अजन्ता की गुफा संख्या
नौवीं एवं दसवीं
नवीं गुफा के चित्र : यह एक चैत्य गुफा है, जो बौद्ध भिक्षुओं के उपासना स्थल के रूप में तैयार की गई थी। यद्यपि गुफा संख्या नौ की रचना ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में हुई थी। तथापि इसमें हीनयान और महायान दोनों सम्प्रदायों से संबंधित चित्र हैं। इसके आधार पर यह माना जा सकता है कि इसका रचना काल तीसरी अथवा चौथी शताब्दी ईसवी तक विस्तृत रहा है। इस गुफा में एक ठोस हरमिक वाला (तीन छतरियों के शीर्ष वाला) पाषाण स्तूप बना है। गुफा की बनावट घोड़े की नाल के समान गोलाई लिए हुए खोदी गई है। इस गुफा में तेईस खम्भे हैं।
इस गुफा में 'ग्रिफिथ्स महोदय' ने एक दीवार का प्लास्टर का एक बड़ा खण्ड पपड़ी छुड़ाकर उसके नीचे चित्र खोजा, जो चट्टान पर पॉर्सलीन के समान चमकदार प्लास्टर चढ़ाकर उसके ऊपर से बनाया गया था। यह चित्र 'एक बैठी हुई स्त्री' का है, जो इस गुफा का सबसे प्राचीनतम चित्र है।
स्तूप पूजा : इस गुफा का अन्य प्रसिद्ध चित्र स्तूप पूजा का है। चित्र में लगभग सोलह व्यक्तियों का एक समूह (पुजारियों का एक दल) स्तूप की ओर जाते हुए दर्शाया गया है।
अर्धवृत्ताकार स्तूप, तोरणद्वार, पुरुषों की लट्टूदार पगड़ी, जिसमें लटूनुमा बड़ा मोती आगे माथे पर निकला है। पुरुषों के भारी वर्गाकार चेहरे, बड़े-बड़े मोतियों की मोटी मालाएँ, कान में भारी-भारी बड़े आभूषण, हाथों-पैरों में बड़े-बड़े कड़े, कमर में डेढ़ गाँठ लगाये हुए लटकते कमरबन्द अथवा फैंटे, जिनमें से बाहर निकला हुआ पेट दर्शनीय है। दायीं ओर के भाग में शहनाई, झांझ, मृदंग और शहनाई बजाते हुए वादक चित्रित हैं। किसी राजा अथवा श्रेष्ठी द्वारा चैत्य को बनवाकर संघ को भेंट देने के समारोह की घटना इस चित्र द्वारा प्रस्तुत की गयी है।
नागपुरुष : इसी गुफा के भीतरी भाग पर बायीं ओर खिड़की के ऊपर पर्वत कन्दरा पर एक वृक्ष की छाँव में दो नागपुरुष बैठे हुए चित्रित हैं। नाग राजा को प्रजा के लोगों की बातें सुनते दर्शाया गया है। उड़ती हुई अप्सराएँ चित्र में गति का बोध कराती हैं।
पशुओं को खदेड़ते चरवाहे: इस गुफा की एक अन्य भित्ति पर 'पशुओं को खदेड़ते चरवाहे' अंकित किये गये हैं। यहाँ पशुओं की चंचलता एवं गति का रेखाओं द्वारा सुन्दर अंकन है।
इन चित्रों की अपनी विशेषताएँ हैं, जो इनको गुप्तकालीन चित्रों से पृथक् कर देती हैं। उदाहरणार्थ-इन चित्रों में कुल चार रंगों का ही प्रयोग हुआ है। जिसमें काला, पीला, हरा तथा हिरौंजी है। सभी आकृतियों के चेहरे एवं मुद्राएँ एक जैसी हैं। भाव-भंगिमाओं का अभाव है। आँखें भावशून्य हैं। चित्रों की बाह्य रेखाएँ काले रंग से बनी हैं। यहाँ अनेक प्रकार के वृक्ष और उनमें अलग-अलग ढंग की पत्तियाँ बनाई गई हैं और अलग-अलग फूलों एवं फलों का अंकन है। इसको चित्रित करने में चित्रकार ने अपनी सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का परिचय दिया है। पशु-पक्षियों का चित्रण रीतिबद्ध ढंग से हुआ है। यहाँ स्तम्भों पर बुद्ध आकृतियाँ चित्रित हैं और भित्तियों पर चरवाहों के दृश्य भी बनाये गये हैं।
गुफा संख्या - दस
दसवीं गुफा के चित्र: यह एक प्राचीनतम चैत्य गुफा है, जिसकी गहराई पिच्चयानवें फुट है और ऊँचाई छत्तीस फुट। इस गुफा का पीछे का हिस्सा घोड़े की नाल की तरह गोल है। इसके अन्दर एक स्तूप है और गुफा की बाह्य भित्ति पर एक लेख खुदा हुआ है, जिसके अनुसार यह चैत्य गृह है, जिसे आन्ध्र सातवाहन काल में ईसा से प्रायः 200 वर्ष पूर्व बनाया गया था।
इस गुफा में दो विभिन्न कालों में चित्रण हुआ मिलता है। पहले वाले काल में साम जातक व छदन्त जातक के चित्र आते हैं, जो दाहिनी भित्ति पर हैं। आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व यहाँ अधिक चित्र पाये गये थे।
छदन्त जातक : अजन्ता के कलाकारों का प्रिय विषय 'छदन्त जातक' की कथा यहाँ चित्रित है। चित्रकार ने घने जंगल में हाथियों को जल क्रीड़ा में मग्न अंकित किया है। नाना प्रकार के वृक्ष जिनमें बरगद, गूलर तथा आम चित्रित हैं। इनमें छदन्त हस्ति अपनी हथिनियों को सूंड से कमल पुष्प देते या कहीं पर अपने को अजगर से बचाते चित्रित है।
दूसरी ओर जंगल में व्याघ्र प्रवेश करते हैं और छदन्त रूपी बोधिसत्व स्वयं उनके आगे समर्पण कर देते हैं। अन्तिम दृश्य में व्याघ्र को काशीराज के अन्तःपुर में पहुँचते दर्शाया है। काशीराज की रानी सुभद्रा पूर्व जन्म में छदन्त गज की हथिनी थी, अतः डाहवश वह छदन्त गजराज के दाँतों को काट कर लाने की आज्ञा देती है। कटे दाँतों को कहारों के कन्धों पर बहँगियों पर लदा हुआ देखकर मूर्छित हो जाती है। राजा सहारा देता है, चार दासियाँ जो पीछे खड़ी हैं, घबराई हुई हैं व एक दासी सहारा देने के लिए कदम आगे बढ़ा रही है।
जुलूस : बायीं भित्ति पर 'एक जुलूस' का चित्रण है, जिसमें 'बोधिवृक्ष व स्तूप की उपासना हेतु राजा तथा उनका दल' चित्रित है। दल में आगे पैदल, सशस्त्र घुड़सवार और पीछे राजा आठ स्त्रियों के बीच में है, जो तीव्र गति से चल रही हैं। चित्र में दो स्त्रियों ने अस्थि मंजूषा उठा रखी है। एक स्त्री पवित्र जल का कलश उठाये हुए है। स्त्रियों के वक्षस्थल खुले हुए व चेहरों पर अधीरता का भाव है। चित्र का निचला भाग नष्ट हो गया है।
साम जातक : इसी गुफा में 'साम जातक' का चित्र है, इसका कथानक श्रवण कुमार वाली कहानी से मिलता-जुलता है। इस चित्र में अन्धे माता-पिता की सेवा करने वाले एक काले वर्ण के युवक 'श्याम' को काशीराज के द्वारा तीर से मार देने की कथा आती है, लेकिन यहाँ वृद्ध माता-पिता के विलाप को सुनकर एक देवी ने 'श्याम' को पुनर्जीवित कर दिया है। कन्धे पर घड़ा लिए श्याम की आकृति सुन्दर है और माता-पिता की आकृति में वेदना है। भागते हुए हिरणों का अंकन भी मार्मिक है।
इस प्रकार उपर्युक्त चित्रों में संयोजनों की परिपक्वता, भाव, रेखांकन, रंग, लालित्य तथा चित्रोपम तत्त्वों के मेल का सुन्दर उदाहरण है।
इस गुफा में स्तम्भों पर बुद्ध की समभंगी आकृतियाँ बनी हैं। उनके कपड़ों तथा सिर के पीछे प्रकाश पुंज (तेज मण्डल) में गान्धार शैली का प्रभाव है। यहाँ दायीं ओर के पाँचवें स्तम्भ के नीचे एक पाँचवीं शताब्दी का लेख मिलता है, जिसके आधार पर इन बुद्ध आकृतियों का समय अनुमानतः पाँचवीं शताब्दी भी स्थिर किया जा सकता है।
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