भारत पर सिकन्दर के आक्रमण एवं उत्तर पश्चिम भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन ,सिकन्दर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत की रानजीतिक दशा का वर्णन करते हुए उसके आक्रमण के राजनीतिक प्रभाव की समीक्षा, भारत पर सिकन्दर के आक्रमण के क्या कारण थे?, जब सिकंदर ने आक्रमण किया था, तो उत्तर भारत में किसका शासन था?, सिकंदर के आक्रमण के समय भारत का राजा कौन था?, सिकंदर भारत में कब आक्रमण किया था?
सिकन्दर के आक्रमण के समय परिश्चमोत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति
सिकन्दर का आक्रमण भारत वर्ष को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। वह महान् विजेता था जिसके समक्ष बड़े-बड़े राजाओं ने अपने घुटने टेक दिए। यह भारत वर्ष में केवल उनीस माह ही रहा। लेकिन इतने ही अल्प काल में उसके आक्रमण के बहुत से परिणाम निकले।
पारसीक आक्रमण के बाद भारत को यूनानी आक्रमण का सामना करना पड़ा जिसका नेता सिकन्दर था। इस आक्रमण के समय मध्यदेश और प्राच्यदेश विशाल नन्द साम्राज्य विद्यमान था जिसके अन्तर्गत सम्भवतः दक्षिमायम्यं का भी कुछ भाग सम्मिलित था। मगध के इस साम्राज्यकारी नीति का यह परिणाम हुआ कि भारत के उत्तरपूर्व भाग में छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व समाप्त हो गया और एक प्रबल शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना हो सकी। लेकिन इस समय की पश्चिमोत्तर भारत की राजनीतिक अवस्था ठीक इसके विपरित शोचनीय और चिंताजनक थी, राजनीतिक दृष्टि से भारत का पश्चिमोत्तर प्रदेश भिन्न-भिन्न हो चुका था। इस समय इस प्रदेश में न तो कोई सार्वभौम सत्ता थी और न कोई केन्द्रीय शासन ही था। सम्पूर्ण प्रदेश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था जिनमें कुछ गणतन्त्रात्मक और कुछ राजतन्त्रात्मक थे। इस समय यहाँ कोई ऐसा प्रबल राज्य नहीं था। जो अन्य राजाओं पर अपना प्रभाव डाल सके। समस्त राज्यों में पारस्परिक ईर्ष्या द्वेष और कटुता व्याप्त थी। अतः विदेशी आक्रमण के समय वे एकत्रित होकर संयुक्त रूप से उसका सामना नहीं कर सके। इस प्रकार भारत के पश्चिमोत्तर भाषा को तत्काल छोटे-छोटे राज्यों का एक संग्रहालय कहा जा सकता है जिसमें सभी एक दूसरे से स्वतन्त्र थे तथा एक दूसरे के विनाश और उन्मूलन के लिए सदैव तैयार रहते थे। यही कारण था कि इनमें से कुछ एक ने अपने पड़ोसी राज्य के विरुद्ध सिकन्दर की सहायता भी की थी। ऐसी अनुकूल राजनीतिक परिस्थिति से सिकन्दर का कार्य और सुगम हो गया और उसने अल्पकाल में ही सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर प्रदेश पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। यूनानी साक्ष्यों के अनुसार इस समय पश्चिमोत्तर भारत में निम्न प्रमुख राज्य थे-
1. अस्पेसियन-इसकी पहचान भारतीय अश्वक जाति से किया जाता है जो काबुल की सहायक नदियों और बजऔर नदियों की घाटी में निवास करती थी।
2. गुरेड्अन-यह जाति पंजकोर नदी की घाटी में निवास करती थी।
3. अस्सेकेनोज-यह जाति सिन्धु नदी के पश्चिम में निवास करती थी जिसकी राजधानी मस्सग थी।
4. नीसा-यह गणराज्य काबुल और सिन्धु नदी के मध्य स्थित था।
5. प्यूकेलाटिस-इसकी पहचान भारतीय पुष्करावती के साथ किया जाता है जहाँ का सिकन्दर का समकालीन शासक अष्टक या हस्ति था। पुष्कराबती पश्चिम गांचार की राजधानी थी।
6. तक्षशिला-तक्षशिला वर्तमान पाकिस्तान में रावलपिण्डी से 20 मील दूर झेलम व सिंघ नदियों के बीच स्थित था। तक्षशिला भी प्राचीन भारत का एक प्रमुख नगर था। भारत को सीमा पर स्थित होने के कारण तक्षशिला का अत्याधिक सामरिक महत्त्व था। कहा जाता है कि भरत के पुत्र तक्ष ने इस नगर की स्थापना की थी। मौर्यकाल में यह नगर अत्यन्त समृद्ध था।
मुख्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग पर स्थित होने के कारण तक्षशिला का व्यापारिक महत्त्व भी था। प्राचीन काल में तक्षशिला शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों ने यहाँ शिक्षा ग्रहण की थी, जिनमें प्रमुख पाणिनि, चाणक्य, जीवक तथा चन्द्रगुप्त मौर्य हैं। सिकन्दर का समकालीन तक्षशिला का शासक आम्भि था। आम्भि ने सिकन्दर को उसके भारतीय अभियान में सहायता की थी तथा पोरस पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया था।
7. अभिसार-सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय राज्य में आधुनिक पुंछ जिला, निकटवर्ती प्रदेश तथा हजारा जिले का कुछ भाग शामिल था। अभिसार के शासक ने सिकन्दर के विरुद्ध युद्ध में पोरस की सहायता की थी।
8. उसकेज-यह डरशा राज्य था जिसके अन्तर्गत आधुनिक हजारा आता था।
9. पुरुराज्य-यह राज्य झेलम और चिनाव नदियों के मध्य स्थित था। यूनानियों के अनुसार यहाँ का शासक पोरस सिकन्दर का समकालीन था।
10. ग्लौगनिकाइ-यह राज्य चिनाव नदी के पश्चिम में स्थित था।
11. गैण्डरिस-यह एक राजतन्त्र था जो रावी और चिनाव नदियों के मध्य स्थित था।
12. अड्रेस्ताइ-यह राज्य रावी नदी के पूर्व में स्थित था।
13. कठ-कुछ विद्वानों के अनुसार यह राज्य झेलम और चिनाव के मध्य तथा कुछ के अनुसार रावी और चिनाव के मध्य स्थित था।
14. सौभूमि राज्य-यह झेलम का तत्वर्ती एक राजतन्त्र था।
15. फैगलस-यह राजतन्त्र रावी और व्यास नदियों के मध्य स्थित था जिसकी पहचान भारतीय भगत के साथ किया जाता है।
16. सिवोइ-यह सम्भवतः भारतीय शिवि जाति थी जो झेलम और चिनाव के मध्य निवास करती थी।
17. सुद्रक-यह एक गणराज्य था जो झेलम और चिनाव के संगम के निचली भूमि में स्थिति था।
18. मालव-यह राज्य रावी नदी के निचले भाग के दाहिनी और स्थित था।
19. अग्वढव-यह मालवो की पड़ोसी जाति थी।
20. जैथुआइ-इसकी पहचान भारतीय रुचि से किया जाता है जो चिनाव और राबी के मध्य निवास करते थे।
21. आस्सेडिआइ-इसकी पहचान भारतीय वसाप्ति से किया जाता है जो चिनाव और सिन्ध के मध्य निवास करते थे।
22. मोसिकेनोज-इसकी पहचान भारतीय कृषिक से किया जाता है जो सिन्धु प्रदेश में निवास करते थे।
23. चैटलिन-यह नगर सिंधु नदी के डेल्टा पर स्थित था।
उपरोक्त सभी राजतन्त्रात्मक राज्यों (तक्षशिला, पुरु, अभिसार) में पारस्परिक कटुता और वैमनस्यता थी, जिनमें सहयोग की भावना का अभाव था और सभी आपस में लड़ते रहते थे। कर्तियस के अनुसार तक्षशिला नरेश आम्भी और पुरु राज्य के राजा पोरस में शत्रुता थी जिसमें आम्भी ने पोरस के विरुद्ध सिकन्दर की सहायता भी किया था। इस आपसी घृणा और संघर्ष के वातावरण ने सिकन्दर का कार्य सुगम बना दिया।
सिकन्दर के आक्रमण का राजनीतिक प्रभाव
सिकन्दर के आक्रमण से भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश को अपनी राजनीतिक और सैनिक दुर्बलता का पता चला। इसका स्पष्ट राजनीतिक प्रभाव यह हुआ कि इन प्रदेशों से राजनीतिक एकता की भावना जागृत हुई। इसके अतिरिक्त भारतियों को अपनी सैनिक दुर्बलता का बोध हो गया। भारतीयों ने यूनानियों से सैनिक सुशिक्षा, सुसंगठन और युद्ध कौशल के महत्त्व को सीखा। सिकन्दर के आक्रमण का एक अन्य महत्त्व यह भी हुआ कि भारत के पश्चिम उत्तर प्रदेश के जो राज्य भिन्न-भिन्न हो गये थे तथा जो शक्तिहीन और जर्जर हो गये थे, उन्हें ध्वस्त करके अपने साम्राज्य की स्थापना करने में चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता प्राप्त हुई। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सिकन्दर के आक्रमण ने अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य का मार्ग प्रशस्त किया।
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