अजन्ता के चित्रों की विशेषताएँ
(1) रेखाओं का असाधारण प्रभुत्व : भारतीय चित्रकार के लिए रेखा एक चित्रोपम मर्यादा मानी जाती है और इसीलिए भारतीय चित्रकला रेखा-प्रधान है। अजन्ता का चितेरा रेखीय अंकन की निपुणता के बल पर ही नग्न आकृतियों को सौम्य और सैद्धान्तिक रूप में प्रस्तुत कर सका। उसने चित्र में आवश्यकतानुसार अपनी रेखा को कोमल, कठोर, पतला या मोटा बनाया है। यहाँ गोलाई या डील-डौल को ही रेखा के द्वारा प्राप्त नहीं किया गया, बल्कि स्थितिजन्यलघुता, बल, उभार, अलंकरण तथा अन्य कई विशेषताओं को रेखा द्वारा प्राप्त किया गया है।
भावाभिव्यंजक रेखा के उदाहरण अजन्ता की पहली गुफा के 'अवलौकितेश्वर बोधिसत्व चित्र' में है, जिसमें सिद्धार्थ की मुख मुद्रा में दुःख, चिन्तन, शोक का भाव एक ही रेखा से अंकित कर दिया गया है। 'मार विजय', 'सर्वनाश', 'दया-याचना' आदि चित्र, रेखा की प्रधानता दर्शाते हैं।
'पर्सी ब्राउन' ने पूर्वी देशों की चित्रकला को विशेष रूप से रेखा की चित्रकला माना है, जबकि पाश्चात्य कला को छाया-प्रकाश प्रधान। हमारे यहाँ मानव के भिन्न-भिन्न रूपों, चरित्रों तथा भावों को रेखा के द्वारा ही सफलता से अभिव्यक्त किया गया है। अजन्ता शैली अजन्ता शैली में अधिकांश रेखाएँ अटूट, प्रवाहमय और भाव-प्रवण हैं। हाथों का चित्रण भी अजन्ता के इसी ज्ञान का एक प्रमाण है, जहाँ हाथों से ही सारी बात स्पष्ट कर देने की क्षमता है। गुफा संख्या दो में दूत अपने हाथ से ही किसी महानाश का संदेश जिस कुशलता से दे देता है, उसे हम अजन्ता के कलाकारों का एक जादू ही कह सकते हैं। रेखाओं में अजब कोमलता है। गुफा संख्या नौ में 'एक बैठी हुई युवती' का पिछला भाग इसी कोमलता का एक अन्यतम नमूना है। अजन्ता गुफाओं में मानव आकृतियों, पशु-पक्षियों या प्रकृति का कोई भी अंकन, सजीव रेखांकन के द्वारा ही चिरस्थाई हो सका है। चित्रकार की तूलिका इतनी गतिमान है कि उसके थोड़े ही प्रत्यावर्तन से चित्र की रूपरेखा उभर आती है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि अजन्ता कलाचार्यों ने रेखा के महत्त्व को पूर्णतया हृदयंगम किया है। 'रेखा प्रशंसन्त्याचार्याः चित्रसूत्र'
(2) नारी चित्रण में चरम उपलब्धि: नारी चित्रण अजन्ता की चरम उपलब्धि है। जिस प्रकार कथा साहित्य में श्रेष्ठता के लिए कलाकार की नारी-चित्रण की क्षमता को देखा जाता रहा है, वैसे ही अजन्ता के कलाकारों ने अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के लिए नारी को अनगिनत स्थितियों में चित्रित किया है। ये कलाकार अपने नारी चित्रों को असुन्दर नहीं बना पाये, यही उनकी कमजोरी है। वह उनके अलंकरण की सर्वोत्तम पूँजी है। उसका उन्होंने कोई ऐसा दुरुपयोग नहीं किया कि हर अवसर पर उसे ला रखा हो, चाहे वह कथा से संबद्ध हो अथवा न हो। यदि कहीं ऐसा किया भी है तो केवल एक दृष्टि से, सौन्दर्य की दृष्टि से। चित्रों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि सौन्दर्य से परे नारी का चित्रण करना उन्हें पसन्द नहीं था। इसी कारण गुफा संख्या दो में 'दण्ड पाती हुई युवती' के चेहरे को, इस डर से कि कहीं प्रसंगानुकूल मनःस्थिति चेहरे पर कुरूपता न ला दे, छिपा ही दिया। सौन्दर्य के प्रति इतनी आस्था और कहीं देखने को मिलेगी, इसमें संदेह है।
अजन्ता के चित्रों में नारी की नग्न, अर्द्धनग्न अथवा आवृत, विभिन्न स्थितियों का समावेश किया है। अनावृत्त शरीर उनके लिए कोई गोपनीय विषय नहीं रहा, जिसके अध्ययन के लिए उन्हें व्यावसायिक मॉडल बैठाने पड़े हों। उन्होंने खुले रूप में उसे देखा और खुले रूप में उसको चित्रित किया। जहाँ कहीं किसी झीने वस्त्र से शरीर ढका भी है, वहाँ शरीर की कान्ति वस्त्र के अन्दर से झाँककर कलाकार की सशक्त अभिव्यक्ति और बारीक अध्ययन का उदाहरण प्रस्तुत करती है। स्त्रियों के नितम्बों और स्तनों का आकार बढ़ाकर चित्रित करना जीवन के वास्तविक आकारों की अपेक्षा कविता में वर्णित आकारों के निकट रहा है।
अजन्ता के नारी चित्रण से कला समीक्षक 'ग्लेडस्टोन सॉलमन' बड़े प्रभावित हुए हैं। उन्होंने इस संदर्भ में लिखा है- "कहीं भी नारी को इतनी पूर्ण सहानुभूति व श्रद्धा प्राप्त नहीं हुई है। अजन्ता में यह प्रतीति होती है कि उसे विशिष्टता के साथ नहीं, बल्कि एक सारतत्व के रूप में निरूपित किया है। वह कोई व्यक्तिगत पात्र नहीं है, वह तो एक नियम है। वह वहाँ एक नारी ही नहीं, अपितु समस्त विश्व के सौन्दर्य का अवतार है।
(3) विषय वैविध्य : अजन्ता बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है, अतः इस केन्द्र में भगवान बुद्ध की लौकिक एवं पारलौकिक छवि का एक धरातल पर कलाकार ने चित्रण कर कल्पना, बुद्धि एवं तकनीकी महानता का परिचय दिया है। यूँ भी बौद्ध धर्म के करुणा, प्रेम और अहिंसा ने चितेरों, दानदाताओं और जन-सामान्य को बहुत समय तक अप्रत्याशित रूप से आकृष्ट किया। बुद्ध के उपदेश, महात्मा बुद्ध की जन्म-जन्मान्तर की कथाएँ, (जिनको उन्होंने स्वयं अपने उपदेशों में सुनाया और बताया है कि अनेक जन्मों से वह इसी प्रकार अनेक रूपों में अवतीर्ण होते आ रहे हैं) बोधिसत्व आदि से अजन्ता की भित्तियाँ सजी हुई हैं। वहीं तत्कालीन, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक परिस्थितियों का प्रदर्शन करती विविध घटनाएँ, अजन्ता की भित्ति का अलग रूप प्रदर्शित करती हैं।
अजन्ता तत्कालीन जीवन का प्रतिरूप है। गाँव और नगर, महल और झोपड़ी, समुद्रों और यात्राओं का संसार अजन्ता की इन गुफाओं में दृष्टिगोचर है। भित्तियों पर प्रकृति के विविध अवयवों का आलेखन जलचर, थलचर एवं नभचरों से गुथा पड़ा है। जुलूस के जुलूस, हाथी-घोड़े व अन्य पशु-पक्षी इस प्रकार चित्रों में प्रदर्शित हैं, मानो किसी निर्देशक के बताये हुए अभिनय एवं इशारे पर वे कार्यरत हों। अन्य चित्रों में निकृष्ट बौने, यक्ष, द्वारपाल, देवदूत यक्षिणियाँ, गणिकाएँ आदि अनगिनत पात्रों को लावण्यमय रूप में रेखांकित किया है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि अजन्ता के ये चित्र एक धर्म विशेष तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि विभिन्न समुदायों की कला के रूप में व्यापक रूप धारण कर चुके हैं। विषय धार्मिक होते हुए भी जीवन और संसार के लिए ये चित्र महत्त्वपूर्ण साबित हुए हैं। 'झूला झूलती राजकुमारी', 'मरती राजकुमारी' तथा 'नृत्य करती बालाओं' का अंकन ही नहीं, वरन् कई अन्य सांसारिक पक्षों का यहाँ अंकन हुआ है। यहाँ श्रृंगार तथा जनजीवन संबंधी विषयों की उपेक्षा नहीं हुई है। अतः इस आधार पर यह शैली धर्म निरपेक्ष है।
(4) रंग विधान : अजन्ता के भित्तिचित्रों में प्लास्टर पर टेम्परा पद्धति (अर्थात् गीले प्लास्टर पर कार्य न करके सूखने पर किया गया है) से चित्रण किया हुआ मिलता है। यूँ तो काल के क्रूर आघातों ने इस प्राचीन चित्रकारी का बहुत कुछ वर्ण सौष्ठव तथा लावण्य छीन लिया है। फिर भी आज अजन्ता के इन चित्रों की आभा फीकी नहीं पड़ी है। रंग अमिश्रित और चमकीले हैं। चित्र तरोताजा नजर आते हैं। अजन्ता के चित्रों में गिने-चुने प्राकृतिक खनिज रंगों का ही प्रयोग किया है, ताकि वे चूने के क्षारात्मक प्रभाव से सुरक्षित रह सकें। इस शैली में जिन रंगों का स्वतंत्रता से प्रयोग किया गया है। उनमें सफेद, लाल, भूरे से बने विभिन्न हल्के तथा गहरे रंग हैं। पीला रंग लिए पीली मिट्टी या रामरज्ज पीले रंगबौद्धकाल की चित्रकला/83 का प्रयोग है। (Natural Arsenic Sulphide) लाल के लिए गेरू व हिरौंजी, काले के लिए काजल, सफेद रंग प्रायः अपारदर्शी है और चीनी मिट्टी, जिप्सम, चूने या खड़िया से बनाया गया है। लाल तथा भूरा, लौह (अयस्क) से प्राप्त खनिज रंग हैं। हरा रंग एक स्थानीय (अयस्क) खनिज से बनाया गया है, जो संग सब्ज टेरावर्ट (Terraverte) है। नीला रंग फारस से आयात किया हुआ 'लेपिस लाजुली' (Lapis Lazuli) है जो एक बहुमूल्य पत्थर को घिस कर बनाया गया है। इन रंगों को गोंद अथवा सरस (वज्रलेप) के साथ घोलकर तैयार किया जाता था।
अजन्ता के चित्रों में प्रायः एक बार में ही सपाट रंग भर दिये गये हैं और छाया प्रकाश के सिद्धान्त का पालन नहीं किया गया है, किन्तु कहीं-कहीं इसका प्रयत्न अवश्य हुआ है। केवल उभार दर्शाने या स्थानीय गोलाई के लिए आसपास के रंगों को कुछ गहरा कर दिया गया है, जो रंग अर्द्ध-पारदर्शी होते थे। शरीर तथा कपड़ों का का रंग लावण्य युक्त और संगत है। अजन्ता के कुछ आरम्भिक चित्रों को छोड़कर सोलहवीं तथा सत्रहवीं गुफा में अजन्ता के चित्रकारों ने गहरी पृष्ठभूमि पर हल्के वर्ण विधान में आकृतियाँ बनाने की प्रवृत्ति दिखाई है, परन्तु दूसरी ओर हल्की पृष्ठभूमि पर गहरी आकृतियों के बनाने की प्रवृत्ति भी प्रदर्शित है। जो यूरोप की वेनिस चित्रकला शैली के समान है। चित्रकार ने दर्शक का ध्यान चित्र की ओर आकृष्ट करने की भरसक कोशिश की है। मानवाकृतियों के बाल काले दर्शाकर रूप और लावण्य में वृद्धि की गयी है और मनवांछित प्रभाव उत्पन्न किया गया है।
(5) भवन : अजन्ता के चित्रों में गुप्तकालीन भवन तथा वास्तु का प्रयोग है। यूँ तो शुंग, सातवाहन, वाकाटक संस्कृतियाँ भी अजन्ता की कला में बोलती हैं, किन्तु विशेष रूप से कक्षों, स्तम्भों, चैत्य, स्तूप एवं वीथिकाओं को सुन्दरता से बनाया गया है।
(6) केश विन्यास : हालांकि अजन्ता की चित्रकारी काफी प्राचीन है, किन्तु फिर भी आज के आधुनिक जगत् की स्त्रियाँ अजन्ता में चित्रित स्त्रियों के केश विन्यास की प्रणाली से प्रेरणा लेती हैं। स्त्रियों के लम्बे लहराते नागिन जैसे वेणियों में बंधे बाल, कन्धों पर लटकते घुंघराले बाल, माथे पर लटकते, चिकुर जूड़ों में बंधे बाल, गुंथे हुए बाल, खुले एवं छिटके हुए कुन्तल केश आदि अनेक प्रकार के केश विन्यास का अनोखा रूप देखने को मिलता है। सुन्दर केशों के अलावा क्रूर, धूल-धूसरित या राक्षसों के बाल दर्शाने में भी चित्रकार पीछे नहीं हैं।
(7) आलेखन : अजन्ता को यदि 'आलेखनों की खान' कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अजन्ता की गुफाओं को सुसज्जित करने, रिक्त स्थानों को भरने, गुफाओं के मुख्य द्वारों, छतों, खम्भों आदि पर कलाकारों ने भगवान बुद्ध से संबंधित चित्रों के समकक्ष आलेखन चित्रित किये हैं। यही नहीं वस्त्रों, मुकुटों, आभूषणों आदि में भी आवश्यकतानुसार आलंकारिक छटा लिए हुए आलेखन बनाये गये हैं। इन आलेखनों में चित्रकार ने सुन्दर रूप, पशु-पक्षियों, पुष्पों तथा लताओं का प्रयोग किया है, जिनमें बन्दर, वृषभ, मीन, मकर, मृग, महिष, हंस, तोता, बत्तक को उनकी स्वाभाविक उन्मुक्तता के साथ चित्रित किया गया है।
मानो वे मानव जीवन के सुख-दुःख के साथी हो जायें। कमल के पुष्प, मुरियाँ एवं लताएँ विविध रूपाकारों में प्रदर्शित हैं, जो अजन्ता की निजी विशेषता जान पड़ती है। आम्रकुंज में विचरण करते प्रेमी-युगल, लताओं में लिपटे किन्नर, हंस, हस्तिदल, मीन, मकर, मृग, मयूर, जल व थलचर एक-दूसरे से मेल खाते प्रवाहमय रेखांकनों में चित्रित किये गये हैं। ये आलेखन बलवती रेखा के अनन्त प्रवाह, गति सन्तुलित योजना और छन्दमय अभिप्रायों की लयात्मक पुनरावृत्ति के कारण शक्तिशाली भी बन गये हैं।
अलंकरणों में आयताकार, भाडकोणीय, वर्तुलाकार अथवा शंकु के आकार में ज्यामितीय आलेखनों की भी भरमार है। कहीं-कहीं प्रेमी युगलों से युक्त दिव्य आलेखन (शोभन) शाखाओं व छतों में बनाये गये हैं। अजन्ता के चित्रों का यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि यहाँ की विहार गुफाओं की छत वितान (शामियाना) के समान ढोल वाली बनाई गई है। वितान के समान ही आलेखनों का प्रयोग गुहा छत में किया गया है।
प्रकृति की विविध हरियाली या रूपों में अशोक, साल, आम्र, बरगद, पीपल, ताड़, गूलर, कदली आदि में पेड़ों का सुन्दर समन्वय हुआ है। उदाहरण के लिए छदन्त के चित्र में गजराज की शोभा, प्रकृति, वैभव तथा उन्मुक्तता का बखूबी अंकन है।
इन आलेखनों को काली तथा लाल (हिरौंजी की) पृष्ठभूमि पर पहले सफेद रंग से बनाया गया है। उसके पश्चात् पारदर्शी रंगों का प्रयोग किया गया है।
पहली और दूसरी गुफाओं में तमाम छतें इन आलेखनों से पूर्ण हैं। इनमें हिरौंजी और बुझे हुए काले रंग से जमीन बनाकर लाल, पीले तथा सफेद रंग से चित्रकारों ने अपनी कल्पना को असंख्य रूप दिये हैं।
इन आलेखनों की व्यवस्था सुन्दर है और कहीं भी आवश्यकता से अधिक स्थान खाली नहीं छोड़ा गया है और उचित अन्तराल व्यवस्था के कारण ये आलेखन सन्तुलनपूर्ण, ठोस और प्रभावशाली हैं। मानव, अर्द्धमानव, विचित्र काल्पनिक जीव, किन्नर, पशु, फूल और अनेक फल व बेलें आदि बड़ी सुन्दर आकृतियों में प्रस्तुत किये गए हैं। इनके अनेक आलंकारिक ज्यामितीय तथा काल्पनिक रूप चित्रित हुए हैं। पक्षियों तथा जलचरों के अतिरिक्त गंधर्व तथा विद्याधर युगल भी बादलों के बीच-बीच बनाये गये हैं। अजन्ता के ये आलेखन आज भारतीय चित्रकला की सर्वोत्कृष्ट निधि मानी जाती है।
(8) परिप्रेक्ष्य : अजन्ता के चित्रकारों ने भावना और कल्पना के महत्त्व को स्थापित करने के लिए मानसिक परिप्रेक्ष्य को ही उपयुक्त समझा। इस मानसिक परिप्रेक्ष्य में उसने घृणा, क्रोध, श्रद्धा आदि भावों को बखूबी दिखाया है तथा दृष्टा तक पहुँचाने में पूर्ण सफलता भी प्राप्त की है। कलाकार ने चित्र में प्रयुक्त अनेक आकृतियों को सामान्य अनुपात से अधिक बड़ा या छोटा बनाकर उनके महत्त्व तथा आध्यात्मिक उत्थान को व्यक्त किया है।
'राहुल समर्पण' नामक चित्र में कमल पर खड़े भगवान बुद्ध की आकृति यशोधरा की आकृति से अनुपात में बहुत बड़ी बनाई गई है, जो भवन के समकक्ष है। यहाँ भवन
आदि के परिप्रेक्ष्य में चित्रकार ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि का परिचय दिया है और दृष्टि क्रम या परिप्रेक्ष्य से आलेखनों की सुन्दरता और रूप को नष्ट नहीं होने दिया है।
अजन्ता के चित्रकार ने 'काल्पनिक परिप्रेक्ष्य' का भी चित्रों में समावेश दर्शाया है। अनेक स्थानों और विभिन्न समयों के दृश्यों को एक ही चित्र में अंकित कर दिया गया है। महल के कई भागों में होने वाले क्रियाकलापों को दर्शाने के लिए महल की छत हटा दी गई है और सम्पूर्ण दृश्य कुछ ऊँचाई से देखा गया है। चित्र दीवारों द्वारा स्थान-स्थान पर विभाजित हो गया है, पर पूरे चित्र में एक-सूत्रता विद्यमान है।
अजन्ता के चित्रकारों ने 'बहुद्देश्यीय परिप्रेक्ष्य' (Multiple Perspective) का पालन भी किया है। अजन्ता के कलाकारों ने मिलन बिन्दु को दर्शक के नेत्र पर स्थिर रखा है। उदाहरण के तौर पर चौकोर वस्तु का समीप का भाग छोटा और दूर का बड़ा बनाया जाता है। गुफा संख्या एक में प्रेमी युगल और बुद्ध जन्म के दृश्यों में बहुद्देश्यीय परिप्रेक्ष्य का अच्छा प्रयोग हुआ है। यूरोपीय कला में मिलन बिन्दु क्षितिज पर होता है, जो उनका प्रमुख गुण है। अजन्ता के चित्रों में यूनानी परिप्रेक्ष्य का भी प्रयोग हुआ है, जैसे दसवीं गुफा के 'भाडयन्त जातक के जंगली दृश्य' तथा 'पूजागृह के महराबों' में।
चित्रकार ने अनेक दृष्टि बिन्दुओं से बने रूपों का विकास अन्तराल की सरल संगत वाले सुलभ यथार्थता के आधार पर किया है। रेखा के घुमाव और अन्तराल के रूप स्थापना के माध्यम से दूरी व समीपता का बोध कराया गया है।
(9) मुकुट, आभूषण तथा वस्त्र : अजन्ता के चित्रों में मुकुटों, आभूषणों तथा वस्त्रों को भी सुन्दरता से अंकित किया गया है। राजा और रानी के मुकुटों की ऊँचाई में विशेष अन्तर दर्शाया है। देवताओं तथा महापुरुषों के मुकुट शिखर के समान ऊँचे और भव्य बनाये गये हैं। उदाहरण के लिए, नागराज के मुकुट के पीछे पाँच फन का नाग लगा है। इसी प्रकार 'गृहत्याग' नामक चित्र में भगवान बुद्ध का मुकुट उल्लेखनीय है। 'पद्मपाणि', 'गन्धर्व युगल', 'वज्रपाणि' नामक चित्रों में मुकुट की बनावट तथा आकार से व्यक्ति का पद, चरित्र या महत्त्व का आभास होता है।
अजन्ता के चित्रकारों ने अपने पात्रों की शोभा बढ़ाने के लिए इन्हें बहुमूल्य रत्नों से जड़ित मोतियों की लड़ियोंदार लम्बी मालाएँ तथा गर्दन में बड़े-बड़े मोतियों की मालाओं से युक्त चित्रित किया है। ये मालाएँ मुकुटों से माथे पर लटकती तथा गर्दन से वृक्ष स्थल पर लता के समान लहराती हुई प्रतीत होती हैं। अन्य आभूषणों में कानों में मीनाकार कुण्डल, पत्र कुण्डल, मटकाकार कुण्डल, भुजाओं में अनन्त, कमर में मोतियों या कड़ियों से युक्त करधनियाँ बनाई हैं। हाथों में कड़े, बाजूबन्ध, मणिबन्धों आदि से स्त्रियों के सुडौल हाथ और भी सुन्दर बन गये। 'वज्रपाणि', 'अप्सरा', 'राजकुमारी', गायक दल नामक चित्र इसके उपयुक्त उदाहरण हैं।
वस्त्रों के स्वाभाविक फहरान चित्रों में बखूबी दिखाये गये हैं। वस्त्रों की सिकुड़नें न तो हवा में फूली हुई जान पड़ती हैं और न उनमें भारीपन ही दिखाई देता है। पुरुषों को अधिकांशतः अधोभाग में धोती पहने या ऊपरी शरीर में चुस्त या ढीला कुर्ता पहने दर्शाया है। स्त्रियाँ कोहनी तक की आस्तीन की चोली तथा नीचे के भाग में धोती या आँचल पहने हैं। नर्तकियाँ विशेष प्रकार का चुस्त कुर्ता तथा तंग पायजामा पहने हैं। वस्त्रों आदि को सजाने के लिए सुन्दर आलेखन बनाये गये हैं, जिनमें पशु-पक्षियों तथा जलचरों का अंकन है।
(10) स्त्रियों का स्थान : अजन्ता के चित्रों में नारी लज्जा, ममता, वात्सल्य व विनय के प्रतीक स्वरूप चित्रित हुई है। नारी को प्रेयसी, रानी, विरहणी, राजकुमारी, गृहस्थ ग्राम्या नर्तकी, परिचारिका, वृद्धा, अप्सरा, बालिका, माता आदि नाम रूपों में चित्रित किया गया है। चित्रकार ने उसके अंग-प्रत्यंग के छरहरेपन, तीखे नाकनक्श तथा भावपूर्ण अंकन के बल पर उसे सौन्दर्य के सिद्धान्त के रूप में आलेखित किया है।
उसका रूप सर्वत्र मोहक और गौरवपूर्ण है। किसी भी चित्र में उसे दीन, अशोभनीय या हीन दृष्टि से नहीं दर्शाया गया है। उसके नेत्रों में दिव्य तेज और शरीर की सुडौलता उसकी एक-एक रेखा और अंकन अनुपात में दृष्टिगत हुए हैं। इसी से उनका नग्न रूप पाश्चात्य कामुकता वाला न होकर लज्जा व मातृत्व में अंकित हुआ है।
(11) हस्त मुद्राएँ, अंग एवं भाव-भंगिमाएँ : अजन्ता के चित्रों में विभिन्न हस्त मुद्राओं, अंग एवं भाव-भंगिमाओं की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। अजन्ता के कलाकारों ने चित्रों में अपने मन की समस्त भावनायें ऐसे सजीव ढंग से ढाल दी हैं कि ये मूल चित्र भी बोलते हुए प्रतीत होते हैं।
अजन्ता की आकृतियों का शैलीकरण भाव-भंगिमाओं से हुआ है। आकृतियों की बनावट, भावपूर्ण नेत्र, अधर, भौंहें, हस्त मुद्राएँ आदि के माध्यम से विषाद, स्नेह, वात्सल्य आदि भाव प्रदर्शित किये गये हैं। लोचदार अँगुलियों की बनावट शास्त्रीय नृत्य की प्रचलित मुद्राओं के समकक्ष है। यहाँ कलाकार ने समकालीन नृत्य कला की प्रचलित हस्त मुद्राओं का प्रयोग किया है, जिनमें नाटकीयता और लाक्षणिकता है। यहाँ चित्रकार ने बुद्ध तथा अन्य देवी-देवताओं को नैसर्गिक रूप प्रदान करने के लिए नृत्य की मुद्राओं को अधिक उपयुक्त समझा, क्योंकि इन मुद्राओं में भव्यता और भावाभिव्यक्ति में अपूर्व शक्ति दिखाई दी और समस्त पात्रों में वह दिव्य रूप प्रतिबिम्बितप्रतिबिम्बित हो पाया।
इस शैली में विभिन्न आकृतियों के निर्माण में सुन्दर हस्त मुद्राओं का प्रयोग हुआ है, जिनमें प्रमुख रूप से शांति की हस्त मुद्रा, शिखर हस्तमुद्रा, दण्ड हस्त मुद्रा, नीलकमल धारण किये भगवान बुद्ध की हस्तमुद्रा, ज्ञान हस्तमुद्रा, धर्मचक्र मुद्रा, कत्तकामुख मुद्रा, वैराग्य सूचक साधु की हस्तमुद्रा, सुन्दर व भावपूर्ण हैं। हस्त मुद्राओं में पुष्प लिए, वाद्ययंत्र बजाते, मधु पात्र पकड़े, चंवर दुलाते, वस्त्र पकड़े इत्यादि भी दिखाये गये हैं, जिनमें शरीर की कमनीयता प्रदर्शित होती है।
साधारण मनुष्य और महान् आत्मा के अन्तर को व्यक्त करने के लिए ये नृत्य मुद्राएँ अति उपयुक्त थीं। अतः कलाकार ने भगवान बुद्ध जैसी महान आत्मा के अंकन में भेद स्थापित करने के लिए संगीतपूर्ण मुद्राओं का सहारा लिया। 'गायक दल' तथा 'अप्सरा' नामक चित्र इसके सुन्दर उदाहरण हैं।
'पैर की मुद्राओं' का भी अजन्ता चित्रों में विशेष स्थान है। पैर की मुद्राओं द्वारा बैठने, चलने, शीघ्रता से चलने, लेटने, खड़े होने आदि का बड़ी सफलता से अंकन हुआ है।"
भाव प्रदर्शन की दृष्टि से अजन्ता के चित्रों में अंग-भंगिमाओं का विशेष महत्त्व है। कलाकार ने अपनी छन्दमय बुद्धि और कल्पना का परिचय देते हुए नारी को सुकोमल लतिका के समान लचकदार भंगिमाओं में अंकित किया है, जो आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण है। यहाँ के चित्रों में महाप्रजापति की भंगिमा दर्शनीय है, जिसमें वह एक कोमल लतिका के समान स्तम्भ के सहारे अपना बायाँ पैर मोड़े खड़ी है। वृक्ष की गोलाई और कमर की लचक कलाकार ने समस्त नारी चित्रों में अत्यधिक स्वाभाविक एवं सजीवता से दर्शायी है। उदाहरण के लिए 'अवलोकितेश्वर', 'मरती राजकुमारी', 'मार विजय', 'झूला झूलती युवती' के चित्र प्रमुख हैं। आकृतियों की विभिन्न भाव-भंगिमाएँ प्रदर्शित करते समय चित्रकार ने मांसपेशियों तथा अस्थिपंजरों का विशेष ध्यान रखा है, क्योंकि किसी भी आकृति में उसकी शारीरिक रचना में विकृति नहीं दिखाई देती और यही कारण है कि प्रायः सभी आकृतियों में चाहे पुरुष हो या स्त्री, पशु हो या पक्षी, सभी के मुखमण्डल से ही स्वभाव की उग्रता, सौम्यता, विनोद-प्रियता, चंचलता, दृढ़ता आदि का ज्ञान हो जाता है, जिससे चित्र और भी सजीव व स्वाभाविक दिखाई देते हैं। भय, शांति, श्रृंगार, हर्ष, रौद्र तथा वीर आदि भावों को चित्रकार ने चित्र आकृतियों की मुखाकृति पर विधिवत् दर्शाया है। भाव की दृष्टि से 'राजा के चरणों पर नर्तकी', 'वेस्सान्तर जातक', 'मार विजय' उत्तम उदाहरण हैं। भय, आतंक, याचना ग्लानि, शान्ति तथा आनंद आदि भावों का इन चित्रों में पूर्ण रूपेण अंकन हुआ है।
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