अजन्ता की भित्ति चित्रण विधि क्या है?
What is the method of painting walls of Ajanta ?
अजन्ता की भित्ति चित्रण विधि
अजन्ता के चित्रों का धरातल तैयार करने के लिए सर्वप्रथम प्लास्टर की पर्त में खड़िया, चूना, गोबर का बारीक गारा गुफा की खुरदरी दीवार पर लगा दिया जाता था। इस गारे को कई दिन तक अलसी के पानी में भी भिगो कर फूलने के लिए रख दिया जाता था। कभी-कभी छत में लगाने वाले गारे में धान की भूसी मिलाने का भी प्रचलन था। प्लास्टर की पहली तह पौन इंच से लेकर एक इंच तक मोटी होती थी, जिसके ऊपर अंडे के छिलके की मोटाई के बराबर सफेद प्लास्टर का लेप चढ़ा दिया जाता था। इस प्रकार प्रत्येक गुफा को प्लास्टर से ओपा जाता था। फिर उसके ऊपर चित्रण होता था। इससे गुफाओं की चट्टानी दीवारों के छिद्र भर जाते थे और दीवार चित्रण के लिए समतल हो जाती थी।
'ई.वी. हैवेल' का मत है कि अजन्ता में चित्र पूर्ण हो जाने पर जब सूख जाते थे, तो चित्र में अत्यधिक प्रकाश को उभारने के लिए टेम्परा रंग से चित्रण किया जाता था (सफेद मिश्रित गाढ़ा रंग)।
'लेडी हैरिघम' के मतानुसार सफेद प्लास्टर पर पूर्ण विवरण सहित लाल रेखांकन करने के पश्चात् एक, दो पतले गन्दे रंग
टेरावर्ट (गंदा सब्ज रंग) खनिज रंग से कहीं-कहीं लाल रंग झलकता छोड़कर रंगों की अन्य तानें लगा दी जाती थीं और फिर स्थानीय रंग लगाये जाते थे। बाद में काले तथा भूरे रंग से निश्चित सीमा रेखाएँ बना दी जाती थीं। अन्त में आवश्यकता के अनुसार छाया का प्रयोग भी किया जाता था। गोलाई दर्शाने के लिए विरोधी रंग या काले रंगों के प्रयोग द्वारा आकृति को निश्चित रूप प्रदान किया जाता था।
परन्तु 'ग्रिफिथ्स महोदय' ने चित्र के रेखांकन में केवल लाल रंग के प्रयोग के द्वारा रेखांकन करने की पद्धति का वर्णन किया है।
गुफाओं का गणना क्रम तथा सुरक्षित चित्र
अजन्ता की 'तीस गुफाएँ' हैं। पहले उनतीस गुफाओं की एक श्रेणी थी, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व एक और गुफा का पता चला, जिसकी क्रम संख्या 15 अ रखी गई, क्योंकि यह गुफा 14 व 15 के मध्य अवस्थित है। अध्ययन की सुविधा हेतु अजन्ता की गुफाओं की गिनती पूर्व से पश्चिम की ओर की गई है, जिससे सभी विद्वान सहमत थे।
इन गुफाओं में
नवीं, दसवीं, उन्नीसवीं, छब्बीसवीं तथा
तीसवीं गुफाएँ
चैत्य गुफाएँ हैं, जहाँ पूजा, उपासना होती थी। शेष गुफाएँ साधुओं या बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान थीं। यानी ये गुफाएँ विहार हैं।
पहाड़ी के एक ओर बनी करीब सौ सीढ़ियों को चढ़कर गुफा संख्या एक तक पहुँचा जा सकता है। वर्तमान में गुफाओं तक पहुँचना सरल हो गया है।
सन् 1879 ई. में गुफा मंदिरों में सोलह गुफाओं में चित्र शेष थे। उनमें पहली, दूसरी, चौथी, सातवीं, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं, पन्द्रहवीं, सोलहवीं, सत्रहवीं, अठारहवीं, उन्नीसवीं, बीसवीं, इक्कीसवीं, बाइसवीं तथा छब्बीसवीं गुफाएँ चित्रों से अलंकृत थीं, किन्तु सन् 1910 ई. तक विशेष महत्त्वपूर्ण चित्रों के अवशेष, पहली, दूसरी, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं, सोलहवीं, सत्रहवीं, उन्नीसवीं तथा इक्कीसवीं गुफाओं में ही रह गये थे। इन नौ गुफाओं में से सत्रहवीं गुफा में ही सबसे अधिक चित्र प्राप्त हैं।
अजन्ता गुफाओं का निर्माण व रचना काल
अजन्ता की गुफाएँ एक समय पर ही नहीं बनीं, अपितु चट्टान में सुविधानुसार गुफाएँ निर्मित की गई। यहाँ पर प्राप्त एक अपूर्ण गुफा को देखने से पता चलता है कि गुफाएँ ऊपर से नीचे की तरफ उत्खनित होती थीं। सर्वप्रथम गवाक्ष, फिर छतें, खम्भे, भित्तियाँ तथा अन्त में मुख्य द्वार का निर्माण होता था। गुफाओं को मौर्यकालीन काष्ठ भवन निर्माण के नमूने पर बनाया गया था।
अनुमानतः
तेरहवीं गुफा सबसे प्राचीन मानी जाती थी (200 ई. पूर्व)। इसकी दीवारों पर चमकदार
मौर्यकालीन पॉलिश है। आठवीं, बारहवीं, तेरहवीं गुफा में ये चित्र नहीं है, किन्तु ये प्राचीन हैं।
आठवीं, नवीं तथा ग्यारहवीं गुफाएँ सम्भवतः 200 ई. पूर्व से परवर्ती हैं, क्योंकि इनमें कुछ मूर्तियाँ भी हैं। आठवीं से तेरहवीं गुफा तक की छः गुफाएँ प्रारम्भिक हीनयान बौद्ध धर्म से संबंधित हैं और अनुमानतः 200 ई.पू. तथा 150 ई.पू. से कुछ बाद तक लगभग 350 वर्षों के काल में अनुमानतः तैयार की गई हैं। शेष सारी गुफाएँ
महायान बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। छठी तथा सातवीं गुफाएँ 150 ई. से 500 ई. के मध्य की हैं। शेष अर्थात् पन्द्रहवीं से बाइसवीं तथा उन्नीसवीं और पहली से पाँचवीं तक की गुफाएँ 500 ई. तक बनी हैं। कई गुफाएँ अधूरी हैं।
'जेम्स फर्ग्युसन' के अनुसार पहली गुफा सबसे बाद में चित्रित की गई है।
अजन्ता के भित्ति चित्रों का कालक्रम
इन गुफाओं में प्राप्त चित्र उसी समय वहीं चित्रित हुए, जिस समय इन गुफाओं का निर्माण हुआ। सबसे प्राचीन चित्र निश्चित रूप से नवीं तथा दसवीं गुफा में हैं। इनमें से कुछ गुफाओं के चित्र पुनः ऊपर से बनाये गये हैं, जिससे पूर्व में बनाये चित्र ढक गये हैं। ये गुफाएँ दक्षिण के आंध्र राजाओं के संरक्षण में चित्रित की गई थीं। यद्यपि ये राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी नहीं थे और न ही इनके प्रचार में अवरोध उत्पन्न करते थे। इसके पश्चात् ऐसा प्रतीत होता है कि अगले 100 वर्षों तक अजन्ता में चित्र ही नहीं बने।
यहाँ पर अधिकांश चित्र 'चालुक्य राजाओं' (550-642 ई.) तथा 'बरार के वाकाटक राजाओं' के समय में बनाये गए। सोलहवीं गुफा में एक वाकाटक लेख से पता चलता है कि ये राजा शैव थे, इसलिए पल्लव राजाओं के शासनकाल में चित्रकारी का कार्य रुक गया था।
अजन्ता गुफाओं में जो चित्रकारी हुई, उसके कालक्रम को लेकर सभी विद्वान एकमत हैं।
1. गुफा संख्या 9 तथा 10-200 ई.पू. से 300 ई.पू. तक।
2. गुफा संख्या 8 तथा 10 के स्तम्भ- 350 ई.पू. से 500 ई.पू. तक।
3. गुफा संख्या 16 तथा 17-350 ई.पू. से 500 ई.पू. तक।
4. गुफा संख्या 4, 6, 11 तथा 15 भी इसी काल में चित्रित हैं, परन्तु अब चित्र शेष नहीं हैं।
5. गुफा संख्या 1 तथा 2-500 ई.पू. से 628 ई.पू. तक।
चित्रों की सुरक्षा
देश-विदेश में प्रसिद्ध अजन्ता के चित्र सुरक्षित नहीं रह पाये। सर्वप्रथम तो हैदराबाद राज्य के निज़ाम ने इनकी सुरक्षा में रुचि नहीं दिखाई और बाद में छोटे तबके के अधिकारियों ने इसे क्षति पहुँचाई। सुरक्षा के लिए रखा गया पदाधिकारी अजन्ता के भित्ति चित्रों में से उत्तम आकृतियों के सिर के भाग का प्लास्टर खण्ड दीवार से काट-काट कर दर्शकों को धन के लोभ में भेंट करता रहा। 'डॉ. बर्ड' जो मुम्बई में पुरातत्त्ववेत्ता थे, ने भी मुम्बई संग्रहालय को लाभान्वित करने की दृष्टि से इसे क्षति पहुँचाई। दूसरी ओर पक्षियों (चमगादड़ों, कबूतरों व अन्य जीव-जन्तुओं) के घोंसले एवं साधुओं एवं अन्य महानुभावों द्वारा खाना पकाने के धुआँ आदि से भी चित्र धुँधले और काले पड़ गये या फिर आम जनता ने इसे जगह-जगह से खुरच डाला।
सन् 1903 से 1904 ई. के बीच पुरातत्त्व विभाग ने प्रमुख चित्रों के सामने जाली लगवा दी व यथोचित सफाई भी कराई गई। संरक्षण हेतु एक विस्तृत योजना के अन्तर्गत इटली के भित्ति चित्र विशेषज्ञों को सन् 1920 से 22 ई. तक बुलाकर इन चित्रों की सफाई व संरक्षण कराया गया। रासायनिक उपचार से चित्रों को साफ किया गया और जहाँ-जहाँ प्लास्टर में दरार पड़ गई थी, उन्हें प्लास्टर ऑफ पेरिस से भर दिया गया, जिससे प्लास्टर खण्ड, दीवार से गिर न जाये। कहा जाता है कि सुरक्षा के नाम पर केमिकल्स व वार्निश के प्रयोग से चित्र सौन्दर्य में ह्रास हुआ है।
सन् 1908 ई. में अजन्ता के क्युरेटर (Curator) की नियुक्ति हुई और फिर सन् 1956 ई. में भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग ने गुफा चित्रों के संरक्षण का कार्यभार अपने हाथों में संभाल लिया। आज बहुत से चित्रों को शीशों व कपड़ों के पर्दों से ढक दिया गया है ताकि बाह्य प्रकाश-पुंज चित्रों की चमक को कम न कर दे।
आज से लगभग छः सौ वर्ष पूर्व की ये कला साधना के अवशेष अजन्ता में अभी चित्रों के रूप में सुरक्षित हैं। इनकी अनेक प्रतिलिपियाँ बनाई जा चुकी हैं एवं असंख्य फोटोग्रॉफ छप कर जनता के समक्ष पहुँच चुके हैं। सन् 1976 ई. में अभी तक के शोध एवं लेखों के आधार पर 'अजन्ता म्यूरल्स' (Ajanta Murals) नामक पुस्तक प्रकाशित कर दी गई है।
चित्रों के विषय
आलंकारिक आलेखनों को छोड़कर अजन्ता बौद्ध धर्म का सृजन केन्द्र था। अतः इन गुफाओं में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म से संबंधित चित्रों का समावेश नहीं हुआ। बुद्ध के उपदेश एवं बुद्ध के जन्म-जन्मांतर की जीवन कथाओं का 'जातक कथाओं' के अन्तर्गत चित्रण हुआ है।
'वाचस्पति गैरोला' ने अपनी पुस्तक 'भारतीय चित्रकला' में अजन्ता के चित्रों के विषयों को तीन भागों में बाँटा है।
प्रथम श्रेणी - अलंकारिक : जिसमें विविध आलेखन बनाये गये हैं, जैसे फूल, पत्तियाँ, पुष्पों की बेलें, कमलदल, लताएँ, वृक्ष, पशु-पक्षी, अलौकिक पशु, राक्षस, किन्नर, नाग, गरुड़, यक्ष, गन्धर्व, अप्सराएँ आदि।
द्वितीय श्रेणी - रूप भैदिक : बुद्ध के दार्शनिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप तथा पद्मपाणि, वज्रपाणि, बोधिसत्व, अवलोकितैश्वर आदि के स्वरूपों के साथ बुद्ध के जन्म से मृत्यु तक विविध पहलुओं यथा बुद्ध जन्म, मायादेवी का स्वप्न, महाभिनिष्क्रमण, संबोधि निर्वाण और बुद्ध के जीवन की अलौकिक घटनाएँ प्रमुख हैं, जैसे-विवाह, गृह त्याग आदि।
तीसरी श्रेणी - जातक कथाएँ : जातक कथाओं के चित्रों में जातकों से अनुबद्ध (जातक कथाएँ) अनेक ऐसी प्राचीन कथाएँ हैं, जिनमें भगवान बुद्ध के जीवन से संबद्ध सर्वविदित घटनाओं का कथा रूप में निरूपण किया गया है, जैसे- ब्राह्मण जातक, शिवि जातक, छदन्त जातक, वेस्सान्तर, हस्ति, मुखपंखजातक, रूरूजातक, मृग आदि जातक कथाओं का चित्रण हुआ है।
अजन्ता के भित्ति चित्रों में रंग
अजन्ता के भित्ति चित्रों में खनिज रंगों का ही प्रयोग हुआ है, ताकि वे चूने के क्षारात्मक प्रभाव से अपना अस्तित्व खो न बैठें। रंगों में सफेद, लाल, पीला और विभिन्न भूरे रंगों का प्रयोग हुआ है। इसके अतिरिक्त नीला (लेपिस लाजुली) और गन्दे हरे (संग सब्ज टेरावर्ट) रंग हैं। सफेद रंग अपारदर्शी है और चूने या खड़िया से बनाया गया है। लाल तथा भूरे खनिज रंग हैं। हरा रंग एक स्थानीय पत्थर से बनाया गया है। लेपिस लाजुली रंग फारस से आयात किया जाता था, शेष रंग स्थानीय थे।
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