गुफा संख्या दो
दूसरी गुफा के चित्र : यह गुफा 500 से 550 ई. के मध्य निर्मित हुई। कुछ विद्वानों का मत है कि यहाँ पर चित्र सातवीं शताब्दी में भी बने। इस गुफा के प्रमुख चित्रों में महाहंस जातक, माया देवी का स्वप्न, बुद्ध जन्म, श्रावस्ती का चमत्कार, पूर्णावादन जातक, विदुर पंडित की कथा (झूलती हुई राजकुमारी, पूर्णक तथा इरन्दती की प्रेमकथा), क्षान्तिवादी जातक, सर्वनाश, प्राणों की भिक्षा, पूजार्थिनी स्त्रियाँ, सुनहरे मृग का धर्मोपदेश है।
महाहंस जातक : गुफा में दाहिनी ओर एक अज्ञात सभा 'महाहंस जातक' का चित्र है, जिसमें हंस के रूप में बोधिसत्व बनारस के राजा व रानी को धर्मोपदेश दे रहा है। हंस रूप बोधिसत्व को बनारस की रानी खेमा ने पकड़वाकर मँगवाया था, लेकिन बाद में हंस को मुक्त कर दिया गया। चित्र में अन्तराल विभक्ति का बड़ा सुन्दर अंकन है, जो आँखों को अनूठा लगता है।
अजन्ता गुफा संख्या 17- 'उड़ती हुई अप्सरा'
गुफा की बायीं भित्ति पर 'तुर्षित स्वर्ग', 'बुद्ध जन्म' तथा 'माया देवी का स्वप्न' नामक चित्र है।
माया देवी का स्वप्न : 'माया देवी का स्वप्न' सर्वोत्कृष्ट चित्रों में गिना जाता है। बुद्ध जन्म के चित्रों के नीचे माया देवी का शयन कक्ष है, जहाँ वे सो रही हैं। एक श्वेत हाथी को अपने गर्भ में प्रवेश करते हुए माया देवी ने देखा था। इस चित्र में कलाकार ने सफेद गोल आकार या प्रताप पुंज के प्रतीक से स्वप्न की कथा का निरूपण किया है।
बुद्ध जन्म : बुद्ध जन्म वाले चित्र में महामाया तथा शुद्धोधन को स्वप्न की चर्चा करते हुए दर्शाया है। उनके चारों ओर दास-दासियाँ खड़े हैं, जिनकी अंग-भंगिमाएँ सुन्दर हैं। सामने दो ब्राह्मण हैं।
दो बाएँ अंगूठे वाली रमणी : दाहिनी ओर महामाया के समान ही एक ओर स्तम्भ के सहारे रत्नाभूषणों से सुसज्जित एक रमणी की भव्य आकृति है, जिसका बायाँ पैर एक कोमल तालिका के समान बड़ी स्वाभाविकता से मुड़ कर खम्भे पर टिका है और शरीर का ऊपरी भाग खम्भे से सटा हुआ है। गर्दन कुछ झुकी है। 'श्री रायकृष्ण दास' ने इस आकृति को राजकुल की महिला 'महाप्रजापति देवी', 'भगवान बुद्ध की विमाता' माना है। इस चित्र में चित्रकार ने भूल से दोनों पैरों की अँगुलियाँ एक जैसी बना दी हैं, जिसके कारण यह आकृति 'दो बाएँ अंगूठे वाली रमणी' (The lady with two left toes) के नाम से भी प्रसिद्ध है।
अजन्ता गुफा संख्या 2- 'दो बायें अंगूठे वाली रमणी
तुषित स्वर्ग : इस चित्र में भगवान बुद्ध को स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान भव्य रूप में अंकित किया गया है। उनका एक हाथ धर्मचक्र मुद्रा में है और मुख मंडल के चारों ओर प्रभा पुंज है. उनके दोनों तरफ मकर और सुन्दर आलेखन चित्रित हैं, भगवान बुद्ध की दृष्टि चिन्तनपूर्ण है। पास में खड़े देवताओं की आकृतियाँ इनको सम्मान की दृष्टि से देख रही हैं। चित्र में आकृतियों की मुद्राएँ एवं अंग-भंगिमाओं का सुन्दर अंकन है।
अगले दृश्य में शाल वृक्ष की डाल पकड़े माया देवी को उपवन में खड़े दर्शाया है। नवजात शिशु को इन्द्र ने ले रखा है। इन्द्र को चौकोर टोपी लगाये तीन नेत्रों से युक्त दर्शाया गया है। उपवन के बाहर भिखारियों की भीड़ है, जिसका बड़ा जीवन्त चित्रण हुआ है।
सर्वनाश : इस गुफा में एक वृद्ध भिक्षु लकड़ी के सहारे खड़ा है। उसका बायाँ हाथ ठोढ़ी से चिन्ता की मुद्रा में लगा है और दायाँ हाथ इस प्रकार घूम गया, मानो सब कुछ नष्ट हो गया है। सब कुछ मिथ्या है, के सन्देश भाव को अभिव्यक्त कर रहा है। उसके नेत्रों तथा मुख के भावों में अथाह अनुभव, अवसाद, असहायता अभिव्यक्त हो रही है। चित्र मूक होने पर भी सब कुछ अभिव्यक्त कर रहा है।
क्षान्तिवादी जातक : दया याचना का यह चित्र भी इस गुफा के उत्कृष्ट चित्रों में से एक है। क्षान्तिवादी का अर्थ क्षमा का उपदेश देने वाला। जातक कथाओं के अनुसार एक बार बोधिसत्व ने क्षान्तिवादी नामक संन्यासी (मुनि) के रूप में जन्म लिया। वह इस प्रदेश के राजा, रानियों व नर्तकियों के साथ उपवन-क्रीड़ा के लिए उस वन में गया, जहाँ क्षान्तिवादी का निवास था। राजा के निद्राभूत होने पर काशीराज के अन्तःपुर की सभी स्त्रियाँ उनका उपदेश सुनने चली गईं। निद्रा खुलने पर स्वयं को अकेला पाकर राजा ने क्षान्तिवादी (संन्यासी) और नर्तकी के वध की आज्ञा दे दी। चित्रित दृश्य में एक दीर्घकाय राजा हाथ में खड़ग (तलवार) लिए सिंहासन पर बैठा है। कोमलांगी स्त्री (नर्तकी) उनके पैरों में पड़ी क्षमा की भीख माँग रही है। नर्तकी की देहयष्टि में मृत्यु की पदचाप स्पष्ट सुनाई देती है। उसके सम्पूर्ण शरीर की आकृति व रेखा प्रवाह ऐसा बना है, मानो वह स्वयं अपने को भूमि में आत्मसात कर देना चाहती है। पैरों में झुकी हुई स्त्री की पीठ की गोलाई में छाया लेकर शरीर की गठनशीलता तथा कोमलता को बड़ी सुन्दरता से चित्रित किया है।
आसपास की स्त्रियों में, कुछ स्त्रियाँ भय से काँप रही हैं, तो कुछ मुँह छिपाये चिन्तामग्न हैं, तो कुछ भागना चाह रही हैं। आसपास बैठे राजदरबारी भी राजा के क्रोध से भयभीत हैं।
विदुर पंडित जातक की कथा : यहाँ विदुर पंडित की सवारी के दृश्य में घोड़ों तथा नंगी तलवारें लिए पैदल सैनिकों का बड़ा गतिपूर्ण चित्रण हुआ है।
पूर्णक इरन्दवती की प्रेमकथा : गुफा की दाहिनी ओर 'पूर्णक इरन्दवती की प्रेम कथा' (झूला झूलती राजकुमारी) का चित्रण है। उद्यान में झूले पर झूलती राजकुमारी इरन्दवती का चित्र है। राजकुमारी का मदमाता यौवन (जिसमें वेग, कौमार्य तथा सौन्दर्य है) एवं आँखों का स्वप्निल भाव बखूबी चित्रित किया गया है। रस्सी को उसने बड़ी स्वाभाविकता से पकड़ा है। रस्सी में कुछ गोलाई देकर गति का आभास दिया गया है।
उन्नीसवीं गुफा के चित्र : यह चैत्य गृह है। इसमें पत्थर को काटकर अंलकरण किया गया है। चित्रों में गौतम बुद्ध का चित्र और सामने की ओर छत पर बने आलेखन सुन्दर हैं।
गुफा संख्या ग्यारह
ग्यारहवीं गुफा के चित्र : यहाँ हस्ति जातक कथा, नन्द की कथा और उसके विरह में व्याकुल रानी का सुन्दर चित्र है। एक अन्य चित्र में बाँध के किनारे कुछ बालक एवं स्त्रियाँ सरोवर में स्नान कर रही हैं। इस चित्र में एक राक्षस का भी चित्रण है।
गुफा संख्या छः
छठी गुफा के चित्र : यहाँ उन्नीसवीं गुफा के समान ही कुछ चित्र मिलते हैं। किसी कुशल चितेरे ने 'केश संस्कार से युक्त सुन्दरी', 'भिक्षु' तथा 'द्वारपालों' के चित्र बनाये हैं।
क्योंकि पहली और दूसरी गुफा के चित्र सबसे बाद में बनाये गये हैं, इसीलिए यहाँ कला का सर्वोच्च सौन्दर्य छन कर अवतरित हुआ है। ये गुफाएँ सबसे पीछे की ओर बनी हैं।
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