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लिंग-सहलग्न वंशागति क्या है। || ling-sahalagn vanshaagati kya hai.

 लिंग-सहलग्न वंशागति से आप क्या समझते हैं? मनुष्य या ड्रोसोफिला के सन्दर्भ में इस परिघटना की उदाहरणों सहित विवेचना कीजिये। ,लिंग सहलग्नता पर एक निबन्ध लिखिये।,लाल-हरी वर्णान्धता एवं हीमोफीलिया की मनुष्य की संतान में वंशागत होने की विभिन्न संभावनाओं का वर्णन कीजिये।,एक वर्णान्ध स्त्री का विवाह एक सामान्य पुरुष से किया गया। इनके सन्तति में वर्णान्धता की कितनी संभावना होगी?


लिंग सहलग्न वंशागति या लिंग सहलग्नता
(Sex Linked Inheritance or Sex Linkage)

समस्त प्राणियों में लिंग गुणसूत्र का एक युग्म होता है। अधिकांश जीवों में इन्हें x-गुणसूत्र तथा y-गुणसूत्र कहते हैं। लिंग का निर्धारण करने के अलावा इन गुणसूत्रों पर दैहिक लक्षणों के भी कुछ जीन होते हैं। लिंग गुणसूत्रों पर स्थित दैहिक (Somatic) लक्षणों के जीन को लिंग सहलग्न जीन (Sex- linked genes) कहते हैं। अतः दैहिक लक्षणों के वे जीन जो लिंग गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं और उसी लिंग गुणसूत्र के साथ वंशागत होते हैं, लिंग सहलग्न जीन कहलाते हैं तथा इनकी वंशागति को लिंग सहलग्न वंशागति (Sex-linked inheritance) कहा जाता है। ऐसी वंशागति की खोज T.H. Morgan (1910-11) ने ड्रोसोफिला मक्खी पर किये गये अपने प्रयोगों द्वारा की। मनुष्य में लगभग 120 दैहिक लक्षण लिंग सहलग्न पाये जाते हैं।


हालांकि x और y लिंग गुणसूत्रों की रचना भिन्न होती है, फिर भी युग्मनजनन (Gametogenesis)  में अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis Division) के समय इनका युग्मन अर्थात् सिनैप्सिस (Pairing or Synapsis) होता है। यह युग्मन अन्य समजात (Homologous) जोड़ियों के गुणसूत्रों के विपरीत लिंग गुणसूत्रों की पूरी लम्बाई में न होकर इनके एक-ए छोटे से खण्डों के बीच ही होता है। इससे स्पष्ट है कि ये छोटे खण्ड इनके समजात खण्ड (Homologous or pairing segments) होते हैं। शेष इनमें अपने अलग-अलग असमजात खण्ड (Non-homologous or differential segments) होते हैं। इसी के अनुसार लिंग सहलग्न लक्षणों को निम्नलिखित 3 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

(1) x सहलग्न लक्षण (x-linked characters) -

वे जिनमें जीन्स x-गुणसूत्र के असमजात (Non-homologous) खण्ड पर होते हैं। साथ ही y-गुणसूत्र पर इन जीन्स के ऐलील (alleles) नहीं होते। अतः ये genes पुत्रियों को माता और पिता दोनों से तथा पुत्रों को केवल माता से मिलते हैं। मानव में अधिकांश लिंग सहलग्न गुण x-सहलग्न ही होते हैं। अतः सामान्यतः लिंग सहलग्नता का अर्थ x-सहलग्नता से ही लगाया जाता है।


(2)y-सहलग्न लक्षण (y-linked characters)

वे जिनमें जीन्स y-गुणसूत्र के असमजात खण्ड पर होते हैं। अतः साथी x-गुणसूत्र पर इनमें एलील नहीं होते। स्पष्ट है कि ऐसे लक्षण केवल पुरुषों में होते हैं और इनके जीन्स पीढ़ी दर पीढ़ी पिता से पुत्रों में ही पाये जाते हैं। अतः इन्हें हौलेन्द्रिक जीन्स (Holandric genes) और इनकी वंशागति को हौलेन्ड्रिक वंशागति कहते हैं। कर्णपल्लयो (ear pinnae) पर लम्बे-लम्बे और कुछ मोटे बालों की उपस्थिति एक ऐसा ही लक्षण होता है, इसे हाइपरट्राइकोसिस (Hypertrichosis of ears) कहते हैं।

(3) xy-सहलग्न लक्षण (xy-linked characters) -

वे जिनके जीन्स x एवं y गुणसूत्रों के समजात (homologous) खण्डों पर ऐलील्स के रूप में होते हैं। स्पष्ट है कि इनकी वंशागति, पुरुषों एवं स्त्रियों के सामान्य आटोसोमल लक्षणों की भाँति होती है। इन्हें अधूरे लिंग सहलग्न (Incomplete sex-linked) लक्षण कहते हैं। पूर्ण वर्णान्धता (Total Colourblindness) नेफ्राइटिस (Nephritis: गुर्दे का एक रोग) एवं कुछ अन्य रोग ऐसे ही आनुवंशिक होते हैं।

(1) मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति
(Inheritance of Colourblindness in Man)

लाल हरे रंग की वर्णान्धता एक अप्रभावी x-सहलग्न लक्षण है। इसका जीन X-गुणसूत्र के असमजात भाग पर स्थित होता है। y-गुणसूत्र पर इसका ऐलील (Allele) नहीं होता क्योंकि पुरुष में केवल एक x-गुणसूत्र होता है। अतः इनमें वर्णान्धता का एक जीन होने पर ही एक लक्षण विकसित हो जाता है। स्त्री में इस लक्षण के विकसित होने के लिये वर्णान्धता के दो अप्रभावी जीनों की आवश्यकता होती है, जिनमें से प्रत्येक जीन एक गुणसूत्र पर स्थित होता है। वर्णान्धता के जीन वाले X-गुणसूत्र केxc से तथा सामान्य दृष्टि वाले जीन को x से प्रदर्शित करने पर विभिन्न संकरण (Cross) को निम्नलिखित प्रकार से प्रकट कर सकते हैं-


1. वर्णान्ध स्त्री व सामान्य पुरुष (Colourblind Woman and Normal Man) - 

वर्णान्य स्त्री का सामान्य पुरुष से विवाह होने पर उनके सभी पुत्र वर्णान्ध तथा पुत्रियाँ सामान्य दृष्टि वाली होती है, किन्तु ये सभी पुत्रियाँ वर्णान्धता के लिये वाहक होती हैं, क्योंकि इनमें एक x-गुणसूत्र पर सामान्य दृष्टि का जीन होता है तथा दूसरे x-गुणसूत्र पर वर्णान्धता xc का जीन होता है।




स्पष्टीकरण (Explanation)

(1) सभी पुत्र वर्णान्ध होते हैं, क्योंकि इन्हें XC गुणसूत्र माता से प्राप्त होता है।
(2) पुत्रियों को सामान्य दृष्टि वाले जीन का x-गुणसूत्र पिता से तथा वर्णान्धता के जीन वाला xc गुणसूत्र माता से प्राप्त होता है, क्योंकि सामान्य दृष्टि वाला जीन प्रभावी (Dominant) होता है। सभी पुत्रियों की दृष्टि सामान्य होती है, किन्तु ये विषमयुग्मजी (xx°) होने के कारण वाहक (Carriers) का कार्य करती हैं।


2. वर्णान्ध पुरुष एवं सामान्य स्त्री (Colourblind Man and Normal Woman) - 

वर्णान्ध पुरुष द्वारा सामान्य दृष्टि वाली स्त्री से विवाह करने पर उसकी सभी सन्तानें एवं पुत्रियाँ सामान्य दृष्टि वाली होती हैं।





3. वाहक स्त्री एवं सामान्य पुरुष (Carrier Woman & Normal Man)-
वाहक स्त्री का सामान्य पुरुष से विवाह होने पर उसकी सभी पुत्रियाँ सामान्य होंगी, किन्तु 50% पुत्र वर्णान्ध हो सकते है।



4. वाहक स्त्री वर्णान्थ पुरुष (Carrier Woman & Colourblind Man) -




(II) मनुष्य में हीमोफिलिया की वंशागति : रक्तस्रावण रोग
(Inheritance of Haemophilia in Man : Bleeds Disease)

हीमोफिलिया भी मनुष्य का एक सिंग सहलग्न रोग है। एक सामान्य व्यक्ति में चोट पर औसतन 2 से 8 मिनट में रुधिर का थक्का (Clot) जम जाता है, जिससे रुधिर का बहना बन्द हो जाता है।हीमोफिलिया के रोगियों में चोट पर काफी समय (1/2 से 24 घण्टे) तक रुधिर में कुछ प्रोटीन्स की कमी के कारण थक्का नहीं जमता और रुधिर बराबर बहता रहता है। इसलिये इसे रक्तस्राव रोग (Bleeder's disease) भी कहते हैं। शीघ्र उपचार न हो तो अत्यधिक रक्तस्राव के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है।

हीमोफिलिया का रोग यूरोप के शाही परिवारों में अति सामान्य रूप से पाया जाता है। हीमोफिलिया की वंशागति के सम्बन्ध में कुछ तथ्य निम्नलिखित हैं

1. हीमोफिलिया रोग अधिकतर परिवार के पुरुषों में ही पाया जाता है।
2. स्त्रियों में यह रोग बहुत कम देखा गया है क्योंकि या तो भ्रूणावस्था में मर जाती हैं अथवा फिर यौवनारम्भ के समय इनकी मृत्यु हो जाती है।
3. स्त्रियों में यह रोग केवल उस दशा में होता है, जब दोनों x-गुणसूत्रों पर इसका जीन होता
है, अर्थात् जब गुणसूत्र xh xh होते हैं।
4. पुरुषों में केवल एक x-गुणसूत्र होता है। अतः ये केवल एक ही हीमोफिलिक जीन के होने पर ही हीमोफिलिक हो जाते हैं। हीमोफिलिया रोग निम्नलिखित अवस्थाओं में हो सकता है


(1) हीमोफिलिक नर द्वारा सामान्य मादा से विवाह करने पर (When a Haemophilic
Male Marriages a Normal Female) - 

ऐसी स्थिति में अमुक व्यक्ति के समस्त पुत्र एवं पुत्रियाँ नान-हीमोफिलिक होंगी। किन्तु पुत्रियाँ इस रोग की वाहक होती हैं, क्योंकि इनको एक सामान्य x-गुणसूत्र माता से तथा हीमोफिलिया के जीन से सहलग्न x-गुणसूत्र पिता से प्राप्त होता है, क्योंकि यह जीन अप्रभावी होता है। अतः यह स्वयं को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। दूसरी ओर पुत्रों को सामान्य x-गुणसूत्र माता से तथा विना Haemophilic जीन वाला y-गुणसूत्र पिता से मिलता है, अतः सभी पुत्र सामान्य होते हैं।




(2)F1 पीढ़ी की वाहक पुत्री का सामान्य व्यक्ति से विवाह होने पर उसके 50% पुत्र हीमोफिलिक होंगे। वाहक पुत्रियों का हीमोफिलिक पुरुष से विवाह होने पर आधी पुत्रियाँ व आधे पुत्र हीमोफिलिक होंगे। इससे स्पष्ट है कि वाहक स्त्री एवं अप्रभावी हीमोफिलिक व्यक्ति का विवाह होने पर ही पुत्रियाँ हीमोफिलिक होंगी।



(3) हीमोफिलिक स्त्री द्वारा सामान्य पुरुष से विवाह करने पर उसके सभी पुत्रों में हीमोफिलिया रोग होगा, किन्तु पुत्रियों में यह रोग नहीं होगा, अर्थात् वे नान-हीमोफिलिक होंगी।






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