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जीन की संरचना का वर्णन || jeen kee sanrachana ka varnan

 इस पोस्ट में हम- जीन की संरचना का वर्णन कीजिये ,यूकैरियोट्स में जीन अभिव्यक्ति नियमन का वर्णन कीजिये।, ,जीन एवं जीन अभिव्यक्ति का वर्णन कीजिये एवं जीन में अन्योन्य क्रिया से आप क्या समझते हैं?, अन्तराविकल्पी तथा अविकल्पी जीन अन्योन्य क्रिया का वर्णन कीजिये।,,जीन की अन्योन्य क्रियाओं को समझाइये।,अन्तराविकल्पी जीन अन्योन्य क्रिया क्या है?,अविकल्पी जीन अन्योन्य क्रिया का वर्णन कीजिये।,जीन अन्योन्य क्रियाओं के प्रकारों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिये।,विभिन्न प्रकार की अन्योन्य क्रियाओं का वर्णन उदाहरण देकर कीजिये।,सम्पूरक जीन क्रिया को परिभाषित कीजिये।,प्रभावी तथा एपीस्टेटिक जीन के अन्तर को स्पष्ट कीजिये।,पूरक जीन अन्तक्रिया से आप क्या समझते हैं? किस प्रकार इस जीन क्रिया में F2 अनुपात,परिवर्तित होता है?,पूरक जीन अन्तक्रिया से आप क्या समझते हैं?, लीथल जीन।, बहुजीनी वंशागति। इन सभी प्रश्नों मे पर चर्चा करेंगे-




जीन्स की संरचना (Structure of Genes)

जीन्स डी. एन. ए. से बने होते हैं (Genes are made by DNA) - मेण्डल द्वारा जीन का आविष्कार किये जाने के वर्षों बाद सन् 1910 में, टी. एच. मॉर्गन, ई. वी. विल्सन तथा अन्य लोगों के अध्ययनों के आधार पर यह प्रमाणित हुआ कि अनुवांशिकता की विधि क्रोमोसोम्स के व्यवहार के आधार पर समझी जा सकती है, अतः जीन्स क्रोमोसोम्स में स्थित होती है।

सन् 1924 में फोल्गेन ने अपनी ऊतक रासायनिक (Histochemical) विधि विकसित की एवं उसके आधार पर प्रदर्शित किया कि क्रोमोसोम DNA के बने होते हैं। फिर एक लम्बे समय तक यह विचार बना रहा कि क्रोमोसोम की प्रोटीन्स ही अनुवांशिक पदार्थ था। इस विचार का आधार यह था

कि सम्भवतः DNA का संगठन अनुवांशिक कूट बनाने के लिये, अपनी सरल रासायनिक संरचना के कारण उपयुक्त न हो। फोल्गेन की विधि द्वारा तैयार कोशिकीय पदार्थों की साइटोफोटोमेट्री के आधार पर पालिस्टर, मस्र्की एवं अन्य लोगों ने भी यह प्रदर्शित किया कि सुकेन्द्रीय (Eukaryotic) केन्द्रकों में DNA की मात्रा स्थिर होती है और इन्हीं ने सन् 1948 में DNA की आनुवांशिक भूमिका की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। सूक्ष्म जीवों में DNA के आनुवांशिक पदार्थ होने के सम्बन्ध में विभिन्न विधियों से परीक्षण उस समय आरम्भ हो चुके थे।

ग्रिफिथ ने सन् 1928 में यह बताया कि यदि न्यूमोकॉकस नामक बैक्टीरिया के रोग उत्पन्न न करने वाले प्रकार जीवाणु एवं इसी बैक्टीरिया के रोगज प्रकार, जो गर्म करके मार दिये गये हों, एक साथ चूहे के रक्त में प्रविष्ट कर दिये जायें तो चूहे की मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार एक हानिरहित बैक्टीरिया का प्रभाव रोगज, या हानिकारक हो जाता है। इससे भी आगे के चरण में सन् 1944 में एवरी ने न्यूमोकॉकस के रोगज प्रकार के बैक्टीरिया का DNA पृथक् कर लिया और तब इसे हानि रहित बैक्टीरिया के साथ में चूहे के रक्त में इन्जेक्शन द्वारा प्रवेश करा दिया। इससे भी चूहे मर गये और यह सिद्ध हुआ कि DNA के अतिरिक्त अन्य कोई कोशिकीय संगठन आनुवांशिक पदार्थ नहीं है।

जीन्स में प्रोटीन्स के लिये कूट संदेश होते है और एक जीन में एक पालीपेप्टाइड श्रृंखला के लिये सभी आवश्यक कूटों का समुचित क्रम उपस्थित होता है। यद्यपि कुछ जीन्स में RNA अणुओं के लिये कूट होते हैं। DNA लगभग सार्वभौम रूप से आनुवांशिक कूटों का वाहक है परन्तु कुछ वाइरसों में यह कार्य केवल RNA करता है परन्तु दोनों ही DNA एवं RNA आनुवांशिक कूट के लिये चार समक्षार अक्षरों (Base letters) का उपयोग करते हैं।


जीन अभिव्यक्ति (Gene Expression)

कोशिका विभेदन (Cell Differentiation) को समझने के लिये आवश्यक है कि पहले सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को समझा जाये। यह कोशिकायें पूर्व केन्द्रीय कोशिकाओं से कहीं अधिक जटिल एवं वृहत् होती हैं, तथापि दोनों में आधार-भूत अन्तर यह है कि सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में एक केन्द्रक कला (Nuclear membrane) होती है जो क्रोमोसोम्स को कोशिका द्रव से पृथक् रखती है और इस प्रकार इन कोशिकाओं में जीन अनुलेखन (Transcription) एवं उससे होने वाला प्रोटीन संश्लेषण दोनों कार्य क्रमशः केन्द्रक के अन्दर एवं बाहर अलग-अलग स्थानों पर होते हैं। इसके विपरीत पूर्वकेन्द्रकीय कोशिका में क्रोमोसोम कोशिका द्रव (Cytosol) में ही पड़े रहते हैं। इस कारण प्रोटीन संश्लेषण का आरम्भ mRNA पर, अनुलेखन पूरा होने के पूर्व ही आरम्भ हो जाता है। इस प्रकार सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में होने वाला ट्रान्सक्रिप्शन या अनुलेखन तथा ट्रान्सलेशन, पूर्व केन्द्रकीय कोशिकाओं से आधारभूत स्तर पर (Fundamentally) भिन्न होता है।

प्रत्येक जीन के सम्बन्ध में यह तथ्य जुड़ा होता है - 'एक जीन - एक एन्जाइम' अर्थात् प्रत्येक जीन एवं एन्जाइम या प्रोटीन श्रृंखला का संश्लेषण करती है। उस एन्जाइम या प्रोटीन द्वारा जो लक्षण नियन्त्रित होता है, उससे सम्बन्धित जीन वास्तव में उस लक्षण की नियन्त्रक होती है। अतः जीन अभिव्यक्ति का अर्थ हुआ कि उस जीन द्वारा नियन्त्रित लक्षण का प्रकट होना। परन्तु सभी जीन्स के लक्षण हर समय अभिव्यक्त नहीं होते रहते और इसका कारध यह है कि जीन्स की अभिव्यक्ति के नियन्त्रण की व्यवस्था कोशिका में ही अन्तर्निहित होती है।

किसी लक्षण के निर्धारण के लिये एक से अधिक जीन्स हो सकते हैं या एक जीन बहुत से लक्षणों को प्रभावित कर सकता है। इस परिकल्पना को बेटसन की कारक परिकल्पना भी कहते हैं। इसके अनुसार सभी प्रणियों में अनुवांशिक लक्षण सभी अनुवांशिक कारकों के बीच अन्योन्य क्रिया के फलस्वरूप उत्पत्र होते हैं।

ये निम्न प्रकार की होती है

(1) अन्तराविकल्पी या अन्तराजीनी जीन अन्योन्य क्रिया (Interallelic or Intergenic Gene Interaction) - 

यह एक जोड़ी के जीन्स में अन्योन्य क्रिया है

(i) दोनों युग्म विकल्पी समान रूप में स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं। (सह-प्रभाविता)

(ii) दोनों युग्म विकल्पी आंशिक रूप से प्रभावी होते हैं। (आंशिक प्रभाविता)

(iii) दोनों युग्म विकल्पियों में से एक पूर्णतया प्रभावी तथा दूसरा पूर्णतया निष्प्रभावी होता है। (पूर्ण प्रभाविता)

(2) अविकल्पी या अन्तरजीनी जीन अन्योन्य क्रिया (Non-allelic or Intragenic Gene Interaction) -

इस प्रकार की अन्योन्य क्रिया में एक ही या भिन्न गुणसूत्रों पर स्थित दो या दो से अधिक जोड़ी युग्म विकल्पी जीन्स के बीच एक ही लक्षण की अभिव्यक्ति के लिये अन्योन्य क्रिया होती है इसे अविकल्पीय अन्योन्य क्रिया कहते हैं।



जीन अन्योन्य क्रियाओं के प्रकार
(Types of Gene Interaction)

कभी-कभी अलग-अलग बिन्दु पथों पर स्थित दो जोड़ी स्वतन्त्र जीन जीव के एक ही लक्षण को

इस प्रकार प्रभावित करते हैं। इस घटना को प्रबलता कहते हैं प्रबलता दो प्रकार की हो सकती है-

(1) प्रभावी प्रबलता,

 (ii) अप्रभावी प्रबलता।

(i) प्रभावी प्रबलता (Dominant Epistasis) -

इसका अनुपात 12: 3:1 और 13:3 होता है। इस क्रिया में प्रभावी युग्म दूसरे, युग्म के प्रभाव को छिपा लेता है या उसे बदल देता है।

उदाहरण - कुत्तों में प्रभावी प्रबलता (12 : 3 : 1) - कुत्तों में त्वचा का रंग दो जोड़ी युग्म विकल्पियों पर निर्भर करता है इनमें से एक जोड़ी Bb है। B जीन काला तथा b जीन भूरा कारक है दूसरी जोड़ी li है। जीन की उपस्थिति से रंजक के लिये Bb जीन होने पर भी रंजक का निर्माण नहीं होता है।

अतः समयुग्मजी श्वेत कुत्तों में संकरण करने पर श्वेत, काले व भूरे आवरण वाले कुत्ते 12 : 3:1 अनुपात में पैदा होते हैं।

(ii) अप्रभावी प्रबलता (Recessive Epistasis) - 

अप्रभावी प्रबलता में प्रबलता जीन युग्म अप्रभावी होता है। अप्रभावी प्रबलता के जीन दो प्रकार की अन्योन्य क्रिया करते हैं-

1. पूरक जीन्स की अन्योन्य क्रिया 9 :7 अनुपात

2. सम्पूरक जीन्स की अन्योन्य क्रिया 9 : 3 : 4 अनुपात

द्विक जीन अन्योन्य क्रिया (Duplicate Gene Interaction 15 : 1) 

जब किसी जीव के जीनोटाइप में एक स्थान पर दो जोड़ी समान युग्मविकल्पी या ऐलील होते हैं जिनमें प्रत्येक एक ही लक्षण को समान रूप से निर्धारित करता है इस प्रकार के जीन को द्विक कारक कहते हैं। शेफर्ड पर्स नामक खरपतवार पौधों में दो प्रकार की कलियाँ पाई जाती हैं - (i) तिकोनी,

(i) लम्बी बेलनाकार इनमें संकरण कराने पर F2 पीढ़ी में तिकोनी तथा लम्बी बेलनाकार फलियों में 15:1 का अनुपात होता है।




सहयोग में दो भिन्न जीन, स्वतन्त्र रूप से पाये जाते हैं जो अन्योन्य क्रिया से एक ही लक्षण को इस प्रकार प्रभावित करते हैं कि पूर्णतः भिन्न लक्षण प्रारूप में विकसित हो जाता है।

उदाहरण

इस क्रिया का उदाहरण कुक्कुटों में कंकट की आकृति की वंशागति में मिलता है। इनमें दो जीन युगल कुक्कुट विकास को प्रभावित करते हैं। जीन'R से गुलाब कंकट तथा P से मटर कंकट बनता है। इन दोनों नस्लों में संकरण कराने पर F, पीढ़ी में अक्षर कंकट विकसित हो जाता है। यह प्रथम दोनों सर्वथा भित्र हैं। F, कुक्कुटों में परस्पर संकरण कराने पर F2 पीढ़ी में चार प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं तथा 9 : 3 : 3 : 1 के अनुपात में विकसित होते हैं। मात्रात्मक जीन अन्योन्य क्रिया में प्रभावी जीन की संख्या बढ़ने के साथ लक्षण में और अधिक संकरण होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जितनी जीन्स की संख्या ज्यादा होगी उतना ही जीन्स का प्रभाव दृष्टिगत होता है।

जीन की बहुप्रभाविता का प्रभाव (Pleiotropic Effect of Genes)

कुछ जीन ऐसे होते हैं जो अकेले ही एक से अधिक लक्षणों को प्रभावित करते हैं, जैसे - घातक जीन । कुछ जीन्स ऐसे होते हैं जिनकी उपस्थिति से या तो जनन कोशिकायें नष्ट हो जाती हैं अथवा फिर भ्रूण विकसित होने से पहले ही नष्ट हो जाता है ऐसे जीन्स को घातक जीन्स कहते हैं, ज्यादातर ये जीन्स अप्रभावी होते हैं। विषम युग्मजी अवस्था में घातक जीन्स, घातक प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकते परन्तु इनकी उपस्थिति से संरचनात्मक परिवर्तन हो सकते हैं।

उदाहरण - पीले रंग की चुहिया के संकरण के फलस्वरूप पीले व सफेद रंग की चुहिया 2:1 के अनुपात में बनती हैं। इस प्रकार के संकरण में 1/4th चुहिया मर जाती है तथा ये अजन्मी चुहिया पातक जीन्स Y के लिये समयुग्मी होती है। YY अगर समयुग्मी अवस्था में हो तो घातक जीन के प्रभाव पीले रंग की समयुग्मी चुहिया मर जाती है तथा विषम युग्मी (Yy) अवस्था में होने पर पीला रंग तो विकसित होता है, किन्तु इसका प्रभाव घातक नहीं होता है।

सम्पूरक जीन - 

यह सामान्य जीवन के प्रभाव को पूर्णतया बदल देता है। इसका मतलब कि कोई एक जीन एक विशेष लक्षण का निर्धारण करता है किन्तु सम्पूरंक जीन इस जीन के प्रभाव को बदल देता है। यह सम्पूरक जीन दूसरे बिन्दु पथ पर स्थित होता है।

Castle

ने चुहियों की त्वचा के रंग को लेकर कई प्रयोग किये। कासल ने अगूटी चुहियों का रंजकहीन चुहियों से संकरण किया। F, की सभी चुहियाँ अगूटी बनीं किन्तु इनमें स्वनिषेचन के फलस्वरूप F2 पीढ़ी में अगूटी, काली व सफेद चुहियों ने 9 : 3 : 4 का अनुपात था। कासल ने यह माना कि सफेद चुहियों के काले रंग के लिये जीन्स होते हैं किन्तु रंजक के बनने के लिये जीन नहीं होते। इन दोनों जीन्स की उपस्थिति में ही काला रंग विकसित होता है। सम्पूरक जीन्स की उपस्थिति में काला माना जाये कि रंग विकसित होता है। सम्पूरक जीन्स की उपस्थिति में काला रंग भी अगूटी में बदल जाता है। यह

B- काले रंग के लिये जीन है

b- इसका अप्रभावी युग्मविकल्पी है

C- वर्णक विकास (Colour developer) जीन है

c - इसका अप्रभावी युग्म विकल्पी है

G-वर्णक रूपान्तरक जीन है

g- इसका अप्रभावी युग्म विकल्पी है

अगूटी (Agouti)

BBCCGG




उपर्युक्त प्रयोग से यह परिणाम निकलता है कि

1. चुहिया चाहे किसी रंग की हो काले रंग के लिये जीन B अवश्य होता है।

2. चुहिया वर्णकहीन इसलिये होती है कि उसमें वर्णक विकासक जीन अनुपस्थित होता है।

3. काले रंग के जीन के साथ वर्णन विकासक जीन हो तो चुहियों का रंग काला विकसित होता

4. दोनों जीन्स के साथ वर्णक रूपान्तरक जीन भी हों तो अगूटी रंग का विकास होता है। Gene B सभी रंग की चुहियों में होने के कारण यह प्रयोग द्विसंकरण का ही उदाहरण प्रस्तुत करता है जिसमें द्विसंकरण का 9 : 3 : 3 : 1 का सामान्य अनुपात थोड़ा-सा बदल गया है। इसमें बनने वाले 4 वर्णकहीन प्राणियों में केवल एक ही वर्णकहीन BBccgg है। शेष तीन वास्तव में B अगूटी (Agouti Albino) BBccGg होते हैं। 

अतः 6 जीन C जीन का सम्पूरक होता है।

प्रभाविता में अधिकतर आनुवांशिक जीन मुख्य कार्य करता है और यह इन्ट्राजीनिक एवं इन्टरेलीलिक के रूप में छुपा रहता है अथवा एक एलील दूसरे एलील पर अपना प्रभाव डालता है। इपीस्टैटिक जीन इन्टरजीनिक सेपरेशन द्वारा एक जीन लोकस पर अपना प्रभाव डालता है। इपीस्टैटिक जीन इन्टरजीनिक सेपरेशन द्वारा एक जीन लोकस पर अपना प्रभाव इस प्रकार डालता है कि फिनोटिपाक्रेशियो परिवर्तित हो जाता है और epistetic9 : 3 : 3 : 1 groupings के combinations प्राप्त होते हैं। निष्कर्ष के रूप में एक समूह के Dyhybrid parents भी epistetic द्वारा प्रभावित होते हैं परन्तु इससे Phenotypic ratio परिवर्तित नहीं होता। प्रभावी तथा epistetic gene गुणसूत्र के किसी भी लोकस पर स्थित हो यह Dyhybrid cross में मेण्डीलियन रेशों के अनुसार फीनोटाइप्स बनाता है।

 युग्म विकल्पी जीन्स में प्रभावी अप्रभावी सम्बन्ध होता है किन्तु कुछ उदाहरण ऐसे जीन्स के भी मिलते हैं जो अलग-अलग बिन्दुपथ (Loci) पर स्थित होते हुए भी किसी भी एक ही लक्षण को इस प्रकार प्रभावित करते हैं कि दोनों जीन में से एक जीन ही अपने प्रभाव को प्रदर्शित कर पाता है दूसरे जीन के प्रभाव का पता नहीं चलता। इस प्रभावी जीन को सदमन कारक या प्रवल जीन तथा दूसरे अप्रभावी जीन को अबल जीन (Hypostatic) कहते हैं।

उदाहरण- Poultry में सफेद रंग दो नस्लें होती हैं -


(1) White Leghorn, (2) White Plymouth rock.

White leghorn poultry के पंखों का सफेद रंग leghorn की रंगीन नस्ल पर प्रभावी होता है किन्तु Plymouth rock की रंगीन नस्ल सफेद Plymouth rock पर प्रभावी होता है। जब इन दोनों सफेद नस्लों का संकरण किया जाता है तो F में तो पोल्ट्री सफेद रंग के बनते हैं किन्तु F2 के सफेद व रंगीन पोल्ट्री में 13 : 3 का अनुपात मिलता है। White Leghorn में सफेद रंग की प्रभाविता सदमन कारक की उपस्थिति के कारण है। इसकी उपस्थिति के कारण उनमें रंजक विकसित नहीं हो पाता।

I सदमन

i- इसका अप्रभावी युगमं विकल्पी

C-रंजन कारक

c- इसका अप्रभावी युग्म विकल्पी

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि सफेद रंग विकसित होता है।

(i) जबकि रंजक कारक एवं सदमन कारक उपस्थित हों

(ii) रंजक कारक एवं सदमन कारक दोनों अनुपस्थित हों

(ii) रंजक कारक अनुपस्थित हों ccll या ccli |

मेण्डल के नियमों से सिद्ध होता है कि प्रत्येक लक्षण एक जोड़ा जीन से निर्धारित किया जाता है। यह असत्य भी है। साधारणतया बहुत से जीन एक लक्षण को प्रभावित करते हैं जैसे - 20 भिन्न जीन एक आख के रंग (pigment) के सम्बन्धित होते हैं (Fruitfly) यह भी संभव है कि जीन के कई जोड़े कई विभिन्न गुणसूत्रों के जोड़ों पर स्थित होते हैं जो एक दूसरे पर क्रिया करते हैं और एक लक्षण को प्रभावित करते हैं। एक जोड़ा दूसरे जोड़े के विपरीत प्रभाव को रोकता है। अन्तक्रिया - दो जीन्स के मध्य अन्तक्रिया का अर्थ है एक Phenotype को विकसित करने के लिये दोनों जीन उत्तरदायी हैं। बैट्सन और पुन्नेट ने अपने प्रयोगों में देखा कि जब मटर के सफेद फूलों के मध्य संकर कराया तो F, पीढ़ी में रंगीन फूल प्राप्त हुआ और जब इन F, पीढ़ी से F2 पीढ़ी के फूल मिले वे 9:7 के अनुपात में रंगीन और सफेद प्राप्त हुआ। यह 9 : 3 : 3 : 1 को modification है जहाँ सिर्फ एक लक्षण फूल का रंग और दो वर्ग (रंगीन और सफेद) उपस्थित हैं।





Table : Inheritance of Flower colour is odoratus due to complement genes (C and P) the F2 phenotypic ratio of 9 : 7 is obtained)

ऊपर दिये उदाहरण से सिद्ध होता है कि फूलों के रंग के लिये दोनों प्रभावित Alleles 'C' और 'P' आवश्यक हैं। दोनों में से एक भी अनुपस्थित होने पर सिर्फ सफेद रंग के फूल ही प्राप्त होंगे।


यूकैरियोट्स में जीन अभिव्यक्ति का नियमन
(Regulation of Gene Expression in Eukaryotes)

जीन नियमन की क्रियाविधि में भली-भाँति ज्ञात नहीं है। यूकैरियोट्स में जीन अभिव्यक्ति की परिघटना (Phenomenon) का अध्ययन निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है।

स्थिति प्रभाव (Position Effects) -

किसी जीन के कार्य में परिवर्तन गुणसूत्र अथवा होमोलोगस गुणसूत्र में जीन की स्थिति (Position) में परिवर्तन के कारण होता है, जिसे स्थिति प्रभाव (Position Effect) कहते हैं। स्थिति प्रभाव के कारण जीन की प्राथमिक संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता है। स्थिति प्रभाव Neurospora, Oenothera, Drosophilla, Yeast, Maize, Rats, Man में देखे जाते हैं। विभिन्न प्रकार के स्थिति प्रभावों को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

(1) शवलता स्थिति प्रभाव (Variegated Position Effect) 

शवलता स्थिति प्रभाव फलस्वरूप विषमवर्णीय भवन (Heterochromatization) पाया जाता है जो Concerned gene transcription को रोकता है। Transcription में Heterochromatin केवल कम सक्रिय नहीं होता है, अपितु Euchromatin की अपेक्षा अधिक पुनरावृत्ति DNA (Repeatative DNA) अभिक्रम (Sequence) प्रदर्शित करते हैं। विशिष्ट स्थिति में हेटरोक्रोमेटिन दिखाई देते हैं, जो प्राय विभिन्न गुणसूत्रों के सेन्ट्रोमीयर्स एवं टिलोमीयर्स के समीप होते हैं। अतः इन्हें कन्सट्रक्टिव हिटरोकोमेटिन (Constructive Heterochromatin) कहते हैं। जब Euchromation खण्डको Heterochromation के समीप रखा जाता है, Hteterochromation में परिवर्तन हो जाता है, जिसे विकल्पी (Faculative) Heterochromation कहते हैं।

शवलता स्थिति प्रभाव विषमवर्णी भवन (Heterochromatization) के कारण उत्पन्न ड्रोसोफिला की उत्परिवर्तन (Mutant) आँखों से देखा जा सकता है।

(II) सिस-ट्रान्स स्थिति प्रभाव (Cis-Transposition Effect) - यह प्रभाव अधिकतर देखने को मिलता है। उदाहरण के लिये Drosophila x-सहलग्न स्थानिक (Loci) apr (apricot) तथा w (White) का प्रभाव इस कीट की आँखों के रंग पर पड़ता है। बहुत समीप सहलग्न होते हैं जो Heterozygous में Dull red eyes उत्पन्न करता है तथा इनका आनुवांशिक निर्माण apr+ w+/ aprw होता है, अर्थात् दो genes वन्य (Wild) प्रकार के युग्मविकल्पी (Homologous) गुणसूत्रों

में उपस्थित होते हैं। जब Heterozygous मादा apr+ w/apr w' होते हैं, अर्थात् दो genes वन्य प्रकार के युग्मविकल्पी होमोलोगस गुणसूत्रों पर उपस्थित होने पर (Transposition) आँखों का रंग (Pale apricot) होता है। अतः apr का फीनोटाइप प्रभाव तथा w gene Hetero zygous अवस्था में होते हैं अपनी Cis तथा Trans स्थिति पर निर्भर करते हैं।

(III) पुनरावृत्ति स्थिति प्रभाव (Duplication Position Effects) -

 इस प्रभाव के द्वारा असमान (Unequal) जीन विनिमय को समझाया जा सकता है, यह ड्रोसोफिला के Bar (B) आँख जीन में देखा जा सकता है। स्थिति प्रभाव की आण्विक क्रियाविधि इसके द्वारा स्पष्ट नहीं होती है।



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