- अशोक ने अपने लोगों के नैतिक और प्रशासनिक कल्याण में कैसे योगदान दिया
- अशोक के कितने पुत्र थे
- सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में किसने दीक्षित किया था ?
- अशोक का संबंध किस साम्राज्य से था
- अशोक के कितने भाई थे
- सम्राट अशोक का सही इतिहास
- सम्राट अशोक के गुरु का नाम
- अशोक की उपलब्धियों का विश्लेषण कीजिए
- अशोक का धर्म क्या है मूल्यांकन कीजिए?
- कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा?
- अशोक के धम्म से आप क्या समझते हैं इसके प्रचार के लिए उसने क्या कदम उठाए?
- अशोक के धम्म की मुख्य विशेषताएं क्या थी?
- अशोक का मूल्यांकन
एक विजेता, शासक, कला एवं धर्म संरक्षक के रूप में अशोक का उपलब्धियों का मूल्यांकन ,अशोक की महानता के कारणों का विवरण देते हुए भारतीय इतिहास में अशोक के स्थान का निर्धारण,अशोक मौर्य साम्राज्य का ही नहीं वरन् प्राचीन भारत का महानतम सम्राट था' उसकी उपलब्धियों (राजनीतिक उपलब्धियों) के आधार पर इस कथन को स्पष्टीकरण,
अशोक की उपलब्धियों का विश्लेषण
इतिहास में केवल दो ही प्रकार के व्यक्ति को 'युग पुरुष' की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। पहली श्रेणी में वे विभूतियाँ हैं जो मानव की आध्यात्मिक, धार्मिक एवं पारलौकिक हित-साधना करती हैं तथा दूसरी श्रेणी में वे जो अपने सतत प्रयत्नों द्वारा मानव के भौतिक जीवन की सुख साधना करती हैं। पहली श्रेणी में महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, ईसा तथा महात्मा गाँधी का नाम सर्वोपरि है तो दूसरी श्रेणी में चन्द्रगुप्त मौर्य, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, अकबर, चार्लमेन, खलीफा उमर आदि प्रमुख हैं। मगर अशोक कहाँ है, वह न तो ईसा, बुद्ध, महावीर और गाँधी की भाँति विशुद्ध आध्यात्मिक विभूति था और न ही चन्द्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, खलीफा उमर, चार्लमेन या अकबर की भाँति मूलत: शासकीय विभूति ही था। तो फिर वह क्या था? भारतीय इतिहास में अशोक की स्थिति क्या है? इस प्रश्न का उत्तर हमें उसके जिस विजेता, शासक, धम्म प्रचारक तथा लोक कल्याणकारी रूप में मिलता है, उसका वर्णन निम्नलिखित है-
विजेता के रूप में-
जिस विजय प्राप्ति में उसके पिता तथा पितामह असफल रहे, अशोक ने उसी कलिंग को प्रथम प्रयास में हस्तगत कर लिया। यह उसके महान् विजेता रूप का परिचायक है। कलिंग युद्ध के पश्चात् उसने शस्त्र त्याग दिये परन्तु उसकी प्रबल शक्ति के सम्मुख कहीं भी कोई उपद्रव नहीं हुआ।
शासक के रूप में-
अशोक का शासक रूप अति उच्च तथा सम्मानीय है। कलिंग शिलालेखों में उसने स्पष्ट घोषणा की है कि “जिस प्रकार मैं चाहता हूँ कि मेरी सन्तान इस संसार तथा परलोक में सुखी रहे ठीक वैसे ही मेरी कामना है कि सभी लोग उसी प्रकार सुखी रहें।" शासक के रूप में उसकी महानता के परिचायक ये शब्द, निश्चय ही यह प्रमाणित करते हैं कि वह राजनैतिक जीवन के आदर्शवादी उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप देना चाहता था। उसके शासकीय रूप की प्रशंसा करते हुए डा० स्मिथ ने लिखा है कि “यदि अशोक योग्य न होता तो वह अपने विशाल साम्राज्य पर चालीस वर्ष तक सफल शासन नहीं कर सका होता और अपना ऐसा नाम न छोड़ गया होता, जिसे लोग दो हजार वर्ष के बाद भी नहीं भूल सके हैं।"
धर्म प्रचारक के रूप में-
अशोक का धर्म प्रचारक रूप बड़ा उदार तथा सहिष्णु था। वह बौद्ध होते हुए भी धर्मान्ध नहीं था। उसके 'धम्म' का रूप सार्वभौमिक था। 'धम्म प्रचार में संकीर्णता, सम्प्रदायवाद तथा मदान्धता के लिए कोई स्थान नहीं था। उसने प्रजारंजन तथा लोक कल्याण के कार्यों द्वारा धम्म प्रचार किया जो अब तक की सर्वश्रेष्ठ मौलिक निधि थी। धर्म प्रचारक के रूप में वह सन्त पॉल, कान्सटेनटाइन आदि पाश्चात्य धर्म प्रचारकों से काफी आगे था।
राष्ट्र निर्माता के रूप में अशोक ने भारत को अखण्डता प्रदान की। आज का भारत उसके साम्राज्य से छोटा है। अनेक उन समस्याओं को, जिन्हें सुलझाने में आधुनिक प्रशासन भी सक्षम नहीं है, अशोक ने सहज ही सुलझा दिया था। अशोक के साम्राज्य में एक लिपि थी और एक भाषा। सारा साम्राज्य एक शासनतन्त्र के अन्तर्गत था, न तो प्रान्तीयता थी और न ही भेद- भाव। समान शासन-व्यवस्था तथा समान न्याय-व्यवस्था ने देश को सांस्कृतिक विकास की ओर उन्मुख किया। पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक सारा देश अब एक राष्ट्र था तथा उसकी एक राष्ट्रीयता थी।
लोककल्याणकारी शासक के रूप में-
अशोक की लोक कल्याणकारी भावना का प्रतिबिम्ब हमें उसके इन शब्दों में मिलता है—"मुझे जनता के हित के लिये कार्य करना चाहिये, किन्तु इस कार्य को प्रयत्न से ही पूरा किया जा सकता है। इससे बढ़कर जनता के कल्याण का कोई दूसरा मार्ग नहीं। मैं किसके लिए काम करता हूँ? मेरा कार्य है कि मैं जीवों के प्रति अपने ऋण को चुका हूँ ताकि इस संसार में किसी सीमा तक तो सुख की सृष्टि हो सके।"
'सर्वहित से बढ़कर कोई साधन नहीं' में-
विश्वास रखने वाला अशोक शासक की दृष्टि से एक परम मौलिक सम्राट था। उसके शासकीय सुधार तथा लोक कल्याण की तीव्र अभिलाषा इस बात के प्रमाण हैं कि वह यदि 'महान् धम्म घोषक तथा 'धम्म विजयी' था तो शासक के रूप में भी एक महान् शासक था। उसने धर्म, नैतिकता तथा शासन के बीच बड़ा गहरा सम्बन्ध स्थापित किया। कतिपय लेखक ऐसा मानते हैं कि बौद्ध धर्म से अतिरेक प्रभावित होकर उसने शासकीय कार्यों के प्रति उदासीनता दिखाई परन्तु हम किसी भी दशा में इस विचार को स्वीकार नहीं कर सकते।
अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अशोक के अनुसार, राजा का कर्तव्य प्रजा का भौतिक हित-चिन्तन ही नहीं अपितु प्रजा के नैतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान के लिये भी वह उत्तरदायी है। अपनी मौलिक नीति तथा शासकीय सुधारों द्वारा उसने मौर्य साम्राज्य की स्मृति को अमर बना दिया।
अशोक के विभिन्न रूप और उन रूपों की उपलब्धियों के अध्ययन द्वारा हमें इस बात का उत्तर स्वतः ही मिल जाता है कि भारतीय इतिहास में अशोक की क्या स्थिति है? वह न तो केवल बुद्ध महावीर स्वामी या गाँधी था और न ही केवल चार्लमेन, चन्द्रगुप्त, खलीफा उमर या अकबर था। अशोक इन सभी विभूतियों के गुणों से युक्त व्यक्ति था। अन्य विभूतियों की भाँति उसके व्यक्तित्त्व का रूप एकांगी नहीं था। वह श्रेष्ठता की प्रतिमूर्ति था और इसी कारण इतिहासकार उसे अशोक महान्' (Ashoka the Great) के रूप में स्वीकार करते हैं।
इन्हें भी देखें-
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