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जेनेटिक कोड क्या है || Genetic code kya hai

इस पोस्ट में हम जेनेटिक कोड क्या है तथा परिभाषा,DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है समझाइयें?,जेनेटिक कोड क्या है यह किस प्रकार कार्य करता है, जेनेटिक कोड क्या है इसकी खोज के बारे में आप क्या जानते हैं ,जेनेटिक कोड कितने प्रकार के होते हैं ,कोडोन क्या है in hindi , जेनेटिक कोड क्या है इसकी विशेषताएं जेनेटिक कोड क्या है समझाइए,आनुवंशिक कूट (जेनेटिक कोड) पर एक निबन्ध ओकाजाकी खण्ड क्या है? पर चर्चा पर चर्चा करेंगे




जेनेटिक कोड



जेनेटिक कोड (Genetic Code)

डी.एन.ए. मालीक्यूल में पायी जाने वाली जेनेटिक सूचनायें जो कि मालीक्यूल कोड की भाषा में अंकित होती हैं को जेनेटिक कोड कहा जाता है। इसमें सबसे मुख्य बात यह होती है कि किस प्रकार से जेनेटिक सूचना चार अक्षर (चार न्यूक्लियोटाइड्स) की भाषा में लिखी है क्या यह बीस अक्षरों (20 अमीनो अम्ल) की भाषा में अनुवादित की जा सकती है। न्यूक्लियोटाइड्स का समूह जो कि एक अमीनों अम्ल को बनाता है। कोडॉन का एक कोड शब्द होता है। सबसे एकल सम्भव कोड होता है। एक अक्षर का कोड जिसको सिंगलेट कोड (singlet code) कहते हैं जिसमें एक न्यूक्लियोटाइड एक अमीनों अम्ल को कोड करता है। ये कोड केवल चार अमीनों अम्लों के लिए होता है। डबलेट कोड दो अक्षरों का होता है जो कि 16(4x4) अमीनों अम्लों के लिए होता है। उपरोक्त दोनों कोड्स अपर्याप्त होते हैं। ट्रिप्लेट कोड तीन अक्षरों का होता हैं जो 64(4x4x4) अमीनों अम्लों को प्रदर्शित कर सकता है इस तरह से 20 अमीनों अम्लों के लिए 64 ट्रिपलेट कोड्स होते हैं। ये मैसेन्जर आर.एन.ए. के रूप में प्रदर्शित किये जाते हैं। क्योंकि यह आर.एन.ए. जेनेटिक सूचना की कापी कर लेता है जिसको डी. एन.ए. का क्रिप्टोग्राम कहा जाता है। 


जेनेटिक कोड की क्रेकिंग तथा इसकी खोज


जेनेटिक कोड की क्रेकिंग सर्वप्रथम 1961 में नीरेन वर्ग ने अति तेजी के साथ जेनेटिक कोड को तोड़ने की विधि बताई थी। इसके दो तरीके हैं।

1. In vitrocoden Assignment - यह विधि नीरेनवर्ग ने बताई थी Invitro विधि में कृत्रिम राइबोन्यूक्लियोटाइड्स या मैसेन्जर आर.एन.ए. युक्त स्वतन्त्र प्रोटीन संश्लेषण तन्त्र की कोशिका में रेडियोसक्रिय अमीनों अम्लों के अध्ययन को किया जाता है। इस क्रिया के दौरान प्राकृतिक मैसेन्जर आर. एन.ए. में यांत्रिक तथा एन्जाइमैटिक टूटन से होती है। तभी कृत्रिम मैसेन्जर आर.एन.ए. इसमें प्रवेश करते हैं। नीरेन वर्ग ने पॉलीयूरीडाइलिक, पॉलीसाइटीडाइलिक, पॉलीएडनिलिक तथा पॉलीग्वाइलिक अम्लों को क्रमशः यूरेसिल, साइटोसिन, एडनीन एवं ग्वानीन से तैयार किया। फिर इन कृत्रिम पॉलीराइबोन्युक्लियोटाइड्रए या मैसेन्जर आर.एन.ए. को कोशिका में प्रवेश कराकर यह पाया कि प्रत्येक कृत्रिम मैसेन्जर आर.एन. ए. एक ही प्रकार के अमीनों अम्लों पॉलीपेप्टाइड्स का संश्लेषण करता है। जैसे पॉलीयूरिक अम्ल, पालीफिनायल एलेजीन, पॉलीपेप्टाइड का निर्माण करता है। इस प्रकार 64 कोडन्स में से चार कोडन्स की जानकारी हो जाती है। इसी प्रकार अन्य प्रयोगों को करके नीरेन वर्ग ने आर्जीनीन, एलेनीन, सेरीन, प्रोलीन, टायरोसिन आदि के लिए भी कोड्स को भी तोड़ा किया।


2.In Vivo Codon Assignment - 


यद्यपि जेनेटिक कोड की क्रैकिंग में कोशिका स्वतन्त्र प्रोटीन तन्त्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है परन्तु इससे स्पष्ट नहीं हो पाया कि जीवधारियों के किस प्रकार जीवित तंत्रों में इसका प्रयोग हो जाता है। उसी कोड के लिए इस विधि में भी तीन तरीके बताये गये हैं। (अ) अमीनों अम्ल का स्थानान्तरण (ब) फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन (स) डी.एन.ए. एवं मैसेन्जर आर.एन.ए पॉलीन्यूक्लियोटाइड क्रिप्टोगैम के साथ सम्बन्धित पॉलीपेप्टाइड की तुलना । इस प्रकार से दोनों प्रकार के आध्ययन से 20 अमीनों अम्लों के कोड की तालिका बनाने के ढंग की जानकारी प्राप्त होती है।



DNA से संबंधित कुछ प्रश्न और उतर-

प्रश्नन1. ओकाजाकी खण्ड क्या है?

उत्तर-DNA पुनरावृत्ति में DNA को lagging strand (3' - 5' स्ट्रैण्ड) पर DNA 5-3 दिशा छोटे-छोटे खण्डों के रूप में संश्लेषित होता है। इन खण्डों में 1000-2000 न्यूक्लिओटाइड होते हैं। इन्हें ओकाजाकी खण्ड कहते हैं। अंत में DNA-ligase या Polynucleotide ligase एन्जाइम द्वारा ये खण्ड जुड़कर पूरी पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला बनाते हैं।


 प्रश्नन 2.DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है समझाइयें?

उत्तर-DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है जो आनुवांशिक सूचनाओं का स्थानान्तरण करता है। DNA में समस्त जैविक क्रियाओं के लिए संदेश निहित रहते हैं। यह संदेश एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होते रहते हैं। विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवों जैसे जीवाणुओं, विषाणुओं तथा मोल्ड्स Molds आदि पर किये गये अनेक प्रयोगों के आधार पर यह प्रमाणित हो जाता है कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है जो आनुवंशिक सूचनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित करता है।

1. बैक्टीरिया पर स्थानान्तरण क्रिया तथा ग्रिफिथ का प्रभाव (Bacterial transformation
and Griffith effect) - 

सर्वप्रथम ग्रिफिथ (Griffith) ने 1920 में बैक्टीरिया पर अपने किये गये प्रयोग के आधार पर यह सिद्ध किया DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है। इसे आनुवांशिक गुणों का रूपान्तरण भी कहते हैं। उन्होंने न्यूमोनिया रोग के बैक्टीरिया न्यूमोकोकस (Pneumococcous) में दो विभिन्न प्रकार के स्ट्रेन की खोज की।

न्यूमोनियां एक विशेष प्रकार के जीवाणु (Diplococcus phenomoniae) के द्वारा होता है जो Agar नाम की शैवाल पर वृद्धि करता है यह शैवाल चिकना (S) शीशे के समान एक बाह्य रक्षक खोल के अन्दर बंद होता है। यह खोल युक्त अग्र विभेद होता है। इसको यदि चूहे में अन्तःक्षिप्त करते है तो उसमें न्यूमोनियां हो जाता है।

इस विभेद के जीवों में शरीर के चारों ओर प्रोटीन्स का एक रक्षक खोल का निर्माण हो जाता है जिसे (Type s = III) कहते हैं। दूसरे प्रकर के स्ट्रेन को खोल रहित अनग्र-विभेद (Non Capsulated non virulent strain) कहते हैं। अगर इस स्ट्रेन को चूहे में स्थानान्तरित करते हैं तो उसमें न्यूमोनिया रोग नहीं होगा उसके चारों ओर प्रोटीन का रक्षक खोल नहीं होता है। इस प्रकार के स्ट्रेन को (Type S-III) कहते हैं।

अगर उक्त विभेद के खोल युक्त जीवाणुओं को उच्च तापक्रम 60°C तक गर्म करते हैं तो बैक्टीरिया
की मृत्यु हो जाती है जिसके कारण चूहों में संक्रमण नहीं हो पाता है। किन्तु अगर मृत जीवाणुओं की खोल रहित अनग्र जीवाणुओं को (Type R II) के साथ चूहे में अन्तःक्षिप्त कर दें तो संक्रमण के फलस्वरूप चूहे की मृत्यु हो जाती है।

अगर मृत चूहों के रूधिर से उक्त खोल युक्त जीवाणुओं (S-III) को पृथक करना चाहें तो यह कार्य असंभव है इसीलिए यह रूपान्तरित बैक्टीरिया प्रबल रूप से स्थिर होते हैं। अतः इन्हें पुनः परीक्षण के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है इस प्रयोग के द्वारा यह निष्कर्ष निकलता है कि मृत बैक्टीरिया से अन्य सजीव (R-11) बैक्टीरया में कोई एक ऐसा विशिष्ट पदार्थ पाया जाता है जो उसे दूसरे विभव (S. all virulent) में रूपान्तरित कर देता है। Griffith जीवाणुओं के स्थानान्तरण के कारण को नहीं समझ सके थे। परन्तु बाद में A very Mac Leod तथा McCarthy 1944 में स्थानान्तरण के कारण को समझा तथा उन्होंने एक विशेष प्रयोग के द्वारा उस रासायनिक पदार्थ को पृथक कर दिया जिसके कारण अनग्र बैक्टीरिया का उक्त बैक्टीरिया में रूपान्तरण होता है। यह विशेष रासायनिक पदार्थ DNA था। 

उन्होंने S-III जीवाणुओं को मार दिया। उन्होंने S-III से प्रोटीन्स, लिपिड्स पाली सैकेराइड्स तथा राइयो न्यूक्लिक अम्ल को पृथक कर दिया उन्होंने एक पेटीडिश में शैवाल (ऐगर) तथा सूक्ष्म जैवकी संवर्थन माध्यम में न्यूमोकोकाई (Pneumococci) अनग्र जीवाणुओं (Type R-II) का संवर्धन तैयार किया। उसके पश्चात् उग्र विभेद के खोल युक्त बैक्टीरिया को पीस कर पोषक माध्यम में मिला दिया कुछ घण्टों के पश्चात् देखा गया कि बैक्टीरिया के नये संवर्धन में उग्र-विभव के बैक्टीरिया (Type-III) विकसित हो गये। जीवाणुओं का यह रूपान्तरण स्थायी था तथा जिसमें गुणन के परिणामस्वरूप टाइप - III के असंख्य संतति बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं। 

इस प्रयोग से यह निष्का निकलता है कि किसी स्वतन्त्र कोशिकाओं शुद्ध DNA से 5-10 क्टिीरिया उत्पन्न होते हैं जिनमें R-11 जीवाणुओं का रूपान्तरण S-III जीवाणुओं में हो जाता है इसीलिए

LONA जीवाणु Pneumococci का एक आनुवंशिक पदार्थ है।


2. विषाणुओं तथा जीवाणू भोजी के प्रमाण या हर्षे-चेज का प्रयोग (Evidence from virus
and bacteriophage or Hershey chase experiment) - 

Harshey Chase ने बैक्टीरियल-वायरस के ऊपर अनेक प्रयोग किये जिनके आधार पर यह प्रमाणित होता है कि DNA अनुवांशिक सूचनाओं का वाहक (carriers) है क्योंकि DNA जनक विषाणुओं तथा संतति वाइरस के मध्य रासायनिक श्रृंखला का कार्य करता है। वह वाइरस जो बैक्टीरिया का संक्रमण करते हैं बैक्टीरियोफेज कहलाते हैं। इनमें प्रोटीन पदार्थ से निर्मित शीर्ष होता है जिसके अन्दर DNA पाया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रोटीन्स से निर्मित पूँछ भी होती है।

जीवाणु भोजी (Bacteriophage)- पूँछ के सिरे की सहायता से बैक्टीरियल कोशिका से चिपक जाते हैं। इसका शारीरिक भाग व पूँछ बैक्टीरिया कोशिका के बाहर ही रह जाता है। जबकि DNA कोशिका के अन्दर प्रवेश कर जाता है। Waring blender के अन्दर संक्रमित जीवाणुओं के प्रभाव से जीवाणु भोजी का शीर्ष व पूँछ भाग दोनों ही पृथक हो जाते हैं और बैक्टीरियल कोशिका के अन्दर ही Viral DNA या बैक्टीरियोफेज का DNA में स्वयं द्विगुणन (Self Duplication) प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार स्वयं द्विगुणन की प्रक्रिया के द्वारा नये वायरल DNA स्ट्रैण्ड्स का निर्माण हो जाता है।

कुछ समय के पश्चात प्रत्येक जीवाणुकोशा के ऊपर प्रोटीन से निर्मित रक्षक आवरण का निर्माण हो जाता है। बैक्टीरियोफेज के द्वारा संक्रमण के लगभग 20 मिनट पश्चात बैक्टीरियल कोशिका फट जाती है तथा 100 से भी अधिक जीवाणु-भोजी मुक्त होकर बाहर आ जाते हैं।

इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि प्रोटीन के अतिरिक्त DNA एक ऐसा पदार्थ हैं जो जीवाणु भोजी कणों के निर्माण के लिए आवश्यक होता है तथा इसमें बहुगुणन (Multiplication) की भी विशेष समता भी होती है।
Hurshey तथा Chase ने 1952 में Escherichia-coli में प्रयोग करके यह सिद्ध कर दिया कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है तथा इन्होंने जीवाणु भोजी के अन्तरण द्वारा प्रभावित कर दिया। अपने प्रयोग में उन्होंने दो प्रकार के कण विकसित किये। प्रथम प्रकार के कण उन्होंने रेडियोऐक्टिव, गन्धक (355) वाले बैक्टीरिया में विकसित किये जबकि दूसरे प्रकार के जीवाणु भोजी उन्होंने रेडियोऐक्टिव फास्फोरस (32P) वाले बैक्टीरिया में वर्धित किये। उन्होंने देखा कि रेडियोऐक्टिव गन्धक के माध्यम में वृद्धि करने वाले खोल में केवल रेडियोधर्मी अम्ल होते हैं ठीक इसी प्रकार से रेडियोऐक्सि फास्फोरस माध्यम में वृद्धि करने वाले बैक्टीरिया बैक्टीरियो फेज में केवल रेडियो ऐक्टिव DNA होता है। एक अन्य प्रयोग में उन्होंने सामान्य बैक्टीरिया को दोनों प्रकार के रेडियोऐक्टिव फेज से अलग-अलग संक्रमित कर दिया तथा उन्होंने कुछ समय के पश्चात् इस निलम्बन से प्रोटीन के खोल को पृथक कर दिया गया। लगभग 30 मिनट के पश्चात देखने से स्पष्ट होता है कि बैक्टीरियल कोशिकाओं के फट जाने के कारण जीवाणु भोजी मुक्त हो जाते हैं।

उपर्युक्त प्रयोग का परीक्षण करने पर स्पष्ट होता है कि जो फेज कण रेडियोऐक्टिव फास्फोरस के माध्यम में वृद्धि कर रहे थे उन्होंने लगभग 80% से 85% तक रेडियोऐक्टिव फास्फोरस को बैक्टीरियल कोशिकाओं में स्थानान्तरित कर दिया है जबकि इसके विपरीत रेडियोएक्टिव गन्धक के माध्यम में वृद्धि करने वाले कणों के द्वारा बैक्टीरियल कोशिकाओं में गन्धक की अल्प मात्रा भी स्थानान्तरित नहीं हो पाती है और लगभग 75 से 80% रेडियोऐक्टिव गन्धक वाइरस में अवशेष के रूप में रह जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion) - उपरोक्त प्रयोगों के परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि-
1. प्रोटीन्स का निर्माण (S) के द्वारा होता है।
2. वाइरस के बाह्य खोल का निर्माण प्रोटीन के द्वारा होता है। निर्मित प्रोटीन संक्रमण के समय बैक्टीरियल कोशिका के बाहर रह जाता है और प्रोटीन में स्थित समस्त रेडियोऐक्टिव गन्धक वाइरस में अवशेष रूप में रह जाती है। क्योंकि DNA में गन्धक बिल्कुल नहीं होती केवल फास्फोरस ही होता है इसीलिये रेडियोऐक्टिव फास्फोरस की अधिकांश मात्रा बैक्टीरियल कोशिका के अन्दर ही रहती है।

इस प्रयोग से यह भी स्पष्ट होता है कि वाइरस में पाये जाने वाले DNA जब बैक्टीरियल कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं तो उसमें बहुगुणन होता है तथा संतति फेज कणों का निर्माण होता है।

इस प्रकार Hershey तथा Chase के द्वारा किये प्रयोग के आधार पर प्रमाणित होता है कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है।

3. जीवाणुओं में पारक्रमण के प्रयोग के द्वारा प्रमाण (Evidence from transduction
experiment in Bacteia)-

जब जीवाणु भेजी DNA के एक छोटे से खण्ड को किसी बैक्टीरियल कोशिका से दूसरी जीवाणु कोशिका में स्थानान्तरित किया जाता है तो वह क्रिया पारक्रमण (transduction) कहलाती है तथा जब बैक्टीरियल कोशिका का विकास होता है तो एक विशेष दशा में फेज के अन्दर जीवाणु गुणसूत्र के DNA का कुछ भाग शेष रह जाता है। अर्थात् बैक्टीरियल कोशिका के अन्दर ही DNA का कुछ भाग अन्दर रह जाता है उसके पश्चात फेज पोषक कोशिका से नयी जीवाणु कोशिका संक्रमण करता है तथा जब नयी पोषक कोशिका संक्रमित हो जाती है तो यह अपने DNA के साथ पुरानी पोषक कोशिका के गुणसूत्र को भी स्थानान्तरित कर देता है।

इस प्रकार गुणसूत्र का विखण्डित हुआ खण्ड नयी पोषक कोशिका के गुणसूत्र के साथ क्रासिंग ओवर करता है जिसके फलस्वरूप पुरानी पोषक कोशिका के जीन्स का आंतरिक समावेश होता है। जिसमें केवल DNA ही अन्दर की ओर स्थानान्तरित होता है।

इस प्रयोग के आधार पर यह प्रमाणित होता है कि DNA के द्वारा ही जीन्स का निर्माण होता है तथा बैक्टीरिया कोशिका के अन्दर ही DNA का पराक्रमण (Transduction) होता है।




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