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ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण की विधि || drosophila mein ling nirdhaaran kee vidhi

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ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण की विधि

जीन के द्वारा लिंग का निर्धारण (Single Gene Control of Sex)

कुछ जीवों जैसे क्लेमाइडोमोनास, मक्का (Maize), ड्रोसोफिला, ऐस्पैरेगस (Asparagus) यीस्ट तथा न्यूरोस्पोरा में केवल एक ही जीन्स के द्वारा लिंग का निर्धारण होता है। जिनमें कुछ उदाहरण निम्नवत् है।

(A) न्यूरोस्पोरा में लिंग निर्धारण (Sex determination in Neurospora) - 

न्यूरोस्पोरा में दो प्रकार के लिंग पाये जाते हैं जिन्हें A और a द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तथा इनमें मैथुन केवल यूनिट लिंग के बीच में होता है अर्थात् (Ax a) के मध्य में होता है। लिंग निर्धारण के समय मेटिंग Matting) का प्रकार क्या होगा (A अथवा a) यह आटोसोम्स गुणसूत्र के ऐलील्स के जोड़े के द्वारा निधार्ति होता है तथा यह निर्धारण मेण्डल के आनुवंशिक नियमों के अनुसार होता है।

(B) ऐस्पैरेगस में लिंग निर्धारण (Sex-determination in Asparagus) - 

ऐस्पैरगस एक डायोसियस (Dioecious) पौधा है लेकिन कभी-कभी सादा पुष्पों पर अल्प विकसित अवस्था में नर जननांग एन्थर्स (Anthers) पाये जाते हैं ठीक इसी प्रकार नर पुष्पों में मादा जनन अंग (Pistils) होते हैं जिनसे बीजों की उत्पत्ति होती है। जब इन दुर्लभ नर पुष्पों से पौधे बनते हैं तो उन पौधों में नर तथा मादा पौधों का अनुपात 3 : 1 होता है तथा जब नर पौधों की परागण मादा पादपों में स्थित मादा फूलों से होता है तो उनमें से दो तिहाई पौधों में पृथक्करण हो जाता है जिसमें सामान्य रूप से यह देखा गया है नर तथा मादा लिंग का नियंत्रण केवल एक ही जीन के द्वारा होता है।

(C) मकके में मोनोजेनिक लिंग निर्धारण (Monogenic sex determination in Maize)

 मक्का मोनोसियस पादप है जिसमें एक ही पौधे में नर पुष्प क्रम टैसेल (Tassel) तथा मादा पुष्प क्रम सिल्क (Silk) एक ही पौधे पर स्थित होता है तथा इस पौधे का लिंग दो जोड़ी जीन्स (Ba ba, Ts ts) के द्वारा नियंत्रित होता है वह पौधे जिसमें जीनोटाइप ba ba (barren stalk) होता है उनमें इयर्स (ears) नहीं होते तथा पौधे में नर जननांग (Staminate) सामान्य टैसल के रूप में पाया जाता है।

इसी प्रकार अन्य पौधे जिनमें ts ts (पेस्टलेज) होता है उनमें Pistillate पुष्प लेते है और उनके Ears पीथे के शीर्ष भाग में विकसित होते हैं तथा वह पौध जिसमें जीनोटाइप (ba ba ts ts) होता है उनमें Ears नहीं होते और स्थानान्तरित टैसल पाया जाता है।

उपरोक्त विवरण से यह प्रदर्शित होता है कि मोनोसियस पौधा भी डायोसियस बन सकता है अगर उनके जीन्सों में उत्परिवर्तन हो जाये जैसे कि दो जीन्स Ba से ba और TS से ts जीन्स के उत्परिवर्तन के फलस्वरूप निम्न जीनोटाइप तथा फीनोटाइप का निर्माण होता है

जीनोटाइप            फीनोटाइप

Ba Ts                सामान्य मोनोसियस

ba ba Ts           स्टेमिनेट (Staminate)

Bats ts              पिस्टलेट, ईयर्स टर्मिनल तथा पार्श्व

ba ba ts ts         पिस्टलेट तथा टर्मिनल ईयर्स


(D) ड्रोसोफिला में मोनोजेनिक लिंग निर्धारण (Monogenic sex determination in
Drosophila) - 

ऐसा देखा गया है कि ड्रोसोफिला में एक सामान्य ट्रान्सफॉरमर जीन्स (tra), पाया जाता है। जब यह जीन होमोजाइगस स्थित (tra/tra) में पाया जाता है तो यह मादा ड्रोसोफिला को नर स्टेराइल (Sterile male) में परिवर्तित कर देता है परन्तु वह सामान्य नर ड्रोसोफिला की तरह कार्य नहीं करते इस प्रकार वह मादा ड्रोसोफिला (xx) जिसमें (traltra) जीनोटाइप होते हैं उनसे स्टेराइल नर बनता है परन्तु वह नर मक्खी (xy) जिसमें (tra/tra) जीनोटाइप होता है उससे सामान्य नर ड्रोसोफिला की उत्पत्ति होती है।

जीवाणुओं में लिंग का निर्धारण (Sex determination in Bacteria)

टैटम तथा लीडरबर्ग ने (1947) में E.Coli ने लैंगिक विभेदन का पता किया। उन्होंने बताया कि जीवाणुओं में कोशा द्रवीय लिंग निर्धारण (Cytoplasmic sex determination) पाया जाता है। उन्होंने बताया कि जीवाणु कोशिकायें हैप्लॉयड होती है तथा सामान्य दशा में यह अलैगिक रूप से जनन करती है लेकिन कभी-कभी दो कोशिकायें एक-दूसरे से मिल जाती हैं तथा परस्पर जुड़कर कोशाद्रवीय सेतु (Cytoplasmic bridge) बनाती है। इस प्रकार जीवाणुओं में लैंगिकता कोशारदीय कारकों के द्वारा नियंत्रित होती है। इसमें एक कोशिका दाता (Doner) नर होती है जो अपने सम्पूर्ण गुणसूत्रीय भाग को मादा कोशिका में स्थानान्तरित कर देती है। दाता कोशिका का नर गुण एपीसोम कारक के कारण होता है जिसे उर्वरक कारक (Fertility Factor) कहते हैं जो कोशाद्रव्य में पाया जाता है।

जिस कोशिका में उर्वरता कारक (F) नहीं होता है उसे मादा या ग्राही कोशिका कहते हैं। संयुग्मन के समय ऐपीसोम ग्राही कोशिका में स्थानान्तरित हो जाता है तथा नर कोशिका में परिवर्तित हो जाता है।


ड्रोसोफिला में स्त्रीपुरुष (Gynandromorphis) क्या है? इसके विभिन्न कारण

स्त्रपुरुष
 (Gynandromorphs)

कीटों में द्वितीयक लैंगिक लक्षण हार्मोन्स के द्वारा नियंत्रित नहीं होते हैं बल्कि यह जनद अंगों के द्वारा नियंत्रित तथा इन्हीं लक्षणों के कारण इनमें स्वतंत्र रूप से लिंगीय विभेदन होता है जिसके कारण शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में आनुवांशिक संरचना भी परिवर्तित हो जाती है। परिवर्तन के परिणामस्वरूप शरीर के एक भाग में नर के लक्षण और दूसरे भाग में मादा के लक्षण विद्यमान होते हैं। इस प्रकार की विशेष ड्रोसोफिला मक्खियाँ स्त्रीपुरुष (Gynandromophs) कहलाती है (Gr: gyne = female, andro = male, morphs = form)। परन्तु इन्हें द्विलिंगी जन्तु नहीं समझना चाहिये क्योंकि द्विलिंगी अवस्था में एक ही जीव शुक्राणु और अण्डाणु दोनों युग्मकों को उत्पन्न करता है। परन्तु गाइनैन्ड्रोमार्फ जीवों में बीडिंग कभी-कभी देखी जाती है। स्त्रीपुरुष लक्षण को ड्रोसोफिला तथा कीट में देखा गया है। दोनों फीनोटाइप की उपस्थित के आधार पर स्त्रीपुरुष निम्न प्रकार के होते हैं।

(A) द्विपार्श्व स्त्रीपुरुष (Bilateral gynandromorphs) - 

Morgan & Bridge ने देखा कि ड्रोसोफिला में गाइनैन्ड्रोमार्फ अवस्था में शरीर के आधे पार्श्व भाग में मादा के लक्षण जबकि शेष आधे भाग में नर के लक्षण विद्यमान होते हैं। इस प्रकार के स्त्रीपुरुष लक्षणों वाली दशा को द्विपाशर्व स्त्रीपुरुष कहते हैं। यह स्थित रेशम के कीट के लार्वी में भी पायी जाती है।

(B) अग्र-पश्च स्त्रीपुरुष (Anterio-posterior Gynandromorphs) -

 इस प्रकार के गाइनोन्ड्रोमार्फ में शरीर के अग्र भाग में नर के लक्षण जबकि शेष पश्च भाग में मादा के लक्षण विद्यमान होते हैं यह अवस्था अग्र-पश्च स्त्रीपुरुष कहलाती है।

(C) लिंग पाइबोल्ड्स (Sex-Piebolds) -

 कुछ गाइनैन्ड्रोमार्फ में यह देखा गया है कि जन्तु में नर के लक्षण अधिक प्रभावी होते हैं जबकि मादा के लक्षण अल्प विकसित अवस्था में केवल कुछ धब्बों (Patches) में रूप में देखे जा सकते हैं।

स्त्रीपुरुष का कारण (Causes of Gynandromorphism) -

 गाइनैन्ड्रोमार्फ का निर्माण तथा उत्पत्ति कैसे होती है, इस सम्बन्ध में अलग-अलग धारणायें हैं जिनमें से दो प्रमुख धारणायें निम्न है-

(A) ड्रोसोफिला में x गुणसूत्र के अवियोजन द्वारा लिंग निर्धारण (Non disjunction of x chromosomes) - 

मॉर्गन तथा ब्रिजेज (Morgan &Bridges) ने ड्रोसोफिला में x गुणसूत्र के अवियोजन के द्वारा गाइनैनड्रोमार्फ की उत्पत्ति की व्याख्या की उनके अनुसार सामान्य रूप से युग्मक निर्माण के समय प्रत्येक जोड़े के समजात गुणसूत्र पृथक होकर संतति कोशिकाओं में पहुँच जाते हैं जिनकी संख्या समान होती है। परन्तु कभी-कभी यह देखा गया है कि निषेचित अण्डे (जाइगोट) के विखण्डन जोड़ीदार x गुणसूत्र पृथक नहीं हो पाते हैं और पुत्री कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं। इस प्रकार के समय कुछ कोशिकाओं में कोई एक गुणसूत्र वियोजन के कारण नष्ट हो जाता है इस  प्रकार संतति कोशिकाओं में केवल एक ही x गुणसूत्र होता है। जिसके कारण नर लक्षण विकसित होते हैं तथा जिससे गाइनैन्ड्रोमार्फ के नर भाग का निर्माण होता है परन्तु दूसरी कोशिका में 2x गुणसूत्र होते हैं जिनके द्वारा शरीर के आधे भाग में मादा का निर्माण होता है।

इस प्रकार किन्हीं समजात युगल गुणसूत्रों द्वारा पृथकता में असफल रहने की प्रक्रिया को अवियोजन (Non disjunction) कहते हैं जिसे मॉर्गन के लिंग सहलग्न वंशागति के सिद्धान्त के द्वारा समर्थन भी प्राप्त होता है। जिसके अनुसार जब श्वेत नेत्र वाली मादा ड्रोसोफिला एवं लाल नेत्रवाली नर मक्खियों में आपसी संकरण कराया जाता है तो लाल नेत्रों वाली मादा तथा श्वेत नेत्रों वाली नर मक्खियाँ विकसित होती हैं।

ब्रिजेज के अनुसार F, पीढ़ी में लगभग 3000 ड्रोसोफिला के पश्चात् एक मक्खी में आँखों का वर्ण उल्टा होता है अर्थात् लाल नेत्र के स्थान पर श्वेत नेत्र और श्वेत नेत्र की जगह लाल नेत्र वाली मक्खियाँ उत्पन्न होती हैं। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि इस अप्रत्याशित सफेद नेत्र वाली मादा में दोनों x गुणसूत्र मादा से तथा लाल नेत्र वाली मक्खी को दोनों x गुणसूत्र पिता से प्राप्त हुए हैं इसीलिये युग्मक निर्माण के समय इस प्रकार की संभावना होती है। मादा में श्वेत नेत्र वाले जीन (x-गुणसूत्र) पृथक न होकर सीधे ही युग्मक में प्रवेश कर जाते हैं क्योंकि नर में जब पिता के द्वारा प्राप्त x गुणसूत्र शुक्राणु ऐसे अण्डे से निषेचित होते हैं जिनमें x गुणसूत्र नहीं होता तो इस प्रकार से निर्मित जाइगोट में केवल पिता से प्राप्त एक ही x गुणसूत्र होता है इसीलिये नर के नेत्रों का रंग अप्रत्याशित रूप से लाल होता है। इस प्रकार के संयोग को निम्न तालिका की सहायता से समझा जा सकता है -

उपरोक्त संयोग के पश्चात जब प्राथमिक वियोजन में सामान्य युग्मकों के अतिरिक्त मादा मक्खी से दो अन्य प्रकार के युग्मक उत्पन्न होते हैं तथा इनका जब लाल नेत्रों वाली मक्खियों के साथ निषेचन के होता है तो प्राप्त संतति मक्खियों में निम्न प्रकार का संयोग प्राप्त होता है जिसे निम्न तालिका के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है




इस प्रकार ब्रिजेज के द्वारा की गयी परिकल्पना की पुष्टि उपरोक्त प्रयोग में प्राप्त मक्खियों के

कोशिकाओं में पाये जाने वाले गुणसूत्रों की गणना के द्वारा की जा सकती है।

(B) द्विकेन्द्रकीय अण्डे के द्वारा (From Binucleated Eggs) -

 इस प्रकार की प्रक्रिया का उल्लेख Katsuki और Goldschmidt ने किया उनके द्वारा रेशम के कीड़े पर किये गये प्रयोग के आधार पर नर रेशम के कीट में xx गुणसूत्र जबकि मादा xy गुणसूत्र होते हैं। अण्ड जनन (Oogenesis) की प्रक्रिया में x तथा y गुणसूत्र सामान्य रूप से पृथक होता है जिसमें एक अण्डे में चला जाता है जबकि दूसरा पोलर बॉडी में प्रवेश करता है जिसके परिणामस्वरूप द्विकेन्द्रकीय अण्डे का निर्माण होता है जो xy गुणसूत्र से युक्त होता है। इस प्रकार के निर्मित अण्डे का निषेचन हो शुक्राणुओं के द्वारा होता है जिसमें प्रत्येक शुक्राणु अण्ड केन्द्रक (Egg nucleus) को निषेचित करता है निषेचन के पश्चात एक से नर विकसित होता है जबकि दूसरे से मादा शरीर का निर्माण हो जाता है।


 मध्यलिंगी (Intersexes) की अवस्था क्या है?

मध्यलिंगी (Intersexes) -

 ब्रिजेज ने ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण के लिये गुणसूत्रीय प्रक्रिया को प्रदर्शित किया तथा उसी के आधार पर बाद में लिंग निर्धारण के संतुलित सिद्धान्त का विकास हुआ। आजकल के आधुनिक जीव वैज्ञानिकों के अनुसार किसी जीव में नर तथा मादा को विभेदित करने के लिये कुछ विशेष लक्षण होते हैं जिन्हें xx तथा xy गुणसूत्र कहते हैं इन्हीं गुणसूत्रों के आधार पर लिंग का निर्धारण होता है ऐसा प्रमाणित हो चुका है कि x या 2x गुणसूत्रों के द्वारा नर तथा  मादा विकसित नहीं होते बल्कि इनका निर्धारण ऑटोसोम्स और लिंग गुणसूत्रों पर निर्भर करता है तथा यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि लिंग गुणसूत्रों तथा ऑटोसोम्स का एक निश्चित अनुपात होता है। अगर इनमें किन्हीं कारणों से संतुलन बिगड़ जाता है तो इनसे मध्य लिंगी (Intersexes) जन्तुओं का विकास होता है जिन्हें निम्न तालिका के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है




वह जीव जिनमें 0.5 तथा 1.0 के बीच का अनुपात होता है वह मध्य लिंगी होते है अर्थात् यह नर और मादा के मध्य लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं जबकि सुपर नर तथा सुपर मादा सामान्य रूप से कमजोर, बंध्य तथा अल्प रूप से भित्रित होते हैं।

जिप्सी मॉथ में मध्य लिंगता (Intersexes in the Gypsy Moth) - 

Goldschmidt जिप्सी मॉथ (कीट) में मध्य लिंगता का अध्ययन किया तथा इसमें लिंगी संतुलन की प्रक्रिया का वर्णन किया जो x गुणसूत्रों में पाये जाने वाले लिंग विभेदीय कारकों तथा कोशाद्रव्य के बीच में होती है। ऐसा देखा गया है कि संसार के कुछ भागों में जहाँ पर भौगोलिक स्थिति असामान्य होती है। वहाँ पर मॉथ की जनसंख्या में परिवर्तन देखने को मिलता है और वहाँ पर द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के आधार पर नर तथा मादा को अलग-अलग पहचाना जा सकता है तथा इनमें लिंग निर्धारण भी सामान्य होता है। ऐसी अवस्था में इसमें हेटरोगैमीटिक मादा (xy) और नर (xx) होता है लेकिन इन दोनों का क्रास कराया जाता है तो मध्य लिंगी जीवों की उत्पत्ति होती है जो सामान्य होते हैं। इस अध्ययन में यह देखा गया है कि मध्यलिंगता जीव में होती है जिनमें गुणसूत्रों के आधार पर लैंगिक विकास होता है लेकिन विपरीत लिंगों में लक्षणों का विकास होता है जिसमें बाद में लिंग परिवर्तन भी होता है। इस प्रकार से उत्पन्न मध्य जीवी जन्तु दूसरे जीवों की तरह फरटाइल थे तथा यह दो प्रकार के लक्षणों से युक्त थे।

(A) मध्य लिंगी मादा जिनमें xy गुणसूत्र थे जिनका वर्धन मादा के रूप में होता है लेकिन जब किसी विशेष बिन्दु परिवर्तन होता है तो नर लक्षण भी विकसित होते हैं।

(B) मध्य लिंगी नर जिनमें xx होता है जिनकी उत्पत्ति तो नर के रूप में होती है परन्तु कुछ समय के पश्चात् मादा में परिवर्तित हो जाते हैं। Goldschmidt ने कीटों पर अनेक प्रयोग किये तथा मध्य लिंगता को प्रमाणित किया जिसमें  उन्होंने यह बताया कि ऐसे कौन से कारण होते हैं जिनके कारण जीवों में मध्या लिंगता होती है।

इन कारणों को प्रमाणित करने के लिये उन्होंने एक दुर्बल यूरोपियन मादा का क्रास प्रथल जापानीज नर से कराया तो उन्होंने देखा कि F.पीढ़ी में नर तो सामान्य थे परन्तु मादा मध्य लिंगी थे। इससे यह प्रदर्शित होता है कि एक प्रबल x गुणसूत्र ही लिंग निर्धारण के लिये पर्याप्त होता है और यह मादा निर्धारक को भी प्रभावित करता है क्योंकि xy जीव, मध्य लिंगी जीव में विभेदित होता है, लेकिन उसमें मादा के लक्षण विकसित नहीं होते तथा जब उन्होंने द्वितीय पीढ़ी (F2) में क्रास कराया तो नर सामान्य तो थे लेकिन आधी पुत्रियाँ सामान्य थीं परन्तु आधी पुत्रियाँ मध्य लिंगी (Intersexes) थीं।


इसी प्रकार यदि ठीक इसके विपरीत क्रास कराते हैं अर्थात् जापानी मादा प्रबल और यूरोपीय नर दुर्बल होते हैं तो प्रथम पीढ़ी (E) में सभी संततियाँ सामान्य होती है लेकिन द्वितीय पीढ़ी (F2) में मादा तो सामान्य लक्षणों वाले होते हैं, जबकि आधे नर सामान्य और शेष आधे नर मध्य लिंगता (Intersexes) को प्रदर्शित करते हैं।

इस प्रकार (Gypsy moth) पर Goldschmidt के द्वारा किये गये प्रयोगों से मध्य लिंगता (Intersex) प्रमाणित होता है जिसमें ऐसा देखा गया है कि ड्रोसोफिला में मध्य लिंगता गुणसूत्रीय असंतुलन के कारण होती है जबकि (Lymantria moth) में यह आनुवांशिक असंतुलन के कारण होती है। इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वह कारक जो सामान्य लैंगिक विभेदन को नियंत्रित करते हैं उन्हें कई पीढ़ियों तक आपस में समायोजित किया जा सकता है।

इसी आधार पर Goldschmidt ने परिकल्पना प्रस्तुत की कि किस प्रकार लिंग जीन्स (Sex games).लिंगीय विकास को प्रभावित करते हैं इस परिकल्पना के अनुसार मध्य लिंगता की उत्पत्ति नर तथा मादा के विकास से होती है तथा नर व मादा के विकास होने पर एक ऐसा बिन्दु (Turning point) आता है जहाँ पर विकास विपरीत दिशा में हो जाता है अतः मध्य लिंगी अवस्था नर तथा मादा लक्षणों के बीच का मिश्रण है, जिसमें एक लैंगिक अवस्था दूसरी लिंगी अवस्था में परिवर्तित हो जाती है तथा यह विशेष अवस्था वर्धन की प्रारम्भिक अथवा अंतिम अवस्था में पायी जाती है।


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