे, तने की लम्बाई के लिये, शुद्ध नस्ली न होकर दो अर्थात् संकर (Hybrids) एक संकर प्रसंकरण (Monohybrids) थे। फिर भी E पीढ़ी के सारे पौधों में लम्बा तना ही विकसित हुआ। इससे मेण्डल ने निष्कर्ष निकाला कि प्रत्येक आनुवंशिक लक्षण के दा तुलनात्मक रूपों में से एक प्रबल (Dominent) होता है और दूसरा अप्रबल (Recessive) । इसलिये जिन सदस्यों में दोनों रूपों के कारक साथ-साथ उपस्थित होते हैं। (F, पीढ़ी के संकर सदस्य) उनमें लक्षण के केवल प्रबल रूप का विकास और प्रदर्शन होता है। अप्रबल रूप का विकास नहीं होता है।

3.पृथक्करण (Segregation)

इसके अनुसार एक आनुवंशिक लक्षण की विभिन्नताओं अर्थात् तुलनात्मक रूपों के कारण कितने ही समय के लिये साथ-साथ रहने पर भी अपरिवर्तित अर्थात् शुद्ध बने रहते हैं जिसके फलस्वरूप युग्मकों में जाने वाले कारक सब शुद्ध होते हैं। इसलिये पृथक्करण के नियम को बाद के कुछ वैज्ञानिकों ने युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहा है।


 मेण्डल के द्विसंकर क्रास की परिभाषा 

  
इस क्रास में दो जोड़ी गुणों या लक्षणों की एक साथ वंशागति का अध्ययन करते हैं । जैसे बीज खोल का हरा (Green) या  पीला (yellow ) रंग तथा बीजों के गोल (round) या वेनिसिन लक्षणों की वंशागति 

(1)मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)-

 इस नियम के अन्तर्गत यह आवश्यक होता है कि लक्षण दोहरे या उससे अधिक हो जिन्हें डाईहाइब्रिड्स (Dihybrids) कहते हैं। इस प्रकार ट्राइ एवं ट्रेटा हाइब्रिड्स हो सकते हैं। मोनोहाइब्रिड्स में यह नियम लागू नहीं होता है। मेण्डल द्वारा मटर के पौधे पर किये गये प्रयोगों के अन्तर्गत आने वाले सात जोड़ी विभिन्न प्रकार के लक्षण थे - जैसे (1) बीज का रंग, (ii) बीज की सतह, (iii) फूलों का रंग, (iv) तने की लम्बाई, (v) फलों की आकृति, (vi) फलों की परिपक्वता एवं (vii) फूलों की स्थिति।

इस नियम के लिये यहाँ पर दो विपरीत लक्षण साथ-साथ लेकर प्रयोग किया गया है जिसे उदाहरण
के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

बीज के रंग तथा बीज के आकृति का लक्षण लिया गया है।






परिणाम - कुल 16 बीज
1. गोल आकृति एवं पीले रंग वाले बीज = 9 (RRYY or RRYY or RIYY or RIYY)
2. गोल आकृति एवं हरे रंग वाले बीज = 3 (RRyy or Rryy)
3. झुर्रियोंदार एवं पीले रंग वाले बीज = 3 (rrYY, IrYy)
4. झुर्रियोंदार एवं हरे रंग वाले बीज = 1 (rryy)

मेण्डल- के द्वारा किये गये प्रयोगों की F2 पीढ़ी में 556 विभिन्न प्रकार के बीज प्राप्त हुए थे जिनमें 315 गोल आकृति पीले रंग वाले, 108 गोल आकृति हरे रंग वाले, 101 झुर्रियोंदार आकृति पीले रंग वाले तथा 32 झुर्रियोंदार हरे रंग वाले बीज थे।


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