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Vertebral column of rabbit in hindi

 इसे पिछले पोस्ट में हमनें शशक का कंकाल तंत्र- में शशक के बाह्यकंकाल,अन्त:कंकाल अक्षीय कंकाल आदि के बारे में जाना था अब इस पोस्ट मे उसके आगे जानेगें




 शशक की कशेरुकदण्ड 
Vertebral column
of Rabbit

पूर्ण पंजर को दो भागों में बाँटा जाता है।

(1) अक्षीय या ऐक्सियल कंकाल (axial skeleton) 

(2) अनुबन्धीय या उपांगीय या ऐपेन्टीकुलर कंकाल (appendicular skeleton)


(1) अक्षीय या ऐक्सियल कंकाल (axial skeleton) 

 इसमें चार प्रमुख भाग होते हैं—

(क) खोपड़ी या करोटि

(ख) कशेरुकदण्ड

(ग) पसिलयाँ तथा 

(घ) उरोस्थि।

इस पोस्ट में हम- शशक की कशेरुकदण्ड (Vertebral column) एवं (ग) पसलियाँ (Ribs),(घ) उरोस्थि के बारे में जानेंगे

(ख) शशक की कशेरुकदण्ड (Vertebral column) एवं (ग) पसलियाँ (Ribs)

कशेरुकियों में, करोटि से लेकर पूँछ के छोर तक शरीर की मध्यपृष्ठ रेखा में फैली, रीढ़ की हड्डी या कशेरुकदण्ड (backbone or vertebral column) होती है । इसमें मेरुरज्जु (spinal cord) बन्द रहती है। अतः गरदन, धड़ एवं पूंछ को शहतीर की भाँति साधे रखने के अतिरिक्त, यह मेरुरज्जु की सुरक्षा भी करती है। यह दण्ड एक-दूसरी से आगे-पीछे संधित कई छोटी-छोटी मुद्राकार कंकाल रचनाओं की बनी होती है जिन्हें कशेरुकायें (vertebrae) कहते हैं । शरीर के क्षेत्रीयकरण के अनुसार ही कशेरुदण्ड को निम्नांकित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) ग्रीवा या सर्वाइकल भाग (cervical region)-आदर्श रूप से केवल 7 कशेरुकाएँ।

(2) वक्षीय या थोरैसिक भाग (thoracic region)-12 या 13 (19 तक) कशेरुकाएँ।

(3) कटि या लम्बर भाग (Lumbar region)-6 या 7 कशेरुकाएँ।

(4) त्रिक या सैक्रल भाग (sacral region)—प्रायः 4 (2 से 5 तक) कशेरुकाएँ।

(5) पुच्छ या कॉडल भाग (caudal region)-

16 से 50 तक कशेरुकाएँ। इस प्रकार, जबकि मेंढक में केवल 10 कशेरुकाएं होती हैं, शशक में ये 44 से 47 तक होती हैं। 4 त्रिक् कशेरुकाओं के परस्पर समेकित होने से इनकी संख्या कुछ कम, 41 से 44, मानी जाती है। मनुष्य में 33 कशेरुकाएँ होती हैं, लेकिन त्रिक एवं पुच्छ कशेरुकाएँ समेकित होकर एक-एक ही हड्डी बनाये रहती हैं। अतः मनुष्य में इनकी संख्या 26 ही मानी जाती है। स्तनियों की कशेरुकाओं के निम्नलिखित विशिष्ट लक्षण होते हैं-

(1) प्रत्येक कशेरुका के कशेरुकमूल वा सेन्ट्रम (centrum) का अगला एवं पिछला, दोनों सिरे चपटे, अगों (acoclous) होते हैं। ऐसे सेन्ट्रम को उभयपट्टित (amphiplatyan) कहते हैं।

(2) प्रत्येक सेन्ट्रम के प्रत्येक चपटे सिरे पर एपिफाइसिस (epiphysis) नाम की एक महीन अस्थीय प्लेट समेकित (fused) होती है।

(3) सेन्ट्रा के दोनों सिरों के चपटे और एपिफाइसिस द्वारा ढके होने के कारण शशक की कशेरुकाओं के बीच कन्दुक-उलूखन सन्धियाँ (ball and socket joints) नहीं हो सकी। अतः स्तनियों में, कशेरुकाओं को दौड़ने व कूदने में परस्पर रगड़ और धक्के से बचाने के लिए, कशेरुकाओं के बीच-बीच में तन्तुमय उपास्थि (fibro-cartilage) की चपटी एवं वृत्ताकार-सी अन्तराकशेरुक गहियाँ (intervertebral discs) होती हैं। प्रत्येक गद्दी का मध्य भाग कोमल होता है। इसे मज्जी केन्द्रक (nucleus pulposus) कहते हैं। इन गद्दियों के कारण, कशेरुकदण्ड में काफी लोच हो जाता है। अपने जाइगपोफाइसेस (zygapopilyses) की सहायता से भी कशेरुकाएं परस्पर थोड़ा-बहुत हिल-डुल सकती हैं।

                                    शशक में कशेरुकाओं की आदर्श रचना

लम्बर कशेरुकाएँ (Lumbar Vertebrae)

कशेरुकाएँ शरीर के विभिन्न भागों के कार्यों के अनुसार विशिष्टता-प्राप्त (specialized) होती है, लेकिन इनकी मूल रचना एक-सी होती है। कटि (lumbar) भाग की कशेरुकएँ शशक की आदर्श या प्रारूपिक कशेरुकाएँ (typical vertebrae) होती है।

वक्ष तथा पश्चपादों के बीच का प्रमुख, उदरभाग कटि भाग कहलाता है। शशक में, उछल-उछल कर दौड़ने के झटकों को सहने के लिए, इस भाग की कशेरुकाएँ सबसे दृढ़ होती है। प्रत्येक का सेन्ट्रम लम्बा होता है। इसके ऊपर तंत्रिकीय चाप (neural arch) तथा तंत्रिकीय नाल (neural canal) होती है (चित्र 1)। चाप के मध्यपृष्ट भाग से लम्बा तंत्रिकीय कंटक (neural spine) तथा आप एवं पश्च भागों से एक-एकजोड़ी योजिप्रवर्ध (zygapophyses) निकले रहते हैं। अगले योजिप्रवर्धा (prezygapophyses) के सन्धि-तल (articular facets) ऊपर एवं भीतर की ओर होते हैं। पिछले योजिप्रव! (postzygapophyses) के सन्धि-तल नीचे एवं बाहर की ओर होते हैं। प्रत्येक कशेरुका के पिछले योजिप्रवर्ध पीछे की कशेरुका के अगले योजिप्रवर्षों के साथ सन्धित होते हैं। सेन्ट्रम से, दोनों पावों में, एक-एक लम्बा, चपटा एवं तिरछा नीचे तथा आगे की ओर झुका, अनुप्रस्थ प्रवर्ध (transverse process) निकला होता है। इन सबके अतिरिक्त, प्रत्येक लम्बर कशेरुका की न्यूरल चाप से, योजिप्रवों के निकट ही, दो जोड़ी प्रवर्ध और निकले होते हैं-आगे बड़े, दृढ़, चपटे एवं ऊपर की ओर उठे हुये-से मेटापोफाइसेस (metapophyses) तथा पीछे, छोटे एवं पीछे की ओर झुके एनैपोफाइसेस (anapophyses)। पहली दो या तीन लम्बर कशेरुकाओं में, सेन्ट्रम से अधरतल की ओर निकला, हाइपैपोफाइसिस (hypapophysis) नामक, एक और प्रवर्ध होता है । ये सारे प्रवर्ध पीठ की बड़ी-बड़ी पेशियों को सन्धि-स्थान प्रदान करते हैं। इसीलिए, लम्बर कशेरुकाएँ सबसे बड़ी होती हैं। प्रत्येक दो लम्बर कशेरुकाओं के बीच जोड़ीदार अन्तराकशेरुक छिद्र (intervertebral foramina) होते हैं जिनमें होकर मेरुरज्जु से स्पाइनल तंत्रिकाएँ बाहर निकलती हैं।


                    चित्र 1 शशक की लम्बर कशेरुकाएँ-A. एक पश्च लम्बर का पार्श्व दृश्य; 
                    B. एक अन लम्बर का अग्र दृश्य


वक्षीय कशेरुकाएँ (Thoracic vertebrae)

शरीर के वक्ष भाग में, फेफड़ों एवं हृदय की सुरक्षा तथा श्वास-क्रिया (breathing) के लिये, हड्डियों का चौतरफा कटहरा (cage) होता है। कटहरे का अधर भाग स्टनम (sternum) का, पृष्ठ भाग वक्षीय कशेरुकाओं का तथा पार्श्व भाग पसलियों (ribs) के बने होते हैं। अतः वक्षीय कशेरुकाएँ (12 या 13) सब पसलियों से सन्धि हेतु उपयोजित होती हैं। प्रत्येक में सेन्ट्रम, तंत्रिकीय चाप, तंत्रिकीय कंटक तथा योजिप्रवर्ध विकसित होते हैं। पहली नौ वक्षीय कशेरुकाओं के तंत्रिकीय कंटक लम्बे, पतले एवं पीछे की ओर झुके, परन्तु शेष के कुछ छोटे, मोटे और सीधे खड़े होते हैं।

प्रत्येक वक्षीय कशेरुका से दोनों पावों में एक-एक पसली (rib) जुड़ी रहती है। पसलियाँ कमान की भांति वक्षगुहा को घेरती हुई, अधरतल की ओर, उरोस्थि (sternum) से जुड़ी रहती हैं (चित्र 1) । प्रत्येक पसली का, कशेरुका से जुड़ा, पृष्ठ भाग लम्बा और अस्थीय (bony or vertebral part) तथा स्टर्नम से जुड़ा अधर या स्टर्नल भाग (sternal part) उपास्थीय होता है। वर्टीबल भाग का कशेरुका से जुड़ा हुआ सिरा द्विशाखीय (biramous) होता है। इसकी एक शाखा छोटी तथा दूसरी कुछ बड़ी होती है। छोटी शाखा को गुलिका या टुबरकुलम (tuberculum) कहते हैं। यह कशेरुका के अनुप्रस्थ प्रवर्ध से इसके स्वतंत्र छोर के निकट इसके अधरतल पर जुड़ी होती है। प्रवर्ध का यह सन्धि-स्थान चिकना एवं कुछ नीचे झुका होता है। इसे टुबरकुलर फैसेट (tubercular facet) कहते हैं। इसके विपरीत, बड़ी शाखा, जिसे मुण्डतल या कैपिटुलम (capitulum or head) कहते हैं, कशेरुका के सेन्ट्रम के पश्च छोर के पृष्ठतल पर उपस्थित एक पृष्ठ-पार्श्व कैपिटुलर फैसेट (capitular facet) पर जुड़ी होती है। यह कैपिटुलर फैसेट पूरा एक ही कशेरुका के सेन्ट्रम पर न होकर प्रायः पिछली कशेरुका के सेन्ट्रम के अन छोर पर भी फैला होता है। इस प्रकार प्रत्येक पसली का कैपिटुलम दो निकटवर्ती कशेरुकाओं से जुड़ा होता है और इसके लिये प्रत्येक वक्षीय कशेरुका के सेन्ट्रम के दोनों सिरों पर दो-दो कैपिटुलर फैसेट्स के अर्ध भाग होते है जिन्हें डेमीफैसेट्स (capitular demifacets) कहते हैं। पसलियों एवं कशेरुकाओं के बीच की सब सन्धियाँ चल होती हैं। अतः इन सन्धियों के कारण तथा पसलियों के स्टर्नल सिरों के उपास्थीय होने के कारण ही सांस लेने में वक्ष भाग का बार-बार फूलना सम्भव होता है।

चित्र 2 A-पसलियों सहित वक्षीय कशेरुका का अग्र दृश्य; :- कैपिटुलर डेमीफैसेट्स दिखाते हुए कुछ कशेरुकाओं के सेन्ट्रा तथा सम्बन्धित पसलियों के कैपिटुलर सिरे।

पहली नौ वक्षीय कशेरुकाओं की पसलियाँ बड़ी और स्टर्नम से जुड़ी होती हैं। शेष की, छोटी या अधूरी होने के कारण, स्टर्नम तक नहीं पहुँचतीं। अतः इन्हें मुक्त या प्लावी पसलियाँ (floating ribs) कहते हैं। इनके द्विशाखीय वटींबल सिरों पर की टुबरकुलर शाखा भी बहुत छोटी होती है। अतः यह सिरा केवल कैपिलुटर शाखा द्वारा सम्बन्धित कशेरुका के सेन्ट्रम से जुड़ा होता है। इसीलिए, इन कशेरुकाओं के अनुप्रस्थ प्रवर्ध छोटे होते हैं तथा कैपिटुलर फैसेट्स डेमीफैसेट्स न होकर पूरे अपनी ही कशेरुका के सेन्ट्रम पर होते हैं। प्रत्येक दो वक्षीय कशेरुकाओं के बीच भी, स्पाइनल तंत्रिकाओं के लिए, अन्तराकशेरुकीय छिद्र (intervertebral foramina) होते हैं।

ग्रीवा कशेरुकाएँ (Cervical vertebrae)

स्तनियों (कुछ स्लोथों-sloths एवं समुद्री गायों-sea cows को छोड़कर) की गर्दन लम्बी (कैट) हो या छोटी (चूहा), इसमें कशेरुकाओं की संख्या सदैव सात ही होती है।

आदर्श रचना-पहली दो ग्रीवा कशेरुकाएँ अत्यधिक विशेषित (specialized) होती हैं। अतः ग्रीवा कशेरुकाओं की आदर्श रचना के अध्ययन के लिए पिछली पाँच में से कोई एक लेनी चाहिये (चित्र 2) । इसमें सेन्ट्रम चौड़ा तथा तंत्रिकीय चाप एवं योजिप्रवर्ध विकसित होते हैं। तंत्रिकीय कंटक कुछ छोटा और सीधा खड़ा होता है। इन कशेरुकाओं पर भी पसलियों के द्विशाखीय बर्टीबल सिरे होते हैं, परन्तु पसलियाँ विकसित नहीं होती। इसीलिए, प्रत्येक द्विशाखीय सिरे की दोनों शाखाएँ सम्बन्धित कशेरुका के अनुप्रस्थ प्रवर्ध एवं सेन्द्रम से जुड़ी नहीं, वरन् पूरी तरह समेकित (fused) होकर इन्हों के अंश बन जाती हैं। सातवों को छोड़, शेष सभी ग्रीवा कशेरुकाओं के प्रत्येक अनुप्रस्थ प्रवर्ध के आधार भाग में एक छोटी-सी वर्टीबारटीरियल कुल्या (vertebrarterial canal) होती है जिसमें होकर सम्बन्धित रुधिरवाहिनियाँ एवं तंत्रिकाएँ निकलती हैं। ये कुल्याएँ शरीर के अन्य भागों की कशेरुकाओं में नहीं होतीं। 7 वीं कशेरुका का कंटक कुछ लम्बा होता है। इसके सेन्ट्रम के पिछले सिरे पर प्रथम वक्षीय कशेरुका की पसलियों के डेमीफैसेट्स होते हैं। ग्रीवा कशेरुकाओं के विकसित योजिप्रवों के कारण ही गर्दन लचकदार होती है और इधर-उधर घुमायी जा सकती है।


                                   चित्र 3 आदर्श ग्रीवा कशेरुका का अग्र दृश्य

पहली तथा दूसरी ग्रीवा कशेरुकाओं को क्रमशः शीर्षधरा या ऐटलस (atlas) तथा अक्षक या ऐक्सिम (axis) कहते हैं। ये करोटि को कशेरुकदण्ड पर साधने एवं इधर-उधर घुमाने का काम करती हैं और इन्हीं कामों के लिए विशेषीकृत होती हैं।

शीर्षधरा या ऐटलस कशेरुका (Atlas vertebra)

यह करोटि के ठीक पीछे स्थित, कशेरुकदण्ड की प्रथम कशेरुका होती है और करोटि को दण्ड पर साधती यह एक मुद्रा जैसी (ring-like) दिखाई देती है (चित्र 3) । इसमें सेन्ट्रम नहीं होता, केवल तंत्रिकीय चाप होती है। अतः इसकी तंत्रिकीय नाल चौड़ी होती है। तंत्रिकीय कंटक बहुत छोटा होता है। योजिप्रवर्ध नहीं होते। मुद्रा के दोनों पाश्वों में एक-एक लम्बा एवं चपटा पखनुमा अनुप्रस्थ प्रवर्ध (wing or tramsverse  process) होता है। यह वास्तव में एक अनुप्रस्थ प्रवर्ध तथा एक पसली के समेकन से बना होता है। इसीलिए, इसके आधार पर  पश्चपृष्ठ एवं वर्टीबारटीरियल कुल्या होती है।

चित्र 4 शशक की ऐटलस कशेरुका के A. पश्चपृष्ट एवं B अग्रअधर दृश्य

इन प्रवधों पर सिर को हिलाने-डुलाने वाली पेशियाँ लगी होती हैं। मुद्रा के अग्रतल पर दो गड्ढेनुमा ऑक्सिपिटल फैसेट्स (occipital facets) होते हैं। इनमें करोटि के ऑक्सिपिटल कोन्डाइल्स फिट रहते हैं। यह सन्धि करोटि को ऊपर-नीचे उठने एवं झुकने की तथा इधर-उधर हिलने-डुलने की कुछ स्वतंत्रता प्रदान करती है। मुद्रा के पश्चतल पर भी दो छिछले गड्डेनुमा सन्धि फैसेट्स (articular facets) होते हैं जिनमें ऐक्सिस के सेन्ट्रम का अगला गोल सिरा फिट रहता है।

 मुद्राकार ऐटलस की तंत्रिकीय नाल, एक लचीले अनुप्रस्थ स्नायु या लिगामेन्ट (ligament) द्वारा दो भागों में बँटी होती है-चौड़ा, पृष्ठ तंत्रिकीय भाग जिसमें मेरुरज्जु रहती है तथा छोटा-सा, अधर ओडोन्टॉएड छिद्र (odontoid fossa) जिसमें ऐक्सिस का ओडोन्टॉएड प्रवर्ध (odontoid process) फिट रहता है। मुद्रा के अधर भाग से एक छोटा प्रवर्धरूपी अधर टुबर्कल (ventral tubercle) निकला रहता है। 

अक्षक या ऐक्सिस कशेरुका (Axis vertebra)

 यह सिर को कशेरुकदण्ड पर घुमाने के लिए धुरी का काम करने हेतु विशेषीकृत होती हैं। इसमें अग्र योजिप्रवर्षों के अतिरिक्त, अन्य सभी भाग होते हैं (चित्र 5) । तंत्रिकीय कंटक चपटे उभार (ridge) जैसा तथा आगे की ओर झुका होता है। अनुप्रस्थ प्रवर्ध बहुत छोटे होते हैं, परन्तु इनके आधार पर वर्टीबारटीरियल कुल्याएँ होती है। सेन्ट्रम के अगले सिरे पर, खूटी की भाँति आगे निकला, ओडोन्टॉएड प्रवर्ध odontoid process) होता है। यह वास्तव में ऐटलस का सेन्ट्रम होता है जो पूर्वविकास काल में इससे पृथक् होकर ऐक्सिस से जुड़ जाता है। यह ऐटलस के ओडोन्टॉएड छिद्र में फिट रहता है। यही उस धुरी (pivot) का काम करता है जिस पर ऐटलस तथा इसी के साथ-साथ करोटि इधर-उधर घूमती है। इसके आधार के पास, ऐक्सिस के सेन्ट्रम पर, दोनों  ओर एक-एक गोल सन्धि-उभार होते हैं जो ऐटलस के सन्धि फैसेट्स (articular facets) में फिट होकर कन्दुक-उलूखल सन्धियाँ (ball and socket joints) बनाते हैं। ये सन्धियाँ भी करोटि को घुमाने में सहायता करती हैं।


                                                चित्र 5 ऐक्सिस का पार्श्व दृश्य

त्रिक कशेरुकाएँ (Sacral vertebrae)

लम्बर भाग के पीछे चार विक् कशेरुकाएँ होती हैं। ये परस्पर समेकित होकर एक ही दृढ़ हड्डी बनाती है जिसे सैक्रम (sucrum) कहते हैं (चित्र 5 सैक्रम श्रोणिमेखलाओं के बीच में स्थित होता है। इसकी पहली कशेरुका से श्रोणिमेखला की इलियम (ilium) हड्डियाँ जुड़ी होती है। इसीलिए, यह कशेरुका अन्य तीन से बड़ी और दृढ़ होती है। इसका सेन्ट्रम चौड़ा और चपटा होता है। इसके दोनों ओर एक-एक चपटा प्रवर्ध निकला रहता है जिसे पंख (wing) कहते हैं। ये पंख अनुप्रस्थ प्रवों तथा पसलीय सिरों के समेकन से बनते हैं। श्रोणिमेखलाओं की इलियम हड्डियाँ, सैक्रो-इलियक सन्धियों (sacro-iliac joints) द्वारा, इन्हीं से जुड़ी होती हैं। शेष तीन सैक्रल कशेरुकाओं पर पखरूपी प्रवर्थ नहीं होते। चारों सैकल कशेरुकाओं के तंत्रिकीय कटक पीके की ओर झुके होते हैं। प्रत्येक कटक पास दोनों ओर एक-एक छोटा योजिप्रवर्थ होता है। इन कशेरुकाओं के बीच-बीच के अन्तराकशेरुक छिद्र अधरतल की ओर होते हैं।

चित्र 6 A.प्रथम सैकल कशेरुका का अग्र दृश्य; B. सैक्रम का पृष्ठ दृश्य

दृढ़ सैक्रम श्रोणिमेखला (pelvic girdle) को साधने के अतिरिक्त, उछल-उछल कर दौड़ने में इस भाग पर पड़ने वाले धक्कों को स्वयं सहकर कशेरुकदण्ड की रक्षा करता है।

पुच्छ कशेरुकाएँ (Caudal vertebrae)

सैक्रम के पीछे पूँछ के कंकाल की 16 पुच्छ कशेरुकाएँ होती हैं। इनमें अनुप्रस्थ प्रवर्ध नहीं होते (चित्र 6)। तंत्रिकीय चाप, कंटक तथा योजिप्रवर्ध भी कुछ अग्र पुच्छ कशेरुकाओं में ही होते हैं; पीछे की ओर ये धीरे-धरि छोटे होकर लुप्त हो जाते हैं। अन्तिम 5-6 पुच्छ कशेरुकाओं में केवल छोटा-सा, 

चित्र 13 एक अप्र पुच्छ कशेरुका के A. पाव एवं B. अन दृश्य; बेलनाकार सेन्ट्रम ही होता है। C.एक पश्च पुच्छ कशेरुका का पार्श्व दृश्य



मेंढक तथा शशक की कशेरुकदण्ड की तुलना

                                                      मेंढक

1. गरदन एवं पूछ की अनुपस्थिति के कारण छोटी; केवल  10 कशेरुकाएं, दसवीं यूरोस्टाइल नामक एक लम्बी  के रूप में।
2. दण्ड पाँच भागों में विभेदित।
3.अधिकांश कशेरुकाओं में सेन्ट्रम अगले सिरे पर गद्देदार |  (प्रोसीलस), नयों और प्रथम में दोनों सिरों पर उभरा (ऐसीलस); आठवा दोनों सिरों पर गवेदार (एम्फीसीलस)।
4. सेन्ट्रम के अप एवं पश्च सिरों पर अस्थि को प्लेटे नहीं होती है।
5.कोलकाओं के बीच-बीच में अन्तराकशेस्क गरियां नहीं होती।
6. पसलियां नहीं होती।
7.ऐटलस कशेरुका में न्यूरल कटक एवं सेन्ट्रम होता है; न्यूरल कुल्या बेटी नही होती है ।
8. दूसरी कशेरुका अन्य कशेरुकाओं के समान।
9. आ एवं पश्य पोजिप्रवों के अतिरिक्त अन्य सन्धि प्रवर्ध नही

                                                            शशक

1. दण्ड लम्बी, 44 से 47 तक कशेरुकाएँ; यूरोस्टाइल नहीं,परन्तु अन्तिम 5-6 पुच्छ कशेरुकाएँ केवल दण्डनुमा सेन्ट्रा हट्टी के रूप में।
2. दण्ट भागों में विभेदित नहीं होती।
3. सभी कशेरुकाओं में सेन्टम, आगे एवं पीछे, दोनों सिरों पर  चपटा अर्थात् एम्फीप्लैटियन (amphiplatyan)।
4. सेन्ट्रम के अग्र एवं पश्च सिरों पर एपिफाइसेस नाम की
अस्थीय प्लेटें समेकित।
5. कोमल उपास्थि की अन्तराकशेरुक गदियाँ होती है।
6. पुच्छ कशेरुकाओं को छोड़ शेष के साथ पसलीय सिरे जुड़े या समेकित होते है; पसलियाँ केवल वक्षीय भाग में विकसित।
7.ऐटलस में सेन्ट्रम नहीं होता; न्यूरल कंटक बहुत अविकसित; न्यूरल कुल्या अनुप्रस्थ लिगामेन्ट द्वारा दो भागों में बंटी।
8. दूसरी कशेरुका (ऐक्सिस) खोपड़ी की धुरी का काम करने हेतु विशेषीकृत।
9. लम्बर कशेरुकाओं में अतिरिक्त संधि प्रवर्ध उपस्थित। 

कशेरुकदण्ड के कार्य

(1) यह शरीर को शहतीर (beam) की भाँति साधे और फैलाये रखती है। इसीलिए शरीर न तो बैठे रहने की दशा में लुढ़कता है और न छलाँग मारकर दौड़ने में छिन्न-भिन्न होता है।

(2) यह देहगुहा में स्थित आन्तरांगों को साधे रखती है और इनकी सुरक्षा करती है।

(3) मेरुरज्जु को घेरकर इसे सुरक्षित रखती है और बाहरी आघातों से बचाती है।

(4) करोटि के भार को संभालकर सिर को साधती है और इसे गति की कुछ स्वतंत्रा देती है।

(5) जन्तु को थोड़ा-बहुत इधर-उधर झुकने, मुड़ने, ऐंठने आदि की सामर्थ्य प्रदान करती है।

(6) मेखलाओं (girdles) को सहारा देकर गमन (locomotion) में सहायता करती है।

(7) पीठ की और गमन से सम्बन्धित पेशियों को जुड़ने का स्थान प्रदान करती है।


(घ) शशक की उरोस्थि (Sternum of Rabbit)

शशक में उरोस्थि या स्टर्नम (sternum) वक्ष भाग में, हदय एवं फेफडों के चारों ओर बने अस्थीय कटहरे का मध्य-अधर भाग बनाती है। अतः, मेंढक के विपरीत, असमेखला से इसका कोई सम्बन्ध नहीं होता। बारह जोड़ी पसलियाँ अस्थीय कटहरे के पार्श्व भाग बनाती है। पसलियों के उपास्थीय स्टर्नल भाग स्टनम से जुड़े होते हैं। मेंढक के विपरीत, शशक की स्टर्नम में एक-दूसरी के पीछे जुड़ी सात, छोटी, सैकरी एवं दण्डनुमा अस्थीय छड़े होती है जिन्हें स्टनेंद्री (sternebrae) कहते हैं। सबसे आगे स्थित प्रथम स्टनेंना को हस्तक या प्रीस्टनम (manubrium or presternum) कहते हैं। इसके अगले सिरे से स्नायुओं (ligaments) द्वारा अंसमेखला की एक जोड़ी लम्बी क्लैविकिल (clavicle) हड़ियाँ जुड़ी रहती है। प्रथम जोड़ी की पसलियों के स्टर्मल सिरे इसी स्टनेना से जुड़े होते है (चित्र 7)

चित्र 7 उरोस्थि एवं पालियों का अधर दृश्य

प्रोस्टर्नम के पीछे की पाँच स्टनेंनी मीसोस्टनम (mesosternum or gladiolus) बनाती है। सातवीं स्टिनेंना को विजफिस्टर्नम (xiphisternum or metasternum) कहते हैं। प्रीस्टनम तथा द्वितीय स्टर्नेमा के सन्धि-स्थान पर दूसरी जोड़ी की पसलियाँ लगी होती है। इसी प्रकार, तीसरी से सातवीं जोड़ियों की पसलियाँ विविध स्टनेत्री के जोड़ों पर क्रमशः लगी होती है। 8 वीं तथा नवीं जोड़ियों की पसलियों के स्टर्नल भाग 7 वीं के स्टर्नल भागों से जुड़े होते हैं। इसीलिए इन्हें भ्रामक पसलियाँ (false ribs) कहते हैं। 10वीं, 11वीं, तथा 12वीं जोड़ियों की पसलियाँ स्टनम तक नहीं पहुँचतीं और मुक्त पसलियाँ (floating ribs) कहलाती है।

क्जिफिस्टनम (xiphisternum) के स्वतंत्र छोर पर एक चपटी, प्लेटनुमा जिफॉएड उपास्थि (xiphoid cartilage) लगी रहती है। स्टर्नम तथा पसलियाँ हदय एवं फेफड़ों की सुरक्षा और श्वास-निया में सहायता करती है।

मेंढक तथा शशक की स्टर्नम की तुलना

                                                               मेंढक

1. वक्ष भाग में हृदय एवं फेफड़ों को सुरक्षा हेतु असमेखला द्वारा बना कटहरा । अतः स्टनम अंसमेखला में सम्मिलित ।

2. दो पृथक् भागों और मुख्यतः उपास्थि की बनी।

                                                               शशक

1. वक्ष भाग में हदय एवं फेफड़ों की सुरक्षा हेतु पसलियों का कटहरा। अतः स्टर्नम अंसमेखला से  पृथक्, पसलियों से जुड़ी

2. एक दूसरी से आगे-पीछे जुड़ी 7 दण्डनुमा अस्थीय स्टनेंत्री तथा केवल एक प्लेटनुमा विजफॉएड उपास्थि की बनी।


                            मेंढ़क तथा शशक की करोटि की तुलना


शशक की करोटि की संरचना एवं कार्यो का सारांश




नोटः-

इस के अगले पोस्ट मे हम अनुबन्धीय या उपांगीय या ऐपेन्टीकुलर कंकाल (appendicular skeleton) के बारे मे जानेगे

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एम एस एक्सेल में स्प्रेडशीट क्या है? || What is Spreadsheet in MS Excel?

ऐल्गोरिथम क्या होती है || Algorithm kya hai in hindi

कंप्यूटर क्या है अब समझें हिंदी में || what is computer now understand in hindi

पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन कैसे बनाते है हिंदी में सीखें। || how to make a power point presentation in Hindi.

फ्लोचार्ट क्या है || what is flowchart in hindi

लाइनेक्स OS की बनावट कैसे होती है। || STRUCTURE OF LINUX OPERATING SYSTEM IN HINDI

लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम || LINUX OPERATING SYSTEM

लाइनेक्स, विंडोज और डॉस के बीच अंतर || Difference between Linux, Windows & DOS in Hindi

सी भाषा क्या है ? || what is c language in hindi

स्प्रेडशीट पर काम कैसे किया जाता है ||How to work on a spreadsheet in Hindi

स्प्रेडशीट में कैसे सेल की ऊँचाई और चौड़ाई बढ़ाये || how to increase cell height and width in Hindi

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खरगोश के आवास, स्वभाव एवं बाह्य लक्षण || khargosh ke aawas swabhav aur lakshan - New!

माइटोकॉन्ड्रिया क्या है || what is mitochondria in Hindi

एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम क्या है || What is Endoplasmic Reticulum in hindi

कुछ महत्पूर्ण विज्ञान की प्रमुख शाखाएँ/Major branches of some important sciences

केन्द्रक क्या है || what is the nucleus in hindi

कोशिका किसे कहते हैं || What are cells called? in hindi

कोशिका द्रव्यी वंशागति क्या है? || koshika dravyee vanshaagati kya hai?

महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपकरण और उनके प्रयोग || Important Scientific Equipments and Their Uses

यूजेनिक्स या सुजननिकी क्या है || yoojeniks ya sujananikee kya hai - New!

Female reproductive system of rabbit IN HINDI - New!

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RNA की संरचना एवं प्रकार || Structure and Types of RNA

skeletal system of rabbit in hindi - New!

अर्धसूत्री विभाजन क्या है || what is meiosis ? in hindi

एक जीन एक एन्जाइम सिध्दान्त का वर्णन || ek jeen ek enjaim sidhdaant ka varnan

ऑक्सीजन क्या होती है ?||What is oxygen?

कोशिका चक्र क्या है || what is cell cycle in hindi

क्रॉसिंग ओवर प्रक्रिया का वर्णन तथा इसका महत्व || krosing ovar prakriya ka varnan tatha isaka mahatv

गुणसूत्र क्या होते हैं || What are chromosomes in hindi

गुणसूत्रीय विपथन का वर्णन || gunasootreey vipathan ka varnan - New!

गॉल्जीकाय किसे कहते हैं || What are golgi bodies called

जीन की संरचना का वर्णन || jeen kee sanrachana ka varnan

जीव विज्ञान पर आधारित टॉप 45 प्रश्न || Top 45 question based on biology

जेनेटिक कोड क्या है || Genetic code kya hai

डीएनए क्या है || What is DNA

डीएनए प्रतिकृति की नोट्स हिंदी में || DNA replication notes in hindi

ड्रोसोफिला में लिंग निर्धारण की विधि || drosophila mein ling nirdhaaran kee vidhi

प्राणी कोशिका जीवों की सरंचना का वर्णन || Description of the structure of living organisms in hindi

बहुगुणिता क्या है तथा ये कितने प्रकार के होते है || bahugunit kya hai aur ye kitane prakaar ke hote hai - New!

बहुविकल्पीय एलील्स (मल्टीपल एलिलिज्म ) क्या है। || bahuvikalpeey eleels kya hai

भौतिक विज्ञान पर आधारित 35 टॉप प्रश्न || 35 TOP QUESTIONS BASED ON PHYSICS

भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान पर आधारित टॉप 40 प्रश्न। उत्तर के साथ ||Top 40 Questions based on Physics, Chemistry, Biology. With answers

मेण्डल की सफलता के कारण || mendal kee saphalata ke kaaran

मेण्डल के आनुवंशिक नियम || mendal ke aanuvanshik niyam

रसायन विज्ञान पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न || Multiple choice questions based on chemistry

रूधिर वर्ग पर टिप्पणी कीजिए || roodhir varg par tippanee

लाइसोसोम क्या होते हैं? || What are lysosomes?

लिंग निर्धारण तथा लिंग गुणसूत्र प्रक्रिया क्या है? || ling nirdhaaran tatha ling gunasootr prakriya kya hai?

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लिंग-सहलग्न वंशागति क्या है। || ling-sahalagn vanshaagati kya hai.

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विज्ञान की परिभाषा और उसका परिचय ||Definition of science and its introduction

शशक का अध्यावरणी तंत्र shashak ka adhyaavarani tantr - New!

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संक्रामक तथा असंक्रामक रोग क्या होते है || communicable and non communicable diseases in Hindi

समसूत्री व अर्धसूत्री विभाजन में अंतर लिखिए || samsutri or ardhsutri vibhajan me antar

सहलग्नता क्या है ? तथा इसके महत्व || sahalagnata kya hai ? tatha isake mahatv

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