- मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए आप किन कारणों को उत्तरदायी,मानते है विवरण
- मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों की विवेचना करते हुए यह स्पष्ट कीजिए। क्या अशोक मौर्य सम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी था?
- “मौर्य साम्राज्य का पतन अन्ततोगत्वा अशोक की नीतियों का परिणाम था।'
- मौर्य साम्राज्य के पतन में अशोक की नीतियाँ कहाँ तक उत्तरदायी थी। स्पष्ट विवेचना कीजिए।
- मौर्य साम्राज्य के पतन के बारे में आप क्या जानते हैं? विवेचना कीजिए।
मौर्यवंश के पतन का कारण
उत्थान के बाद पतन प्रकृति का शास्वत नियम है यही बाद मौर्य साम्राज्य के पतन पर लागू होती है। इतना विशाल साम्राज्य किस प्रकार पतन की ओर अग्रेसित हुआ इस पर तत्त्तकालीन एवं वर्तमान इतिहासकार अपने-अपने ढंग से विश्लेषित करने का प्रयास किया है। हाँ यह सर्वविदित है इस साम्राज्य के पतन हेतु कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं था वरन् कई छोटे-बड़े कारणों इसके लिए उत्तरदायी थे। मौर्य साम्राज्य का पराभव (पतन) ईषा पूर्व 232 में अशोक के देहावसान के शीघ्र बाद प्रारम्भ हो गया। कई इतिहासकारों ने विभिन्न प्रकार की अटकलें लगायी हैं और अपने-अपने पक्ष में भिन्न-भिन्न प्रकार के तर्क भी प्रस्तुत किये हैं। बहुतों ने सम्राट अशोक को ही मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी माना है। पं० हरिप्रसाद शास्त्री ने अशोक के ब्राह्मण विरोधी नीति को ही मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी माना है लेकिन केवल ब्राह्मण विरोधी अशोक की नीति ही इस साम्राज्य के पतन का कारण नहीं थी।
प्रो० रोमिला थापर के शब्दों में, "मौर्य साम्राज्य के पतन की सन्तोष जनक व्याख्या यह कहकर नहीं की जा सकती कि सैनिक निष्क्रियता, ब्राह्मण प्रतिक्रिया, लोकप्रिय विद्रोह, आर्थिक दबाव आदि के कारण साम्राज्य का पतन हो गया। पतन के कारण मौलिक थे जिनका मौर्यकालीन जीवन से सम्बन्ध था।" थापर का विचार था कि प्रशासनिक संगठन, राज्य या राष्ट्र की अवधारणा आदि साम्राज्य के पतन के मौलिक कारण थे। मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए अनलिखित कारण उल्लेखनीय है-
मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण
(1) योग्य उत्तराधिकारी का अभाव—
मौर्य साम्राज्य में अशोक के बाद कोई ऐसा राजा नहीं हुआ जो अशोक द्वारा स्थापित अहिंसात्मक राज्य का प्रतिनिधित्त्व कर सके। अशोक के उत्तराधिकारी अयोग्य, अदूरदर्शी और विलासी प्रकृति के थे, जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण साम्राज्य पर अधिकार नहीं स्थापित कर सके, जिससे दूर स्थित प्रान्तों में विद्रोह होने लगे और समय पर वे स्वतन्त्र राज्य बन गये।
(2) साम्राज्य का विघटन—
कल्लहण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि अशोक की मृत्यु के पश्चात् मौर्य साम्राज्य का विभाजन प्रारम्भ हो गया था, क्योंकि अशोक के पुत्रों में भी आपसी संघर्ष होने लगा था। कश्मीर का प्रान्तीय शासक जालौक ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता कायम कर लिया था। यह अशोक का पुत्र था। जालौक ने यूनानी आक्रमण को भी असफल कर दिया था। इस प्रकार से साम्राज्य का विभाजन होने लगा था।
(3) कर्मचारियों के अत्याचार-
मौर्य साम्राज्य बहुत विशाल था। अतः राजा सम्पूर्ण प्रान्तों के अधिकारियों के व्यवहार का विवरण नहीं प्राप्त कर पाता था। इसलिए दूर स्थित प्रान्तो के अधिकारी जनता पर कठोर शासन करते थे। बिन्दुसार के समय में तक्षशिला में विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को शान्त करने के लिए अशोक अवन्ति से तक्षशिला भेजा गया। आन्दोलन के कारणों को पूछने से ज्ञात हुआ कि-
न वयं कुमारस्य विरुद्धः नापि राज्ञो बिन्दुसारस्य...
अपितु दुष्टात्मा अस्माकं परिभवः कुर्वन्ति
अतः इस प्रकार के अत्याचार जनता में मौर्य साम्राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दिये थे।
(4) राजदरबार में गुटबन्दी–
प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि मौर्य साम्राज्य में गुटबन्दी का बोल-बाला था। अशोक के उत्तराधिकार के समय भी गुटबन्दी का ही बोलबाला मालविकाग्निमित्र से ज्ञात होता है कि अन्तिम राजा वृहद्रथ के समय दो गुट थे। प्रथम दल था। इसी प्रकार अशोक के बाद पुत्रों में साम्राज्य बंटवारे के लिए भी गुटबन्दियाँ चलती थीं। सेनापति पुष्यमित्र का समर्थक था और दूसरा दल सचिव का। दोनों दल अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। अतः शासन व्यवस्था शिथिल होती जा रही थी।
(5) राजाओं का अत्याचार-
अशोक के बाद के उत्तराधिकारी अयोग्य होने के साथ- साथ ही अत्याचारी भी थे। गार्गी संहिता से ज्ञात होता है स राष्ट्रमर्दते घोर वर्मवादि अधार्मिव: अर्थात् मौर्य सम्राट शालिशूक जनता के साथ अत्याचार करने वाला और अधार्मिक था। इससे जनता मौर्य राजाओं से घृणा करने लगी थी।
(6) करों की अधिकता—
साम्राज्य व्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। राजा को धन करों द्वारा प्राप्त होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि जनता पर बहुत अधिक कर लगाये जाते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से नदी, पुल,जुआ (द्यूत), वेश्यावृत्ति आदि निम्न कार्यों पर भी कर लगाये जाते थे। पतंजलि के महाभाष्य से ज्ञात होता है कि मौर्य राज्य में धन संग्रह करने के लिए मूर्तियों को बेचा जाता था। इससे ज्ञात होता है कि अधिक करों के कारण जनता में असन्तोष बढ़ता जाता था।
(7) कोष की रिक्तता-
उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि अशोक महान् धर्म प्रचारक था। धर्म प्रचार के लिए उसने शिलालेखों, दान, स्तूपों, मठों, विहारों और लोकोपहितकारी कार्य किया, जिससे राजकोष खाली हो गया था।
अशोक के पश्चात् साम्राज्य का विभाजन प्रारम्भ हो गया था, जिससे केन्द्रीय सरकार की आय भी कम हो गयी थी। धनाभाव के कारण राज्याधिकारियों में असन्तोष व्याप्त होना स्वाभाविक था। परिणामस्वरूप साम्राज्य की शासन व्यवस्था नष्ट होने लगी।
(8) सैनिक शक्ति का ह्रास-
अशोक ने अहिंसा का इतना व्यापक अर्थ लगाया कि राजनीतिक पक्ष भी उससे अछूता न रह सका, जिसके परिणामस्वरूप सैनिकों में भी अव्यवस्था, विलासिता और हिंसा से विरक्ति उत्पन्न हो गयी। यही कारण है कि अशोक के बाद आन्तरिक आन्दोलनों के दबाने की उसमें शक्ति ही नहीं रह गयी थी, जिससे पतन
(9) ब्राह्मण प्रतिक्रिया-
अशोक बौद्ध धर्म को मानने वाला था। उसने अपने धर्म के प्रचार में बाह्याडम्बर को कोई महत्त्व नहीं प्रदान किया था, जिसके प्रतिक्रियास्वरूप ब्राह्मणों ने
मौर्य साम्राज्य का विरोध करना प्रारम्भ किया। यहाँ पर डा० एन० एन० घोष का मंतव्य बहुत महत्त्वपूर्ण है-"मौर्यों के विरुद्ध एक तीव्र ब्राह्मण प्रतिक्रिया का जन्म हुआ। मौर्यो का शासन भले ही उदार एवं सहिष्णु रहा हो, परन्तु यज्ञों का विरोध किया गया जो ब्राह्मण धर्म का एक आवश्यक अग था। इस प्रतिक्रिया का नेता पुष्यमित्र था।"
कुछ विद्वानों ने ब्राह्मण प्रतिक्रिया को मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण नहीं माना है। उनका मत है कि मौर्य साम्राज्य के अन्त की परिस्थितियों में कोई भी महत्वाकांक्षी सेनापति राजा को मार कर राजा बन सकता था।
(10) विदेशी आक्रमण-
विदेशी आक्रमणों के कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ। सर्वप्रथम यवन आक्रमण 206 ई०पू० महुआ था। उसके पूर्व ही मौर्य साम्राज्य का पतन होना प्रारम्भ हो गया था। मौर्य साम्राज्य के पतन के समय में ही विदेशी आक्रमण हुए, जिससे पतन और जल्दी हो गया।
मौर्य साम्राज्य के पतन में अशोक का उत्तरदायित्त्व
अशोक की धार्मिक नीति की वजह से ही हिन्दुओं में विशेषकर ब्राह्मणों में उसके विरुद्ध भावनाएँ पैदा होने लगी थी, क्योंकि वे बौद्ध धर्म की उन्नति और ब्राह्मण धर्म का अन्त नहीं सह सके। इससे बौद्ध धर्म के प्रति ईर्ष्या पैदा हो गयी थी। समाज में ब्राह्मणों का आदर कम हो गया था। अशोक की धार्मिक नीति यद्यपि बड़ी उदार थी, वह हिन्दुओं को आदर की दृष्टि से देखता था और उसका सम्मान करता था परन्तु वे उनकी नीति से खुश नहीं थे। उन्होंने मौर्य साम्राज्य का पतन करने में भाग लिया था और उन्होंने पुष्यमित्र शुंग की मदद की।
उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त अन्य कारण भी इसके लिए उत्तरदायी रहे होंगे, लेकिन इतिहासकार इन्हें ही मौर्य वंश के पतन का प्रमुख कारण स्वीकार करते हैं। कुछ विद्वान् इतिहासकारों का कहना है कि अशोक की धार्मिक नीति ही मौर्य वंश के पतन का प्रमुख कारण थी और इसी कारण अशोक को ही मौर्य वंश के पतन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं है कि अशोक की नीतियों ने प्रजा को अहिंसावादी बना दिया था, जिससे भविष्य में होने वाले विदेशी आक्रमणों का वह मुकाबला न कर सका, लेकिन पतन के लिए केवल अशोक को उत्तरदायी ठहराना उचित नहीं है। अशोक ने भी तो इन्हीं नीतियों के बल पर 40 साल सफलतापूर्वक राज्य कर अपने को महान् बना लिया। वास्तव में उसके लिए उत्तरदायी अनेक परिस्थितियाँ थीं और विशेष रूप से भावी सम्राटों की शासन व्यवस्था और उनका व्यक्तित्त्व उत्तरदायी था। जहाँ तक अशोक का प्रश्न है, उसको भी मौर्य साम्राज्य के पतन के अन्य कारणों की तरह एक कारण स्वीकार किया जा सकता है।
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