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लिंग निर्धारण तथा लिंग गुणसूत्र प्रक्रिया क्या है? || ling nirdhaaran tatha ling gunasootr prakriya kya hai?

 इस पोस्ट में हम-लिंग निर्धारण तथा लिंग गुणसूत्र प्रक्रिया क्या है?,लिंग गुणसूत्र प्रक्रिया क्या है?, लिंग निर्धारण से आप क्या समझते हैंजन्तुओं में लिंग निर्धारण की क्रिया विधि समझाइये।,जन्तुओं में लिंग निर्धारण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिये।,लिंग निर्धारण क्या है? स्तनियों में लिंग निर्धारण का वर्णन कीजिये।, सेक्स गुणसूत्र सेक्स निर्धारण में किस प्रकार भूमिका निभाते हैं? ,हिमेनेप्टेरा कीटों में (मधुमक्खी) लिंग निर्धारण की विधि समझाइये। ,पक्षियों में लिंग निर्धारण प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।,मधुमक्खी में लिंग निर्धारण।। आदि प्रश्नों के उत्तर पर चर्चा करेंगे-


लिंग निर्धारण
 (Sex Determination)


लैंगिर्क जनन के आधार पर जीवों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है

1. एक लिंगीय (Unisexual)

2. द्विलिंगी (Hermaphrodite)

एक लिंगीय जन्तुओं में नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग पाये जाते हैं जबकि द्विलिंगी जन्तुओं में नर तथा मादा युग्मक (लिंगी कोशिकायें) एक ही जीव से उत्पन्न होती है जबकि अधिकांश जीवों में नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग पाये जाते हैं लिंग (Sex) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Sexus में हुई है जिसका अर्थ है Seperation or Section अर्थात् अधिकांश जीवों को इसी आधार पर दो समूहों में विभक्त किया गया है एक समूह के जन्तुओं में नर जनद (वृषण) होता है जबकि दूसरे समूह के जन्तुओं में मादा जनद अंग अण्डाशय (Ovaries) होती है। इस प्रकार के लिंगीय पृथक्करण (Sexual seperation) को गोनोकोरिज्म (Gonochorism) कहते हैं।

वह जीव जिसमें नर तथा मादा युग्मक विभिन्न जन्तुओं के द्वारा उत्पन्न होते हैं एक लिंगीय (Unisexual or Dioecious) कहलाते हैं। इस प्रकार जनन अंगों तथा लिंगीय कोशिकाओं के द्वारा प्राथमिक लिंगीय लक्षणों (Primary Sexual Characters) का विकास होता है जिससे नर तथा मादा जीव बनते हैं। प्राथमिक लिंगीय लक्षणों के अतिरिक्त जीवधारियों में कुछ अन्य सोमैटिक लक्षण भी पाये जाते हैं जिनके द्वारा नर तथा मादा को विभेदित किया जा सकता है। सोमैटिक लक्षणों को द्वितीयक लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters) भी कहते हैं। इस प्रकार नर तथा माया के मध्य प्राथमिक तथा द्वितीयक लिंगीय लक्षणों के आधार पर लैंगिक विभेदन (Sexual Dimorphism) होता है जिसके द्वारा हम जन्तुओं को अलग-अलग पहचानते हैं। 

इस प्रकार लिंगीय विभेदन (Sexual Dimorphism) वह आण्विक वाह्य आकारिकी, कार्यिकी तथा व्यावहारिक विभेदन है जिसकी सहायता से नर तथा मादा जन्तुओं को अलग-अलग पहचाना जा सकता है।

प्राचीनकाल से ही वैज्ञानिक इस तथ्य को जानने का प्रयास करते आ रहे हैं कि ऐसे कौन से कारक हैं जिनके कारण नर तथा मादा जीव अलग-अलग होते हैं तथा उन्हें अलग-अलग पहचाना जा सकता है। इस सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक परिकल्पनायें प्रस्तुत की गयीं, परन्तु 1900 के पश्चात् लिंग निर्धारण की समस्या को अनेक आनुवंशिक वैज्ञानिकों ने गम्भीरता से लिया तथा अनेक प्रयोगों के आधार पर लिंग निर्धारण से सम्बन्धित अनेक प्रक्रियाओं को समझा जिनमें से कुछ सामान्य लिंगीय प्रक्रियायें निम्न हैं जिनके द्वारा जीवों में लिंग निर्धारण होता है।


लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का आनुवांशिक नियंत्रण (Genetically controlled sex determining mechanism) - 

लिंग निर्धारण की अधिकांश प्रक्रियायें आनुवांशिक रूप से नियंत्रित होती हैं तथा उन्हें निम्न श्रेणियों में विभक्त किया गया है

1. लिंग गुणसूत्रीय प्रक्रिया (Sex chromosome mechanism)

2. अनुवांशिक संतुलन प्रक्रिया (Genetic balance mechanism)

3. अगुणित-द्विगुणित प्रक्रिया (Haplodi-ploidy mechanism)

4. एकल जीन प्रभाव (Single gene effect)

1. लिंग गुणसूत्र प्रक्रिया (Sex-chromosomes Mechanism) - 

लैंगिक द्विरूपी (Sexual Dimorphic or Dioecious) जीवों में लैंगिक प्रकार गुणसूत्र के द्वारा निर्धारित होता है तथा इन्हीं गुणसूत्रीय विभेदन के आधार पर विभिन्न प्रकार के एक लिंगी जन्तु पाये जाते हैं। हेन्किंग (Henking) में 1891 में देखा कि दो अलग-अलग प्रकार के शुक्राणु एक ही गुणसूत्र में पाये जाते हैं। इस विशेष प्रकार के गुणसूत्र को उन्होंने कीट की एक जाति Pyrochoris apterus में देखा उन्होंने इसे x- कारक (x-body) का नाम दिया। यह विशेष कारक है जो शुक्राणु के आधे भाग में अतिरिक्त गुणसूत्र (Extra chromosomes) के रूप में पाया जाता है। x-कारक का लिंग निर्धारण में विशेष महत्व होता है। 1902 में Mc-clung ने टिड्डे के युग्मक जनन की प्रक्रिया में x-कारक की रचना का अध्ययन किया और बताया कि x-काय (x-body) के द्वारा लिंग निर्धारण होता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मादा टिड्डा (Xipharidium Fasciatum) में 24 गुणसूत्र होते हैं जबकि नर में केवल 23 ही गुणसूत्र पाये जाते हैं। तीन वर्षों के पश्चात् स्टेवेन्स (Stevens) और विल्सन (Wilson) ने अनेक कीटों में अण्ड जनन तथा शुक्राणु जनन की प्रक्रिया को समझा और अपने द्वारा किये गये प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया x-काय एक कारक ही नहीं अपितु x-गुणसूत्र है जिसके द्वारा लिंग का निर्धारण होता है क्योंकि x-गुणसूत्र के द्वारा ही लिंगीय निर्धारण होता है तथा उसकी उपस्थित अथवा अनुपस्थित के द्वारा नर तथा मादा बनते हैं इसीलिये इन्हें लिंग-गुणसूत्र (Sex-chromosomes) कहते हैं। स्टेदेन्स तथा विल्सन एक कीट (Lygaeus Turicicus) में किये गये प्रयोग के आधार पर बताया कि नर तथा मादा दोनों लिंगों में गुणसूत्रों की संख्या समान (14) होती है। मादा में समस्त गुणसूत्र समजात तथा जोड़े में होते हैं अर्थात् दोनों गुणसूत्रों का आकार पर परिमाण बराबर होता है जबकि नर में पाये जाने वाले सभी गुणसूत्र जोड़ों में तो होते हैं परन्तु इनमें से एक गुणसूत्र छोटा होता है जिसे y-गुणसूत्र कहते हैं। इस प्रकार एकलिंगी जीवों में दो प्रकार के गुणसूत्र पाये जाते हैं जो निम्न हैं

(i) लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) - 

वह गुणसूत्र है जिनके कारण नर तथा मादा का लिंगीय निर्धारण होता है लिंग गुणसूत्र (Sex-chromosomes) कहलाते हैं। उदाहरण - x तथा y गुणसूत्र

(ii) आटोसोम्स (Autosomes) - वह गुणसूत्र जिनकी लिंग-निर्धारण में कोई भूमिका नहीं होती है तथा इनमें जीन्स पाये जाते हैं। यह जीन्स जीवों में सोमैटिक लक्षणों का निर्धारण करते हैं। इस प्रकार के गुणसूत्र आटोसोम्स कहलाते हैं।

लिंग गुणसूत्र की संरचना 
(Structure of Sex Chromosomes)

लिंगीय गुणसूत्र दो प्रकार के होते हैं जिन्हें क्रमशः x और y गुणसूत्र कहते हैं। दोनों ही प्रकार के लिंग गुणसूत्रों की संरचना अलग-अलग होती है। कोशाद्रवीय अध्ययन के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि अधिकांश जीवों में x-गुणसूत्रों की रचना सीधी तथा छड़ के समान तथा y-गुणसूत्र की अपेक्षाकृत बड़ी होती है जबकि y-गुणसूत्र का आकार छोटा होता है तथा उसका एक सिरा हल्का सा मुड़ा होता है। x-गुणसूत्रों में यूक्रोमैटिन की मात्रा अधिक होती है जबकि हेटरोक्रोमैटिन अल्प मात्रा में पाया जाता है। जबकि y-क्रोमोसोम्स में इसका विपरीत गुण होता है अर्थात् यूक्रोमैटिन अल्प मात्रा में और हेटरोक्रोमैटिन अधिक मात्रा में पाया जाता है। यूक्रोमैटिन में रासायनिक रूप से अधिक मात्रा में DNA पाया जाता है इसीलिये वह आनुवांशिक सूचनाओं का स्थानान्तरण करता है। जबकि y-गुणसूत्र में अल्प मात्रा में यूक्रोमैटिन पदार्थ पाये जाने के कारण यह आनुवांशिक सूचनायें नहीं अथवा अल्प मात्रा में स्थानान्तरित करता है इसीलिये y-गुणसूत्र को आनुवांशिक रूप से अक्रिय (Inert or inactive) गुणसूत्र कहा जाता है।

लिंग निर्धारण के लिये लिंग गुणसूत्रीय प्रक्रियाओं के प्रकार (Types of sex chromosomal mechanism of sex determination) -

विभिन्न जीवों में लिंग निर्धारण करने के लिये गुणसूत्री प्रक्रियायें विभिन्न प्रकार की होती हैं जिन्हें निम्न प्रकार से दो उपसमूहों में विभक्त करके समझा जा सकता है।

(A) हेटरोगैमीटिक नर (Heterogametic males)

(B) हेटरोगैमीटिक मादा (Heterogametic Female)


1. हेटरोगैमीटिक नर (Heterogametic males) -

 इस प्रकार के लिंग गुणसूत्रीय प्रक्रिया के द्वारा लिंग निर्धारण में मादा में दो x गुणसूत्र (xx) होते हैं जबकि नर में केवल एक ही गुणसूत्र (X) होता है। क्योंकि नर में एक x गुणसूत्र की कमी होती है इसलिये युग्मक जनन की प्रक्रिया में केवल दो प्रकार के युग्मकों का निर्माण होता है

(A) 50% युग्मक x गुणसूत्रों को ले जाते हैं।

(B) शेष 50% युग्मक x गुणसूत्र के नहीं ले जाते हैं।

इस प्रकार लिंग के द्वारा दो प्रकार के लिंग गुणसूत्रों का निर्माण होता है। इसीलिये इन्हें हेटरोगैमीटिक लिंग कहते हैं। क्योंकि मादा लिंग में समान प्रकार के युग्मक उत्पन्न होते हैं इसीलिये इन्हें हेटरोगमीटिक लिंग कहते हैं।

हेटरोगैमीटिक नर दो प्रकार के होते हैं

(i)xx मादा और xo नर प्रकार कीटों के कुछ विशेष वर्ग में जैसे आर्डर हेमीप्टेरा और आर्थोप्टेरा में मादा में आटोसोम्स के अतिरिक्त दो x गुणसूत्र होते हैं इसीलिये इसे (xx) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जबकि नर में आटोसोम्स और केवल एक ही x गूणसूत्र पाया जाता है इसीलिये उसे x0) के द्वारा निरूपित किया जाता है।

वह गुणसूत्र जिसमें केवल एक ही (x गुणसूत्र) पाया जाता है वह नर लिंग को प्रदर्शित करता है। एक x गुणसूत्र की कमी होती है अतः यह दो प्रकार के शुक्राणुओं को उत्पन्न करता है। आधे वह जिनमें x गुणसूत्र पाया जाता है जबकि शेष में x गुणसूत्र नहीं पाया जाता है। जबकि मादा के द्वारा समान अण्डों की उत्पत्ति होती है जिनमें आटोसोम्स के अतिरिक्त x गुणसूत्र भी पाया जाता है।

जब शुक्राणुओं के द्वारा निषेचन की प्रक्रिया होती है तो प्रथम प्रकार के जिनमें x गुणसूत्र नहीं होता इनके द्वारा नर की उत्पत्ति होती है जबकि दूसरे में जिसमें x गुणसूत्र पाया जाता है मादा लिंग का निर्माण करते हैं।

(ii) XO मादा तथा XX नर प्रकार -

इस की गुणसूत्रीय स्थित प्रथम स्थिति के बिल्कुल विपरीत होती है क्योंकि इसमें मादा में केवल एक ही x गुणसूत्र होता है जबकि नर में दो x गुणसूत्र (xx) होते हैं। जिनके कारण नर के द्वारा समान शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा प्रत्येक शुक्राणु x गुणसूत्र को ले जाता है जबकि मादा दो प्रकार के अण्डाणुओं को उत्पन्न करती है प्रथम प्रकार के अण्डाणु में x गुणसूत्र पाया जाता है जबकि द्वितीय में x गुणसूत्र नहीं होता है। निषेचन के समय जब प्रथम प्रकार के अण्डाणु जिनमें x गुणसूत्र होता है उनसे नर की उत्पत्ति होती है। जबकि दूसरे प्रकार के अण्डाणु जिनमें x गुणसूत्र नहीं होता इनके द्वारा मादा बनते हैं। इस प्रकार का लिंग निर्धारण कुछ लेपिडोप्टेरा (Lepidoptera) के अन्तर्गत आने वाले कीटों में होता है।

2. हेटरोगैमीटिक म्मदा (Heterogametic Female) - 

इस प्रकार के लिंगीय गुणसूत्र के द्वारा लिंग निर्धारण में नर में दो समजात x गुणसूत्र (Homomorphic x-chromosomes) पाये जाते हैं इसलिये यह होमोयुग्मक कहलाते हैं अर्थात् एक ही प्रकार के युग्मक उत्पन्न होते हैं तथा प्रत्येक केवल एक ही x गुणसूत्र को ले जाता है। जबकि मादा लिंग में या तो अकेला x गुणसूत्र होता है अथवा एक x और एक y गुणसूत्र होता है इस प्रकार मादा में हेटरोगैमीटिक अवस्था पायी जाती है अर्थात् यह दो प्रकार के अण्डाणु को उत्पन्न करते हैं जिनमें आधे वह होते हैं जिनमें x गुणसूत्र पाये जाते हैं तथा शेष जिनमें x गुणसूत्र नहीं होता है परन्तु y गुणसूत्र उपस्थित अथवा अनुपास्थित होता है।

हेटरोगैमीटिक मादा को भी दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है

(A)ZO या ZZ प्रकार के (ZO or ZZ Types) -

इस प्रकार का लिंग निर्धारण कुछ तितलियों, मॉथ (Moths) तथा मुर्गियों में पाया जाता है जिसमें मादा में केवल एक ही गुणसूत्र पाया जाता है। इसे (Z) के द्वारा निरुपित किया जाता है यह हेटरोगैमीटिक होता है जो दो प्रकार के अण्डाणुओं को उत्पन्न करता है इनमें से आधे में z-गुणसूत्र होता है जबकि शेष में z गुणसूत्र नहीं होता है। परन्तु इसके विपरीत नर में दो z गुणसूत्र होते हैं इसीलिये इन्हें (zz) के द्वारा प्रकट करते हैं। परन्तु इसकी प्रकृति होमोगैमीटिक होती है क्योंकि यह एक ही प्रकार के शुक्राणुओं को उत्पन्न करता है जिनमें प्रत्येक में केवल एक ही z गुणसूत्र होता है।

गुणसूत्र की इस अवस्था में लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि निषेचन के समय शुक्राणु से किस प्रकार का अण्डाणु मिलता है इस प्रक्रिया की निम्न सारिणी के द्वारा समझाया जा सकता है-




(B) ZW मादा तथा ZZ नर प्रकार (ZW Female ZZ Male Type) -

 इस प्रकार का लिंग निर्धारण कुछ कीटों तथा वर्टीब्रेट (Vertebrate) जन्तुओं जैसे मछलियाँ, सरीसृप वर्ग तथा चिड़ियों में पाया जाता है। इस प्रकार के लिंग निर्धारण में मादा में केवल एक Z गुणसूत्र और एक W गुणसूत्र पाया जाता है तथा यह अवस्था हेटरोगैमीटिक होती है क्योंकि इससे दो प्रकार के अण्डाणु बनते हैं। आधे अण्डाणुओं में z-गुणसूत्र होता है जबकि शेष में W गुणसूत्र होते हैं। परन्तु नर की अवस्था होमोगैमीटिक होती है क्योंकि इसमें दो समजात (Homomorphic) z गुणसूत्र पाये जाते हैं इसीलिये इनके द्वारा केवल एक ही प्रकार के शुक्राणु का निर्माण होता है जिसमें प्रत्येक में z गुणसूत्र होता है।

इस प्रकार में संतति का लिंग निर्धारण अण्डों के प्रकार पर निर्भर करता है कि किस प्रकार का अण्डा निषेचन के समय शुक्राणु से मिलता है। उपरोक्त परिणाम का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि z-गुणसूत्र से युक्त अण्डाणु के द्वारा नर की उत्पत्ति होती है परन्तु यदि निषेचन के समय W गुणसूत्र युक्त अण्डाणु, शुक्राणु से मिलता है तो मादा की उत्पत्ति होती है। जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

 

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