प्रागैतिहासिक चित्रकला
मध्य प्रदेश के प्रमुख क्षेत्र
पंचमढ़ी :- यह स्थान महादेव पर्वत श्रृंखला में अवस्थित है। पंचमढ़ी के आसपास कोई 5 मील के घेरे में 50 के करीब दरियाँ (गुहाएँ) हैं। इन सभी में महत्त्वपूर्ण प्रागैतिहासिक चित्र उपलब्ध हुए हैं।
पंचमढ़ी क्षेत्र के चित्रों को प्रकाश में लाने का श्रेय 'डी.एच. गॉर्डन' नामक विद्वान को है, जिन्होंने सन् 1936 ई. में यहाँ के चित्रों के संबंध में रेखाचित्रों तथा फलक चित्रों सहित 'एक विशद लेख' प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने 15 से अधिक शिलाश्रयों एवं गुफाओं की खोजबीन की। इनके साथ-साथ कुछ अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं, जिनके आधार पर उनका निर्माणकाल 9वीं व 10वीं शताब्दी में निर्धारित किया है। यही पर महादेव पर्वत के चारों ओर अवस्थित 'इमली खोह' में सांभर के आखेट का दृश्य, 'भाडादेव गुफा' की छत पर शेर के आखेट का दृश्य और 'महादेव बाजार' में विशालकाय बकरी का चित्र प्राप्त हुआ है।
'लश्करिया खोह, सोन भद्रा', 'जम्बू द्वीप', 'निम्बूभोज बनिया बेरी, 'माड़ादेव', 'नाकिया' और 'झलाई' आदि स्थानों में अनेक चित्रित शिलाश्रय गुफाएँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ पर पशु तथा आखेट चित्रों के अतिरिक्त, सशस्त्र युद्ध दृश्यों, आखेट तथा 'नृत्यवादन' के चित्र मिलते हैं। इसके अलावा दैनिक जीवन के दृश्य भी, अंकित हैं। यहाँ प्रायः तीन श्रेणियों के चित्र दिखाई देते हैं-
1. पहले स्तर में तख्तीनुमा व डमरूनुमा मानवाकृतियों को बनाया गया है। जिनके शारीरिक गठन को लहरदार रेखाओं से दिखाया है। इनमें लाल (गेरू), पीले रंगों की अधिकता है।
2. दूसरे स्तर में वे चित्र आते हैं, जिनमें आकृतियों का रूपविन्यास बेडौल, ओजपूर्ण एवं असंतुलित है। इनमें केवल उनका अहेरिया (शिकारी) रूप ही अभिव्यंजित है।
3. तीसरे स्तर में आकृतियाँ कुछ स्वाभाविक बन पड़ी हैं। कुछ अन्य चित्र आम 'घरेलू जीवन' तथा 'सामाजिक जीवन' से सम्बद्ध हैं। इनमें 'आखेट के लिए प्रस्थान करते', 'शहद एकत्रित करते हुए', 'घुड़सवार योद्धा', 'वाद्य यंत्रों को बजाते वादक', 'शस्त्रधारी सैनिक' इत्यादि को दिखाया है। इन चित्रों के रंग काले, कुछ सफेद हैं, जिन्हें बाहर से लाल रंग की रेखा में आकृतिबद्ध किया गया है।
पहाड़गढ़ : ग्वालियर से 150 किलोमीटर दूर 'मोरेना जिले' में पहाड़गढ़ के निकट असान नदी के तट पर एक घाटी में लगभग 10,000 ई.पू. से लेकर 100 वर्ष पूर्व के मध्य की गुफाएँ व शिलाचित्र प्राप्त हुए हैं। 1,500 वर्ग में फैली ये गुफाएँ मधुमक्खियों के छत्तों से भरी हुई हैं। मानवाकृतियाँ घोड़ों, हाथी पर सवार, तीरों, भालों व धनुषों से युक्त हैं।
रायगढ़ : यह मध्य प्रदेश का प्रमुख जनपद है। यहाँ भी प्रागैतिहासिक चित्र प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुए हैं। यहाँ कबरा पहाड़ी क्षेत्रों व सिंघनपुर गाँव के निकट कुछ दरियाँ मिली हैं। इसी के पास 'बौतालदा' की विशाल गुफा में हिरण, छिपकली व जंगली भैसों का अंकन है। एक दृश्य में जंगली भैंसे का शिकार करते हुए मानवाकृतियों को भैंसे के चारों ओर संयोजित किया गया है। रेखाएँ भावपूर्ण एवं ओज लिए हैं। अन्य चित्रों में नाचते, युद्ध करते एवं पालतू पशुओं के सजीव चित्र हैं। ये चित्र गेरू तथा रामरज जैसे भूरे रंगों में बने हैं।
भीमबेटका : इसकी खोज का श्रेय उज्जैन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर 'वाकणकर' को है। ये गुफाएँ मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 60 किलोमीटर दक्षिण में 'भीमबेटकाभीमबेटका' नामक पहाड़ी पर स्थित और होशंगाबाद से भोपाल की ओर जाने वाली रेल लाइन पर बरखेड़ा तथा उव्वेदुल्लागंज स्टेशनों के मध्य स्थित हैं। यह स्थान मियापरसु (भीमपुरा) नामक आदिवासी गाँव से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इनमें प्रस्तर सामग्री प्राप्त हुई है, वह 30,000 ई.पू. से 10,000 ई. पूर्व की है। इस पहाड़ी पर लगभग 600 प्राचीन गुफाएँ प्राप्त हुई हैं। जहाँ करीब 275 गुफाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हैं। यहाँ एक विशिष्ट चित्रसंसार रचा गया है। ऐसी विस्मयपूर्ण प्रागैतिहासिक चित्रशालाएँ अन्यत्र नहीं मिलतीं।
यहाँ चित्रों के दो स्तर मिलते हैं, जो 8,000 ई.पू. से लेकर 15,000 ई.पू. तक के हैं। पहले स्तर के चित्रों में 'शिकार नृत्य' हिरण, बारहसिंगा, सुअर, रीछ, जंगली भैंसे, घोड़े, हाथी एवं अस्त्रधारी घुड़सवार हैं। दूसरे स्तर पर मानवों को जानवरों के साथ अन्तरंग मित्र के रूप में दिखाया है। जब मानव ने खेती व पशुपालन के तरीके समझ लिए थे। यहाँ पर आखेटक, कृषक, ग्वाले आदि चित्रित हैं व प्राचीन प्रस्तरयुग से भी प्राचीन मानव के अस्त्र-शस्त्र मिले हैं।
मन्दसौर : मन्दसौर जिले में 'मोरी' स्थान पर बने गुहा चित्र भी प्रसिद्ध हैं। यहाँ 30 पहाड़ी खोहे हैं, जिनमें प्रमुख रूप से 'स्वास्तिक', 'चक्र', 'सूर्य', 'सवतो भद्र', 'अष्टदल', 'कमल' व 'पीपल की पत्तियों' के प्रतीकात्मक चिह्न हैं। 'देहाती बाँस से बनाई गाड़ियाँ' भी यहाँ चित्रित हैं। 'नृत्यरत मानव', 'पशु' और 'पशुओं को हाँकते ग्वाले' दिखाये गये हैं।
होशंगाबाद : होशंगाबाद नगर (मध्यप्रदेश) पंचमढ़ी से 45 मील दूर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस नगर से इटारसी जाने वाले मोटर मार्ग पर 2.5 मील की दूरी पर 'आदमगढ़ पहाड़ी' पर बने एक दर्जन से अधिक शिलाश्रय हैं, जहाँ मनोहारी चित्रांकन हुआ है। इनमें 'जंगली भैंसे', 'घोड़े', 'हाथी सवार', 'अस्त्रधारी घुड़सवारों', (के दल का चित्र, जिनमें रेखाओं की पुनरावृत्ति से घोड़ों की आकृति में अद्भुत गति प्रदर्शित होती है) "जिराफ समूह', 'चार धनुर्धारी' (आकृतियों की गति है) आदि क्षेपांकन (Stencil) पद्धति से निर्मित है।
आदमगढ़ : आदमगढ़ की एक गुफा में एक हाथी पर चढ़े आखेटकों को जंगली भैंसे का आखेट करते हुए चित्रित किया है। छलांग लगाते बारहसिंगा का एक चित्र है, जो गहरी पृष्ठभूमि पर पीली रेखाओं से उकेरा गया है।
मध्यप्रदेश में उपयुक्त स्थानों के अतिरिक्त 'रायसेन', 'रीवा', 'पन्ना', 'छतरपुर', 'कटनी', 'सागर', 'नरसिंहपुर', 'बस्तर', 'ग्वालियर' व 'चम्बल घाटी' ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ सैकड़ों दरियों में आदिम मानव के दैनिक जीवन की कहानी रेखाओं व रंगों में चित्रित हैं।
'भोपाल क्षेत्र' में 'धरमपुरी गुहा मंदिर', 'शिमलारिल', 'बरखेड़ा सांची', 'सेक्रैटरियेट', उदयगिरी' आदि में आदिम चित्रकला के उदाहरण प्राप्त हैं।
'ग्वालियर क्षेत्र' में 'शिवपुरी' के पास भी आदिम चित्र प्राप्त हुए हैं।
सिंघनपुर : सिंघनपुर के चित्रों की खोज सन् 1910 में 'डब्ल्यू. एण्डर्सन' ने की। तत्पश्चात् 'अमरनाथ' ने सन् 1913 ई. में व सन् 1917 ई. में 'पर्सी ब्राऊन' ने इन चित्रों का परिचय दिया। सिंघनपुर नामक ग्राम छत्तीसगढ़ की रायगढ़ रियासत में माँठ नदी के किनारे पूर्व की ओर स्थित है। सिंघनपुर ग्राम में 'पचास' चित्रित शिलाश्रय एवं गुफाएँ मिली हैं। इसके द्वार पर 'असंयत कंगारू' के चित्र चित्रित हैं। सिंघनपुर के पास एक सुरंगनुमा गुफा में पशुओं का अंकन बहुतायत में है, जिसमें 'घोड़ा', 'बारहसिंगा', 'हिरण', 'भैंसा', 'सांड', 'सूँड उठाये हाथी' तथा 'खरगोश' आदि का सजीव चित्रांकन है। यहीं पर एक गुफा की दीवार पर 'जंगली सांड को पकड़ते हुए, बछीं से छेदते हुए आखेटकों' का मनोहारी दृश्य है व कुछ चारों ओर से उसे घेरते हुए चित्रित हैं। कुछ पशु हवा में उछल गये हैं, तो कुछ जमीन पर गिरे पड़े हैं। इसी दीवार पर एक अन्य चित्र में 'घायल भैंसा' बुरी तरह तीरों से बिंधा हुआ दम तोड़ रहा है। उसके चारों ओर भाले लिए शिकारियों का दल है।
इसी क्षेत्र में 'कबरा पर्वत', 'करमागढ़', 'खैरपुर' तथा 'बोतालदा' में अनेक शिलाश्रय गुफाएँ प्राप्त हुई हैं, जहाँ पर क्षेपांकन पद्धति के चित्र प्राप्त हुए हैं। इन चित्रों को 'इतिहासकार गॉर्डन' ने पर्याप्त परवर्ती माना है।
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