शशक की रुधिरवाहिनियाँ (Blood vessels)
इसे पिछले पोस्ट में हम लोगो ने शशक का परिसंचरण तंत्र मे शशक का रुधिर परिसंचरण तंत्र, शशक के ह्रद् य की कार्यिकी के बारे में जाना था आज हम लोग उसी के आगे शशक की रुधिरवाहिनियाँ के बारे में जानेगें।
शशक की रुधिरवाहिनियाँ (Blood vessels)
मेंढक की भाँति, शशक की रुधिरवाहिनियाँ भी दो प्रकार की होती हैं—(क) रक्त को हृदय से विपिन ने में ले जाने वाली धमनियाँ (arteries) तथा (ख) इसे विभिन्न अंगों से वापस हृदय की ओर लाने वाली शित (veins)। स्पष्ट है कि धमनियाँ शरीर-कोशाओं में पोषक पदार्थ, O2, हॉरमोन आदि पहुँचाती हैं, अर्थात् इनमें आदर्श रूप से "शुद्ध रक्त" होता है, जबकि शिरायें कोशाओं से CO2 एवं उत्सर्जी पदार्थ लाती हैं, अर्थात् इनमें आदर्श रूप से "अशुद्ध रक्त' होता है। धमनियों और शिराओं की औतिक रचना रुधिरवाहिनियों की दीवार में आदर्श रूप से तीन स्तर होते हैं (चित्र 1)- (क) बाह्य स्तर अर्थात् व्यूनिका एक्सटर्ना या ऐडवेन्टीशिया (Tunica Externa or Adventitia) यह ढीले-से संयोजी ऊतक का स्तर होता है जिसमें अनेक अनुलम्ब कोलेजन एवं लचीले तन्तु फैले रहते हैं।
(ख) मध्यस्तर अर्थात् ट्यूनिका मीडिया (Tunica Media) यह वर्तुल अरेखित पेशियों और इलास्टिक तन्तुओं के जाल से बना मोटा स्तर होता है।
(ग) अन्तःस्तर अर्थात् ट्यूनिका इन्टर्ना या इन्टिमा (Tunica interna or intima) यह चपटी एवं बहुभुजीय एण्डोथीलियमी (endothelial) कोशाओं का इकहरा स्तर होता है।
धमनियाँ (Arteries)
हृदय अपनी प्रत्येक धड़कन पर बहुत-सा रक्त धमनियों में पम्प करता है। जब विलयी आकुञ्चन से धमनी में रक्त पम्प होता है तो, लचीली होने के कारण, धमनी की दीवार पहले तो रक्त के दबाव से फैलती अर्थात् विस्तारित होती है, परन्तु निलयी आकुञ्चन के समाप्त होते ही यह अपने-आप सिकुड़ती है जिससे रक्त पर आगे बहने का दबाव पड़ता है। स्पष्ट है कि धमनियों में रक्त अत्यधिक दबाव के साथ बहता है और निलयों की प्रकुंचन एवं प्रसारण प्रावस्थाओं के अनुसार इनकी दीवार क्रमशः फूलती और पिचकती है, अर्थात्इ नमें श्री लयबद्ध धड़कन (=स्पंदन-pulsation) होती है । रक्त के अत्यधिक दबाव को सहन करने के लिए धमनियों की दीवार, शिराओं की दीवार से अधिक मोटी एवं पेशीय, परन्तु कुछ कम लचीली होती है। इसमें मध्यस्तर अधिक मोटा और पेशियाँ तथा इलास्टिक तन्तु अधिक होते हैं (चित्र 34.4)। बड़ी धमनियों में तो अन्त स्तर को और अधिक मजबूत बनाने के लिए इसके ठीक बाहर एक लचीली झिल्ली भी होती है। मोटी, दृढ़ और कम लचीली होने के कारण, धमनियों की दीवार इनके रिक्त होने पर भी पिचकती नहीं। मोटी दीवार के कारण ही धमनियों की गुहा संकरी होती है। मोटी दीवार और सँकरी गुहा से धमनियों में रक्त-दाब को बनाये रखने में सहायता मिलती है।
सामान्यतः धमनियाँ शरीर में, शिराओं की अपेक्षा, अधिक गहराई में स्थित होती हैं, लेकिन कहीं-कहीं (कलाई, गर्दन आदि में) ये त्वचा के ठीके नीचे ही होती हैं। ऐसे स्थानों पर हम इनकी धड़कन महसूस कर सकते है। इसी को नब्ज (pulse) देखना कहते हैं।
धमनिकाएँ (Arterioles) एवं रुधिर केशिकाएँ (Blood capillaries)
विभिन्न अंगों में पहुंचकर धमनियाँ बारम्बार शाखान्वित होकर महीन होती जाती हैं। इनकी अन्तिम शाखाओं को धमनिकाएँ कहते हैं
चित्र 2 शिरा और धमनी की काटें तथा एक केशिका जाल
(चित्र 2) । इनकी महीन दीवार में मुख्यतः अरेखित पेशियाँ ही होती हैं। अतः ये अधिक लचीली होती। अधिक फैल कर या सिकुड़ कर ये आगे बहने वाले रक्त की मात्रा को काफी घटा-बढ़ा सकती है। किसी ऊतकै मे पहुँचकर प्रत्येक धमनिका 10 से 100 अत्यधिक महीन शाखाओं में बँट जाती है जिन्हें धमनी केशिकाएं (arnerial capillaries) कहते हैं । केशिकाओं में रक्त का बहाव बहुत धीमा हो जाता है। इनकी खोज 1661 में मारसेलो मैल्पीधी ने की। इनकी दीवार में बाह्य एवं मध्यस्तर नहीं होते। अन्तःस्तर में भी केवल एण्डोचोलियम होती है जिसकी कोशाएँ अत्यधिक चपटी एवं शल्की होती हैं। इस प्रकार, केशिकाओं की दीवार 14 से भी कम मोटी झिल्ली के समान होती है और इसमें भी अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं। प्रत्येक ऊतक के ऊतक द्रव्य में इन केशिकाओं का घना जाल (network) बिछा रहता है। कहते हैं कि औसत मानव शरीर में लगभग दस अब केशिकाएं होती हैं जिन्हें एक लाइन में जोड़ें तो 250,000 किलोमीटर लम्बी महीन नलिका बन जायेगी। केशिकाओं की महीन दीवार के आर-पार, सामान्य विसरण द्वारा, रक्त एवं ऊतक द्रव्य के बीच पदार्थों का लेन-देन होता है। केशिकाओं से रक्त के प्लाज्मा का कुछ तरल अंश छन कर ऊतक द्रव्य में जाता है। इस तरल में पोषक पदार्थो,o, हॉरमोन्स, विटामिनों आदि लाभदायक पदार्थों की बहुतायत होती है। ऊतक की कोशायें, अपनी आवश्यकतानुसार, न पदार्थों को ऊतक द्रव्य से लेती रहती हैं और बदले में अपने उपापचय के अपशिष्ट पदार्थों (wasteproducts- CO2 तथा नाइट्रोजनीय एवं अन्य उपापचयी अपशिष्ट) इसमें मुक्त करती रहती हैं (चित्र 3)।
शिराएँ (Veins)
धमनी केशिकाओं के दूरस्थ भागों में रक्त का दबाव बहुत कम हो जाता है। अंत ऊतक द्रव्य की बढ़ी हुई मात्रा, CO2 एवं उपापचयी अपशिष्टों से युक्त तरल के रूप में, रिस कर वापस कोशिकाओं के रक्त में आ जाता है। इससे रक्त अशुद्ध हो जाता है। इस प्रकार, धमनी केशिकाओं के दूरस्म पर ही स्वयं शिरा केशिकाओं (venous capillaries) में बदल जाते हैं। अब शिरा केशिकाएँ पाया मिल-मिलकर शिराकाएँ (venules) बना लेती हैं। इस प्रकार, ऊतकों में प्रत्येक केशिका-जाल एक ओर (veins) बनाती हैं। शिराओं की धमनिकाओं से तथा दूसरी ओर शिराकाओं से जुड़ा होता है। शिराकाएँ परस्पर मिल-मिलकर छोटी-बड़ी शिराएं दीवार अधिक महीन और पिचकने वाली होती है। इसीलिए, शिराओं में धड़कन नहीं होती। इनकी गुहा भी अपेक्षाकृत चौड़ी होती है। अतः इनमें रक्त का बहाव धीमा और निरन्तर होता है तथा इसका दबाव बहुत कम होता है। इसीलिए, शिराओं में, विशेषतौर से उन शिराओं में जो शरीर के निचले एवं हदय से दूरस्थ भागों में होती हैं, रक्त के उल्टी दिशा में बह जाने की आशंका होती है। अतः इनमें जगह-जगह इकतरफा (केवल हृदय की ओर खुलने वाले) अर्धचन्द्राकार कपाट (semilunar valves) होते है जो रक्त को उल्टी दिशा में बहने से रोकते हैं (चित्र 4) | शरीर की पेशियों के संकुचन तथा हृदय के विस्तारण के चूषण खिचाव से शिराओं में रक्त के हृदय की ओर आगे बढ़ते रहने में सहायता मिलती है।
जाल तथा ऊतक द्रव्य के माध्यम से रक्त एवं कोशाओं के बीच खयं रुधिरवाहिनियों की दीवार रासायनिक लेन-देन का रेखाचित्र मे, इनकी कोशाओं को आवश्यक पदार्थ पहुंचाने के लिए भी महीन रुधिरवाहिनियों के जाल होते हैं । इस रुधिर सप्लाई को वासा वैसोरम प्लीहा, यकृत, लाल अस्थिमज्जा आदि कुछ ऊतकों में महीनतम् रुधिरवाहिनियाँ, केशिकाओं के
असममित-सी गुहाओं के रूप में होती हैं
चित्र 4 शिराओं में उपस्थित कपाट
जिन्हें रक्त-पात्रक (blood sinusoids) कहते हैं। इनकी केशिकाओं की दीवार से भी अधिक महीन होती है। शरीर में कई उघड़े भागों में धमनिकाएँ, केशिकाओं में बँटने के अतिरिक्त, शिराकाओं से सीधी भी नही होती है। इन जोड़ों को धमनी-शिरा सम्मिलन अर्थात् आरटीरियो-वीनस ऐनास्टोमोसेस (arterio venous anastomoses) कहते हैं। ये शशक में करें तथा मानव में होंठों, नासिका, जीभ एवं अंगुलियों के सिरों ने की पलकों आदि में पाये जाते हैं। इनमें, आवश्यकता पड़ने पर, रक्त को धमनिकाओं से सीधे शिराकाओं में बहाकर इसकी परिसंचरण दर बढ़ायी जा सकती है। इससे इन स्थानों में ताप (temperature) की असाधारण घटा-बड़ी का नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।
धमनियों और शिराओं में अन्तर की तालिका
रक्त-दाब एवं नाड़ी स्पंद या नब्ज (Blood pressure and Pulse)-
जब निलय अपने आकुल्चन द्वारा धमनियों में रक्त पम्प करता है तो इस रक्त का दबाव धमनियों की दीवार पर पड़ता है। इस दबाव को धमनीय दाब या रक्तदाब (arterial or blood pressure) कहते हैं। इसे सबसे पहले हेल्स (S. Hales,1733) ने घोड़ों में नापा । इसके कारण ही धमनियाँ फूलती हैं। फिर निलयों के पुनः विस्तारण पर धमनियों की दीवार सिकुड़ कर सामान्य होती है। इससे रक्तदाब कम हो जाता है। इस प्रकार, हृदय के आकुञ्चन पर धमनियों का विस्तारण और इसके विस्तारण पर धमनियों का आकुञ्चन होता है, अर्थात् धमनियों में हृद-स्पंदन से उल्टा स्पंदन होता है।
स्पष्ट है कि धमनियों के विस्तारण के समय इनमें रक्तदाब अधिक और आकुञ्चन के समय कम होता है। इन्हें क्रमशः सिस्टोलिक (systolic) एवं डायस्टोलिक (diastolic) रक्तदाब कहते हैं। मनुष्य में ये क्रमशः 120 मिमी Hg तथा 80 मिमी Hg होते हैं। डाक्टर इन्हें स्फिग्नोमैनोमीटर यंत्र (sphygnomanometer) द्वारा नापते हैं। कलाई में त्वचा के ठीक नीचे की धमनी की प्रसारण दर को अनुभव करके डाक्टर हृद-स्पंदन की दशा निर्धारित करते हैं। इसे नब्ज या नाड़ी देखना (feeling the pulse) कहते हैं।
इन्हें भी देखें-
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