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skeletal system of rabbit in hindi

 शशक का कंकाल तंत्र

(SKELETAL SYSTEM OF RABBIT)

शरीर को सहारा देकर इसकी आकृति बनाये रखना तथा आन्तरांगों के विन्यास (arrangement or topography) को यथावत् बनाये रखना और बाहरी दुष्प्रभावों से इनकी सुरक्षा करना शरीर-संघटन के लिए अत्यावश्यक होता है। छोटे जन्तुओं में देहभित्ति से ही काफी सहारा और सुरक्षा मिल जाती है, परन्तु बड़े जन्तुओं में इसके लिए, देहभित्ति के अतिरिक्त भी, किसी-न-किसी प्रकार की दृढ़ रचनाओं की आवश्यकता होती है जिन्हें कंकाल रचनाएँ (skeletal structures) कहते हैं । अकशेरुकियों (invertebrates) में से समुद्रवासियों के शरीर का तरल क्योंकि समुद्री जल से समवलीय (isotonic) होता है, इन्हें कंकालीय सहारे की आवश्यकता नहीं होती और इसके बिना ही ये माप में बड़े हो जाते हैं, जैसे सीपिया, ऑक्टोपस (Sepia, Octopus) इत्यादि । स्थलीय एवं अलवणजलीय (freshwater) अकशेरुकियों में विशेष कंकाल रचनाओं का विकास न होने के कारण इनका शरीर अपेक्षाकृत काफी छोटा रहता है। अकशेरुकियों के विपरीत, कशेरुकियों (vertebrates) में सुदृढ़ कंकाल रचनाओं के एक पृथक् कंकाल तंत्र का उद्विकास हुआ। अतः मुख्यतः स्थलीय या अलवणजलीय होने पर भी इनमें शरीर का माप काफी बढ़ा । समस्त जन्तुओं की कंकाल रचनाओं को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा

सकता है-बाह्यकंकाल तथा अन्तःकंकाल ।

(1) बाहाकंकाल (Exoskeleton)-

इसमें वे कंकाल रचनाएँ होती हैं जो त्वचा की बाहरी सतह पर या इसी में स्थित रहती हैं और इसी को सुदृढ़ बनाने का काम करती हैं। ये त्वचा द्वारा स्रावित पदार्थों की बनी होने के कारण निर्जीव होती हैं। अकशेरुकियों में ये केवल अधिचर्म (epidermis) से व्युत्पन्न रचनाएँ होती हैं। समुद्री निडेरिया (cnidaria) द्वारा स्रावित कठोर कोरल (coral), अनेक मौलस्का (mollusca) के कैल्शियमयुक्त खोल (shells), कृमियों की क्यूटिकिल (cuticle) तथा आर्थोपोडा का काइटिनयुक्त बाहाकंकाल ऐसी ही रचनाएँ होती हैं। कशेरुकियों में बाह्यककालीय रचनाएँ त्वचा की अधिचर्म एवं चर्म (dermis), दोनों से ही बन सकती हैं। अधिचर्मी रचनाएँ प्रायः किरैटिन या हार्न (horm) की बनी होती है। मछलियों एवं सरीसृपों की शल्के (scales); सरीसृपों, पक्षियों एवं स्तनियों के पंजे (claws); पक्षियों के पर एवं चोंच (feathers and beaks); स्तनियों के रोम, नख, सौंग, खुर (hairs, nails, horns. hoofs) आदि सब अधिचर्म (epidermal) कंकाल रचनाएँ होती है। मेढ़क तथा अन्य उभयचरों में ऐसी रचनाएँ नही होती है। (epidermal) कंकाल रचनाएँ होती है। मेंढक तथा अन्य उभयचरों में ऐसी रचनाएँ नहीं होती। चर्मी (dermal) कंकाल रचनाएँ कुछ मछलियों, कुछ उभयचरों (मेढक में नहीं) तथा कछुओं और मगरमच्छों की चर्म में कैल्शियमयुक्त शल्कों या प्लेटों के रूप में होती है।


(2) अन्तःकंकाल (Endoskeleton)- 

इसमें वे कंकालीय रचनाएँ आती है जो त्वचा के नीचे स्थित या इससे शरीर के भीतर तक फैली होती हैं। अकशेरुकियों में ये भी त्वचा के सावण से बनी निर्जीव रचनाएँ होती हैं। स्पेजों की कैटिकाएँ एवं स्पेजिन धागे (spicules and spongin fibres), कुछ सिफैलोपोड (cephalopod) मौलस्का की त्वचा के नीचे स्थित कैल्शियमयुक्त या उपास्थीय (cartilaginous) प्लेटें तथा अनेक एकाइनोडर्मेटा (Echinodermata) की चर्म द्वारा सावित कैल्शियमयुक्त प्लेटे ऐसी रचनाएँ होती है।

कशेरुकियों में आदर्श रूप से कई उपास्थियों और अस्थियों (cartilages and bones) का बना सुद्ध अंतःकंकाल होता है। ये रचनाएँ संयोजी ऊतक से व्युत्पन्न, अर्थात् भ्रूणीय मीसोडर्म (mesoderm) से बनी सजीव रचनाएँ होती हैं। अतः इनमें जीवनभर वृद्धि की क्षमता होती है। ये परस्पर पृथक् न होकर, विविध प्रकार के जोड़ों (=सन्धियों-joints) द्वारा एक दूसरी से जुड़ी होती हैं। इस प्रकार, ये पूर्ण शरीर में फैला एक ढाँचा या अस्थिपंजर (skeletal framework) बनाये रहती हैं (चित्र 1) । पंजर के अनेक जोड़ चल (movable)

चित्र 1 शशक का अन्तःकंकाल

होते हैं, अर्थात् इन पर जुड़ी हुई कंकाल रचनाओं को कुछ सीमा तक हिलने-डुलने की स्वतंत्रता होती है। उपास्थियाँ अस्थियों से कम दृढ़ होती है । निम्न कोटि की मछलियों में पूरा अंतःकंकाल उपास्थीय ही होता है। शेष कशेरुकियों में शरीर-संघटन की जटिलता बढ़ने के साथ-साथ ज्यों-ज्यों शरीर का माप भी बढ़ा, अन्तःकंकाल में उपास्थियों की संख्या कम और अस्थियों की अधिक होती गयी। विभिन्न कशेरुकियों की भ्रूणावस्थाओं में अन्तःकंकाल का ऐसा उद्विकास (Evolutionary) क्रम देखने को मिलता है। 

समस्त कशेरुकियों में अस्थिपंजर की स्थूल रचना का मूल नमूना (busic pattern) समान होता है; बस विभिन्न प्रकार के वास एवं जीवन-रीतियों के अनुसार अनुकूलित (ndapted) हो जाने के कारण, विभिन्न प्रकार के कशेरुकियों के पंजर में विभिन्नतायें विकसित हुई हैं। पंजर के अध्ययन को अस्थिकी (osteology) कहते हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए पूर्ण पंजर को दो भागों में बाँटते हैं-

(1) अक्षीय या ऐक्सियल कंकाल (axial skeleton) तथा

(2) अनुबन्धीय या उपांगीय या ऐपेन्टीकुलर कंकाल (appendicular skeleton)


(1) अक्षीय कंकाल
(AXIAL SKELETON)

इसका प्रमुख भाग मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु के चारों ओर, शरीर की लम्ब पृष्ठ अक्ष (longitudinal dorsal axis बनाता हुआ, सिर, धड़ एवं पूंछ को सहारा देता है। शशक और मानव में इसमें क्रमशः लगभग 132 और 80 हड्डियाँ होती हैं। इसमें चार प्रमुख भाग होते हैं—

(क) खोपड़ी या करोटि

(ख) कशेरुकदण्ड

(ग) पसिलयाँ तथा 

(घ) उरोस्थि।

(क) शशक की खोपड़ी या करोटि (Skull)

मेंढक की करोटि के विपरीत, यह चपटी न होकर कुछ लम्बी एवं सँकरी तथा आगे, तुण्ड में, नीचे झुकी होती है। शशक की खोपड़ी में 53 तथा मानव की में 28 कंकाल रचनाएँ होती हैं। दो बड़े नेत्र कोटर (eye orbits) इसे भी मध्य अक्ष पर स्थित (A) कपालीय एवं पाश्वों में स्थित (B) ग्रसनीय भागों में बाँटते हैं।

(A) कपालीय या क्रैनियल कंकाल (Cranial skeleton)

यह करोटि की मध्य रेखा में स्थित, लम्बा, आयताकार-सा, खोखला, अक्षीय भाग होता है जो मस्तिष्क (brain) एवं इससे सम्बन्धित संवेदांगों (sensory organs) के रक्षात्मक खोल बनाता है। शशक में इसे केवल दो प्रमुख भागों में बाँटा जाता है—पिछला बड़ा

(अ) कपालीय तथा अगला छोटा एवं नुकीला-सा 

(ब) आननी (facial) क्षेत्र ।

                                 

                                         चित्र 2 शशक कौ करोटि का अधर दृश्य

(अ) कपालीय क्षेत्र (Cranial region)

करोटि का यह भाग काफी बड़ा एवं चौड़ा होता है। इसमें मस्तिष्क बन्द रहता है। मेंढक के विपरीत, शशक में श्रवण कोष (auditory capsules) कुछ छोटे एवं कपाल में ही गड़े होते हैं। नेत्र कोटर भी कपाल में ही सम्मिलित रहते हैं। विभिन्न हड्डियों की स्थिति के आधार पर शशक के कपाल को पीछे से आगे की ओर तीन खण्डों में बाँटा जा सकता है—

(1) अनुकपालीय

 (2) मध्यकपालीय तथा

 (3) अग्रकपालीय।

(1) अनुकपालीय या ऑक्सिपिटल खण्ड (Occipital segment)

इसमें महारन्ध्र (foramen magnum) को घेरे हुए चार उपास्थिजात (cartilaginous) हड्डियाँ होती हैं (चित्र 2)—पृष्ठतलीय चपटी सुप्राऑक्सिपिटल (supraoccipital), अधरतलीय चपटी बेसीऑक्सिपिटल (basioccipital) तथा पावों में एक-एक मोटी एक्सऑक्सिपिटल (exoccipital)। प्रत्येक एक्सऑक्सिपिटल पर, महारन्ध्र के निकट, एक अनुकपालीय अस्थिकन्द या कोन्डाइल (occipital condyle) नामक उभार होता है। ये उभार करोटि को प्रथम कशेरुका अर्थात् ऐटलस (atlas) पर साधते हैं। अतः मेंढक की भाँति, शशक की करोटि भी द्विकंदी या

                                        चित्र 3 शशक की करोटि का पृष्ठ दृश्य

दिकोडाइली (dicondylic) होती है। प्रत्येक एक्सऑक्सिपिटल के बाहरी किनारे से एक पारऑक्सिपिंटल प्रवर्ध (paroccipital process) निकल कर अपनी ओर के श्रवण कोष से जुड़ा रहता है। महारध में होकर मस्तिष्क मेरुरजू (spinal cord) से जुड़ा होता है।

(2) मध्यकपालीय या पैराएटल खण्ड (Parietal segment) 

यह अनुकपालीय खण्ड से आगे वाला भाग होता है। इसमें पाँच प्रमुख हड्डियाँ होती हैं—पृष्ठतल की ओर दो दृढ़ कलाजात पैराएटल्स (parietals), अधरतल की ओर एक उपास्थिजात बेसिस्फीनॉएड (basisphenoid) तथा पाश्वों में एक-एक उपास्थिजात ऐलिस्फीनॉएड्स (alisphenoids) |

(a) पैराएटल अस्थियाँ (Parietal bones)

ये चपटी, अण्डाकार-सी तथा पृष्ठतल पर कुछ उभरी हुई होती हैं। दोनों ओर की पैराएटल्स (चित्र .3) मध्यरेखा में परस्पर जुड़कर कपालगुहा की छत का पश्च भाग बनाती हैं। पिछले भाग में दोनों के बीच एक छोटी त्रिकोणाकार-सी, कलाजात इन्टर-पैराएटल (interparietal) हडी होती है।

(b) बेसीस्फीनॉएड अस्थि (Basisphenoid bone) 

यह एक छोटी त्रिकोणाकार-सी हड्डी होती है। इसका अगला नुकीला सिरा प्रीस्फीनोएड से तथा पिछला चौड़ा सिरा बेसीऑक्सिपिटल से जुड़ा होता है। इसकी, मस्तिष्क की ओर मुखान्वित, ऊपरी (कपालीय-cranial) सतह पर, पिट्यूटरी ग्रन्थि (pituitary gland) के लिए, सेला टर्सिका (sella tursica) नामक गड्ढा और अगले सँकरे भाग में एक छोटा पिट्यूटरी छिद्र (pituitary foramen) होता है।

(c) एलिस्फीनॉएड हड्डियाँ (Alisphenoid bones)

 ये बेसिस्फीनॉएड से इधर-उधर जुड़ी त्रिकोणाकार-सी तथा बाहर की ओर स्क्वैमोसल (squamosal) हड्डियों द्वारा ढकी होती हैं। श्रवण कोष (Auditory capsules) ये कपाल के ऑक्सिपिटल तथा पैराएटल खण्डों के बीच में इधर-उधर एक-एक होते हैं। प्रत्येक श्रवण कोष एक पेरिऑटिक (periotic) तथा एक टिम्पैनिक (tympanic) हड्डियों का बना होता है

(d) पेरिऑटिक (Periotic)

 यह अन्तःकर्ण के चारों ओर एक उपास्थिजात एवं असममित आकार की दृढ़ हड्डी होती है (चित्र 2) । यह, वास्तव में, तीन हड्डियों-प्रोऑटिक, एपीऑटिक तथा ओपिस्थोटिक


                        चित्र 4 शशक की करोटि की सैजिटल (sagittal) काट का चित्र

(prootic, epiotic and opisthotic) के समेकन से बनी एक संयुक्त हड़ी होती है। इसमें दो स्पष्ट भाग होते हैं-भीतर एवं आगे की ओर ठोस एवं दृढ़ पीट्रस भाग (petrous part) तथा बाहर एवं पीछे की ओर छिद्रल मैस्टॉएड भाग (mastoid part)। श्रवण कोष मुख्यतः पीट्रस भाग का बना और टिम्पैनिक हड़ी द्वारा ढका होता है।

(e) टिम्पैनिक हड्डी (Tympanic bone)

 यह फ्लास्कनुमा होती है। इसका फूला हुआ भाग भीतर की ओर, पेरिऑटिक से लगा, तथा सैकरा, गर्दननुमा भाग बाहर की ओर होता है। फूले भाग को टिप्पैनिक बुल्ला (tympanic bulla) तथा गर्दननुमा भाग को बाह्य कर्ण कुहर (external auditory meatus) कहते हैं।

टिम्पैनिक बुल्ला की गुहा टिम्पैनिक गुहा या कक्ष (tympanic cavity or chamber) कहलाती है। यही मध्य कर्ण होती है। इसमें बाहर से भीतर की ओर तीन छोटी कर्ण अस्थिकायें (ear ossicles)-मैलियस, इन्कस तथा स्टैपीज (malleus, incus and stapes)-एक-दूसरी के पीछे कोण बनाती हुई, जुड़ी होती हैं। बाह्म कर्ण कुहर के बाहरी मुख पर कर्ण-पल्लव (ear pinna) की उपास्थि लगी रहती है तथा भीतरी मुख पर उपास्थीय छल्लेनुमा कर्ण-पटह झिल्ली (tympanic membrane) मढ़ी रहती है। मध्य कर्ण की मैलियस (malleus) का बाहरी छोर कर्ण-पटह झिल्ली से लगा रहता है। पेरिऑटिक का मेस्टॉएड भाग एक प्रवर्ध (mastoid process) के रूप में, टिम्पैनिक के पश्चतल पर चढ़ा रहता है।

(3) अग्रकपालीय या फ्रॉन्टल खण्ड (Frontal segment)-

 इस खण्ड में भी पाँच हड़ियाँ होती हैं—पृष्ठतल की ओर दो दृढ़ कलाजात फ्रॉन्टल्स (frontals), अधरतल की ओर एक उपास्थिजात प्रीस्फीनॉएड (presphenoid) तथा पाश्वों में एक-एक त्रिकोणाकार, उपास्थिजात ऑर्बिटोस्फीनॉएड्स (orbitosphenoids)

(a) फ्रॉन्टल हड्डियाँ (Frontal bones)

 ये मध्य-रेखा में परस्पर जुड़ कर इस भाग में कपाल-गुहा की छत बनाती हैं। पीछे की ओर ये पैराएटल्स एवं स्क्वैमोसल्स से जुड़ी होती हैं। प्रत्येक फ्रॉन्टल लम्बी, चपटी, एवं असममित होती है। इसका ऊपरी भाग अपनी ओर के नेत्र कोटर (eye orbit) में छजे की भाँति उभरा रहता है। उभार को सुप्राऑबाइटल उभार (supraorbital ridge or process) कहते हैं।

(b) प्रीस्फीनॉएड (Presphenoid) 

यह छोटी और चपटी होती है तथा पीछे की ओर बेसीस्फीनॉएड से जड़ी रहती है।

(c) ऑर्बिटोस्फीनॉएड (Orbitosphenoid) 

 हड्डियाँ-ये चपटी, पंखनुमा और प्रीस्फोनॉएड के इधर-उधर स्थित होती हैं। प्रत्येक के मध्य में दुक छिद्र (optic foramen) होता है। नेत्र कोटर (Eye orbits) शशक के नेत्र कोटर कपाल के फ्रॉन्टल भाग में इधर-उधर होते हैं। प्रत्येक कोटर के सामने, फ्रॉन्टल से लगी एक छोटी कलाजात प्रीफ्रॉन्टल या लैक्राइमल (prefrontal or lachrimal) हट्टी होती है। दोनों कोटरों के बीच में केवल एक इन्टर-ऑबांइटल पट्टी (inter-orbital septum) होती है। ऐसी दशा को ट्रोपिबेसिक दशा (tropibasic condition) कहते है। कपाल गुहा (Cranial cavity) कपाल की कपाल-गुहा, जिसमें मस्तिष्क बन्द रहता है, पीछे महारन (foramen magnum) द्वारा खुली होती है, लेकिन आगे यह एक छिद्रल चालनीरूप पट्टी (cribriform plate) द्वारा ढकी होती है। यह पट्टी उपास्थिजात एवमॉएड (ethmoid) का भाग होती है। इसी के छिद्रों में होकर प्राण तंत्रिकाओं (olfactory nerves) के तन्तु प्राण अगों से मस्तिष्क में आते है।

(ब) आननी या फेशियल क्षेत्र (Facial region)

यह करोटि का अगला, तुण्डाकार भाग होता है जो कपालीय भाग से 60° के कोण पर झुका रहता है। यह ऊपरी जबड़े की हड्डियों सहित धुन (snout) का कंकाल बनाता है। इसमें प्राण कोचों (nasal oralfactory capsules) की हड़ियाँ भी सम्मिलित होती हैं। मेंढक के विपरीत, शशक में कठोर तालू के बन जाने से, श्वसन तथा भोजन मार्ग पृथक् हो जाते हैं और ऊपरी जबड़ों एवं घ्राण कोषों की हड्डियों के विन्यास में बहुत अन्तर हो जाता है।

प्राण कोष (Olfactory capsules or nasal chambers) इनके पृष्ठ भागों में दो लम्बी एवं चपटी कलाजात नासास्थियाँ (nasal bones) होती हैं जो पीछे फ्रॉन्टल्स से तथा मध्य-रेखा में परस्पर जुड़ी रहती हैं। अधर भाग में, दो हड्डियों के समेकन से बनी, एक लम्बी एवं कोमल 'Y' के आकार की कलाजात वोमर (vomer) हड्डी होती है । कोषों के इधर-उधर ऊपरी जबड़े की एक-एक मैक्सिला (maxilla) तथा प्रीमैक्सिला (premaxila) हड़ियाँ होती हैं। नासास्थियों के सामने दो बाह्य नासाद्वार (external nares) नासावेश्मों (nasal chambers) में खुलते हैं। नासावेश्मों के बीच में उपास्थि की एक अन्तरनासा पट्टी (internasal septum) या मीसेथमॉएड (mesethmoid) होती है। प्रत्येक नासावेश्म में भीतर एक ऐंठी हुई-सी सलवटदार (folded) टरबाइनल हड्डी होती है। यह तीन भागों में विभेदित होती है-मैक्सिलोटरबाइनल (maxilloturbinal), नैसोटरबाइनल (nasoturbinal) तथा एथमोटरबाइनल (ethmoturbinal। ये भाग अपनी-अपनी ओर की क्रमशः मैक्सिला, नैसल तथा एथमॉएड हड्डियों के ही अंश होते हैं।

(B) ग्रसनीय कंकाल (Visceral skeleton)

इसमें करोटि के पार्श्व भाग आते हैं। ये जबड़े एवं मुख-ग्रासन गुहिका के तल का कंकाल बनाते हैं जिसे स्प्लैक्नोक्रेनियम (splanchnocranium) कहते हैं।

जबड़े या हनु (Jaws)

शशक में कपाल से जबड़ों का निलम्बन (suspension) या सन्धि (articulation) मेंढक से भिन्न होती है, क्योंकि निचले जबड़े का प्रत्येक अर्धांश सीधे अपनी ओर की स्क्वैमोसल (squamosal) से जुड़ा रहता है। निचले जबड़े की करोदि से ऐसी सन्धि को कैनियोस्टाइली (craniostylic) कहते हैं। इसके कारण, ऊपरी जबड़े की क्वाड्रेट (qundrate) तथा निचले जबड़े की आर्टीकुलर (articular) हड्डियाँ, जबड़ों की सन्धियों के लिए अनावश्यक होकर मध्यकर्ण अस्थियों- क्रमशः इन्कस (incus) एवं मैलियस (malleus) में रूपान्तरित हो जाती हैं।

ऊर्ध्वहनु या ऊपरी जबड़ा (Upper jaw)

इसमें दो समान अर्धभाग या अर्धहनु (rami) होते हैं। प्रत्येक अर्धहनु में, इसकी निलम्बक हड्डियों सहित, निम्नलिखित छ: कलाजात हड्डियाँ होती हैं-

(a) प्रीमैक्सिला (Premaxilla)

यह सबसे आगे छोटी-सी हड्डी होती है जिस पर दो कृन्तक या छेदक या इन्साइजर दन्त (incisor teeth) लेगे होते हैं। इसका एक प्रवर्धनासाप्रवर्ध (nasal process)-पीछे की ओर नासास्थि एवं मैक्सिला के बीच से फ्रॉन्टल तक फैला होता है। नीचे की ओर भी इससे एक छोटा, पैलेटाइन प्रवर्थ (palatine process) निकला रहता है।

(b) मैक्सिला (Maxilla)

 यह प्रीमैक्सिला के ठीक पीछे लम्बी-सी हड्डी होती है। इसके पिछले भाग पर कपोल दन्त (check teeth) लगे होते हैं। इससे, बाहर की ओर, एक लम्बा जाइगोमैटिक प्रवर्ध (zygomatic process) तथा भीतर की ओर एक पैलेटाइन प्रवर्ध (palatine process) निकला होता है। दोनों ओर के पैलेटाइन प्रवर्ध मध्य रेखा में परस्पर सटे रहते हैं।

(c) पैलेटाइन (Palatine)

 मैक्सिला के पैलेटाइन प्रवर्ध के ठीक पीछे, अर्थहनु की तीसरी हट्टी, पैलेटाइन (palatine) होती है। इसके अगले भाग से एक प्रवर्ध भीतर की ओर निकल कर करोटि की मध्यअधर, रेखा पर दूसरी ओर के प्रवर्ध से सटा रहता है। प्रीमक्सिली, मैक्सिली तथा पैलेटाइन हड्डियों के ये सब प्रवर्ध ही शशक का कठोर या द्वितीयक तालु (hard or secondary palate) बनाते हैं।

(d) टेरीग्वॉएड (Pterygoid) 

यह पैलेटाइन के पीछे जुड़ी एक छोटी-सी हड्डी होती है।

(e) स्क्वैमोसल (Squamosal) 

यह अर्धहनु का शेष भाग बनाती है। पृष्ठतल की ओर यह पैराएटल एवं फ्रॉन्टल से तथा पीछे की ओर पेरिऑटिक एवं टिम्पैनिक से सटी रहती है। इसका एक पोस्ट-टिम्पैनिक प्रवर्ध (post-tympanic process) पेरिऑटिक से लगा रहता है। एक जाइगोमैटिक प्रवर्ध (zygomatic process) इसके बाहरी भाग से आगे की ओर निकला रहता है। इस प्रवर्ध के पिछले भाग में, नीचे की ओर, एक छिछली ग्लीनॉएड खाँच (glenoid fossa) होती है जिसमें निचले जबड़े का अर्धांश सधा रहता है।

(1) जुगल हड्डी (Jugal bone)

यह एक लम्बी, सँकरी और कुछ लहरदार (wavy) हड्डी होती हैं जो मैक्सिला तथा स्क्वैमोसल के जाइगोमैटिक प्रवर्ध के बीच फैली इन्हें परस्पर जोड़कर, नेत्र कोटर को घेरे हुए, एक कमानरूपी जाइगोमैटिक चाप (zygomatic arch) बनाती है।

निचला जबड़ा (Lower jaw)

इसे मैडिबल (mandible) भी कहते हैं। इसके प्रत्येक अर्धभाग (चित्र.5) में एक ही बड़ी कलाजात हड्डी, दन्तिका या डेन्टरी (dentary), होती है। इसमें आगे एक छेदक (incisor) दन्त तथा पीछे कपोल दन्त (cheek teeth) लगे होते हैं। आगे की ओर दोनों दन्तिकाएँ शंक्वाकार होती हैं और सिरों पर सिम्फाइसिस Caymphysis) द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं। पीछे की ओर प्रत्येक दन्तिका चौड़ी एवं चपटी होती है। इसके पृष्ठतल पर एक उभार अर्थात् कोन्डाइल (condyle) होता है जो अपनी ओर की स्क्वैमोसल की ग्लीनॉएड खाँच में फिट रहता है। कोन्डाइल के निकट, आगे की ओर, एक छोटा पृष्ठतलीय कोरोनॉएड प्रवर्ध (coronoid process) तथा पीछे की ओर, एक छोटा अधरतलीय ऐगुलर प्रवर्ध (angular process) निकला रहता है।

                                     चित्र 5 शशक के निचले जबड़े का अर्धाश


हाइऔइड उपकरण (Hyoid apparatus)

शशक में, मेंढक के विपरीत यह, उपास्थि का न होकर, मुख्यतः अस्थि का बना होता है। इसी पर शशक की जीभ सधी रहती है। जीभ की जड़ में स्थित, इसका प्रमुख भाग या बॉडी (body) एक प्लेटनुमा हड्डी होती है जिसे बेसीहॉयल (basihyal) कहते हैं (चित्र 6) । इसी हड्डी से दो अग्र श्रृंग (anterior cornua) आगे

                            चित्र 6 हाइऔइड उपकरण के अन (A) एवं पार्श्व (B) दृश्य

की ओर तथा दो छोटे पश्च भंग (posterior cornua) पीछे की ओर निकले होते हैं। प्रत्येक अग्र शृंग, आधार से सिरे की ओर, क्रमशः सिरैटोहायल (cerathyal), एपीहायल (epihyal), स्टाइलोहायल (stylohyal) तथा टिप्पैनोहायल (tympanohyal) नामक चार छोटी हड्डियों का बना होता है। यह ऊपर की ओर बढ़कर टिम्पैनिक हड्डी के पास नियम से जुड़ा रहता है। प्रत्येक पश्च शृंग थाइरोहायल (thyrohyal) नामक अकेली हड्डी का बना होता है। दोनों पश्च श्रृंग पीछे की ओर स्वर-यंत्र (larynx) से जुड़कर इसे सहारा देते हैं।

करोटि के छिद्र (Foramina of skull) शशक की करोटि में कई छोटे-छोटे छिद्र अर्थात् फोरामिना (foramina) होते हैं। प्रत्येक फोरामेन (foramen) में होकर कोई-न-कोई तंत्रिका या रुधिरवाहिनी गुजरती है।


करोटि के कार्य

(1) यह सिर का कंकाल बनाती है।

(2) मस्तिष्क और इससे सम्बन्धित संवेदांगों के लिए रक्षात्मक खोल बनाती है।

(3) जबड़ों को साधती और इनसे सम्बन्धित पेशियों को संयोजन-स्थान प्रदान करती है।

(4) हाइऔइड को सहारा देकर जीभ और लैरिक्स को साधने में सहायता करती है।

(5) नासाद्वारों का नियंत्रण करती है।

(6) दाँतों द्वारा भोजन-ग्रहण और भोजन को कुतरने एवं चबाने में सहायता करती है।


नोट- इसके बाद हम अगले पोस्ट मे शशक की संरचना एवं कार्यो का सारांश ,मेंढक तथा शशक की करोटि की तुलना ,शशक की कशेरुकदण्ड एवं पसलियाँ आदि के बारे में जानेगेंं

इन्हें भी देखें-

COMPUTER

Hindi Grammar

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