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लिंग निर्धारण पर वातावरण नियंत्रण || ling nirdhaaran par vaataavaran niyantran

लिंग निर्धारण पर वातावरण नियंत्रण, बहुविकल्पीय लिंग गुणसूत्रीय से आप क्या समझते हैं? लिंग निर्धारण प्रक्रिया में उपापचयी नियंत्रण हार्मोन के द्वारा नियंत्रण वातावरण के द्वारा नियंत्रण का वर्णन कीजिये।,लिंग निर्धारण की प्रक्रिया हार्मोन के द्वारा कैसे नियंत्रित की जाती है?,मुर्गियों में लिंग परिवर्तन कैसे होता है? वातावरण के द्वारा लिंग निर्धारण की प्रक्रिया कैसे नियंत्रित की जाती है?







बहुविकल्पी लिंग गुणसूत्रीय प्रक्रिया
(Multiple Sex Chromosome Mechanism)

कुछ जीवों में X गुणसूत्रों को दो अलग-अलग कारकों के रूप में निरूपित किया जाता है जिन्हें क्रमशः X1 तथा X2 के द्वारा प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिये मैन्टिड (Mentid) में नर का जीनोटाइप (X1 X2 Y) होता है जबकि मादा जीनोटाइप (x,x,x,x,) होता है जबकि फैमिली थाइसेन्यूरा के कीटों में y गुणसूत्र नहीं होता है।

कीटों के दोनों लिंगों में आनुवंशिक भिन्नता होती है जो विशेष रूप से आर्डर हेटरोप्टेरा में देखी गयी है। उदाहरण के लिये बीटल में नर तथा मादा में गुणसूत्रों का क्रम निम्नवत् होता है-

Male%3D 18a + 12x + 6y

Female = 18A + 24x

इस प्रकार के प्रक्रम को बहुविकल्पी लिंगीय गुणसूत्र कहते हैं। Whitney ने बताया कि बहुविकल्पी लिंगी गुणसूत्र के द्वारा लिंग निर्धारण कीटों में सबसे अधिक देखा गया है।


लिंग निर्धारण प्रक्रिया का उपापचयी नियंत्रण
(Metabolically Controlled Sex Determining Mechanism)

कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि लिंग निर्धारण उपापचय के द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है। Crew की धारणा के अनुसार लिंग क्रियात्मक विभेदन है जो ऐनाबॉलिक तथा कैटाबॉलिक क्रियाओं के समान होता है अर्थात् जिस प्रकार से उपापचय (Metabolism) ऐनाबॉलिक तथा कैटाबॉलिक क्रियाओं से मिलकर होता है ठीक उसी प्रकार लिंग क्रियात्मक क्रियाओं के विभेदन के द्वारा पूर्ण होता है। A.F.Shull और D.D.Whitney ने बताया कि अगर रोट्रीफेरा जन्तुओं की उपापचयी दर को बढ़ा दिया जाये तो मादा की अपेक्षाकृत नर जन्तुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। ठीक इसी प्रकार राइडल (Riddle) ने पक्षियों पर कई प्रयोग किये और बताया कबूतर तथा अन्य पक्षियों में उपापचयी दर बढ़ा देने पर लिंग का निर्धारण भी प्रभावित हो जाता है। जिसमें उपापचय बढ़ा देने पर नर की संभावना प्रबल हो जाती है। इसी प्रकार उपापचय की दर पट जाने से मादा पक्षी विकसित हो जाते हैं।


लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का हार्मोन्स के द्वारा नियंत्रण
(Hormonally Controlled Sex Determining Mechanism)

उच्चकोटि के जन्तुओं में लिंग का विकास लिंग हार्मोन्स (Sex hormones) के द्वारा नियंत्रित होता है। लिंगी-हार्मोन्स अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के द्वारा स्रावित होते हैं। F.R. Lillie ने हार्मोन्स के आधार पर लिंगीय विभेदन का हार्मोन सिद्धान्त को प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार बहुत से जीवों में लिंगीय विभेदन हार्मोन्स के द्वारा नियंत्रित होता है, जिसे निम्न उदाहरणों के द्वारा समझा जा सकता है कि किस प्रकार से हार्मोन्स विभिन्न जन्तुओं में लिंग का नियंत्रण करते हैं।

(i) मुर्गियों में लिंग परिवर्तन (Sex reversal in hen) -

 पक्षियों में यह देखा गया है कि मादा में केवल एक ही जनद अंग (अण्डाशय) कार्यात्मक होता है। जबकि दूसरा अण्डाशय अल्प विकसित अवस्था में होता है। Crew (1923) के अनुसार यदि मुर्गी के कार्यात्मक अण्डाशय को नष्ट कर दिया जाये तो अल्प विकसित जनद के द्वारा वृषण (Testes) विकसित हो जाता है और मादा लिंग, नर लिंग में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार लिंग परिवर्तित मुर्गी से बाद में नर चूजे का पुनः निर्माण हो सकता है जिसमें दो मादा तथा एक नर का लिंगीय अनुपात होता है। 

जब तक इनमें मादा को हेटरोगैमीटिक लिंग नहीं हो जाता है। मुर्गी का लिंग परिवर्तन निम्न प्रकार से हार्मोन्स के द्वारा प्रभावित होता है। भ्रूणीय वर्धन के समय xy जीनोटाइप पिट्यूटरी ग्रन्थि को प्रेरित करती है जिससे मादा हार्मोन्स विकसित होते हैं जिसके कारण मुर्गी के जनद से अण्डाशय बन जाता है और जब अण्डाशय पूर्ण विकसित हो जाता है तो पिट्यूटरी ग्रन्थि से मादा हार्मोन्स का स्रावण रूम जाता है जिसके कारण वर्धन की उल्टी प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। हामोन स्रावण के चक्र में हार्मोन्स के स्रावण के पश्चात् जब अण्डाशय में पूर्ण वृद्धि हो जाती है तो ऐड्रीनल ग्रन्थियों की कोशिकाओं के द्वारा नर हार्मोन्स (स्टीरॉयड) का स्रावण होता है। इसीलिये जब मुर्गी के अण्डाशय को पृथक कर दिया जाता है तो ऐड्रीनल की स्टीरॉयड कोशिकाओं के स्रावण के सक्रिय होने के कारण अल्पविकसित जनद वृषण में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार दोनों ही अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ एड्रीनल वृषण अधिक मात्रा नर हार्मोन्स का स्त्रावण करती है जिनके कारण पिट्यूटरी के द्वारा स्त्रावित होने वाले मादा हामोन्स के स्रावण की क्रियाविधि प्रभावित होती है।

उपरोक्त प्रयोग से स्पष्ट होता है कि लिंगीय परिवर्तन की प्रक्रिया अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्त्रवित होने वाले हार्मोन्स के कारण नियंत्रित होती है जिसे पहले पक्षी वर्ग के जन्तुओं में देखा गया परन्तु बाद में इसे E. Witschi ने उभयचर जन्तुओं (सिलामेण्डर) में भी देखा।

(ii) हार्मोन्स तथा स्वतंत्र मार्टिन (Hormones and Free Martin) - 

मवेशियों में हार्मोन्स के द्वारा लिंग निर्धारण की प्रक्रिया पायी जाती है जिसके अनेक उदाहरण देखने को प्राप्त होते है। प्रारम्भिक अवस्था में ही लिंग निर्धारण पर हार्मोन्स के प्रभाव को मवेशियों में पाये जाने वाले स्वतंत्र मार्टिन में देखा गया। F.R. Lilly ने (1917) में देखा कि मवेशियों के द्वारा विपरीत लिंग के जुड़वा उत्पन्न होने पर नर तो सामान्य प्रकृति का होता है परन्तु मादा बंध्य (Sterile) होती है और इनमें नर के अनेक लक्षण विद्यमान होते हैं। इस प्रकार के बंध्य मादा मुक्त मार्टिन (Free Mortin) से युक्त होते हैं। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि नर लिंग के द्वारा स्रावित होने वाले हार्मोन्स मादा लिंग को सीधे प्रभावित कर देते हैं। ऐसा देखा गया है मवेशियों में यमज (Twins) की गर्भ झिल्लियाँ विशेष प्रकार से जुड़ी होती हैं जिसके कारण दोनों वर्धित शिशुओं में ही रक्त का प्रवाह उभयनिष्ठ (Common) होता है तथा जिस समय भ्रूणीय विकास होता है तो नर हार्मोन्स का निर्माण पहले से ही होने लगता है जिसके उपरान्त मादा हार्मोन्स बनते हैं। इसीलिये जब रुधिर का प्रवाह होता है तो रुधिर एक यमज के पश्चात दूसरे यमज के शरीर होते हुए प्रवाहित होता है इसीलिये मादा हार्मोन्स बाद में प्रवेश करता है और नर हार्मोन पहले से ही शरीर में प्रवेश कर जाते हैं क्योंकि शरीर में नर हार्मोन्स का निर्माण पहले से ही हो चुका होता है।

इसीलिये नर हार्मोन मादा हार्मोन्स के नियंत्रण में विकसित होने वाले मादा लक्षणों से पूर्व ही इनमें कुछ लक्षणों को विभेदित कर देते हैं इसीलिये बंध मादा की उत्पत्ति होती है।

(iii) लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का वातावरण के द्वारा नियंत्रण (Environmentally
Controlled Sex Mechanism)- 

कुछ निम्नकोटि के जन्तुओं में नर तथा मादा में समान जीनोटाइप पाये जाते हैं तथा जिसमें वातावरण के द्वारा लिंग निर्धारण की प्रक्रिया नियंत्रित की जाती है। लिंग निर्धारण की यह क्रिया विधि अनेक जन्तु समूहों जैसे रोटीफेरा, ऐनेलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का तथा इक्यूरोडिया (Echiurodia) आदि में देखी गयी है। F. Baltz तथा अन्य वैज्ञानिकों ने बोलेनिया विरिडिस में इस प्रकार का लिंग निर्धारण देखा। यह एक समुद्री इक्यूराइडिया कृमि है जिसमें लैंगिक द्विरूपता (Sexual dimorphism) पायी जाती है। बोनेलिया में नर छोटा तथा अल्प विकसित होता है जिसे सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है तथा नर स्थायी रूप से मादा के गर्भाशय (Uterus) में रहता है। मादा का आकार लगभग आधा इंच तक बड़ा होता है। इसके अण्डों से लार्वी की उत्पत्ति हो जाती है। यह लैंगिक रूप से विभेदित नहीं होते हैं। यह देखा गया है कि वह लार्वी जो मादा के सम्पर्क में आते हैं तथा प्रोबोसिस (Proboscis) में रहते हैं उनसे नर की उत्पत्ति होती है जब कि वह लार्वी कहीं किसी आधार में पाये जाते हैं। उनसे मादा विकसित होते हैं। इस प्रकार वातावरण यह निर्धारित करता है कि जीव में पाया जाने वाला लिंग किस प्रकार का होगा। बोनेलिया में पाये जाने वाले लार्वा कोशिकीय रूप से समान होते हैं अगर लार्वा जल में विकसित होता है तो उससे मादा की उत्पत्ति होती है तथा यह भी देखा गया है अगर अपूर्ण रूप से वृद्धि कर रहा नर किन्हीं कारणों से मादा के प्रोबोसिस से पृथक हो जाता है तो उससे मध्य लिंगी जीव (Inter sex) बन जाते हैं।

बोनेलिया पर किये गये अध्ययन से यह प्रमाणित हो चुका है कि मादा के प्रोबोसिस के द्वारा कुछ हार्मोन्स के समान तत्व स्रावित होते हैं जो लार्चा में ही नर तथा मादा होने की प्रकृति को निर्धारित करते हैं।


वातावरण के द्वारा लिंग निर्धारण का एक अन्य उदाहरण मोलस्का के अन्तर्गत आता है। Coe ने (1943) में जीनस Crepidula के अन्तर्गत आने वाले मोलस्क में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया को देखा। उनके प्रत्येक जाइगोट में सभी प्रकार लिंगी जीन्स पाये जाते हैं जिनके कारण नर तथा मादा जनन तंत्र विकसित होता है। लेकिन इसके एक जाति में यह भी देखा गया है कि तरुण Crepidula नर की तरह व्यवहार करता है क्योंकि यह केवल शुक्राणुओं को ही उत्पन्न करता है तथा जैसे ही यह वयस्क होता है ट्रान्जीशनल अवस्था के द्वारा नर परिवर्तित होकर मादा बन जाता है तथा अण्डाणु उत्पन्न करता. है। यह मादा अवस्था जीवन पर्यन्त चलती रहती है।

ऐसा समझा जाता है कि वातावरण कुछ जीन्सों की क्रिया विधि को नियंत्रित करके लिंग निर्धारण करता है तथा तरुण अवस्था में यह केवल नर फीनोटाइप उत्पन्न करता है जबकि वयस्क अवस्था में यह धीरे-धीरे कुछ अन्य जीन्स को प्रेरित करता है जिनके परिणामस्वरूप मादा फीनोटाइप बनते हैं।


 मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?


मानव में लिंग निर्धारण
 (Sex Determination in Human)


लिंग मेण्डेलियन कारक की तरह व्यवहार करता है। वे गुणसूत्र जो लिंग निर्धारण के लिये उत्तरदायी होते हैं, उन्हें लिंग गुणसूत्र कहते हैं। उदाहरणार्थ - मानव के x तथा y गुणसूत्र । लिंग का निर्धारण  करने वाले जीन जोड़ी विशेष गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं। मनुष्य में दो प्रकार के गुणसूत्र होते हैं-

1. ऑटीसोम्स (Autosomes) -

जिन पर दैहिक लक्षणों एवं सामान्य शरीर क्रिया के जीन होते हैं।

2. लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) -

 जिन पर लिंग का निर्धारण करने वाले जीन होते हैं, उन्हें लिंग गुणसूत्र कहते हैं। इन्हें x तथा y द्वारा निरूपित करते हैं। x गुणसूत्र में मादा के वर्धन के जीन तथा y गुणसूत्र में नर के लिंग निर्धारण करने वाले जीन होते हैं। लिंग गुणसूत्रों को एलीलोसोम्स या हेटरोक्रोमोसोम्स भी कहते हैं।


मानव का गुणसूत्र ढाँचा 
(Human Karyotype)

मानव जाति में 46 गुणसूत्र उपस्थित होते हैं। पुरुष के 46 गुणसूत्रों की 23 जोड़ियों में से केवल 22 जोड़ियों के गुणसूत्र ही समजात (Homologous) होते हैं तथा इन्हें सम्मिलित रूप से ऑटोसोम (Autosome) कहते हैं। 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र असमान होते हैं। ये हिटेरोसोम्स (Heterosomes) या एलोसोम्स (Allosomes) कहलाते हैं। पुरुष के विपरीत स्त्रियों में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र समजात होते हैं तथा ये पुरुष की 23वीं जोड़ी के एक गुणसूत्र के समान होते हैं। ये गुणसूत्र लम्बे तथा छड़ की तरह होते हैं। इन्हें x द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार स्त्री में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र xx होते हैं तथा पुरुष की 23वीं जोड़ी का भी एक गुणसूत्र x होता है, लेकिन दूसरा गुणसूत्र भित्र प्रकार का तथा अत्यन्त छोटा होता है। इसे y से दिखाते हैं। इस प्रकार पुरुष तथा स्त्री के गुणसूत्र ढाँचों को क्रमशः 2A + xy तथा 2A + xy द्वारा प्रदर्शित करते हैं। मनुष्य की 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र को लिंग गुणसूत्र कहते हैं।



मनुष्य में लिंग निर्धारण 

(Sex Determination in Human)

चूँकि पुरुष विषमयुग्मकी (Heterogemetic) होते हैं। अतः युग्मकजनन के समय अर्ध्दसूची विभाजन द्वारा दो प्रकार के शुक्राणु बनाते हैं। आधे वे जिनमें 23वीं जोड़ी का x गुणसूत्र जाता है (A + X) तथा आधे वे जिनमें y गुणसूत्र जाता है (A + Y)। इसके विपरीत स्त्रियाँ समयुग्मकी  (Homogametic) होती हैं अर्थात् इनमें अण्डजनन द्वारा एक ही प्रकार के अण्डाणु बनते हैं, जिसमे की  कि प्रत्येक x-लिंग गुणसूत्र होता है (A + Y)। अब निषेचन (Fertilization) में यदि किसी अण्डाणु से x गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलता है तो युग्मनज (Zygote) में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र xx होंगे तथा इससे बनने वाली संतान लड़की होगी। इसके विपरीत यदि किसी अण्डाणु से y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलेगा तो युग्मनज से लड़के (xy) का विकास होगा।

इस प्रकार मुख्यतः पुरुष का y गुणसूत्र संतान में लिंग-निर्धारण के लिये उत्तरदायी होता है।



 जीनी सन्तुलन के सिद्धान्त को समझाइये।

जीनी संतुलन का सिद्धान्त (Genetic Balance Theory) - इस प्रकार के लिंग निर्धारण की विधि को सर्वप्रथम C.B. Brides ने 1925 में प्रतिपादित किया उन्होंने एक प्रयोग के आधार पर बताया कि ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण के लिये y गुणसूत्र की उपस्थित आवश्यक है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक नर तथा मादा के जीनोम में नर तथा मादा दोनों लक्षणों के जीन होते हैं।

इस प्रकार के जीन्स की संख्या अधिक होती है उसी प्रकार का लिंग निर्धारण होता है। अर्थात् मादा लिंग के निर्धारित करने वाले जीन्सों की संख्या अधिक होने पर मादा जीव विकसित होते हैं तथा अगर नर जीन्स की संख्या ज्यादा होती है तो नर जीव की उत्पत्ति होती है। लिंग गुणसूत्र तथा सोमैटिक गुणसूत्र की संरचना जीन्स के द्वारा होती है। Bridges ने बताया कि लिंग का निर्धारण x गुणसूत्र तथा ऑटोसोम्स के संतुलन की दशा पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि लिंग निर्धारण x गुणसूत्र की मात्रा तथा ऑटोसोम्स के द्वारा निर्धारित होता है। Bridges ने इस प्रकार के लिंग निर्धारण को जीनी संतुलन के रूप में आरेखित किया। उनके अनुसार यदि ऑटोसोम्स A और लिंग गुणसूत्र के साथ x तथा y होता है तो उस दशा में लिंग का निर्धारण निम्न प्रकार से होता है-

2A+x= नर (Male)

2A + ZX  अथवा  (A + X) = मादा (Female)

ऐसा माना जाता है कि दोनों ही लिंगों के जीन्स x तथा ऑटोसोम्स में उपस्थित रहते हैं। लेकिन लिंग का वितरण कुछ इस प्रकार से होता है कि मादा गुण निर्धारण x में प्रभावी होते हैं जबकि आटोसोम्स में नर-निर्धारक गुण विद्यमान होते हैं जिससे यदि x का अनुपात बढ़ा दें तो लिंग निर्धारण की प्रक्रिया में मादा की संभावना बढ़ जाती है और यदि ऑटोसोम्स में y गुणसूत्र को बढ़ा दें तो नर लिंग के प्राप्त होने की प्रबल संभावना होती है। Bridges ने देखा की कभी-कभी मादा ड्रोसोफिला में x गुणसूत्र अर्धसूत्री विभाजन के समय एक-दूसरे से पृथक नहीं होने पाता है जिसके परिणामस्वरुप तीन प्रकार के अण्डों का निर्माण हो जाता है।

(A) सामान्य अण्डा, जिसमें प्रत्येक में 3 ऑटोसोम्स तथा एक x गुणसूत्र होता है।

(B) वह अण्डाणु जिसमें तीन ऑटोसोम्स तथा 2x होते हैं।

वह अण्डाणु जिसमें तीन ऑटोसोम्स तो होते हैं परन्तु x गुणसूत्र नहीं होता है।

इस प्रकार का संयोजन Non-disjunction कहलाता है जिसमें अण्डे का निषेचन तो सामान्यतय शुक्राणु के द्वारा होता है, परन्तु असामान्य संतति उत्पन्न होती है जिसे निम्न पाँच श्रेणियों में विभक्त किया गया है-

1. सामान्य मादा (Normal Female) = AA XX

2. सुपर मादा स्टेराइल (Super Female Sterile) = AA XXX

3. स्टेराइल नर (Sterile Male) = AA XO

4. सामान्यतया नर (Normal Male) = AA XY

5. सामान्यतया मादा (Normal Female) = AA XXY

6. मृतक (Dies) = AA OY

उपरोक्त प्राप्त संततियों से यह स्पष्ट होता है कि y गुणसूत्रों के कारण नर ड्रोसोफिला में फरटाइलिटी (Fertility) तो होती है परन्तु वह नर निर्माण में सहायक नहीं होता इसी प्रकार x गुणसूत्र मादा जीन्स को ले जाता है जबकि नर विभेदन करने वाला जीन्स ऑटोसोम्स में स्थित होता है जबकि y जीन्स लिंग निर्धारण में भाग नहीं लेते हैं।

कुछ जीवों में जीन संतुलन न तो नर के पक्ष में होता है और न ही मादा जन्तु बनाता है बल्कि उनसे मध्य लिंगी जीव (Intersexes) AAA XXX प्राप्त होते हैं।


 नर मधुमक्खी में शुक्राणुओं का निर्माण समसूत्री विभाजन द्वारा क्यों होता है?


नर मधुमक्खियाँ एक गुणित या अगुणित होती है, अतः इनको ड्रोन (Drone) कहते हैं जो सदैव अनिषेचित अण्डों से उत्पन्न होते हैं। मादा मधुमक्खियों जैसे वर्कर या श्रमिक तथा रानी द्विगुणित होती है जो सदैव निषेचित अण्डों से उत्पन्न होती हैं। केवल रानी मधुमक्खी नर द्वारा मैथुन क्रिया करती है और नर के शुक्राणुओं को 5 साल तक अपने अन्दर सुरक्षित रखती हैं तथा अपनी इच्छानुसार अण्डों के निषेचन के लिये काम में लाती है। इस प्रकार मधुमक्खी में लिंग निर्धारण विधि में मादा और नर युग्मक के समेकन द्वारा होने वाले लैंगिक प्रजनन से केवल द्विगुणित मादाओं का निर्माण होता है। नर में युग्मन बनते समय इनमें अर्द्धसूत्रीय विभाजन (Meiosis) नहीं होता अर्थात् नर युग्मज समसूत्रीय विभाजन द्वारा बनते हैं। मादा के शरीर की प्रत्येक कोशिका में 32 गुणसूत्र होते हैं, जिन्हें 2NX द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस प्रकार मादा के निषेचित अण्डे से पार्थोजिनेसिस के द्वारा बने नरों में केवल 16 गुणसूत्र (NX = अगुणित) होंगे।

अत: नर के शुक्राणुओं में गुणसूत्रों की संख्या 16 ही रहती है। जब नर के शुक्राणु और मादा के अण्डाणु समेकित होते हैं, तो द्विगुणित युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है, जिसमें गुणसूत्रों की संख्या 32 (2NX) हो जाती है। इस युग्मनज से मादा श्रमिक तथा रानी का विकास होता है।


क्लाइन फिल्टर सिन्ड्रोम कैसे पैदा होते है

क्लाइनफिल्टर का सिन्ड्रोम (The Klinefelter's Syndrome) - 

यह एक अन्य प्रकार का मनुष्य में पाया जाने वाला असामान्य लक्षण है जिसके द्वारा y गुणसूत्र के प्रभाव को समझा जा सकता है जिसे कभी-कभी मनुष्य में 5000 सन्तानोत्पत्ति के पश्चात् देखा गया है। इस स्थिति में मनुष्य में एक अतिरिक्त गुणसूत्र (44 + xxy = 47) पाया जाता है। इस प्रकार के मनुष्यों को क्लाइनफिल्टर का सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्ति कहते हैं। यह फीनोटाइपिक रूप से तो नर होते हैं लेकिन स्टेराइल (Sterile) होते हैं तथा इनमें लिंग क्रोमैटिन पाजिटिव होता है। इससे पीड़ित व्यक्तियों में नर जननांग वृषण (Testes) अल्प विकसित होता है। बुद्धिलब्धता भी अल्प होती है। वयस्क का आकार सामान्य से आधा होता है तथा स्तनों की भी वृद्धि हो जाती है क्योंकि इनके रक्त में नर हार्मोन्स एन्ड्रोजेन्स (Androgens) कम होते हैं।

परन्तु ऐसा देखा गया है कि अगर पीड़ित व्यक्ति नर हार्मोन्स को स्थानान्तरित कर दे तो इनमें नर लक्षणों का विकास हो जाता है।

इस प्रकार लिंग निर्धारण की विशेष स्थितियों में यह देखा गया है कि मनुष्य के y गुणसूत्रों में नर के जीन्स विद्यमान होते हैं तथा x गुणसूत्र में स्त्रियों के जीन्स होते हैं। परन्तु कभी-कभी y गुणसूत्र की कई x गुणसूत्रों के प्रभाव को सामान्य करने के लिये पर्याप्त होता है। ऑटोसोम्स गुणसूत्रों का मनुष्य के लिंग निर्धारण में कोई महत्व नहीं होता है बल्कि लिंग निर्धारण में लिंग गुणसूत्र (Sex' Chromosomes) (x और y) का महत्वपूर्ण योगदान होता है।


 टर्नर सिन्ड्रोम उत्पन्न होने के कारण एवं उनके लक्षण 


टर्नर्स सिन्ड्रोम 
(The Turner's Syndrome) - 

कुछ मनुष्यों में केवल 44 ऑटोसोम्स +x=45) गुणसूत्र ही होते हैं अर्थात् अन्तिम x गुणसूत्र नहीं होता है तथा यह XO प्रकार के होते हैं इसलिये यह वाह्य रूप से स्त्रियों के लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं परन्तु इसमें लिंगी अंग अल्प विकसित होते हैं जैसे अण्डाशय और स्तन ग्रन्थियाँ अल्प विकसित होती हैं तथा बुद्धिलब्धता भी सामान्य नहीं होती है। इस प्रकार का सिन्ड्रोम यह अभिव्यक्त करता है कि मनुष्य में y गुणसूत्र कुछ नर लक्षणों से युक्त जीन्स को लाता है परन्तु यहाँ पर लिंग मादा का होगा क्योंकि y गुणसूत्र पूर्णरूप से अनुपस्थित होता है।


मानव के बार-बॉडी के महत्व 

 मनुष्य में गुणसूत्रों की संख्या तथा बार-बॉडी की संख्या का परस्पर सम्बन्ध होता है जिसे

निम्न तालिका की सहायता से समझा जा सकता है।


मनुष्य में बार- बॉडीज की संख्या एवं उनका x गुणसूत्रों की संख्या से सम्बन्ध


लिंग क्रोमैटिन
 तथा लिंगीय गुणसूत्र के मध्य में आपसी सम्बन्ध है जिसे Ohno, Kaplan तथा Kinosita ने 1959 में अध्ययन किया और इसके आधार पर उन्होंने स्पष्ट किया कि लिंग क्रोमैटिन की उत्पत्ति केवल एक या दो x गुणसूत्रों के द्वारा होती है जिसमें दूसरा x गुणसूत्र ऑटोसोम्स की तरह कार्य करता है। इण्टरफेज अवस्था में लिंग क्रोमैटिन में कणिकाओं की संख्या NX-1 होती है अर्थात् x गुणसूत्र की जितनी संख्या होगी उससे बार-बॉडी की संख्या एक कम होगी। बार-बॉडी का विशेष आनुवंशिक महत्व है।


 लिंग प्रभावित वंशागति एवं लिंग सीमित वंशागति के बारे में आप क्या जानते है?


लिंग प्रभावित वंशागति - 

मानव में कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जीन तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु विकास व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है। पुरुष और स्त्री में जीन रूप समान होते हुए भी दर्शरूप भिन्न होता है।

मानवों में गंजापन काफी होता है। यह विकीरण तथा थाइरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताओं के कारण भी हो सकता है और आनुवांशिक भी, आनुवांशिक गंजापन एक ऑटोसोमल ऐलील जीन जोड़ी (B,b) पर निर्भर करता है। होमोजाइगस प्रबल जीनरूप (BB) हो तो गंजापन पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन हिटरोजाइगस जीनरूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं केवल पुरुषो में  विकसित होता है, क्योंकि इस जीनरूप में इसके विकास के लिये नर हॉर्मोन्स का होना आवश्यक होता है। होमोजाइगससुप्त जीनरूप (bb) में गंजापन नहीं होता।

लिंग सीमित लक्षण -

ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन भी ऑटोसोम्स में होते हैं। इनकी वंशागति सामान्य मेण्डेलियन पद्धति के अनुसार होती है, लेकिन इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्रावण, भेड़ों की कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकसित होना, मानव में दाढ़ी आदि के लक्षण होते हैं।


 वर्णान्थ व्यक्ति रेलवे ड्राइवर क्योंकि नहीं नियुक्त किये जाते हैं? 


रेलवे सिग्नलों में लाल व हरे रंग होते हैं, वर्णान्धता रोग के कारण वह व्यक्ति लाल व हरे रंग को नहीं पहचान सकता है। यह रोग अप्रभावी जीन्स के कारण होता है जो x गुणसूत्र पर पायी जाती है। y गुणसूत्र पर इनके युग्मविकल्पी का अभाव होता है। पुरुषों में केवल एक ही x गुणसूत्र पर प्रभावी जीन होने से यह रोग उत्पन्न होता है। इस कारण वह लाल एवं हरे का बोध नहीं होता है। ऐसे मनुष्यों को रेलवे ड्राइवर के पद के लिये नहीं चुना जाता है क्योंकि रंग का बोध न होने के कारण सिग्नल को नहीं पहचान पायेगा और दुर्घटना घट जायेगी।


 जुड़वाँ बच्चों के अध्ययन का क्या महत्व है?

जुड़वा बच्चे के अध्ययन का बहुत महत्व है। जुड़वाँ दो प्रकार के होते हैं

1. समरूप (Identical) - 

यह एक ही अण्डे या युग्मनज से उत्पन्न होते हैं। इन बच्चों में एक जैसी जीन्स (Monozygotic) होती है। ऐसे जुड़वाँ विकास पर पर्यावरण के प्रभाव के अध्ययन के लिये अच्छे रहते हैं।

2. पैतृक जुड़वाँ -

यह दो युग्मनजों से गर्भ में एक साथ वर्णन करते हैं। यह डाइजाइगोटिक जुड़वा कहलाते हैं। इन जुड़वाँ बच्चे के सभी लक्षण भिन्न हो सकते हैं। इन पर पर्यावरण, बुद्धि का परीक्षण (I.Q) आनुवांशिकी परीक्षण किये जा सकते हैं।


 मंगोलिज्म क्या है?


यह एक प्रकार का महत्वपूर्ण ह्यूमन सिन्ड्रोम होता है यह गुणसूत्र में समूह उत्परिवर्तनों के कारण विकसित होता है। यह trisomy का उदाहरण है। यह autosomal mutation है।

डाउन सिन्ड्रोम (Down's Syndrome : Langdon Down, 1896) - 

औसतन 700 नवजात शिशुओं में से एक सिन्ड्रोम वाला होता है। इसमें 21वीं जोड़ी के गुणसूत्र दो के बजाय तीन होते हैं। गुणसूत्र समूह (2n + (1) = 47) होता है। समजात गुणसूत्रों के ऐसे समूह को ट्राइसोमिक कहते हैं। इस सिन्ड्रोम वाला व्यक्ति छोटे कद और मन्द बुद्धि का होता है। लगभंग 16 वर्ष की आयु तक इसकी मृत्यु हो जाती है। इसका सिर गोल, त्वचा खुरदरी, जीभ मोटी, अंगुलियाँ दूंठदार, मुख खुला, आँखें तिरछी और पलकें मंगोलों की भाँति, वलित (folded) होती हैं। इसलिये इस सिन्ड्रोम को मंगोली जड़ता (Mongoliod idiocy) भी कहते हैं। इन सिन्ड्रोमों में जननांग सामान्य लेकिन पुरुष नपुंसक होते हैं।

सामान्य व्यक्ति में अधिकतर 46 गुणसूत्र होते हैं परन्तु मंगोल में यह नम्बर 47 हो जाता है। यह 21वें गुणसूत्र पर three copies के कारण होता है। Extra 21 क्रोमोसोम abnormal egg से आते हैं जिनमें 21वाँ pair गुणसूत्र meiosis (अर्द्धसूत्रीय विभाजन) के समय अलग नहीं हो पाता,

इस प्रकार यह Abnormal egg 23 + 1 गुणसूत्र के बन जाते हैं। यह Trisomi 21 karyotype (abnormal) का Example है।


 इन्हे भी देखें-

COMPUTER

लाइनेक्स का ऑफिस-स्टार ऑफिस || Office of Linux-Star Office in Hindi

कंप्यूटर कम्युनिकेशन क्या होता है हिंदी में समझें || Computer Communication

प्रोग्रामिंग क्या है ? || WHAT IS PROGRAMMING? in Hindi

लाइनेक्स कमाण्ड सैट || Linux command set In Hindi

लाइनेक्स की हेल्प कमाण्ड || Linux help command in Hindi

लाइनेक्स में फाइल सम्बन्धी कमाण्ड || file command in Linux in Hindi

'C' भाषा के प्रोग्राम की रूपरेखा अथवा स्ट्रक्चर || STRUCTURE OF A 'C' PROGRAM in hindi

GUI Based Operating System in Hindi || जीयू आई आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम को अब समझें हिंदी में-

Operating System Simple Setting in Hindi || ऑपरेटिंग सिस्टम की सरल सेटिंग कैसे करें

इंटरनेट का परिचय इन हिंदी || Introduction to Internet in Hindi

एम एस एक्सेल में स्प्रेडशीट क्या है? || What is Spreadsheet in MS Excel?

ऐल्गोरिथम क्या होती है || Algorithm kya hai in hindi

कंप्यूटर क्या है अब समझें हिंदी में || what is computer now understand in hindi

पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन कैसे बनाते है हिंदी में सीखें। || how to make a power point presentation in Hindi.

फ्लोचार्ट क्या है || what is flowchart in hindi

लाइनेक्स OS की बनावट कैसे होती है। || STRUCTURE OF LINUX OPERATING SYSTEM IN HINDI

लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम || LINUX OPERATING SYSTEM

लाइनेक्स, विंडोज और डॉस के बीच अंतर || Difference between Linux, Windows & DOS in Hindi

सी भाषा क्या है ? || what is c language in hindi

स्प्रेडशीट पर काम कैसे किया जाता है ||How to work on a spreadsheet in Hindi

स्प्रेडशीट में कैसे सेल की ऊँचाई और चौड़ाई बढ़ाये || how to increase cell height and width in Hindi

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माइटोकॉन्ड्रिया क्या है || what is mitochondria in Hindi

एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम क्या है || What is Endoplasmic Reticulum in hindi

कुछ महत्पूर्ण विज्ञान की प्रमुख शाखाएँ/Major branches of some important sciences

केन्द्रक क्या है || what is the nucleus in hindi

कोशिका किसे कहते हैं || What are cells called? in hindi

महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपकरण और उनके प्रयोग || Important Scientific Equipments and Their Uses

RNA की संरचना एवं प्रकार || Structure and Types of RNA

अर्धसूत्री विभाजन क्या है || what is meiosis ? in hindi

एक जीन एक एन्जाइम सिध्दान्त का वर्णन || ek jeen ek enjaim sidhdaant ka varnan - New!

ऑक्सीजन क्या होती है ?||What is oxygen?

कोशिका चक्र क्या है || what is cell cycle in hindi

क्रॉसिंग ओवर प्रक्रिया का वर्णन तथा इसका महत्व || krosing ovar prakriya ka varnan tatha isaka mahatv - New!

गुणसूत्र क्या होते हैं || What are chromosomes in hindi

गॉल्जीकाय किसे कहते हैं || What are golgi bodies called

जीन की संरचना का वर्णन || jeen kee sanrachana ka varnan - New!

जीव विज्ञान पर आधारित टॉप 45 प्रश्न || Top 45 question based on biology

जेनेटिक कोड क्या है || Genetic code kya hai

डीएनए क्या है || What is DNA

डीएनए प्रतिकृति की नोट्स हिंदी में || DNA replication notes in hindi

ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण की विधि || drosophila mein ling nirdhaaran kee vidhi - New!

प्राणी कोशिका जीवों की सरंचना का वर्णन || Description of the structure of living organisms in hindi

बहुविकल्पीय एलील्स (मल्टीपल एलिलिज्म ) क्या है। || bahuvikalpeey eleels kya hai - New!

भौतिक विज्ञान पर आधारित 35 टॉप प्रश्न || 35 TOP QUESTIONS BASED ON PHYSICS

भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान पर आधारित टॉप 40 प्रश्न। उत्तर के साथ ||Top 40 Questions based on Physics, Chemistry, Biology. With answers

मेण्डल की सफलता के कारण || mendal kee saphalata ke kaaran - New!

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रसायन विज्ञान पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न || Multiple choice questions based on chemistry

रूधिर वर्ग पर टिप्पणी कीजिए || roodhir varg par tippanee - New!

लाइसोसोम क्या होते हैं? || What are lysosomes?

लिंग निर्धारण तथा लिंग गुणसूत्र प्रक्रिया क्या है? || ling nirdhaaran tatha ling gunasootr prakriya kya hai? - New!

लैम्पब्रुश गुणसूत्र || Lampbrush chromosome

वाइरस || VIRUS

विज्ञान की परिभाषा और उसका परिचय ||Definition of science and its introduction

संक्रामक तथा असंक्रामक रोग क्या होते है || communicable and non communicable diseases in Hindi

समसूत्री व अर्धसूत्री विभाजन में अंतर लिखिए || samsutri or ardhsutri vibhajan me antar

सहलग्नता क्या है ? तथा इसके महत्व || sahalagnata kya hai ? tatha isake mahatv - New!

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