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मेण्डल की सफलता के कारण || mendal kee saphalata ke kaaran

मेण्डल की सफलता के कारण,मेण्डल की सफलता के मुख्य कारणों का वर्णन, समप्रभाविता की वंशागति को समझाइये।, मेण्डल के पृथक्करण का नियम या युग्मनों की शुद्धता का नियम क्या है?,टेस्ट क्रॉस तथा इसके महत्व को समझाइये। निम्नलिखित टेस्ट क्रॉस में संतति में (Offspring) फीनोटाइपिन अनुपात बताइये। (i) समयुग्मी प्रभाव, (ii) विषमयुग्मी प्रभाव।, टेस्ट क्रास और रेसी प्रोकल क्रास में क्या अन्तर है? उदाहरण सहित बताइये। आदि प्रश्नों के उत्तर पर चर्चा करेंगे


मेण्डल की सफलता के कारण
(Causes of Success of Mendel)

मेण्डल की सफलता के कारणों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है

(1) कार्यविधि -


1. मेण्डल ने अपने से पहले किये गये प्रयोगों की सफलता के कारणों का गहराई से अध्ययन करके अपने संकरण प्रयोगों को योजनाबद्ध रूप से पूरा किया।

2. मेण्डल ने एक समय में केवल एक ही लक्षण की वंशागति का अध्ययन किया, जबकि उनसे  पहले के वैज्ञानिकों ने पूरे जीव को एक लक्षण माना था।

3. उन्होंने अपने प्रयोगों को एक ही पीढ़ी तक न छोड़कर उनका F2 तथा F3 पीढ़ियों तक को अध्ययन किया।

4. मेण्डल ने अपने प्रयोग का समुचित रिकार्ड सुरक्षित रखा और उनका सावधानीपूर्वक अध्ययन कर किया।

5. मेण्डल ने ध्यानपूर्वक केवल ऐसे पौधों का वर्णन किया जो आनुवंशिकी रूप से शुद्ध (Pure breed) थे। इसकी पुष्टि उसने कृमिक पीढ़ियों के पौधों में स्वपरागण द्वारा परीक्षणों से की।

6. मेण्डल ने संकरण के लिये हमेशा स्वस्थ पौधों को चुना।

7. इन्होंने केवल ऐसे पौधों को संकरण के लिये चुना जो स्पष्ट दिखाई देने वाले विपर्याजी लक्षणों के लिये शुद्ध थे।

8. इन्होंने शुद्ध लक्षण वाले पौधों को वाटिका में अलग-अलग क्यारियों में बोया, जिससे उनमें अन्य लक्षणों वाले पौधों से मिलने की संभावना न रही।


(II) प्रयोगों के लिये वस्तु का चयन (Selection of Material for Experiment) 

मेण्डल ने परीक्षण के लिये अकस्मात ही मटर के पौधों का चयन नहीं किया, बल्कि काफी सोच-विचार कर निम्नलिखित कारणों के आधार पर इसका चयन (Selection) किया-

1. मटर का पौधा एक वार्षिक होता है। इसका जीवन-चक्र अल्पकालीन होता है, जिससे कुछ ही समय में इसकी अनेक पीढ़ियों का अध्ययन करना सम्भव होता है।

2. मटर के पुष्प द्विलिंगी होते हैं, अर्थात् नर व मादा जननांग एक ही पुष्प में होते हैं।

3. इसमें कृत्रिम रूप से परपरागण द्वारा आसानी से संकरण किया जा सकता है।

4. मटर के पौधे को आसानी से उगाया जा सकता है।

5. स्वनिषेचन (Self-fertilization) के कारण मटर के पौधे समयुग्मजी होते हैं, अतः उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी इसके पौधे शुद्ध लक्षण वाले तने होते हैं।

6. मटर के पौधों में अनेक विपर्यासी लक्षण होते हैं।


(1) विशेषकों का चयन (Selection of Traits)

मेण्डल ने सात जोड़ी तिपर्यासी लक्षणों का चयन किया। सौभाग्य से ये समस्त लक्षण प्रभावी (Dominant) व अप्रभावी (Recessive) थे। ये लक्षण निनलिखित प्रकार के हैं
क्र.सं.      लक्षण                                   प्रभावी              अप्रभावी    
         (Character)                          (Dominant)        (Recessive)
1. तने की लम्बाई (Stem Length)       लम्बा (Tall)         बौना (Dwarf)
2, पुष्प की स्थिति (Flower Position)  अक्षीय (Axial)     अग्रस्य (Terminal)
3. फल की आकृति (Pod Shape)      फूला (Inflated)    पिचका (Constricted)
4. फलक रंग (Pod Colour)               हरा (Green)       पीला (Yellow)
5. बीज की आकृति (Seed Shape)    गोल (Round)       झुरींदार (Wrinkled)
6. बीज का रंग (Seed Colour)          पीला (Yellow)      हरा (Green)
7. बीज कवच का रंग (Seed Coat Colour) लाल (Red)  सफेद (White)


(IV) संकरण विधि (Crossing Technique) -

क्योंकि मटर में स्वपरागण होता है, इसलिये उनमें प्रजनन कराने में विशेष सावधानी बरती जाती है। पर-परागण को इन पौधों में प्रभावी बनाने के लिये कुछ पौधों से स्त्रीकेसर हटा दिया जाता है, के पुष्प नर पुष्प की भाँति व्यवहार करते हैं। अन्य पुष्पों से पुंकेसर हटा दिये जाते हैं, ये पुष्प मादा पुण्य की भाँति व्यवहार करते हैं। पुंकेसरों को हटाने की विधि इमेस्कुलेशन कहलाती है।

उपरोक्त सात जोड़ों में प्रत्येक जोड़े के गुण एक-दूसरे के युग्मविकल्पी (Allele) थे। मटर में स्वपरागण होने के कारण इस रीति से बने बीजों के गुण पीढ़ी दर पीढ़ी ज्यों के त्यों बने रहते हैं। मटर में कृत्रिम रूप से परापरागण करना भी सरल था। इन्हीं कारणों से मेण्डल ने अपने प्रयोगों के लिये हरी मटर को चुना।

मण्डल ने उपरोक्त विशेषता वाले मटर के पौधों को अलग-अलग क्यारियों में बोया एवं देखा कि उनसे उन्हीं विशेषताओं वाले नये मटर के पौधे पैदा हुएँ उनसे जो बीज उत्पन्न हुए उनसे उसने दूसरी पीढ़ी उगाई । मेण्डल ने इन प्रयोगों में देखा कि वे सभी विशेषतायें जो जनक पौधों में विद्यमान थीं, उनकी संतानों में भी विद्यमान थीं। लम्बे बीज वाले पौधे, लम्बे पौधों को, पीले बीज वाले पौधे पीले बीज वाले पौधों को जन्म देते थे। उसने इन विशेषताओं को शुद्ध गुण माना, क्योंकि ये गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते थे। अपने शुद्ध गुणों को लेकर लगभग 10,000 अलग-अलग प्रयोग किये एवं सभी उत्पादित पौधों की वंशावली के आधार पर आनुवंशिकता के नियम (Laws of Heredity) प्रतिपादि


मेंडल के अनुवांशिक नियम से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर


प्रश्न 1. समप्रभाविता की वंशागति को समझाइये।


उत्तर- समप्रभाविता (Codominance)

जब किसी युग्म विकल्पी जोड़े के जीन एक-दूसरे के लिये प्रभावी या अप्रभावी न होकर F संकरों असे
में दोनों युग्म विकल्पी समान रूप से अभिव्यक्त करते हैं तो इस घटना को समप्रभावित कहते हैं अत:
समप्रभावी जीन वाले विषमयुगमजी में दोनों जीन अपने लक्षण साथ-साथ प्रकट करते हैं। ये पृथक्करण के नियम का पालन करते हैं और F, पीढ़ी में समजीनी व समलक्षण रूप से 1 : 2 : 1 के अनुपात होता है।



Ex. मवेशियों में आवरण के रंग की समप्रभाविता - मवेशियों में आवरण के रंग की जीन समप्रभाविता प्रदर्शित करते हैं। इनमें आवरण के लाल रंग को R से तथा श्वेत रंग को से प्रदर्शित करते हैं। लाल आवरण (RR) वाले मवेशियों को श्वेत आवरण (WW) वाले मवेशियों से सहवास कराने पर F, पीढ़ी के मवेशी गुलाबी आवरण के न होकर सितारुण रंग (Roan Colour) चितकबरे होते हैं। सितारुण पशुओं के आवरण का लाल रंग तथा श्वेत बालों में मोजेक रंग के सूक्ष्म मिश्रण से बनता है। F, पीढ़ी में लाल, सितारुण तथा श्वेत पशु 1:2:1 के अनुपात में होते हैं। यह समलक्षणी अनुपात समजीनी अनुपात 1RR : 2RW : 1WW (1 : 2 : 1) संगत होता है।

Ex. 2. ऐन्डोलूसी मुर्गों में समप्रभाविता (Codominance in Indolusian Fowls) - काले व श्वेत परों के एन्डोलूसी मुर्गों के संकरण से उत्पन्न F, पीढ़ी के मुर्गों में परों में काले तथा श्वेत रंग का मिश्रण होता है जो देखने में काले, नीले, स्लेटी व श्वेत मुर्गे उत्पन्न करते हैं। किन्तु काले रंग की श्वेत रंग पर अपूर्ण प्रभाविता केवल आभासित होती है, क्योंकि ध्यान से देखने पर इनके पिच्छों पर काले व श्वेत धब्बे अलग-अलग दिखाई देते हैं। प्रकाश के अपवर्तन के कारण पिच्छ नीले सलेटी रंग के लगते हैं।


प्रश्न 2. टेस्ट क्रास और रेसी प्रोकल क्रास में क्या अन्तर है? उदाहरण सहित बताइये।

उत्तर- जिसका हमें जीनोटाइप जानना होता है उसका अप्रभावी पितृ (Recessive Parent)



से क्रॉस को टेस्ट क्रॉस कहते हैं। इसके द्वारा अज्ञान प्रभावी फीनोटाइप के जीनोटाइप को जाना जा सकता है। यह संलग्नता के परीक्षण में भी उपयोगी है। उदाहरण - यदि जीनोटाइपिकली अज्ञान प्रभावी फीनोटाइप बैंगनी रंग का फूल (PP) को अप्रभावी सफेद रंग (pp) के फूल से क्रॉस कराया जाता है।



तो 100% बैंगनी (Pp) रंग के संतति प्राप्त होते हैं। यदि अज्ञान फीनोटाइप विषमयुग्मी बैंगनी (Pp) रंग के फूलों को अप्रभावी सफेद (pp) रंग के फूलों से क्रॉस कराया जाता है तो 50% बैंगनी (Pp) और 50% सफेद (pp) संतति उत्पन्न होते हैं।

रेसीप्रोकल क्रॉस- एक दूसरा क्रॉस है जिसमें समान लक्षण उपस्थित होते हैं लेकिन प्रथम क्रॉस की तुलना में दूसरे क्रॉस में लिंग विपरीत होते हैं। जैसे - सफेद फूल का परागण का बैंगनी रंग के फूल से होता है और दूसरे क्रॉस में बैंगनी रंग के फूल का परागण सफेद रंग के फूल से होता है।

प्रश्न 3. टेस्ट क्रॉस तथा इसके महत्व को समझाइये। निम्नलिखित टेस्ट क्रॉस में संतति में (Offspring) फीनोटाइपिन अनुपात बताइये। (i) समयुग्मी प्रभाव, (ii) विषमयुग्मी प्रभाव।


उत्तर- जिसका हमें जीनोटाइप जानना है उसका अप्रभावी पितृ (Recessive parent) से क्रॉस करने को टेस्ट क्रॉस कहते हैं।

टेस्ट क्रॉस का महत्व

1. इसके द्वारा अज्ञान प्रभाव फीनोटाइप के जीनोटाइप को जाना जा सकता है।
2. यह सहलग्नता के परीक्षण में भी उपयोगी है इसके द्वारा दो लक्षणों के पुनर्योजन प्रवृत्ति को जाना जा सकता है। 

संतति के टेस्ट क्रॉस के फीनोटाइप अनुपात

(i) समयुग्मी प्रभावी जीव प्रत्येक लक्षण के लिये 100% प्रभावी संतति उत्पन्न करते हैं।
(ii) विषमयुग्मी प्रभावी जीन प्रत्येक लक्षण के लिये 1 : 1 अनुपात में प्रभावी व अप्रभावी संतति उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 4. जैविक लक्षण की पूर्ति हेतु जीवधारियों में विभिन्न प्रकार के अलैंगिक प्रजनन की विथियाँ पाई जाती हैं, तो लैंगिक विधि का उद्विकास क्यों हुआ? स्पष्ट करिये।


जीवों का जीवन लगातार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता रहता है। प्राचीन इतिहास के अनुसार
प्रत्येक जीव की उत्पत्ति स्वयं से हुई है लेकिन जैव विकास के अध्ययन से ज्ञात हुआ है

कि प्रत्येक जीव अपने पूर्वजों से उत्पन्न हुए हैं। एक जीव जन्म लेता है, वृद्धि करता है, और मृत्यु को प्राप्त करता है लेकिन जीवन की निरन्तरता एक जीव से दूसरे संतति जीव में आनुवंशिकता के कारण स्थानान्तरित होती रहती है। इसके लिये प्रजनन की प्रक्रिया होती रहती है। प्रत्येक जीव में प्रजनन की यह प्रक्रिया अलग-अलग होती है।

अलैंगिक जनन में पैतृक का शरीर दो या अधिक भागों में विभाजित हो जाते हैं और प्रत्येक भाग वृद्धि कर एक नये जीव में विकसित हो जाता है। यह एक साधारण तरीका है। कुछ उच्च प्राणियों में पुनरुद्भवन (Regeneration) की क्षमता भी होती है। कुछ पौधों में, यदि कोई हिस्सा काट दिया जाये तो भी स्वयं विकसित होकर पूर्ण नये जीव में तब्दील हो जाता है।

पौधों और जीवों (जन्तुओं) में लैंगिक जनन की प्रक्रिया भी होती है। इस विधि में दो sex cells आपस में मिलकर एक नये जीव की उत्पत्ति करती है। दो gamete (sperm & ora) से मिलकर एक zygote बनता है जिससे एक individual विकसित होता है।

लैंगिक और अलैंगिक जनन पैतृक और संतति को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। Parent के एक छोटे से भाग से एक Offspring के शरीर का निर्माण होता है और उनमें कुछ समान लक्षण होते हैं। इस प्रकार लैंगिक जनन के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के जीवों का अध्ययन कर उन्हें एक-दूसरे से link किया जाता है। इसी अध्ययन के लिये लैंगिक जनन का उद्विकास हुआ है।

प्रश्न 5. क्या विभिन्न जीन प्रारूप समान लक्षण प्रारूप उत्पन्न कर सकते हैं? 

उत्तर-हाँ, विभिन्न जीन प्रारूप समान लक्षण प्रारूप उत्पन्न कर सकते हैं। मेण्डल के द्वारा दिये गये प्रथम नियम प्रभाविता के नियम के अनुसार भिन्न जीव प्रारूप समान लक्षण प्रारूप उत्पन्न कर सकते हैं। मेण्डल ने मटर के साथ लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया। इनमें से प्रत्येक लक्षण के दो विपर्यासी रुप थे।

उदाहरणार्थ - मेण्डल ने गोल एवं झुरींदार बीज वाले जनकों का जीन प्रारूप क्रमशः RR एवं लिया। उनके स्वनिषेचन से प्राप्त संततियों में क्रमशः केवल गोल एवं केवल झुर्रादार बीज पाये गये। अतः गोल जनक (RR) के युग्मक (Gamete)R एवं झुरींदार जनक (rr) के युग्मक । होंगे। इन युग्मकों (R एवं 1) के संगलन से Rr जाइगोट प्राप्त होगा। FI संतति का जीन प्रारूप (Genotype) Rr एवं लक्षण प्रारूप (Phenotype) गोल होगा।




प्रश्न 6. मेण्डल के पृथक्करण का नियम या युग्मनों की शुद्धता का नियम क्या है?

उत्तर-जब हाइब्रिड्स (Hybrids) या F, पीढ़ी के हेटरोजाइगस में दो लक्षण विद्यमान होते हैं जो प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों के एलीलोमार्क होते हैं। यह लक्षण लम्बे समय तक साथ-साथ रहते हैं परन्तु एक-दूसरे से मिश्रित नहीं होते हैं। जब युग्मक जनन होता है तो इन लक्षणों का पृथक्करण हो जाता है अर्थात् प्रत्येक युग्मक एक ही लक्षण को ग्रहण करता है वह या तो प्रभावी होता है अथवा अप्रभावी। यह पृथक्करण का नियम कहलाता है।

उदाहरण-के लिये जब लाल पुष्प वाले पौधे जिनके कारक (RR) होते हैं तथा सफेद पुष्प वाले पौथे जिनके कारक (r) है का आपस में पर-परागण कराने पर युग्मक R तथा : आपस में मिलकर F, पीढ़ी में लाल रंग के पुष्प उत्पन्न करते हैं। परन्तु F1 पीढ़ी के चार पौधों (लाल पुष्प) वालों में से किसी पौधे में स्व-परागण कराने पर F2




पीढी में 3 लाल व 1 सफेद पुष्प वाला पौधा प्राप्त होता है। परन्तु कारक के अनुसार दो शुध्द बनते  है।अर्थात् एक पौधे में RR कारक होते हैं जबकि दूसरे में कारक होता है। दोनों ही कारक पितृ पीढी के होते हैं। इसमें से एक पौधा लाल पुष्प का जबकि दूसरा पौधा सफेद पुष्प का निर्माण करता है तथा दो पौधे ऐसे होते हैं जिसमें कारक (RI) होता है। ऐसे कारक संकर (Hybrid) कहलाते हैं।

इनमें R कारक की उपस्थिति के कारण दोनों ही पौधों में लाल पुष्प उत्पन्न होते हैं। अतः इस प्रकार मिलाकर F2 पीढ़ी में 3 लाल पुष्प वाले पौधे तथा 1 सफदे पुष्प वाले पौधे उत्पन्न होते हैं। इस प्रयोग द्वारा यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रथम पीढ़ी में दोनों ही लक्षण मिलकर अशुद्ध संकर का उत्पादन करते हैं तथा दूसरी पीढ़ी में यह लक्षण एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं और दो शुद्ध तथा दो अशुद्ध संतानों को उत्पन्न करते हैं।


प्रश्न 7. वंशानुगत तथा आनुवंशिकी में अन्तर बताइये।


वंशानुगत एवं अनुवांशिकी

वंशानुगत-प्रजनन जीवधारियों का सामान्य लक्षण है। प्रजनन के द्वारा ही सजीव की निरन्तरता (Continuity of life) बनी रहती है। प्रजनन के द्वारा नये जीवों की उत्पत्ति होती है तथा उनकी वृद्धि सम्भव होती है। प्रजनन के द्वारा ही माता-पिता के लक्षण संतानों तक पहुँचते हैं। लक्षणों के स्थानान्तरण (Transfer) के समय यह आवश्यक नहीं होता कि माता-पिता के सभी लक्षण सन्तानों तक पहुँच जायें। सभी जीवों में कुछ लक्षण ऐसे हैं जो उन्हें अपने जनकों (Parents) से प्राप्त होते हैं तथा पीढ़ी दर पीढ़ी (One generation to another) चलते रहते हैं। इन लक्षणों को अनुवांशिक लक्षण (Herediatary characters) या अनुवांशिक विशेषक (Herediatary traits) कहते हैं। जबकि इन लक्षणों या गुणों का एक पीढ़ी (Generation) से दूसरी पीढ़ी अथवा एक जीव से दूसरे जीव में जाना अनुवांशिकता कहलाता है।

अनुवांशिकी - 

अनुवांशिकी और विभिन्नता नयी Species (Speciation) के बनने में सहायक होती है और जैव-विकास में भी सहायक है। आनुवांशिक लक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँच जाते हैं तथा आनुवांशिक विशेषक (Herediatory traits) कहलाते हैं। इस प्रकार के अध्ययन में जो नियम लागू होते हैं तथा जिन नियमों के द्वारा समानतायें और असमानताओं का अध्ययन किया जाता है, Genetics कहलाता है। Genetics शब्द एक Greek Root gen' से बना है जिसका अर्थ है, to grow or to become, यह शब्द विलियम William Batesom ने 1906 में आनुवांशिकी तथा विभिन्नताओं के सम्बन्ध में Physiology की Study में प्रयोग किया गया था।

प्रश्न 8. नीरेनबर्ग तथा एच. जी. खुराना के योगदान का वर्णन कीजिये। 

उत्तर- मार्शल नीरेनबर्ग ने जेनेटिक कोड को प्रतिपादित किया। ये mRNA में एक न्यूक्लियोटाइड बेसेस की ट्रिपलेट श्रृंखला होती है जो पॉलीपेप्टाइड को कोड करने में सहायक होती है। एच. जी. खुराना ने डी. एन. ए. न्यूक्लियोटाइड से कृत्रिम जीन बनाने का तरीका बतलाया।


प्रश्न 9. फ्रांसिक गाल्टन का क्या योगदान है?

 

फ्रांसिस गाल्टन को 'सुजननिकी का पिता' कहा गया है। सुजननिकी विज्ञान मानव जाति की गुणवत्ता को निश्चित व्यक्तियों के चयनित संगमन द्वारा अधिक उत्तम बनाने की सम्भावनाओं से सम्बन्धित है।

प्रश्न 10. कौन-सा कोशिका विभाजन गैमीट पैदा करता है?

युग्मक जनन क्रिया में पहले समसूत्री और बाद में अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा जनन कोशिकाओं में गैमीट का निर्माण होता है। अण्डजनन द्वारा अण्डाशय की जनन कोशिकाओं से अण्डाणु बनते हैं। शुक्रजनन द्वारा वृषण की जनन कोशिकाओं से शुक्राणुओं का निर्माण होता है।



प्रश्न 11. समलक्षणी जीवों की जीनी संरचना भिन्न हो सकती है। यह कथन सही है अथवा गलत और क्यों?

उत्तर- मण्डल के द्वितीय नियम या स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम के अनुसार यह कथन सही है।जीनोटाइप तथा फीनोटाइप का सम्बन्ध के कथन अनुसार - एक ही प्रकार का फीनोटाइप अनेक प्रकार के जीनोटाइप का परिणाम हो सकता है। लम्बे व रंगीन फूल वाले पौधे का जीनोटाइप TTCC (दोनों जीनों के लिये होमोजाइगस) TTCC, TICC तथा TtCc हो सकता है।
F2 पीढ़ी का जीनोटाइप सुनिश्चित करने के लिये इनका स्वयं Cross कराकर, प्राप्त संततियों की सम्भावनायें होंगी-
1. TTCC पौधा स्वयं परागण से दोनों जीन्स के लिये शुद्ध जनन करेगा।
2. TTCc पौधा लम्बाई के लिये शुद्ध परन्तु रंग के लिये शुद्ध जनन नहीं करेगा।
3. TICC पौधा रंग के लिये शुद्ध पर लम्बाई के लिये शुद्ध जनन नहीं करेगा।
4. TiCc लम्बाई तथा रंग दोनों ही के लिये शुद्ध जनन नहीं करते हैं।

प्रश्न 11. अर्द्धसूत्रीय विभाजन द्वारा कितनी कोशिकायें पैदा होती हैं? 


अर्ध-सूत्री विभाजन के द्वारा एक डिप्लायड कोशिका (2n) से चार पुत्री कोशिकायें बनती हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या हैप्लायड (n) होती है। इन चार हैप्लायड कोशिकाओं से जो युग्मक बनते हैं, उसमें प्रत्येक में गुणसूत्रों की संख्या दूसरी कोशिका की अपेक्षाकृत आधी होती है तथा जब निषेचन के समय नर तथा मादा युग्मकों (हैप्लायड संख्या = n) का आपस में संयोजन होता है तो जाइगोट में गुणसूत्रों की संख्या पुनः (दो गुनी) डिप्लॉयड हो जाती है। इस प्रकार अर्धसूत्री विभाजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें युग्मकों के मिलने से निर्मित जाइगोट में गुणसूत्रों की संख्या वही होती है जो जीवधारियों की दैहिक कोशा (Somatic cells) में होती है। अतः अर्ध-सूत्री विभाजन निषेचन के पश्चात् भी गुणसूत्रों की संख्या को बढ़ने से रोकता है।

प्रश्न 12. विभिन्नता किस प्रकार से जैव विकास से सम्बन्धित है?

उत्तर- आनुवांशिकी (Heredity) एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में माता-पिता के लक्षणों की वंशागति को आनुवांशिकता कहते हैं। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। आनुवांशिकी के अन्तर्गत, आनुवंशिक पदार्थ, शारीरिक या कायिक, शरीर क्रियात्मक आदि लक्षणों की वंशागति होती है। 

विभिन्नतायें (Variations) - माता-पिता व उनकी सन्तानों में समानता पायी जाती है किन्तु वे समरूप नहीं होते हैं वे माता-पिता से भिन्न होते हैं। अभिन्न यमज (Identical twins) के अतिरिक्त कोई भी दो भाई, दो बहनें या भाई-बहन एक जैसे नहीं होते हैं। जीवों में पाये जाने वाले अन्तर को विभिन्नता कहते हैं।

आनुवांशिकी व विभिन्नताओं के वाहक (Vehicles of Heredity and Variations) - सभी

जीवों के लक्षणों का निर्धारण व नियंत्रण जीन के द्वारा होता है जीन गुणसूत्रों पर रैखिक क्रम में या आनुवांशिकी पदार्थ का वाहक होते हैं। आनुवांशिकी पदार्थ D.N.A. होता है अतः जीन व गुणसूत्र D.N.A. के बने होते हैं।

प्रश्न 13. पीढ़ी दर पीढ़ी पैतृक गुणसूत्र संख्या (46) निश्चित रहती है। इसके लिये कौन-सी प्रक्रिया उत्तरदायी है?

कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन पीढ़ी दर पीढ़ी गुणसूत्र संख्या (46) निश्चित रहती है। यह क्रिया केवल जनन कोशिकाओं में पायी जाती है, युग्मक जनन के समय द्विगुणित (2X) गुणसूत्र की संख्या अगुणित (X) गुणसूत्र रह जाती है।

प्रश्न 14. अपूर्ण प्रभाविता की वंशागति को समझाइये।

उत्तर- अपूर्ण प्रभाविता की वंशागति - नव मेण्डलीय अनुवांशिकी के अन्तर्गत अनुवांशिकी की मेण्डलीय पद्धति के अपवाद के रूप में अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) के दृष्टान्त बहुचर्चित होते हैं। पूर्ण प्रभाविता की खोज कार्ल कोरेन्स (Carl Correns, 1903) ने की। मेण्डेलियन नियमानुसार एक जीन के ऐलीलो में प्रभावी, अप्रभावी सम्बन्ध होता है, परन्तु अनेक उदाहरणों में यह सम्बन्ध नहीं पाया जाता है।F संकर (Hybrid) जीवों में जनकों के लक्षणों का मिश्रण पाया जाता है अर्थात् उनमें जनकों के मध्यवर्ती लक्षण उत्पन्न होते हैं। यह अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है। उदाहरणार्थ- मिरेविलिस जलापा (Mirabilis Jalapa) या शुलाव बांस या 4'0' Clock Plant के एक लाल (RR) व सफेद (T) फूल वाले पौधों में संकरण करने से F, पीढ़ी के सभी फूल गुलाबी रंग (RI) के होते हैं। गुलाबी फूल वाले F, पीढ़ी वाले पौधों का आपस में संकरण करने पर F पीढ़ी में लाल
(RR), गुलाबी (Rr) तथा श्वेत (IT) फूल वाले पौधे 1 : 2 : 1 के अनुपात में उत्पन्न होते हैं।


प्रश्न 15. मानव समाज के उत्थान में जेनेटिक्स की आधुनिक तकनीकी किस प्रकार सहायक है? वर्णन कीजिये।

रिकम्बनेंट पुनर्योगज DNA तकनीक ने जैनेटिक्स या आनुवंशिकी, औषधि विज्ञान, कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में अनुसंधान के पर्याप्त अवसर दिये हैं।

वैज्ञानिकों की आशा है कि निकट भविष्य में सामान्य जीन के पुर्नस्थापन से कुछ आनुवंशिक रोगों
का निदान हो सकेगा। इसे जीन चिकित्सा कहते हैं। अंडाणु के Invitro निषेचन विधि के विकास के
कारण ही जीन सर्जरी में सफलता मिल पाई है।


1. दुर्लभ औषधियों का उत्पादन 

इन्सुलिन सोमाटोस्टेटिन, थाइमोसिन, वृद्धि हार्मोन या सोमाटोट्रोपिन तथा Blood Clolting Factor vill: C के मानव जीन्स को क्लोन करने पर इन पर जैविक रसायनों या हार्मोन्स को विशुद्ध रूप से तैयार किया गया है

2. संश्लेषी वैक्सीन उत्पादन - 

अब वाइरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआन द्वारा होने वाले हेपेटाइटिस व यकृत का कैंसर, रैबीज पाद-मुख रोग (मवेशियों में) कैंसर उत्पन्न करने वाला ल्यूकोमिया, हैजा, मलेरिया आदि के वैक्सीन संश्लेषण किया जा रहा है।


3. इन्टर फेरोन्स का संश्लेषण - 

इन्टर फेरोन वाइरस के संक्रमण से बचने के लिये शरीर की प्रथम रक्षापंक्ति है। वाइरस द्वारा शरीर में प्रवेश करने पर पोषक कोशिकाओं द्वारा ये सूक्ष्म मात्रा में मुक्त किये जाते हैं। के रक्त के ल्यूकोसाइट्स द्वारा संयोजी ऊतक के फाइबोब्लास्ट द्वारा तथा प्रतिरक्षा तंत्र के T-लिम्फोसाइटस द्वारा पैदा होते हैं। इन्टरफेरोन में प्रतिवाइरल तथा प्रति कैंसर गुण होते हैं।

DNA या जीन्स को जन्तु कोशिकाओं तथा भ्रूण की प्रारम्भिक अवस्था में निवेश करने की प्रक्रिया
को जीन स्थानान्तरण कहते हैं। ये विधियाँ तीन प्रकार की होती हैं
(1) वाइरस के माध्यम से
(2) माइक्रोइन्जेक्शन द्वारा
(3) टार्गेट या लक्ष्य जीन द्वारा

(1) जन्तु कोशिकाओं अथवा भ्रूण का टांसफैक्शन - 

इस विधि में जन्तु कोशिकाओं को ट्रांसफैक्ट करने और वाछित जीन निकलने के लिये रिट्रोवाइरस को वेक्टर के रूप में प्रयोग करते हैं। Vaccinia Virus, bovine Papiloma को जन्तु कोशिकाओं में जीन स्थानान्तरण के लिये प्रयोग में लाया जाता है यह जीन चिकित्सा तथा ओकोजीन के निदान के लिये प्रयोग करते हैं।

(2) माइक्रोइंजेक्शन द्वारा जीन स्थानान्तरण - 

इस तकनीक द्वारा DNA खण्ड या जीन को माइकोपिपेट द्वारा कोशिका, अंडे, अण्डाणु या भ्रूण में इंजेक्ट करते हैं। माइक्रोपिपेट के द्वारा केन्द्रक या DNA खंड को टोर्गेट कोशिका में अंतक्षिप्त करते हैं। केन्द्रक संयोग से केन्द्रक के DNA के साथ समाकलित होकर स्वयं को अभिव्यक्त करता है।

(3) टार्गेट जीन स्थानान्तरण - 
इस तकनीक द्वारा पोषक कोशिका के जीनोम में से अन्य प्रकार के म्यूटेंट जीन्स को हटाने के लिये वांछित जीन्स को समजातीय स्थलों पर स्थानान्तरित करते हैं। जीन टार्गेट भ्रूणीय स्टेम कोशिकाओं के द्वारा होता है। ES कोशिकाओं को वांछित DNA वाले वेक्टरों की सहायता से स्थानान्तरित करते हैं।
इंजेक्ट की गई EM कोशिकाओं तथा उनसे बने क्लोनों को पहचानकर पृथक कर लेते हैं। पृथक करने के बाद इनको क्लोन करते हैं और अंत में माइक्रो इंजेक्शन द्वारा ब्लास्टोसिस्ट में पुनः स्थापित करते हैं। ब्लास्टोसिस्ट को अब Serrogate मादा के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर देते हैं। टार्गेट जीन स्थानान्तरण के फलस्वरूप ट्रांसजीनिक कोशिकायें भ्रूण तथा वयस्क बनते हैं।

प्रश्न 16. रचनात्मक जीवन।


उत्तर- रचनात्मक जीन - यह देखा गया है कि रेगुलेटर जीन '1' में उत्परिवर्तन हो जाने के फलस्वरूप
भी कोशिका में दमनकर का अभाव हो जाता है और इन्जाइम का लगातार संश्लेषण होने लगता है ऐसे प्रभाव जिनमें आवश्यकता के बिना भी लगातार एन्जाइम का संश्लेषण होता है, अहेतुक प्रभाव
(Constitutive Strain) या अहेतुक उत्परिवर्तन (Constitutive mutants) कहलाते हैं। आपरेटर जीन में उत्परिवर्तन से भी ये अहेतुक प्राप्त किये जा सकते हैं। आपरेटर जीन में उत्परिवर्तन होने से दमनकर, आपरेटर स्थल पर संलग्न नहीं हो पाता है। अतः अहेतुक प्रभाव भी होते हैं-
() रेगुलेटर अहेतुक (Regulator constitutive)
(i) आपरेटर अहेतुक (Operator Constitutive)

प्रश्न 17. समक्षार उत्परिवर्तन (Base mutation)


उत्तर- यदि mRNA में एक विशेष बिन्दु पर एक क्षारक किसी अन्य क्षारक द्वारा बिना किसी विलोपन या योग के प्रतिस्थापित कर दिया जाये, तो उस कोडॉन का अर्थ बदल जायेगा और एक पोलिपेप्टाइड में एक विशेष स्थान पर एक विशेष अमीनो अम्ल के स्थान पर एक अन्य अमीनो अम्ल समावेशित (Incorporated) हो जायेगा। इस प्रकार के उत्परिवर्तनों का अध्ययन ट्रिप्टोफान सिन्थटेस (Tryptophan Synthetase) नामक एक प्रोटीन में विस्तार से किया गया है। क्षारक प्रतिस्थापन दो प्रकार के होते हैं - (i) संक्रमण (transition) एवं अनुप्रस्थन (Transversion)। संक्रमण (Transition) में किसी एक प्यूरीन (Purine = एडिनीन, Adenine, A एवं गुऐनीन, Guanine, G) के स्थान पर दूसरा प्यूरीन आ जाता है, अथवा एक पिरिमिडीन (Pyrimidine = थायमीन Thymine, T, एवं साइटोसीन, Cytosine, C) की जगह दूसरा पिरिमिडीन आ जाता है। एक क्षारक प्रतिस्थापन से केवल एक कोडॉन का क्षारक क्रम बदलता है, जीन के शेष अन्य कोडॉन प्रभावित नहीं होते।

प्रश्न 18. गृह व्यवस्थापक जीन।

यूकैरियोटो के विभिन्न ऊतकों में आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न प्रोटीन तथा एन्जाइम उपस्थित होते हैं। उदाहरणार्थ लाल रुधिर कोशिकाओं (RBC's) में बहुत अधिक हीमोग्लोबिन उपस्थित होता है। जबकि श्वेत रुधिर कोशिकाओं में इसका पूर्ण अभाव होता है। इस प्रकार, प्रोकैरियोटों में अलग-अलग समय पर अलग-अलग एन्जाइमों की आवश्यकता होती है। सामान्यतया, प्रोकैरियोट केवल उन्हीं एन्जाइमों का संश्लेषण करते हैं, जिनकी उनको किसी समय विशेष में आवश्यकता होती है। स्पष्ट रूप से कोई भी कोशिका उन सभी एन्जाइमों का संश्लेषण नहीं करती, जिनकी जीन उसमें उपस्थित होते हैं। किस कोशिका में किस समय, कौन-कौन से जीन अभिव्यक्त होंगे यह पूरी तरह नियंत्रित (Regulated) होता है। यह जीन शरीर के सारे कोशिकाओं में कार्य करते हैं। कोशिका के संचालन एवं संरचना में इन जीन्स का महत्वपूर्ण कार्य होता है। कोशिका विभाजन जैसी महत्वपूर्ण घटना जिनमें लारे महत्वपूर्ण जीन काम करना बन्द कर देते हैं, उस समय गृह व्यवस्थापक जीन कार्यरत रहते हैं।


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