इस पोस्ट में हम शशक का तंत्रिका तंत्र के बारे मे जाने गें तथा इस के आगे के पोस्ट मे शशका के मस्तिष्क की भीतरी रचना के बारे में जानेगे
शशक का तंत्रिका तंत्र
(NERVOUS SYSTEM)
मेंढक की भाँति शशक के तंत्रिका तंत्र को भी दो प्रमुख भागों में बाँटा जाता है—
(1) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) तथा
(2) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral nervous system)
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
(CENTRAL NERVOUS SYSTEM)
यह जन्तु की सारी क्रियाओं का नियंत्रण एवं नियमन करता है। इसमें मस्तिष्क (brain) एवं सुषुम्ना या मेरुरज्जु (spinal cord) आते हैं। ये भ्रूण की गैस्टुला प्रावस्था के बाद, ऐक्टोडर्म (ectoderm) से बनने वाली न्यूरल नाल. (neural canal) से बनते हैं।
शशक का मस्तिष्क (Brain)
मस्तिष्कावरण- मेंढक की भाँति, शशक में भी मस्तिष्क या एन्केफैलॉन (encephalon) तंत्रिका ऊतक (nervous tissue) का बना एक कोमल एवं खोखला द्विपाश्र्वय (bilateral) अंग होता है। यह करोटि की कपाल गुहा (cranial cavity) में सुरक्षित बन्द रहता है। इसे सहारा देने और बाहरी आघातों, दबाव आदि से इसकी सुरक्षा करने हेतु इसके चारों ओर तन्तुमय संयोजी ऊतक की तीन झिल्लियों का आवरण होता है जिन्हें कपालीय मेनिन्जीज (cranial meninges) कहते हैं। बाहर से भीतर की ओर ये निम्नलिखित होती हैं-
(क) दृढ़तानिका या ड्यूरामेटर (Duramater)
यह कपाल गुहा के चारों ओर की हड्डियों पर मढ़ी मोटी, दृढ़ एवं लोचविहीन, सबसे बाहरी झिल्ली होती है। इसमें कोलैजन तन्तुओं की बहुतायत एवं अनेक रक्तपात्र (blood sinuses) होते हैं।
(ख) जालतानिका या ऐरेक्नॉएड (Arachnoid)—
यह मध्य में, रुधिरवाहिनियों रहित, परन्तु कोलैजन एवं इलास्टिन तन्तुयुक्त एक महीन जाली-सी होती है। इसके तथा दृढ़तानिका के बीच की सँकरी सबड्यूरल गुहा (subdural space) में एक सीरमी तरल (serous fluid) भरा होता है। यह दोनों तानिकाओं को नम बनाये रखता है।
(ग) मृदुतानिका या पाइआमेटर (Piamater)—
यह मस्तिष्क पर मढ़ी, सबसे भीतरी और कोमल झिल्ली होती है। इसमें अनेक महीन रुधिरवाहिनियों का जाल फैला होता है। इसके एवं जालतानिका के बीच संकरी सबऐरैक्नॉएड गुहा (subarachnoid space) होती है। इसमें लसिका-जैसा साफ और कुछ क्षारीय सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य (cerebrospinal fluid) भरा होता है। मस्तिष्क की गुहा में भी यही द्रव्य होता है। यह द्रव्य भी मस्तिष्क को सहारा देता, इसे नम बनाये रखता तथा बाहरी आघातों से इसकी सुरक्षा करता है।
दो स्थानों पर मृदुतानिका के छोटे-छोटे उभारों के समूह, मस्तिष्क की महीन दीवार में धँसकर, अग्र एवं पश्च रक्तक जालकों या कोरॉएड प्लैक्ससेज (anterior and posterior choroid plexuses) के रूप में, मस्तिष्क की गुहा में लटके रहते हैं। इन जालकों में रुधिर केशिकाओं के घने जाल होते हैं। केशिकाओं से प्लाज्मा का O2, पोषक पदार्थों आदि लाभदायक पदार्थों से युक्त कुछ तरल अंश मस्तिष्क की गुहा के सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य में रिसता रहता है। इस द्रव्य का बहाव पीछे की ओर तथा फिर सबऐरैक्नॉएड गुहा में होते हुए सबड्यूरल गुहा की ओर होता है। अतः यह, ऊतक द्रव्य की भाँति, मस्तिष्क एवं मस्तिष्कावरण की कोशाओं को लाभदायक पदार्थों की सप्लाई करता और इनसे उपापचयी अपजात पदार्थ एकत्रित करता है। अन्त में, मस्तिष्क के इस"ऊतक द्रव्य" की बढ़ी हुई मात्रा, अपजात पदार्थों से युक्त तरल के रूप में, दृढ़तानिका के रक्तपात्रों में रिस कर वापस रक्त में जाती रहती है। मस्तिष्क की बाहरी रचना (External structure) शशक के मस्तिष्क के विभिन्न भाग मेंढक की अपेक्षा कहीं अधिक विकसित होते हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए इसे भी उन्हीं तीन भागों में बाँटते हैं-
(1) अग्रमस्तिष्क
(2) मध्यमस्तिष्क
(3) पश्चमस्तिष्क ।
(1) अग्रमस्तिष्क या प्रोसेनकेफैलॉन (Forebrain or Prosencephalon) इसमें आगे से पीछे की ओर तीन भाग होते हैं-
(क) घ्राण भाग (olfactory part),
(ख) प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (cerebral hemispheres)
(ग) डाइएनकेफैलॉन (diencephalon)।
(क) घ्राण भाग या रहाइनेनकेफैलॉन (Rhinencephalon) मस्तिष्क में सबसे आगे दो मुग्दराकार-से, धूसर द्रव्य (gray matter) के बने, तथा परस्पर पृथक् घ्राण कन्द या पिण्ड (olfactory bulbs or lobes) होते हैं (चित्र 35.1)। अधरतल की ओर ये दो लम्बे तन्तुमय डंठलों से जुड़े रहते हैं जिन्हें घ्राण मार्ग (olfactory tracts) कहते हैं (चित्र 2 ) । घ्राण मार्ग अपनी-अपनी ओर के प्रमस्तिष्क गोलाद्धों के अधरतल पर फैले होते हैं।
(ख) प्रमस्तिष्क या टीलेनकेफैलॉन (Cerebrum or Telencephalon) —
इसमें घ्राण पिण्डों के ठीक पीछे, दो बड़े एवं मोटे, शंक्वाकार-से पिण्ड होते हैं जिन्हें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (cerebral hemispheres) कहते हैं। ये पूरे मस्तिष्क का लगभग दो-तिहाई भाग बनाते हैं। ये आगे सँकरे और पीछे की ओर मोटे होते हैं। पृष्ठसतह पर दिखाई देने वाला एक अनुलम्ब मध्यपृष्ठ विदर (dorsomedian longitudinal fissure) प्रमस्तिष्क के दो गोलाद्धों में विभाजन का सूचक होता है। प्रत्येक गोलार्द्ध के अधरतल पर फैली एक हिप्पोकैम्पल खाँच इसे लम्बाई में एक बाहरी पिण्ड (outer lobe) तथा एक भीतरी हिप्पोकैम्पल पिण्ड (inner or hippocampal lobe) में बाँटती है। प्रत्येक गोलार्द्ध के पार्श्व के मध्य से मध्यरेखा की ओर मुखान्वित, परन्तु पीछे की ओर झुकी एक छोटी-सी तिरछी सिल्वियन खाँच या विदर (sylvian fissure) बाहरी पिण्ड को दो अधूरे भागों में बाँटती है-आगे फ्रॉन्टल पिण्ड (frontal lobe) तथा पीछे टेम्पोरल पिण्ड (temporal lobe)। प्रत्येक गोलार्द्ध के अग्र भाग के अधरतल पर लम्बाई में फैली एक रहाइनल खाँच या विदर (rhinal fissure) इसके हिप्पोकैम्पल पिण्ड को घ्राण मार्ग से पृथक् करती है।
चित्र 1 शशक का मस्तिष्क : A. अधर दृश्य; B. पृष्ठ दृश्य
प्रमस्तिष्क की पूर्ण बाहरी सतह पर असंख्य टेढ़े-मेढ़े उभार (gyri) होते हैं और इनके बीच-बीच में खाँचें (sulci)। ये उभार सतह के क्षेत्रफल को कई गुणा बढ़ा देते हैं।
(ग) डाइएनकेफैलॉन (Diencephalon or Thalamencephalon)
– यह प्रमस्तिष्क गोलार्द्धां एवं मध्यमस्तिष्क के बीच में स्थित, अग्रमस्तिष्क का सबसे पिछला, छोटा एवं सँकरा भाग होता है। पृष्ठतल की ओर इसका अधिकांश भाग प्रमस्तिष्क गोलाद्धों द्वारा ढका रहता है; केवल एक छोटा-सा गोल भाग दिखायी देता है जिसे पाइनियल काय या एपिफाइसिस (pineal body or epiphysis) कहते हैं। अधरतल की ओर इसका अधिकांश भाग प्रमस्तिष्क गोलार्द्धां के बीच स्पष्ट दिखायी देता है। इसके अगले भाग से दो दृष्टि तंत्रिकाएँ (optic nervi) निकलकर एक-दूसरी को क्रॉस (cross) करती हैं। क्रॉस को दृष्टि किएज्मा (optic chiasma) कहते हैं। अधरतल पर डाइएनकेफैलॉन एक पिट्यूटरी काय (pituitary body) के रूप में उभरा होता है। इस काय के ठीक पीछे कार्पस एल्बिकैन्स (corpus albicans) नामक एक अन्य, अपेक्षाकृत छोटा एवं गोल-सा, उभार होता है।
(2) मध्यमस्तिष्क या मीसेनकेफैलॉन (Midbrain or Mesencephalon)
इसका पृष्ठ भाग, पाइनियल काय के ठीक पीछे, चार गोल-से उभारों के रूप में होता है जो दृष्टि पिण्डों (optic lobes) के द्योतक होते हैं। चारों उभारों को मिलाकर कॉरपोरा क्वाड्रीजेमाइना (corpora quadrigemina) कहते हैं। अधर एवं पार्श्व भाग तंत्रिका तन्तुओं (श्वेत द्रव्य) की दो मोटी पट्टियों के रूप में होते हैं जिन्हें प्रमस्तिष्क वृन्त (cerebral peduncles) या क्रूरा सेरेब्राइ (crura cerebri; crus cerebrum) कहते हैं। ये वृत्त पश्चमस्तिष्क के अग्र भाग अर्थात् पोन्स (pons) से प्रारम्भ होकर आगे प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध में घुस जाते हैं।
(3) पश्चमस्तिष्क या रहोम्बेनकेफैलॉन (Hindbrain or Rhombencephalon)
यह दो प्रमुख भागों में बँटा होता है-आगे मिटेनकेफैलॉन (metencephalon) तथा पीछे माइएलेनकेफैलॉन (myelencephalon) । मिटेनकैफैलॉन का अग्र-अधर भाग, प्रमस्तिष्क के ठीक पीछे स्थित, श्वेत द्रव्य की बनी, एक चौड़ी अनुप्रस्थ पट्टी के रूप में होता है जिसे पोन्स वैरोलाई (pons varolii) कहते हैं। शेष भाग को निमस्तिष्क (cerebellum) कहते हैं। यह दो बड़े एवं पाश्र्वय निमस्तिष्क गोलार्द्धां (cerebellar hemispheres) तथा एक छोटे एवं मध्यवर्ती वर्मिस (vermis) नामक भागों में विभेदित होता है। पोन्स वैरोलाई निमस्तिष्क गोलाद्ध के पार्श्व भागों को जोड़ता है। इसके पाश्र्व से निकले दो तन्तु-समूह भुजाओं के रूप में पीछे निमस्तिष्क गोलार्द्ध में घुस जाते हैं। तन्तुओं के दो जोड़ी अन्य डण्ठलनुमा समूह (peduncles) निमस्तिष्क गोलार्द्धा को आगे मध्यमस्तिष्क एवं प्रमस्तिष्क गोलार्द्धा से अलग-अलग जोड़ते हैं। इसी प्रकार, तन्तुओं के एक जोड़ी अन्य डंठल गोलार्द्ध को पीछे मस्तिष्क पुच्छ (medulla oblongata) से जोड़ते हैं। वर्मिस दोनों गोलार्द्धा के मध्यवर्ती भागों को परस्पर जोड़ता है। पूरा निमस्तिष्क गहरी प्रसीताओं (sulci) द्वारा अनेक चपटे, पत्तीनुमा पिण्डकों में बँटा होने के कारण अत्यधिक सलवटदार (folded) होता है। प्रत्येक निमस्तिष्क गोलार्द्ध का बाहरी भाग एक पृथक्-से सलवटदार पिण्ड के रूप में उभरा होता है जिसे फ्लॉकुलस (flocculus) कहते हैं।
माइएलेनकेफैलॉन मस्तिष्क के सबसे पिछले भाग अर्थात् मस्तिष्क पुच्छ या मेड्यूला ऑब्लॉन्गाटा (medulla oblongata) को कहते हैं। यह पोन्स तथा मेरुरज्जु (spinal cord) के बीच में स्थित, शंक्वाकार-सी होती है। इसके अग्रभाग पर ही पृष्ठतल की ओर निमस्तिष्क होता है। पीछे की ओर यह सँकरी होकर मेरुरज्जु से जुड़ी होती है। इसकी मध्यपृष्ठ (mid-dorsal) एवं मध्यअधर (mid-ventral) रेखाओं पर एक-एक वैसी ही अनुलम्ब खाँचें (fissures) होती हैं जैसी कि मेरुरज्जु पर। प्रत्येक पार्श्व में श्वेत द्रव्य का एक निमस्तिष्क वृन्त (cerebellar peduncle) मेड्यूला को अपनी ओर के निमस्तिष्क गोलार्द्ध से जोड़ता है। डाइएनकेफैलॉन, मध्यमस्तिष्क, पोन्स तथा मेड्यूला मिलकर मस्तिष्क का मध्यवर्ती अक्षनुमा (axis-like) भाग बनाते हैं जिसे मस्तिष्क वृन्त (brain stem) कहा जाता है। मस्तिष्क की गुहा (Cavity of brain) शशक में मस्तिष्क-गुहा (ventricle) कुछ सँकरी होती है। इसके आवरण को इपेन्डाइमल एपिथीलियम (ependymal epithelium) कहते हैं। यही मस्तिष्क की दीवार का भीतरी स्तर बनाती है। घ्राण भाग में, दोनों ओर एक-एक सँकरी रहाइनोसील (rhinocoel) गुहाएँ होती हैं (चित्र 2)। ये आगे बन्द लेकिन पीछे अपनी-अपनी ओर के प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध की गुहा- पार्श्व गुहा (lateral ventricle) में खुलती हैं। हिप्पोकैम्पल पिण्डों में दोनों ओर की पार्श्व गुहाएँ मिलकर, मध्य में स्थित एक सहछिद्र द्वारा, डाइएनकेफैलॉन की गुहा से जुड़ी रहती हैं। इस छिद्र को मॉनरो का छिद्र (foramen of Monro) तथा डाइएनकेफैलॉन की गुहा को डायोसील (diocoel) या तीसरी वेन्ट्रीकल (third ventricle) कहते हैं।
चित्र 2 मस्तिष्क की गुहा
दृष्टि पिण्डों के ठोस होने के कारण, मध्यमस्तिष्क की गुहा काफी सँकरी होती है। इसे इटर (iter) या प्रमस्तिष्क जलसेतु (cerebral aqueduct or aqueduct of Sylvius) कहते हैं। यह आगे डायोसील तथा पीछे चौथी वेन्ट्रीकल (fourth ventricle or metacoel) से जुड़ी होती है। चौथी वेन्ट्रीकल पश्च मस्तिष्क की चतुर्भुजीय-सी (rhomboidal) गुहा होती है। यह मेड्यूला के अग्र भाग में ही सीमित होती है, क्योंकि पश्चमस्तिष्क के अन्य भाग ठोस होते हैं और मेड्यूला के पश्च, सँकरे भाग की गुहा को मेरुरज्जु (spinal cord) की ही गुहा का भाग मानते हैं। पूरी मस्तिष्क गुहा में लसिका जैसा सेरेब्रोस्पाइनल द्रव्य (cerebrospinal fluid) भरा होता है जो गुहा में पीछे की ओर बहता हुआ, चौथी वेन्ट्रीकल में पहुँचकर, मेरुरज्जु की गुहा में तथा तीन सूक्ष्म छिद्रों द्वारा सबऐरैक्नॉएड गुहा में जाता रहता है।
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