अजन्ता
गुफा संख्या सत्रह
सत्रहवीं गुफा के चित्र : अजन्ता में प्राप्त गुफाओं में यह चैत्य गुफा सबसे अच्छी हालत में है। इस गुफा का निर्माण वाकाटक वंश के राजा 'हरिसेन' के एक श्रद्धालु मण्डलाधीश ने करवाया था। इस गुफा में सोलहवीं गुफा की अपेक्षा कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण चित्र हैं और उसके बाद के हैं। 'डॉ. बर्गेस' ने इस गुफा के लगभग इक्कीस दृश्यों का वर्णन दिया है, जिनमें बुद्ध के जीवन से संबंधित चित्रों की अपेक्षा जातक कथाओं के चित्र अधिक हैं और सुरक्षित भी।
जातकों से संबंधित चित्रों में व्यग्रोधमृग जातक, छदन्त जातक, हस्ति जातक, महाकपि जातक, मातृपोषक जातक, शिवि जातक, साम जातक, वेस्सान्तर जातक, महाहंस जातक, महिप जातक, सिंहल अवदान, मच्छ जातक, महासुतसोम जातक, आठ पापों से बचने के लिए बुद्ध का आदेश, नीलगिरी प्रकरण, जीवन कूप, मैत्रेय और मानुषी बुद्ध, श्रावस्ती का चमत्कार, बुद्ध का संघ को उपदेश तथा उड़ती हुई गन्धर्व अप्सराएँ व छत पर सुन्दर आलेखन हैं।
मातृपोषक जातक : जातक कथाओं में 'मातृपोषक जातक' की कथा भी सुन्दरता से अंकित की गई है। कथा इस प्रकार है-एक बार बुद्ध देव श्वेत हाथी के रूप में अवतीर्ण हुए थे, उनको पकड़कर काशीराज के पास लाया गया, परन्तु यहाँ उन्होंने अपनी माँ के वियोग में दाना-पानी सब छोड़ दिया। काशीराज को जब यह ज्ञात हुआ, तब उन्होंने श्वेत हाथी को पुनः जंगल में छोड़ दिया। इस जातक कथा के अंकन में चित्रकार ने माँ से पुनः मिलन की दशा को बड़ी मार्मिक दृष्टि से अंकित किया है। जातक कथा के अन्तिम दृश्य में श्वेत गज अपनी सूंड से अन्धी माँ को सहलाते हुए दर्शाया गया है।
हस्ति जातक : 'हस्ति जातक' का दृश्य गुफा नम्बर सोलह की भाँति ही हुआ है, किन्तु यहाँ एक झरोखे के ऊपर गहरे गुलाबी रंग से डेढ़ पंक्ति का प्राचीन लेख अंकित है।
वेस्सान्तर जातक : वेस्सान्तर जातक की कथा यहाँ बड़े मार्मिक रूप में चित्रित है। चित्र में बोधिसत्व राजा भावपूर्ण हस्त मुद्रा धारण किये आसन पर बैठा है। सामने एक भिक्षुक अपने कुरूप दाँत निकाले कुछ भिक्षा याचना कर रहा है। उसकी याचना से सारा राज परिवार चकित है। राजा के पीछे बैठी स्त्रियाँ चिन्तित हैं। भिक्षु राजा की दानशीलता का यश सुनकर एक यज्ञ में बलि के लिए उसके राजकुमार पुत्र को भिक्षा में प्राप्त करने आया है। राजकुमार तैयार है। पीछे एक सेवक पात्र में जल लाया है, जिससे यह जान पड़ता है कि राजा ने इस महादान का संकल्प कर लिया है। वेस्सान्तर अपनी पत्नी माद्री को राज्य से अपने निष्कासन निष्कासन का दुखद समाचार सुना रहे हैं।
अगले दृश्य में कुमार विदा ले रहे हैं। वे हाथ जोड़े बैठे हैं। माँ, दासी व चार अनुचर आदि दुःख में डूबे अंकित हैं। इससे अगले दृश्य में वे रथ में बैठकर अपनी पत्नी व दो पुत्रों के साथ नगर से जाते अंकित हैं। पृष्ठभूमि में बाजार का दृश्य है। अगले दृश्य में कुमार भिक्षुओं को अपने रथ और अश्व देकर पैदल जाते हुए दर्शाये गए हैं। इससे आगे जूजुक नामक ब्राह्मण कुमार के दोनों बालकों को भिक्षा में माँगते हुए दर्शाया गया है। कथा के अन्त में कुमार वेस्सान्तर को वापस लौटते हुए चित्रित किया गया है। रानी पारदर्शी चोली तथा पारदर्शी अन्तरीय पहने है। इस चित्र में हस्त-मुद्राएँ तथा नेत्रों के भाव उल्लेखनीय हैं। रेखाएँ शक्तिशाली और सुडौल हैं। विशेष रूप से भिक्षु के कुरूप चेहरे, गंजे सिर, मुँह से बाहर निकले दाँत, भारी ठुड्डी, गाल की उठी हड्डी का सूक्ष्मता से अंकन हुआ है। एक अन्य चित्र में कई सौ चेहरे अंकित हैं, जिनमें सुन्दरियों के दलों, सवारियों, राज्याभिषेक, डाकनियों का युद्ध आदि में कुरूप एवं सुन्दर सभी पक्षों का अंकन सफलता से हुआ है।
महाहंस जातक : इस घटना को दो दृश्यों में प्रदर्शित किया गया है, पहले दृश्य में दो हंसों को पदमसर में से पकड़ता हुआ बहेलिया और हंस भय से आतंकित उड़ते हुए। अन्य हंस का चित्रण बड़ा व्यंजक हुआ है। दूसरे दृश्य में पकड़े हुए हंस को सिंहासन पर बैठा दर्शाया है और बोधिसत्व हंस वाराणसी की राज सभा में राजा तथा रानी को उपदेश दे रहे हैं।
यह चित्र अपने वर्ण-विधान के कारण अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। इस चित्र की कथा इस प्रकार है- भगवान बुद्ध एक जन्म में स्वर्ण हंस के रूप में अवतीर्ण हुए। इसी समय काशीराज की रानी खेम ने स्वप्न में स्वर्ण हंस देखे। इसी कारण राजाज्ञा से बहेलियों ने स्वर्ण हंस रूपी बुद्ध और सुमुख हंस को पकड़कर काशीराज की सेवा में प्रस्तुत किया। काशीराज की सभा में स्वर्ण हंस राजा को उपदेश देता है और काशीराज भगवान बुद्ध को सिंहासन पर बैठाते हैं और उनसे उपदेश ग्रहण करते हैं।
राहुल समर्पण : यशोधरा से भगवान बुद्ध द्वारा भिक्षा माँगने वाले चित्र में यशोधरा के द्वार पर बुद्ध एक भिक्षुक के रूप में आये हैं। यशोधरा क्या दे, जब उसका पति स्वयं भिखारी बन कर आया है। उसके पास उसका एकमात्र पुत्र राहुल है, जिसे वह अपने सर्वस्व की तरह बुद्ध को दे देती है। चित्रकार ने इस चित्र में राहुल के मुख पर अबोधता, यशोधरा के नेत्रों में श्रद्धायुक्त आत्म त्याग का भाव एवं भगवान बुद्ध के मुख पर आध्यात्मिकता के भाव को बखूबी दर्शाया है। यहाँ बुद्ध को विश्व के कल्याणकर्त्त के रूप में वृहद आकार में बनाया गया है। गुफा की छत पर सुन्दर अलंकरण हैं।
महाकपि जातक : इस कथा चित्र में, गंगा के किनारे आम्र वृक्ष पर बहुत से बन्दर रहते थे। बोधिसत्व रूपी बन्दर के मना करने पर भी एक बन्दर ने आम नदी में गिरा दिया। यह आम मछुआरे के माध्यम से बनारस के राजा को मिला। आम के स्वाद से राजा का मन बड़ा प्रसन्न हुआ और वह अपने दलबल के साथ आम लेने के लिए आम्र वृक्ष के पास आया। बोधिसत्व सब की जान बचाने हेतु वृक्ष की अन्तिम टहनी पकड़कर दूसरे वृक्ष की ओर लपके और साथी बन्दरों को अपनी पीठ द्वारा बने पुल से उतर जाने को कहा। इन बन्दरों में पूर्वजन्म का चचेरा भाई देवदत्त भी था, जिसकी बोधिसत्व से सदा अनबन रहती थी। वह उचित अवसर देखकर बोधिसत्व की पीठ पर कूद गया। इससे महाकपि बोधिसत्व को बहुत चोट आई। राजा ने उस पर दया कर उसका उपचार किया। बोधिसत्व ने राजा की कृतज्ञता मानते हुए उन्हें धर्मोपदेश दिया और मोक्ष को प्राप्त हो गये।
सिंहलावदान की कथा : इस कथा में सिंहल, सिंहल व्यापारी का पुत्र था और वह अपने पाँच सौ साथियों के साथ व्यापार हेतु निकला, लेकिन बीच रास्ते में समुद्री तूफान में उनका सब कुछ नष्ट हो गया। इसके बाद वे ताम्र द्वीप पर पहुँचे, जहाँ उन्हें नरभक्षी राक्षसी ने खा लिया। सिंहल बोधिसत्व रूपी सफेद घोड़े के ले जाने के कारण बच गये। बाद में सिंहल ने उस राक्षसी को भगा दिया और इसी समय से इस द्वीप का नाम 'सिंहल द्वीप' पड़ गया।
मृग जातक : इस कथा चित्र में एक सुनहरी मृग ने एक कर्जदार व्यापारी को गंगा में आत्महत्या करने से बचाया और व्यापारी से यह प्रार्थना की कि वह इस बात की चर्चा नगर में जाकर न करें। जब व्यापारी अपने शहर बनारस पहुँचा, तो उसे मालूम हुआ कि राजा सुनहरे मृग का पता बताने पर बहुत सा धन दे रहा है। व्यापारी लालच में आ गया और उसने राजा को सुनहरे मृग के निवास स्थल के विषय में बता दिया। जब बनारस के राजा इस जंगल में मृग का वध करने पहुँचे, तो मृग ने राजा को बताया कि व्यापारी ने उसके साथ विश्वासघात किया है। इस पर राजा व्यापारी को दण्ड देने के लिए राजी हो गये। मृग ने राजा से व्यापारी के लिए दया की भीख माँगी। सुनहरी मृग स्वयं बोधिसत्व ही थे।
अजन्ता गुफा संख्या 17- 'उड़ती हुई गन्धर्व अप्सराएँ तथा इन्द्र का अंकन'
इसी गुफा के बाहर बरामदे में बायीं और 'उड़ती हुई गन्धर्व अप्सराएँ तथा इन्द्र का अंकन' है। इसके अतिरिक्त 'सुरापान' का भी अंकन है। दायीं ओर आकाश में 'उड़ती हुई अप्सरा' चित्रित है, जिसके होठ का रंग उड़ गया है। ये सभी अजन्ता के सर्वोत्तम चित्रों में गिने जाते हैं।
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